We have all been criticising about what is not being done by the government. However, we rarely give our own solutions to any problem that we see. May be the suggestion is ridiculous - but still if we look things in a positive way may be we can suggest solutions which some one can like and decide to implement. I know this is very wishful thinking but this is surely better than just criticising.

Thursday, December 19, 2024

बुजुर्ग बचपन की यादें भुला नहीं पाते

आकाशवाणी का एक चैनल है विविध भारती। यह चैनल रेडियो सुनने वाले बुजुर्गो के बीच बहुत प्रचलित है। इस पर ज्यादातर पुराने गाने आते है, जिन्हें सुनने पर उन दिनो की यादें ताजा हो जाती है। अगर वो फिल्म देखी हुई होती हैं, तो मन मे वो दृश्य सामने आ जाते है। कई बार तो अगर बच्चें भी साथ सुन रहे होते हैं तो वो बहुत ही आश्चर्यचकित हो जाते हैं कि ऐसे भी गाने फिल्माएं जाते थे – शब्दों में इतनी भावुकता और संगीत इतना मीठा। वैसे, अगर आज भी युवा अंताक्षरी खेल रहे हो तो बहुत से पुराने गानों को ही शामिल किया जाता हैं।

बचपन की सुनहरी बातों की याद दिलाने के लिए वाट्सएप पर अनेकानेक मैसेज आते है। एक मैसेज आया जिसमे दिखलाया गया कि बुजुर्गो के एक कार्यक्रम में सभी से ऐसे खेल खिलाये गए जो उनके बचपन में प्रचलित थे। गुल्ली-डंडा, कंचे या अंटा, पिट्ठू, जमीन पर चॉक से कुछ बॉक्स बनाकर देखे बिना पीछे से छोटा पत्थर फैकना और फिर कूदना वगैरह जैसे खेलो में सभी ने भाग लिया। सबसे मजेदार दृश्य तो वह लगा जिसमें बुजुर्ग लोग साइकिल चक्के के रीम को एक डंडे से दौड़ा रहे थे। याद आने लगा की हम भी ये सब कितने चाव से खेलते थे। न धुल मिट्टी की परवाह न भूख का एहसास। इन सारे खेलों में एक खास बात ध्यान देने योग्य हैं कि ये सब बगैर किसी खर्च के ही हमें अनुपम आनंदित कर देते थे। समय परिवर्तनशील है, बहुत से नए नए खेल आ गए हैं और अब तो समय इतनी तेजी से बदल गया है कि नए जमाने के खेल भी गायब हो गए। इन सबकी जगह ले ली है मोबाइल फोन ने। सोते-जागते, उठते-बैठते, भोजन के वक्त भी इसे कोई अपने हाथों से अलग नहीं होने देता। कल क्या होगा भगवान ही जाने।

याद तो स्कूल के दिनों की भी बहुत आती हैं। हमारे वो दोस्त, हमारे वो शिक्षक, हमारी बदमाशियां और फिर हमारी सजा (पनिशमेंट)। बैंच पर खड़ा होना, हाथ ऊपर कर के खड़ा होना, दीवार की तरफ देखकर या क्लास के बाहर खड़ा होना, मुर्गा बनना या निल डाउन होना, कान पकड़ना, ब्लेक बोर्ड साफ करना, होटो पर अंगुली रखकर खड़ा होना, क्लास समाप्त होने के बाद भी रुकना, एक लाइन या एक शब्द को दस बार लिखना तो सामान्य सी बात थी। गाल पर चांटा या हथेली पर स्केल से पिटना भी काफी होता था। बड़ी शैतानीयों पर तो केनींग, झुक कर पिछवाड़े पर बेंत से पिटाई भी हो जाती थी। स्कूल की सजा हम स्कूल में ही भूल कर हंसते हंसते घर आ जाते थे परन्तु आज के दिन तो अगर किसी बच्चे को एक थप्पड़ भी लगा दिया तो बवाल हो जाता है। शिक्षक व स्कूल पर पुलिस केस तक होने के समाचार अखबार में पढ़ने को मिल जाते है।

आजकल स्कूल की छुट्टियों पर किसी पर्यटक स्थल पर जाने का रिवाज आम हो गया है। हमारे बचपन के दिनों में तो हम सबका ननिहाल या भुआ के यहां ही जाना होता था। कभी कभी अपने पैतृक गांव या तीर्थ करने भी चले जाते थे। हमारा सफर ट्रेन से होता था और उसका आनंद ही अलौकिक था। खाने पीने का सारा प्रबंध घर से कर के निकलते। गर्मी के दिनों में तो कईयों के पास सुराही तक ट्रेन में दिखाई दे जाती थी। आज भी सुराही के उस मीठे ठंडे पानी का अनुभव याद आता है। ट्रेन में एक साथ मिलकर खाना खाने का मजा ही ओर था। आज तो बिरले ही घर के भोजन का आनंद यात्रा में लेते हैं।

बचपन की यादें हमारे जीवन का अहम हिस्सा होती हैं जो हमें हमारे बालपन के जीवन के अच्छे पलों की याद दिलाती हैं। ये वो यादें है जो हमारे भीतर के बच्चे को जीवित रखती हैं और ये ही वो यादें है जो हमारी सोच और भविष्य को आकार देती है। बचपन में हमारी इच्छा होती थी कि हम जल्द बड़े हो जाएं और वह सब कर सके जिसकी उस आयु में हमें मनाई थी, पर बड़े करते थे। आज इतनी परेशानियों के बीच तो यहीं मन में आता है कि काश वो बचपन के दिन वापस आ जाएं। कभी घर पर जब परिवार के साथ गोष्ठी होती हैं तो हमें अपने बच्चो के अपने छोटेपन की बांतो को बताने में बहुत आनंद आता है। मजे की बात तो यह होती हैं की उन बातो को बच्चें भी चाव से सुनते हैं। हम कितने ही व्यस्त हो जाए बचपन की यादें भूल नहीं पाते। कई बार तो उन यादों को याद करके अपने अकेलेपन में भी हम हंसते मुस्कराते है। 

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वरिष्ठ ट्रंप की जीत – युवाओं को सीख

20 नवंबर को दुनिया के सबसे ताकतवर व अमीर देश अमेरिका में सम्पन्न हुए राष्ट्रपति के चुनाव में 78 वर्षीय डॉनल्ड ट्रंप की विजय हम सब के लिए, खास कर युवाओं के लिए बहुत बड़ी सीख है।

हम भारतीय ज्यादातर इस आयु में किसी तीर्थस्थल में दर्शन के लिए जाने में भी संकोच करते हैं। बिरले ही इसके अपवाद होते है। पिछले सप्ताह ही मेरे एक 77 वर्षीय मित्र को मुंबई से गोवा, क्रूज में जाने का प्रस्ताव मिला। उनकी प्रबल इच्छाशक्ति के कारण वो कुछ अस्वस्थ होते हुए भी तीन दिन के प्रवास के बाद एक बहुत ही यादगार छुट्टी बिताकर वापस आए। उनकी बेटी ने तो उन्हें इस ट्रिप पर न जाने का आग्रहपूर्ण सुझाव दिया और इसी बात को लेकर कुछ आपस में मन-मुटाव भी हुआ। उनके आनंदित होकर लौटने पर परिवार में सभी प्रसन्न हैं।

ट्रंप ने 70 वर्ष की आयु में पहली बार अमेरिका के राष्ट्रपति का चुनाव 2016 में जीता। 2020 के चुनाव में रिपब्लिकन पार्टी ने उन्हें पुनः उम्मीदवार बनाया पर वो सफल न हो पाए और डैमोक्रेटिक पार्टी के जो बिडन से हार गए। इस पराजय के पश्चात 74 वर्षीय ट्रंप उसी समय से कार्य करने लगे 2024 के इलेक्शन के लिए। और अथक प्रयास से 78 वर्ष की आयु में पुनः जीत कर वो सबको आश्चर्यचकित कर दिये।

इस आयु में इतने महत्वपूर्ण पद पर अपने को स्थापित करना बहुत बड़ी बात है। इसके लिए श्रेय जाएगा इनकी प्रबल इच्छाशक्ति को, इनके स्वस्थ शरीर की और इनकी आर्थिक सम्पन्नता की। यह सीख हमारे युवाओं के जीवन के लिए बहुत महत्वपूर्ण सबक और प्रेरणादायक है।

हमे छोटी आयु से ही अपने शरीर को स्वस्थ रखने के लिए उचित कदम आगे बढ़ाने होंगे। नियमित व्यायाम, योग व खान-पान पर ध्यान देना होगा। आज स्वास्थ्य के प्रति, सभी आयु वर्ग के व्यक्तियो के मध्य, जागरूकता बहुत आ गयी है। शहर में फिटनेस सेन्टर, जिम, की इकाईयां जिस अनुपात में बढ़ रहे है उससे भी इस कथन को बल मिलता है। नियमित होने की डिसिप्लिन जरूर रखनी होगी। अक्सर देखा गया है कि बहुत से युवा जिम जॉयन तो कर लेते है पर नियमित नहीं होते। इससे उनकी सेहद पर उल्टा ही असर होने लगता है। आजकल पार्को में भी बहुत युवा नजर आएंगे व्यायाम करते हुए, योग करते हुए। उधर खेलों में भी युवा शक्ति पहले की तुलना में बहुत ज्यादा की संख्या में उतर आये है।

स्वास्थ्य के प्रति जागरूक होने के साथ युवा शक्ति को अपने खानपान पर विशेष थ्यान देना होगा। होटलो में खाना, ऑनलाइन सुविधा से बाहर का भोजन घर पर ही मंगाना आम हो गया है। परिवार से दूर पढ़ाई या जीविकोपार्जन कर रहे युवको को तो, आवश्यकतानुसार यह सब करना ही पड़ता है। फिर भी अपने विवेक से सावधान रहना महत्वपूर्ण है। अच्छा खान-पान केवल शरीर के स्वास्थ्य पर ही असर नहीं करता, अपितु मनोवृति पर भी प्रभाव डालता है। कुछ दिनों पहले ही दिल्ली में एक छ दिवसीय स्वास्थ्य संबंधी कैंप ‘सन टू ह्युमन फाउन्डेशन’ द्वारा लगाया गया। इनके द्वारा विभिन्न तकनिक द्वारा स्वास्थ्य सुधारने के बहुत लाभकारी उपाय सिखाए गएं। बहुत से ऐसे व्यक्ति भी मिले जिनको इनकी सिखाई हुई पद्धती से काफी लाभ हुआ। इनकी प्राथमिकता थी कि सही समय पर सही खान-पान होना चाहिए। इस पद्धति का मानसिक स्वास्थ्य पर भी प्रबल असर होता है, ऐसा इनका मानना है।

78 वर्षिय ट्रंप अपने चुनावी केम्पेन में खूब प्रवास कर रहे थे, आज यहां तो कल वहां। इतना ट्रेवल करना और सभी जगह भाषण करना कोई आसान काम नहीं था। य़ह तभी संभव हो सका क्यूंकि इनके स्वास्थ ने इनका साथ दिया। आज के युवाओं को यह समझना होगा कि युवावस्था में अपने स्वास्थ का उस हिसाब से ध्यान रखे कि जब वो 70 वर्ष के पार जाने लगेंगे तब उनकी सेहद अच्छी रहे।

इसी तरह युवको को अपनी आर्थिक प्लॉनिंग भी युवावस्था से करनी होगी। जब वो बड़े होंगे उनके पास पर्याप्त धन होगा तभी उनका जीवन सुचारू रूप से चल सकेगा। आज से बचत की और सही जगह इन्वेस्टमेंट करने की सही सलाह लेकर क्रियान्वन करना आवश्यक है। जीवन यापन की लागत हर वर्ष बढ़ती जा रही है। स्वास्थ्य संबंधी खर्च बहुत बढ़ता जा रहा है। यहां तक की मेडी इन्स्योरेंस का प्रिमियम तब बहुत बढ़ गया होगा।

आयु बढ़ने के साथ शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए इन बातों का ध्यान रखना आवश्यक हैं:

  • व्यायाम करें और शारीरिक रूप से सक्रिय रहें
  • स्वस्थ भोजन करें
  • वित्तीय नियोजन आज ही शुरु करे।

केवल ट्रंप ही नहीं, हमारे भारत में भी बहुत विभूतियां है जो सत्तर-अस्सी की आयु में सफलतापूर्वक समाज सेवा, देश सेवा आदि अनेक प्रभाव पूर्ण कार्य कर रहे हैं। हमारी युवा पीढ़ी को चिन्तन और मनन की आवश्यकता है।
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समाज सेवा में अग्रणी भूमिका निभाए वरिष्ठ जन

एक उम्र आने के पश्चात बहुत से लोगो में यह विचार पल्लवित होते रहते है कि वो अब क्या करे, अपना समय कैसे व्यतीत करे? सबके पास वो सुख भी नहीं होता कि वो एक बड़े परिवार का हिस्सा हैं जहां बेटे, बहू, और उनके बच्चे साथ रहते हो। ज्यादातर वरिष्ठ जन अपने बच्चों को पढ़ा-लिखा दिये और ये बच्चे अपनी जीविकोपार्जन करने में व्यस्त हो गए। कई तो माता-पिता से अलग शहर में भी रहने लगे। ऐसे में वरिष्ठ जन अपने ज्ञान व अनुभव का भरपूर उपयोग कर सकते हैं समाज के लिए काम करके।

भारतीय परंपरा रही है कि हम केवल अपना नहीं सोचते हैं। हम अगर सक्षम हैं तो जरूरतमंद की सेवा करने में कभी पीछे नहीं रहते हैं। यहीं संस्कार हमें मिले हैं। हमारे तो लाखो लाख मंदिरों में भी प्रत्येक दिन आरती के बाद जो जय घोष होता हैं उसमे एक स्वर में सब बोलते हैं ‘विश्व का कल्याण हो’। वसुधैव कुटुम्बकम की नीति पर हम विश्वास करते है। यह एक संस्कृत वाक्यांश है और सनातन धर्म का मूल संस्कार और विचारधारा है, जिसका अर्थ है ‘विश्व एक परिवार है’।

बचपन से हमने यही पाया है कि स्कूल, अस्पताल, रहने के लिए धर्मशाला, गौ पालन, प्याऊ लगवाना, वगैरह समाज की तरफ से उपलब्ध करवाये जाते थे। सौभाग्यवश परोपकारी व्यक्तियों की भी कमी नहीं है समाज में। अनेकानेक स्वयंसेवी संस्थाएं कार्यरत हैं जो जरूरतमंद लोगों के लिए बहुत अच्छा कार्य कर रही है। बहुत सी ऐसी संस्थाओ में यह देखा गया है कि धन तो पर्याप्त उपलब्ध हो जाता हैं पर निर्धारित कार्य को सुचारु रूप से क्रियान्वित करने के लिए योग्य व्यक्ति मिलने में कठिनाई आती है। इस मैनपावर की कमी को पढ़े-लिखे, अनुभवी लोग बखुबी पुरा कर सकते है।

मेरा परिचय एक अस्सी वर्ष के व्यक्ति से है, जिन्हे रिटायर हुए कोई बाइस वर्ष हो गए। वो अपने-आपको एक शिक्षा संबंधित संस्थान से जुड़कर बहुत गौरवान्वित महसूस करते है। उनके अंदर दूसरो की सेवा कर के एक ऐसी ऊर्जा उत्पन्न होती है जो उनके अच्छे स्वास्थ्य का राज है। उनके परिवार वाले व मित्रगण भी इस बात को स्वीकारते है कि इनके स्वस्थ रहने में सबसे बड़ा योगदान इनका इस संस्था में सेवा देना है।

एक और परिचित वरिष्ठ व्यक्ति अपना काफी समय एक बड़े मंदिर के संचालन में लगाते है। इनके वहां जुड़ने से मंदिर के सभी कार्य सुचारू रूप से चलने लगे और भक्तो का आना भी बढ़ गया। इसी तरह बहुत से लोग गुरूद्वारो में भी किसी न किसी कार्य में अपना योगदान देते है।

किसी संस्था से जुड़ना इतना आसान भी नहीं है। जो लोग पहले से ही मेनेजमेंट मे लगे हैं वो जल्दी किसी नए व्यक्ति को प्रवेश नहीं करने देते। उनमे अहम की भावना जागृत हो जाती है और कहीं कहीं तो वित्तीय अनियमितता भी नजर आती हैं। ऐसा नहीं है कि अच्छे संस्थानों की कमी है। अपने विवेक से सही संस्थान को हमे स्वयं को ढूंढना होगा।

अगर आपको अकेले काम करने में ज्यादा अच्छा लगता है तो समाज सेवा करने के और भी ऑप्शन्स है। कुछ दिन पहले ही एक मैसेज वाट्सएप पर पढ़ा कि एक व्यक्ति ने वर्षो की मेहनत कर के पूरा का पूरा एक जंगल ही लगा दिया।

एक बहुत ही सरल सा काम कोई भी कर सकते है – वो है गरीब जरूरतमंद बच्चो को पढ़ाने का। इसके लिए कोई ज्यादा दूर जाने की भी आवश्यकता नहीं। अपने पास ही कई ऐसे गरीब परिवार मिल जाएंगे जो आर्थिक आभाव के कारण अपने बच्चे को स्कूल नहीं भेज सक रहे है। ऐसे बच्चो को पढ़ाने में अपना योगदान दिया जा सकता है। अखबार में छपा एक समाचार याद आ रहा हैं जिसमे बताया गया कि एक व्यक्ति ने अपने पास ही के एक कन्सट्रकशन साइट पर काम कर रहे मजदूरो के बच्चों को पढ़ाना शुरु कर दिया।

बाराबंकी के पास एक आश्रम में हर वर्ष एक महिने का स्वास्थ्य कैंप लगता है। इस कैंप में विभिन्न बीमारी से ग्रसित हजारों गरीब गांववासी का इलाज निशुल्क किया जाता है। एक तरफ तो डॉक्टरो एवं उनके सहायक की पूरी टीम अपना योगदान बगैर कोई फीस के देते है, तो दूसरी ओर अनेकानेक महिलाए व पुरुष स्वयंसेवक दूर-दूर से अपने खर्च पर आते है मरीज की देखभाल करने के लिए।

एक बार सेवा करने की भावना मन में आ जाए तो आगे का रास्ता स्वयं मिल ही जाएगा। यह तो निश्चित ही है कि समाज सेवा से आप अपनी भी सेवा कर रहे हैं। आप हमेशा प्रसन्न व स्वस्थ रहेंगे।

डिजिटल एरेस्ट का वरिष्ठजन पर मंडराता खतरा

ऑनलाइन फ्रॉड की चर्चा बहुत दिनो से सुनते आ रहे हैं। बहुत से लोगो से करोड़ो रुपये ये फ्रॉड करने वाले जालसाज बैंक एकाउंट से उड़ा ले गए। झारखंड का जामताड़ा और हरियाना का नूह इस ऑनलाइन फ्रॉड करने के केंद्र के रूप में बहुचर्चित हो गया। यह सिलसिला रूकने का नाम भी नहीं ले रहा था कि अब एक नये रूप में आपके मोबाइल पर ऐसी धोखाधड़ी सामने आ गई है जिसे “डिजिटल एरेस्ट” का नाम दिया गया है।

डिजिटल एरेस्ट करने वाले धोखेबाज अपने-आप को सी. बी. आई., आर. बी. आई., पुलिस, इन्कम टैक्स या नशीले पदार्थ की रोकथाम में लगे अधिकारी, जैसे विभाग, की ओर से बात करते है। वो पहले से आपके विषय में बहुत जानकारी एकत्र कर लेते है – आपके परिवार, मित्रगण, व्यवसाय, आदि से सम्बन्धित। ये जालसाज अपनी बात बहुत विश्वास और धमकाने वाले अंदाज से करते है।

वीडियो कॉल पर तो ये जालसाज पुलिस या अन्य सरकारी युनिफॉर्म में नजर आएंगे और बैकग्राउंड में सरकारी दफ्तर दिखाई देगा। बिल्कुल ऐसा लगेगा कि वो सही सही उसी विभाग से बोल रहे हैं।  आपको धमकाया जाएगा की आपने यह गलत काम किया है जिसके लिए आपको जेल हो सकती है और आपका समाज में बहुत नाम खराब हो जाएगा। इससे बचने के लिए वो आपसे रुपये की मांग करेंगे।

ऐसी धोखाधड़ी में बुजुर्ग व्यक्ति ज्यादा शिकार हो रहे है। टेक्नोलॉजी की समझ कम होना, जल्द किसी की बातो में आ जाना और उम्र के इस पड़ाव में ऐसी धमकी भरी बातो से घबरा जाना आम बात है। कुछ ही सप्ताह पहले एक बहुत ही प्रतिष्ठित बिजनेस ग्रुप के 82 वर्षीय सीईओ से ऐसे साइबर जालसाज ने सात करोड़ रुपये ठग लिए थे।

डिजिटल एरेस्ट धोखाधड़ी का एक उदाहरण यहां देना चाहूंगा। एक लड़की का वीडियो कॉल आता है, आप रिस्पॉन्स देते है, कुछ अनाप-शनाप बाते होती है जिसे उस लड़की ने रिकॉर्ड कर लिया है। लाइन काट दी जाती है। आप निश्चिंत हो जाते है। पर अगले दिन सुबह एक पुरुष का फोन आता है और वह अपने को पुलिस का उच्च अधिकारी बताता है। वह कहता है कि कल आप एक लड़की से अश्लील बात कर रहे थे, सारी रिकॉर्डिंग हमे मिली है। आपको इस अपराध के लिए गिरफ्तार किया जा सकता है। इसे हम यूट्यूब पर पोस्ट भी कर देंगे। आपकी समाज में बहुत बदनामी होगी। इससे बचना है तो इतने रूपये तुरंत भेजे। ऐसे अनेक केस सामने आए है।

एक और उदहारण – आपको फोन आएगा कि आपके नाम विदेश से एक पैकेट आया हैं और उसमे जांच के दौरान ड्रग्स पाया गया है। फोन करने वाला व्यक्ति अपने को नारकोटिक्स विभाग का सीनियर इन्सपेक्टर बता कर रुपये देकर मामले को सुलझाने की बात करेगा। इसी तरह अनेकानेक तरिके से फंसाने का प्रयास जालसाज कर रहे हैं।

स्थिति इतनी खराब हो गई है कि प्रधान मंत्री तक को हस्तक्षेप करना पड़ रहा है। उन्होंन अपनी “मन की बात” के 115वीं कड़ी, जो कि 27 अक्टूबर को प्रसारित हुई थी, में इसकी चर्चा विस्तार से की। उन्होंन कहां कि ऐसे कॉल से किसी को डरने की आवश्यकता नहीं है, कारण कोई भी जांच एजेन्सी फोन या वीडियो कॉल पर इस तरह पूछताछ कभी नहीं करती है।

प्रधान मंत्री ने डिजिटल सुरक्षा के तीन चरण की बात की। इसे समझाते हुए उन्होंन कहा कि ये तीन चरण हैं – ‘रुको-सोचो-एक्शन लो’ । कॉल आते ही, ‘रुको’ – घबराएं नहीं, शांत रहें, जल्दबाजी में कोई कदम न उठाएं, किसी को अपनी व्यक्तिगत जानकारी न दें, संभव हो तो स्क्रीनशॉट लें और रिकॉर्डिंग जरूर करें । इसके बाद आता है, दूसरा चरण, ‘सोचो’ । कोई भी सरकारी विभाग फोन पर ऐसे धमकी नहीं देती, न ही वीडियो कॉल पर पूछताछ करती है, न ही ऐसे पैसे की मांग करती है। और तीसरा चरण है – ‘एक्शन लो’ । राष्ट्रीय साइबर हेल्पलाइन 1930 पर डायल करें, cybercrime.gov.in पर रिपोर्ट करें, परिवार और पुलिस को सूचित करें, सबूत सुरक्षित रखें । ये तीन चरण आपकी डिजिटल सुरक्षा का रक्षक बनेंगे।

प्रधान मंत्री ने दोहराया कि डिजिटल एरेस्ट जैसी कोई व्यवस्था कानून में नहीं है। ये सिर्फ फ्रॉड है, फरेब है, झूठ है, बदमाशों का गिरोह है और जो लोग ऐसा कर रहे हैं, वो समाज के दुश्मन हैं । उन्होंन आश्वासन दिया कि डिजिटल एरेस्ट के नाम पर जो फरेब चल रहा है, उससे निपटने के लिए तमाम जांच एजेंसियाँ, राज्य सरकारों के साथ मिलकर काम कर रही हैं । इन एजेंसियों में तालमेल बनाने के लिए नेशनल साइबर कोऑर्डिनेशन सेन्टर की स्थापना की गई है। नागरिकों से सहयोग का आग्रह करते हुए उन्होंन कहां कि इस धोखाधड़ी से बचने के लिए बहुत जरूरी है हर नागरिक की जागरूक होना। जो लोग भी इस तरह के फ्रॉड का शिकार होते हैं, उन्हें ज्यादा-से-ज्यादा लोगों को इसके बारे में बताना चाहिए। मुहिम में छात्रों को भी जोड़ने का आग्रह किया। समाज में सबके प्रयासों से ही इस चुनौती का मुकाबला किया जा सकता हैं।

वरिष्ठजन घर पर छोटो से अपने स्मार्टफोन के विषय में ज्यादा से ज्यादा जानकारी लेने का प्रयास करे। उन्हें किसी भी अनजान नंबर से फोन आने पर रिस्पॉन्स नहीं करना चाहिए। जरूरत लगे तो आप उस नंबर पर मैसेज दे कि आप अभी व्यस्त है और वो कॉल करने वाला आपको मैसेज द्वारा अपना काम बताए। मोबाइल पर अंजान नंबर से अगर कोई लिंक आता है तो उसे क्लिक न करे। व्यक्तिगत जानकारी या बैंक के डिटेल्स किसी से भी साझा न करे। ये छोटी छोटी सावधानियां आपको इस तरह के स्केम से बचाने में सहयोग करेगी। 

हम वरिष्ठ लोग बहुत सौभाग्यशाली हैं

अगर आप 65 वर्ष के हो गए है और इस लेख को पढ़ रहे हैं तो आप उन सात प्रतिशत सौभाग्यशाली लोगो में है जो इस उम्र तक स्वस्थ जीवन जी रहे हैं। जी हां। वर्ल्ड बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार 2023 में भारत में पैंसठ वर्ष से ज्यादा आयु के 7.1 प्रतिशत व्यक्ति हैं और 2030 तक यह जनसंख्या दस प्रतिशत हो जाएगी, ऐसा अनुमान हैं।

भारत, जो आज अपने आप को एक नौजवान देश की श्रेणी में पाता है वो अब धीरे धीरे वरिष्ठ जन की श्रेणी की ओर अग्रसर हो रहा हैं। आंकड़ो पर नजर दौड़ाई जाए तो यह देखने को मिलता है कि सन 2050 तक भारत में कोई 35 करोड़ व्यक्ति 60 वर्ष से ज्यादा के हो जायेंगे।

हमें थोड़ी-बहुत भी तकलीफ जब होती है, चाहे वो स्वास्थ्य सम्बन्धित हो, आर्थिक हो, पारिवारिक हो या अन्य कोई कारण से, तो हम तुरंत परेशान हो जाते है। जरा यह विचार करे कि हम तो उन सौ में से सात सौभाग्यशाली लोग है जो कि जीवित हैं। व्हाट्सएप पर एक बहुत ही अच्छी वीडियो मैंने कुछ दिनों पहले देखा। इसमें बताया गया कि अगर हमारे पास भोजन करने के लिए खाना है, पहनने को कपड़े हैं और रहने के लिए घर है तो हम दुनिया के उन 75% लोगों से ज्यादा खुशकिस्मत है जिनके पास यह सब नहीं है।

हम जिन्दगी से शिकायत करना छोड़ दे। हमारे पास जो है उससे संतुष्ट होना सिखे। हमारे ऊपर तो ईश्वर की कृपा रही है कि हमें इतना कुछ मिला हैं। यह जिन्दगी दौबारा हमें नहीं मिलने वाली हैं, इसलिए इसे दुख में, गुस्से में, किसी से नाराजगी या नफरत में या किसी से झगड़ा करने में व्यर्थ न गवांये। कुछ सकारात्मक काम में हम लगे रहे, सभी से अच्छा व्यवहार करे और अपनी जिन्दगी को खुशी खुशी जिएं। हां, कुछ अड़चने आती रहती हैं। हमें भगवत कृपा से इन तकलीफों को पार करने की हिम्मत जुटाकर सब कुछ सामान्य करना होगा।

सर्वप्रथम हमें अपने स्वास्थ्य पर ध्यान केन्द्रित करना होगा। जीवन के इस पड़ाव पर आकर हमें अपनी शारीरिक व मानसिक स्वास्थ संबधित दोनो विषयों पर ही ध्यान देना होगा। शरीर और मन अलग नहीं है और ये एक दूसरे को प्रभावित करते हैं। केवल लंबी उम्र पाना हमारा लक्ष्य नहीं, स्वस्थ व उपयोगी जीवन ही हमारा उद्देश्य होना चाहिए। हम अपने बुढ़ापे में किसी पर बोझ न बने यहीं भगवान से प्रार्थना हो।

आजकल वाट्सएप पर अनेकानेक मैसेज आते है जिनमें विभिन्न व्यायाम के तरीके बताए जाते हैं। सुबह सुबह पार्क में लोग मिल जाते है जो व्यायाम करवा रहे होते हैं। टेलीविजन के अनेक चैनल्स पर भी बहुत कुछ सीखने को मिल जाता है।

हमारा संक्लप व हमारी इच्छाशक्ति दृढ़ होनी जरूरी हैं। ज्यादातर यह देखा गया है कि एक बार हमारे अंदर जोश आता हैं, हम लग जाते है अपने स्वास्थ्य की देखभाल के लिए विभिन्न कार्यक्रम करने में। थोड़े अंतराल के पश्चात अक्सर हमें आलस्य आने लगता हैं। वरिष्ठजन को यह ध्यान रखना होगा की हम आलस्य को पास में भटकने न दे। हमें अगर दो घंटे प्रतिदिन अपने स्वास्थ्य के लिए योग व व्यायाम करना है तो इसमें कोई समझौता नहीं करना हैं।

विशेषज्ञों का यह कहना है कि बढ़ती उम्र में स्वास्थ्य सम्बन्धित सबसे ज्यादा ध्यान दो बातो पर देनी हैं। पहला तो यह कि आप अपने को गिरने से बचाएं। इस उम्र में गिरने से बहुत कॉम्पलिकेशन हो सकता है। इस कारण बहुत संभल कर रहना हैं। दूसरी बात है कि अपने को कुछ भी खाते हुए या पीते हुए चोकिंग से बचाव करना हैं। बुजुर्ग व्यक्तियों में चोकिंग की संभावना ज्यादा होती है क्योंकि गले और निगलने की मांसपेशियां कमजोर हो जाती है। फेसबुक पर एक ग्रुप हैं – “नेवर से रिटायर्ड फोरम”, जिस पर केवल वरिष्ठ जन के लिए स्वास्थय संबधी बातें व अन्य जानकारी प्रतिदिन पोस्ट होती है। अगर आप फेसबुक पर हैं तो इससे जुड़ सकते हैं।

अच्छा व स्वस्थ खान-पान भी बहुत महत्वपूर्ण हैं। इस उम्र में इसका ज्ञान हम सबके पास पर्याप्त हैं। ध्यान इतना रखना हैं कि मन फिसल न जाए और हम अस्वास्थ्यकर खान-पान की तरफ न बढ़े। भूख कम हो जाती है और खाने का मन कम होने लगता है, इस कारण पौष्टिक भोजन पर ही ध्यान रखना होगा।

जीवन को खुशहाल रखने के लिए अच्छे दोस्तो की बहुत आवश्यकता होती हैं। इस उम्र में आकर हमें नए दोस्त नहीं बनाने हैं। हमारे जो पुराने दोस्त हैं उनसे ज्यादा संपर्क में रहे। अगर वो नजदीक रहते है तो उनसे बराबर मिलते रहे। अगर दूर रहते हैं तो उनसे मोबाइल पर वार्तालाप और मैसेज का आदान-प्रदान बराबर करते रहे।

हम सौभाग्यशाली हैं और आगे भी रहें इसके लिए भगवान को धन्यवाद जरूर दे।

वरिष्ठजन सकारात्मक दृष्टिकोण रखें

लंबे और खुशहाल जीवन का राज है आपका सकारात्मक होना। हर परिस्थिति में हम अपने विचारों को ऐसी दिशा देने कि कोशिश करे कि सब अच्छा ही होगा। भगवान पर भरोसा करे कि उन्होंने हमारे लिए यही रास्ता निश्चित किया है। एक महान संत के प्रवचन की यह बात मेरे दिल में बैठ गई – उन्होंने कहां कि किसी भी घटना के दो ही कारण हो सकते हैं, ‘प्रभु कृपा’ या ‘प्रभु इच्छा’। अगर वो कार्य आपकी सोच के अनुसार हुआ हो तो ‘हरी कृपा’ अन्यथा ‘हरी इच्छा’। इस दृष्टिकोण से आप अपनी किसी भी परिस्थिति को देखें तो आपका जीवन बहुत ही सुखमय रहेगा।

अनेक शोधकर्ताओं ने यह पाया है कि सकारात्मक विचार रखने वाले व्यक्ति अच्छा स्वास्थ व लंबा जीवन पाते हैं। हमारे बीच भी कई ऐसे व्यक्ति मिल जाएंगे, वो खुद भी खुश रहते हैं और दूसरो को भी खुश रखते हैं। ऐसे व्यक्ति दूसरो की गलतियों को नजरअंदाज करेंगे और उनकी हर अच्छाई की तारीफ व उन्हें प्रोत्साहित करेंगे।

सकारात्मक दृष्टिकोण कैसे किसी के जीवन में परिवर्तन ला देता हैं इसकी एक कहानी कुछ दिनों पहले ही वाट्सएप पर मिली। 

कहानी यूं है कि एक लेखक अपनी बैठक में कुछ लिखने लगे। वह लिखते हैं कि पिछले वर्ष उनकी सर्जरी हुई और डाक्टर को उनका गॉलब्लैडर निकालना पड़ा जिसके कारण वह काफी दिनों तक बिस्तर पर रहे। इसी वर्ष वह 60 वर्ष के हुए और उन्हें रिटायर होना पड़ा, उस कंपनी से जिसे वह बहुत प्यार करते थे और जहां वह 35 वर्ष तक उन्होंने सेवाएं दी थी। आगे वह लिखते है कि इसी वर्ष उनकी वृद्ध माताजी का स्वर्गवास हुआ। उनका बेटा एक कार एक्सीडेंट में जख्मी हुआ और वह अपनी मेडिकल की फाइनल परीक्षा में उत्तीर्ण न हो सका। एक्सीडेंट हुई गाड़ी को बनवाने में भी बहुत पैसे खर्च हो गए और अंत में वह लिखते हैं कि मेरा पिछला वर्ष बहुत ही बुरा गया। 

यह सब विचार जब मन में आए तो वो स्वाभाविक ही बहुत दुखी और डिप्रेस्ड सा नजर आ रहे थे। लेखक की पत्नी ने जब उनकी यह हालत देखी और उसकी नजर जब उस पत्रक पर गई जिस पर यह सब लिखा हुआ था तो उसने चुपके से उनकी पूरी लेखनी को पढ़ीं। 

बात उसे समझ आ गई। वो बाहर गई और एक अलग पत्रक लिखकर लाई। सारी स्थिति को वह बिल्कुल सकारात्मक रूप से लिखी। 

लेखक की पत्नी ने लिखा कि पिछले वर्ष मेरे पति ने अपनी गॉलब्लैडर की बीमारी से छुटकारा पाया जिससे कि वर्षों से वह पेट की पीड़ा से दुखी थे। इसी वर्ष मेरे पति ने रिटायरमेंट लिया अच्छी सेहत के साथ। मै ईश्वर को धन्यवाद देना चाहती हूं कि मेरे पति को 35 वर्षों तक उस कंपनी में काम करने का मौका मिला। अब मेरे पति को लिखने के लिए ज्यादा समय मिल रहा है, जो की उनकी हॉबी थी। इसी वर्ष मेरी 95 वर्ष की सास भगवान को प्यारी हुई, बगैर किसी तकलीफ के। इसी वर्ष एक सड़क दुर्घटना में मेरे बेटे की जान बची, हालांकि गाड़ी को काफी नुकसान हुआ। अंतिम वाक्य में उसने लिखा कि पिछले वर्ष हमें भगवान की असीम कृपा मिली जिसके लिए हम उनको धन्यवाद देते हैं। 

इसको पढ़ कर लेखक की आंखों में आंसू आ गए और वह खुद सोचने लगे की केवल सकारात्मक दृष्टिकोण से ही जीवन कितना बदला जा सकता है। 

यह बोलना तो बहुत आसान है कि आप हमेशा अपने मन में केवल सकारात्मक विचार लाए, पर हम इसकी कोशिश करते रहें तो काफी हद तक सफल भी होंगे। एक बात का विशेष ध्यान रखे की हमें ऐसे ही लोगो से ज्यादा बातचीत करनी है जो खुद भी सकारात्मक हो। अगर निराशावादी लोग ज्यादा आसपास रहेंगे तो हमारे में सकारात्मक भाव रहना कठिन हो जाएगा। कुछ महापुरुषों का यह भी मानना है कि योग एवं ध्यान लगाने से भी हमारे मन में सकारात्मक भाव उत्पन्न होते हैं। समाज सेवा में भी अपना समय लगाना चाहिए। दूसरो की सेवा करने से आप खूद अपनी ही सेवा कर रहे हैं। आप को अंदर से जो खुशी मिलती है सेवा करने से वो आपके अंदर सकारात्मक भाव लाती है और आपके स्वास्थ्य को ठीक रखती है।

यह भी कहा जाता हैं कि सकारात्मक सोच से व्यक्ति किसी विपरीत स्थिति से भी जल्द निकल आता है और तनाव में भी कम रहता है।

हम अपने आसपास परिवार में या परिचित के बीच नजर दौड़ाएं तो यहीं पाएंगे कि वो व्यक्ति जो हर समय खुश रहते हैं, आपस में मेलजोल ज्यादा रखते हैं और सकारात्मक रहते है, वो निश्चित सेहतमंद रहते हैं। हमें दूसरो के विषय में नहीं सोचना हैं, हमें अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखना है और उसके लिए सकारात्मक होना अतिआवश्यक हैं।

एक गुलाब की डाली को भी दो नजरियों से देखा जा सकता है – एक तो यह कि इसमें कितने कांटे हैं और दूसरे इसमें कितने सुंदर और खुशबूदार फूल है।

Saturday, November 23, 2024

छोटे बच्चो को बुजुर्ग लाइफ स्किल्स सिखाए

 हम विचार करे कि और कौन-कौन सी ऐसी जरूरी लाइफ स्किल है जिनके विषय मैं हमे जल्द से जल्द बच्चो को सिखाने की कोशिश करनी चाहिए। मन में यह विश्वास रखे की बच्चो को लाइफ स्किल्स सिखना बहुत आवश्यक है और इसे सिखाने में हम बुजुर्ग अपना योगदान जरूर देंगे।

आज मेरे से मिलने मेरे छोटे भाई की ग्यारह वर्षीय पोती और छ वर्षीय छोटा पोता आए। मैं उस समय बिजली का कुछ छुटपुट काम कर रहा था। मेरे हाथ में बिजली का टेस्टर था। अचानक पोती से मैने पुछा कि मेरे हाथ में क्या है। उसने तुरंत उत्तर दिया की यह स्क्रूड्राइवर है। पर टेस्टर के विषय में उसे कोई जानकारी नही थी। मैने विस्तृत रूप से टेस्टर का उपयोग उन्हें बताया।

यहां पर यह उदाहरण देने का मेरा मकसद केवल यही है कि आज के दिन घर-घर में बच्चों को लाइफ स्किल्स के विषय में बहुत जानकारी नहीं होती है। उनका स्कूल के एग्जाम में तो भले 90 पर्सेंट से ऊपर आ जाए लेकिन ये लाइफ स्किल ज्यादा जरूरी है जो जिंदगी भर काम आएंगे।

हम वरिष्ठ जन घर में अपना समय का सही उपयोग कर सकते हैं अगर हम यह छोटी-छोटी बातें अपने घर में बच्चों को बताएं। आप कहेंगे बच्चे तो हमारी सुनते ही नहीं है। हो सकता है आप सही बोल रहे हो, पर मैं निश्चित बोलता हूं कि आपके जो बच्चे के बच्चे हैं, यानी आपके पोते-पोती आपकी बात मन लगाकर सुनेंगे। आप भी तो उनसे एक अलग तरीके से बात करते है जो की उन मासूम बच्चों को पसंद आती है।

ऐसे कई उदाहरण हो सकते हैं जो कि घर में बच्चों को सिखाना बहुत ही आवश्यक है। उनकी पढ़ाई में तो उनके माता-पिता जी जान लगा ही देते हैं। चलिए हम कोशिश करें कि इनको कुछ लाइफ स्किल्स सिखाएं। मैंने एक उदाहरण बिजली के टेस्टर का दिया। हम विचार करे कि और कौन-कौन सी ऐसी जरूरी लाइफ स्किल है जिनके विषय मैं हमे जल्द से जल्द बच्चो को सिखाने की कोशिश करनी चाहिए।

एक और उदाहरण देता हूं। मान ले दो छोटे बच्चों को घर पर अकेले छोड़कर आपको कहीं जाना पड़ जाए। इस बीच किसी एक बच्चे को चोट लग जाती है। थोड़ा खून आ जाता है। क्या आपने बच्चों को फ़र्स्ट ऐड के विषय में बताया है? फ़र्स्ट ऐड का समान कहां रखा है यह बताया है? अगर नहीं तो इस कार्य को तुरंत करिये।

एक अहम विषय की चर्चा यहां करना चाहूंगा। वैसे तो यह संस्कार सिखाने की बात आप बोल सकते है पर मै इसे लाइफ स्कील की श्रेणी में रखना चाहूंगा। ज्यादातर देखा जाता है कि घर में जब कोई बुजुर्ग परिवार वाले या मित्र आते है तब बच्चे किनारे से, इन्हें अनदेखा कर निकल जाते हैं। हम बड़ो का यह दायित्व है कि बचपन से ही हम इन संस्कारी विषयो पर बच्चों से चर्चा करे और उन्हें सही ढंग से समझाएं।

घर में एक ऐसा वातावरण बनाना होगा की हम इन छोटे मासूम को यह सब लाइफ स्किल्स सहज तरीके से सिखा सके। आज के दिन कोई जोर जबरदस्ती नहीं कर सकते। छुट्टी के दिन को चुने। बच्चो से ही पूछे कि इस समय वह फ्री है क्या और क्या वो कुछ नया इंटरेस्टिंग सिखना चाहेंगे जिससे की उनके माता-पिता और खास कर उनके दोस्त उनसे इम्प्रेस हो जाएंगे। आपको जरूर सफलता मिलेगी अपने उद्देश्य को पूर्ण करने में।

मन में यह विचार कतई न लाए कि यह सब तो बच्चो को उनके माता-पिता को सिखाना चाहिए। हम दादा-दादी यह काम बहुत आराम से कर सकते है। हमारा अनुभव और हमारा पोते-पोती से मधुर संबंध इस कार्य को सुचारु रूप से संपन्न करने में बहुत उपयोगी सिद्ध होगा। बस मन में यह विश्वास रखे की बच्चो को लाइफ स्किल्स सिखना बहुत आवश्यक है और इसे सिखाने में हम बुजुर्ग अपना योगदान जरूर देंगे।

बढ़ती उम्र में वित्तीय प्लानिंग अति आवश्यक

 स्वास्थ्य सम्बन्धित जागरूकता व बेहतर मेडिकल सुविधाएं उपलब्ध होने से निश्चित हमारी उम्र लंबी हो रही हैं। हम जब छोटे थे, अगर परिवार या पड़ोस में किसी का साठ-पैंसठ की उम्र में देहांत हो जाता था, तब कहा जाता था कि वो व्यक्ति पकी हुई उम्र में भगवान को प्यारा हुआ है। आज औसतन पचहत्तर-अस्सी की उम्र तक जीवन आसानी से चलता नजर आता है। इस लंबी होती उम्र में उचित वित्तीय प्लानिंग ही हमारी गाड़ी को जीवन भर सुचारू रूप से चला सकती है।

इस उम्र में आकर यह आशा नहीं करनी चाहिए कि हम कुछ ऐसा काम कर सकेंगे जिससे की काफी धन अर्जित हो सके। बच्चों से सहयोग ज्यादातर लोगो को जरूर मिलता रहेगा। फिर भी हमारी अपनी वित्तीय प्लानिंग, जो काफी पहले से की गई हैं, उसी के सुपरिणाम हमको खुशी देती है।

आज की महंगाई की मार बुजुर्ग को भी झेलनी होती हैं। हर वस्तु की कीमत बढ़ रही है बराबर। इस उम्र में व्यक्ति की कोई ज्यादा आवश्यकता नहीं होती पर कुछ बुनियादी जरूरतें, जैसे खान-पान, रहन-सहन व सबसे महत्वपूर्ण स्वास्थ्य सम्बन्धित आवश्यकताएं तो होती ही हैं। और केवल इन बेसिक्स का खर्च ही हर माह बढ़ता जा रहा है।

हमारे पास जमा पूंजी क्या हैं उसका सही आकलन जरूर होना चाहिए। कोई गलतफहमी न पाल कर रखे। किसी विश्वासी वित्तीय सलाहकार से राय लेकर अपने बचत को सही जगह इन्वेस्टमेंट करे जिससे की उससे उच्चतम आय हो सके। एक बात का विशेष ध्यान रखे की अपने सभी एसेट्स, बैंक खाते, उधार दिए गए रुपये, इन्वेस्टमेंट, इन्स्योरेंस आदी की पूर्ण जानकारी अपने जीवन साथी या अन्य किसी विश्वासी से जरूर साझा करे। अपनी वसीयत बनाना भी बहुत आवश्यक है। यह सब सावधानियां रखनी ही है हमे।

जीवन के इस पड़ाव पर आकर हमें विशेष थ्यान देना चाहिए कि हम दिखावे से बच कर रहेंगे। देखा देखी में फिजूल खर्च न करे। अगर मन में केवल यह ठान ले कि हम इस पर विचार करेंगे ही नहीं कि ‘लोग क्या कहेंगे’, तो निश्चित हमारा बोझ काफी हल्का हो जाएगा।

एक कहावत सुनते थे कि ‘money saved is money earned, या यूं कहे कि आप जो पैसा बचा रहे है वो आपकी अपनी कमाई ही हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि किसी भी तरह के अनावश्यक खर्च करने से बचे। अगर आपको बाजार से कुछ भी लाने के लिए सप्ताह में दो-तीन चक्कर लगाने होते है तो प्लानिंग कुछ ऐसी किजिए की एक बार में ही सारा काम हो जाए। बस कागज पर लिस्ट बनाते चले। बाजार जाने के चक्कर अगर कम होंगे तो आने-जाने के खर्च में बचत होगी ही और यह आपकी कमाई ही हुई। कम चक्कर से सड़क के पॉल्यूशन से और ट्रेफिक के चिक-चिक से भी बचेंगे।

आवश्यकतानुसार अपने रहने के स्थान का भी सही आकलन करना चाहिए। जरूरत न होने पर छोटे आवास पर विचार करना गलत न होगा। और जरूरत न होने पर बड़े शहर में या पॉश एरिया से दूर जाकर रहने पर भी काफी खर्च बचाया जा सकता हैं। कुछ व्यक्ति अपने आवास पर पेईंग गेस्ट रख लेते है या अतिरिक्त स्थान को भाड़े पर लगा देते हैं। इससे कुछ आय हो जाती हैं। ऐसे में सुरक्षा की दृष्टी से पूरी सावधानी बरतनी बहुत आवश्यक हैं।

आज ज्यादातर घरो में पुरुष व महिला दोनो ही काम पर लगे होते है। पहले ऐसा कम ही देखने को मिलता था। इस कारण पुरुष को वित्तीय आवश्यकताएं की प्लानिंग अपने लिए व अपनी जीवन साथी के लिए भी करनी होती है। जो जोड़े अकेले रहते हैं उन्हें सबसे अधिक चिंता यही रहती है कि एक के जाने के बाद दूसरे का क्या होगा। संयुक्त परिवार में रहने के कितने लाभ है वो जीवन के इस कालखंड में पता चलता है। पर हम निजी स्वार्थ, धैर्य का न होना व ईगो के कारण इसे नजरअंदाज कर रहे हैं।

यह सब बातें आज के नौजवानों को समझने की बहुत आवश्यकता है। उन्हें अपने आने वाले वरिष्ठ जीवन की जरूरतों को आज जानना होगा। वो अपने घर में या अन्य परिवार वालो के यहां क्या हो रहा हैं, इस नजरिए से भी स्थिती का अवलोकन करे। अपने ईगो को दरकिनार रख कर बड़ो से सलाह लेने में हिचकिचाएं नहीं। प्रोफेशनल सहयोग अपने चार्टर्ड एकाउंटेंट या कम्पनी के एच आर से भी लिया जा सकता है। यह विचार मन में कभी न पनपे कि रिटायरमेंट के बाद यह सब देख लेंगे। आज नौजवानों को वित्तीय प्लानिंग की आवश्यकता ज्यादा है। वो जब बुजुर्ग होंगे उस समय की परिस्थितियां की भविष्यवाणी तो कोई नहीं कर सकता पर यह निश्चित हैं कि सभी कुछ बहुत महंगी होंगी और उन्हें बढ़ती उम्र की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए प्लानिंग आज ही शुरु करनी है।

शुभं करोति कल्याणं!

Thursday, November 14, 2024

बुजुर्ग सलाहकार बने, निर्णायक नहीं

 पिछले दिनो दिल्ली के सीरी फोर्ट सभागार में श्री विजय कौशल जी महाराज से श्री राम कथा सुनने का सौभाग्य मिला। एक शाम को अपने प्रवचन में उन्होंने, हर घर में चल रहे जेनरेशन गेप, बड़ो-छोटो के बीच समन्वय की कमी पर बोल रहे थे। उन्होंने बहुत ही महत्वपूर्ण बात कहीं कि घर के बड़े बुजुर्ग सलाहकार बने, निर्णायक नहीं।  मुझे उनकी यह बात मन को छू गई। मेरे आज के लेख का यही शीर्षक है।

इन दिनों बहुत से वाट्सएप ग्रुप पर ऐसे पोस्ट भी प्रचलित है जिनमे मैसेज यहीं होता है कि घर का वातावरण ठीक रखने के लिए बड़ो को बच्चों के निर्णय पर टीका-टिप्पणी नहीं करनी चाहिए। दुख तो उस समय होता है जब हम जानते हुए भी गलत निर्णय को सही दिशा नहीं दे पाते।

ऐसी कहानियां आज घर घर की है। कोई बिरले खुशकिस्मत परिवार होंगे जहां सब कुछ ठीक ठाक हो, पिता और बेटे बैठकर अपने निर्णय सकारात्मक वातावरण में लेते हो। अब तो काफी परिवार ऐसे मिल जाएंगे जहां पर दो जेनरेशन एक साथ रहती ही नहीं है।

हम यहां बात करेंगे उन परिवारों की जहां पर तीन जेनरेशन बेटा पिता और पोता साथ रहते है। आजकल के माता-पिता जिस तरीके से अपने बच्चों को पालते हैं और जिस तरीके से वह खुद पले थे, कोई 30 – 35 साल पहले, उसमें बहुत अंतर आ गया है। पहले के समय में ज्यादातर संयुक्त परिवार होता था और केवल एक भाई का परिवार ही नहीं पलता था। सभी भाइयों के अपने-अपने बच्चे भी होते थे और सब मिलजुल कर रहते थे। उन्हें घर का बड़ा बच्चों की किसी गलती पर डांट भी देता था तो कोई दूसरा टोकता नहीं था।

आज की स्थिति बिल्कुल ही बदल है। छोटे-छोटे परिवार होने लगे, चाचा-ताऊ तो ज्यादातर परिवार में मिलेंगे ही नहीं। कई बार यह भी देखा गया कि एक भाई के बच्चों को अगर दूसरे भाई की पत्नी ने कुछ बोल दिया तो इसी बात पर अनबन होने लगती है। पेसेन्स या धैर्य नाम कि चीज तो आज कल के नौजवानो में मिलनी मुश्किल है। ऐसे में दादा-दादी क्या बोल दे यह तो किसी को बर्दाश्त ही नहीं होता है। बड़ो के अनुभव और उसके आधार पर उनकी डिसिप्लिन भरी बात को मानने को कोई भी तैयार नहीं होता है, जबकि सभी को पता है घर में बुजुर्ग हर समय परिवार के सुख का ही ख्याल रखेंगे, कभी भी किसी को दुखी नहीं होने देंगे। मन मे यही विचार आता है कि शायद आजकल के नौजवानों को हम बुजुर्ग ही पेशेंस सीखाना भूल गए हैं। यह गलती भी तो हम बुजुर्गों की ही हैं। ऐसे वातावरण में सबसे सही निर्णय तो यही होगा कि हम ज्यादा रोक-टोक ना करें छोटों के काम पर। सही सही परिदृश्य प्यार से छोटो के सामने रख दे। और फिर निर्णय उन्हीं को लेने दे।

आजकल तो छोटी उम्र के बच्चों में भी यह भावना आ गयी है कि घर में बड़ो से ज्यादा अच्छी सलाह उनको मित्रों से मिलेगी। और इस टेक्नोलॉजी के युग में सब कुछ तो गूगल महाराज ही बता देते हैं। फिर बड़ों का दिया हुआ ज्ञान किस काम का। जब बड़े कोई बात बोलते हैं तो तुरंत गूगल में जाकर पहले उस बात की सत्यता को जानने की कोशिश करते हैं बच्चे। उस समय उनके मन में यह विचार नहीं आता है कि बड़ों की जो भावना है वह उनके केवल ज्ञान से ही अर्जित नहीं की गई है बल्कि उनके इतने वर्षो के अनुभवों से भी वह अपना विचार रख रहे हैं। बहुत बार तो यह भी देखने को मिलता है कि बड़ों ने कोई बात कहीं और उसके जवाब में उन्हें तुरंत मोबाइल पर गूगल का उस विषय पर कुछ और मत बता दिया जाता है और यह दर्शाया जाता है कि बड़ो ने जो बताया वह गलत है।

हम ऐसी स्थिति आने ही क्यों दें? क्यों हम अपने अंदर ऐसी भावना जागृत होने दें जिससे कि हमें कोई अपराध बोध हो? अच्छा तो हो कि हम जो भी सुझाव देना चाहते हैं वह इस तरीके से दें कि सामने वाले को भी खराब ना लगे और वह उस पर विचार करने पर विवश हो जाए। एक उदाहरण दें तो हम बोल सकते हैं कि “मेरे विचार में शायद इस प्रॉब्लम को इस तरह सॉल्व किया जा सकता है। वैसे यह तो केवल मेरा विचार है, तुम ही इस पर पूरी रिसर्च करके डिसीजन ले लो।” सारा खेल तो होता है कि हमारी बातें किस तरीके से आगे बढ़ती है, किस टोन में बात हम करते हैं। यही सब बहुत जिम्मेदारी के साथ हमें भी निभाना होगा।

हम बड़े जरूर हैं लेकिन यह मानकर चलें की जनरेशन गैप तो है और इस जेनरेशन गैप में जो दिक्कतें आ रही हैं उसके लिये बहुत हद तक हम स्वयं  जिम्मेदार हैं, शायद। पहले ऐसा नहीं होता था। उसका एक मूल कारण हमारा संयुक्त परिवार था। अब तो वह सब एक सपना ही प्रतीत होता है और आगे क्या होगा यह तो भगवान ही बता सकता है। अन्ततः मूल बात तो यहीं है कि हम बुजुर्ग सलाहकार की भूमिका में ही रहें। हम भी खुश रहें ओर परिवार भी खुश रहें।

Monday, November 04, 2024

एक वो भी दीपावली थी….

 दशहरा जाते ही दीपावली के त्यौहार की उमंग मन में किल्लोल लेने लगती थी। आज दिपावली के इस माहौल में हमें अपना बचपन अनायास ही याद आने लगता है। परिवार के छोटे बड़े सदस्य घर की सफाई मे लग जाते थे। उन दिनों कम ही घरो में काम करने वाले सहायक होते थे। किसी को भी अपने घर में सफाई, रंग-रोगन करने में कोई झिझक नहीं होती थी। कभी कभी तो पड़ोसी को भी अगर किसी प्रकार की सहायता की आवश्यकता होती थी तो हम तुरंत आगे बढ़कर उनका काम कर देते थे। गुलजार साहब की लिखी यह कविता याद आती है –

हफ्तों पहले से साफ़-सफाई में जुट जाते हैं
चूने के कनिस्तर में थोड़ी नील मिलाते हैं
अलमारी खिसका खोयी चीज़ वापस पाते हैं
दोछत्ती का कबाड़ बेच कुछ पैसे कमाते हैं
चलो इस दफ़े दिवाली घर पे मनाते हैं ....

परिवार की वरिष्ठ महिलाए दिनों पहले से मिठाई और सुस्वाद पकवान बनाने में व्यस्त हो जाती थी। घर पर बनी इन मिठाईयों का स्वाद ही कुछ अलग होता था। मन तो होता था कि ये मिठाई तुरंत खाने को मिल जाएं पर हमें भी पता था कि इसका स्वाद तो लक्ष्मी पूजा के बाद ही चखने को मिलेगा। दीपावली के समय घर पर मिलने-जुलने वालो का भी आवागमन बढ़ जाता था। आज हम गिफ्ट्स खूब वितरित करते हैं, उन दिनों भी ये घर की बनाई मिठाई बांटी जाती थी। आज के नौजवान को यह जान कर आश्चर्य होगा की कुछ ही किस्म कि मिठाई होती थी तब और वो दिनोंदिन हम सब मजे से खाते थे। आज तो हर मिठाई विक्रेता अपनी विशेष, तरह तरह की मिठाई का प्रचार हर मीडिया से करता नजर आता है। लोगो की इन दुकानो में भीड़ देख कर यह जानना कठीन नहीं है कि अब बहुत कम घरो में मिठाई बनती हैं।

नए कपड़े भी दीपावली के समय ही सब को मिलते थे। और यह भी एक महत्वपूर्ण कारण था इस त्यौहार के बेसब्री से इंतजार का, सभी के लिए। उन दिनो रेडीमेड का चलन नहीं था और न ही चलन था ऑनलाइन खरीददारी का। घर में सभी के लिए एक से डिजाइन के कपड़े के थान आ जाते थे और फिर इन्हें सिलवा लिए जाते थे। आज की तरह किस्म किस्म के, प्रत्येक अवसर के लिए विशेष कपड़े नहीं होते थे। उस समय तो केवल तीन ही तरह के कपड़े पर विचार होता था – घर के, स्कूल के व विशेष अवसर के लिए। संयुक्त परिवार होने के कारण एक दूसरे के कपड़े भी खूब पहने जाते थे।

सभी आवास व व्यवसायिक प्रतिष्ठान के बाहर केले के पेड़ व दीपक लगाये जाते थे। इन दियों में तेल डालने के लिए तो आपस में स्पर्धा होती थी। मुझे रांची की एक विशेष बात बहुत याद आती हैं। उन दिनों कोई आठ-दस ही बिजली के सामान बेचने वाली दुकाने थी। दीपावली पर वो सब अपनी दुकान के सामने की जगह को खूब सजाते थे और एक प्रतियोगितात्मक भाव के साथ अच्छे से अच्छा दिखाने का प्रयास करते थे। और फिर छोटी व बड़ी दीपावली की रात हजारो की संख्या में लोग यह नजारा देखने, अगल-बगल के गांव तक से, आते थे।

हमउम्र वालो को याद होगा कि उस समय हम दीपावली के अगले दो-तीन दिन सभी रिश्तेदार व मित्रगण के घरो पर जाते थे। बड़े-बुजूर्ग के पांव छू कर उनसे आशीर्वाद लेते थे और उन घरो के छोटे हमसे आशीर्वाद लेते थे। सभी के यहां खुद के घर में बनी मिठाई खिलाई जाती थी। कुछ घरो में सुखे मेवे भी मिलते थे। खास बात यह होती थी कि हमारे घर पर भी सभी आते थे चाहे हम उनके घर हो आए है। कितना अच्छी परंपरा थी जो अब देखने को नहीं मिल रही है। आजकल तो बच्चे जैसे अपनी मित्र मंडली को छोड़कर किसी से मिलना ही नहीं चाहते हैं।

इसी वातावरण में एक बहुत ही सकारात्मक पहल रांची के माहेश्वरी समाज ने चौपाल के तहत इसी वर्ष शुरू की है। वो इस परंपरा को पुनः जीवित करने की कोशिश कर रहे है और निश्चित सफल होंगे। इस समाज ने अपने सभी वरिष्ठ सदस्यों से आग्रह किया है कि वो दीपावली के अगले दिन दो-तीन घरो में परिवार से मिलने जरूर जाएंगे। खुशी की बात है कि लेख लिखने तक ज्यादातर सदस्य अपनी सहमती दे भी चुके है। हमारा प्रयास होना चाहिए की इस परंपरा को वापस प्रचलित करे। आपस के मेल जोल बढ़ाने में, मन मुटाव कम करने में ये बाते बहुत मददगार होती हे।

दीपावली के त्यौहार को मनाने का तरीका कुछ बदल जरूर गया हैं पर आने वाली पीढ़ी को हम अपने सही संस्कार दे, यह दायित्व समाज का ही हैं।

सीनियर सिटीजंस गर्मागर्म बहस से दूर रहे

 आज सुबह जब मैं पार्क में घूमने गया तो बहुत ही दिलचस्प बहस चल रही थी एक कोने में। पॉलिटिक्स की बात हो रही थी, इलेक्शन चल रहे हैं। हमारे यहां वोटिंग 25 तारीख को है। ध्यान उस ओर इस कारण गया की दो व्यस्क व्यक्ति कुछ ज्यादा ही जोर से गर्मा गर्मी में वार्तालाप कर रहे थे। दोनों अपनी-अपनी पार्टी के नजदीकी के अनुसार बात कर रहे थे। और भी लोग एकत्र हो गए। वो शायद केवल मजा ही ले रहे थे। इस उम्र में आते-आते कोई हमें विपरीत सोच से कन्विन्स तो नहीं कर सकता है। हां, यह ध्यान रखें कि जब अपनी बात दूसरों को बताना हो तो अच्छे तरीके से करें, जिससे सामने वाला व्यक्ति आहत न हो। कोई जोर-जबरदस्ती तो कर नहीं सकते। पोलिंग बूथ पर तो आप और हम स्वतंत्र सोच के अनुसार अपनी पसंद से वोट डालते है।

मेरा विचार कुछ और सोचने लगा। हम सुबह पार्क में, खुले वातावरण में जहां प्रदूषण नहीं रहता है, अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखने हेतु जाते हैं। वहां वॉकिंग करते हैं, योग व एक्सरसाइज करते हैं। इसी बीच अगर इस शुद्ध वातावरण में गर्मागर्म बहस छिड़ जाए तो फिर अपना स्वास्थ्य किस रूप में सही रह सकेगा। जब हम गुस्से में होते है तो हमारे शरीर के अंदर बहुत हलचल होने लगती है। डॉक्टर तो कहते है कि इसका सीधा असर हमारे हार्ट पर पड़ता है।

पार्क में रोज सुबह एक व्यक्ति को देखता हूं अपने साथ चार-पांच मोटी पॉलिथिन बेग में कुछ सामग्री लेकर आते है और कई पेड़ के जड़ो में अपने बेग से कुछ निकाल कर डाल रहे है। पास गया तो देखा उन बेग मे अनाज था। एक बेग में तो पानी था। फिर नजर आया कई पेड़ के पास पानी का पात्र भी रखा है जिसे ये सज्जन भर देते है। हमारे लिए तो सभी जीव-जंतु की सेवा करना ही परम धर्म है।

पार्क बड़ा है, हर तरफ अलग अलग जगह कोई योग कर रहा है तो कोई कसरत कर रहा है। पैदल वाॅक करने वालो की संख्या तो बहुत होती है। और हां, बहुत तो अपने पालतू कुत्तो को भी नित्यकर्म करवाने पार्क में लाते है।

सभी अपने अपने तरीके से स्वास्थ्य का ध्यान रखते है। और रखना भी चाहिए। स्वास्थ्य ही धन है।

एक बार पुनः मेरा सभी से निवेदन है कि जब सुबह घूमने जाएं तब पॉलिटिक्स की बात को दूर रखें। हां, इलेक्शन के समय इससे बचना मुश्किल है। पर माहौल तो उचित रख सकते है।

पार्क में जब अपने वॉकिंग, योग व एक्सरसाइज करने के पश्चात, रिलेक्स करने हेतु कुछ व्यक्ति एक स्थान पर बैठते है तो कुछ न कुछ चर्चा होती है। मेरा सुझाव है कि सुबह सुबह इस शुद्ध हवा में हम कुछ धार्मिक, आध्यात्मिक बात करें या देशभक्ति की बात करें। इन विषय पर किसी का मतभेद नहीं हो सकता है और माहौल भी बहुत सही रहेगा। सभी अपने इनपुट्स दे सकते हैं, जो कि मुझे पूरी आशा है केवल सकारात्मक ही होंगे।

अपने को अपने स्वास्थ्य का ख्याल पहले रखना है। वोटिंग और इलेक्शन अपनी जगह है। हमें जरूर वोटिंग करना चाहिए और जितने भी कैंडिडेट है, उनमें से जो सबसे सही हो, जिसने देश हित में काम करने का प्रॉमिस किया हो, उसी को वोट देना चाहिए।

मै विशेष कर सीनियर सिटीजंस से तो निश्चित आग्रह करूंगा कि आप ऐसी बहस में न पड़े जहां गर्मागर्मी हो, जहां गुस्सा होने के कारण ज्यादा हो। हमारे लिए हमारा स्वास्थ्य ही सर्वोपरि है।

Saturday, October 26, 2024

वरिष्ठ के अकेलेपन को समाज दूर करे

 एक सर्वे में यह पाया गया कि वरिष्ठ जन को सबसे ज्यादा जो पीड़ा सताती हैं वो है एक उम्र में आने के बाद उनके जीवन का अकेलापन। जीवन साथी होने की स्थिति में भी बड़ी उम्र में व्यक्ति अपने को अकेला ही पाता है। अगर वो किसी न किसी तरह की एक्टिविटि से अपने को जोड़ ले तो यह अकेलापन बहुत हद्द तक दूर हो जाता है।

जीवन के इस कालखंड में जब व्यक्ति खुद ज्यादा कुछ पहल नहीं कर सकते है तब समाज का यह दायित्व है कि वो अपने बीच रह रहे बुजुर्ग के जीवन में ऐसी रोशनी लाए जिससे उनको जीने की चाह बढ़ जाए, उन्हें ऐसा लगने लगे कि अभी तो वो अपने लिए और दूसरो के लिए भी बहुत कुछ कर सकते है। इसी सोच से उनके स्वास्थ्य पर सकारात्मक असर दिखने लगेगा, चेहरे पर मुस्कान रहने लगेगी।

दो वर्ष पहले रांची के माहेश्वरी समाज के कुछ प्रबुद्ध जनों ने यह तय किया कि अपने बीच रह रहे वरिष्ठ जनों के लिए एक अलग मंच बनाया जाए। इस मंच का नाम रखा गया “चौपाल” और निश्चय किया गया कि 60 वर्ष एवं ऊपर के लोगो का इस मंच में स्वागत होगा। महीने के एक रविवार को मिलने का विचार हुआ और कई एक्टिविटी पर विचार-विमर्श किया गया।

पहले ही कार्यक्रम में उम्मीद से ज्यादा की उपस्थिती पाकर आयोजक बहुत उत्साहित हुए और तब से आज तक, प्रत्येक माह कुछ न कुछ कार्यक्रम आयोजित होते है। बैठकों में यह कोशिश रहती है कि सभी वरिष्ठ सदस्य आपसी आमोद प्रमोद एवं चर्चा में अपने मानसिक तनाव से दूर हो। दिल तो अभी बच्चा है, इस भावना के साथ ऐसे कार्यक्रम रखे जाते हैं कि सभी वरिष्ठ जनों के अंदर का बच्चा बाहर आ जाए। चौपाल की बैठकों में सामाजिक चिंतन भी किया जाता है तथा लूडो जैसा खेल भी खेला जाता है। इसके साथ ही साथ बीच-बीच में सदस्यों की टीम आसपास के धार्मिक स्थलों का भ्रमण सह पिकनिक के लिए भी जाती है।

चौपाल के प्रत्येक कार्यक्रम के बाद सभी सदस्य अपने आप को छोटे उम्र का अनुभव करने लगते है। अभी चौपाल के वरिष्ठतम सदस्य 83 वर्ष के युवा है। सभी सदस्यो को अगले चौपाल का बेसब्री से इंतजार रहता है।

यह तो एक उदाहरण मात्र है। हम अगर ठान ले अपने वरिष्ठ जन के जीवन में खुशहाली लाने की तो बहुत कुछ किया जा सकता है। कुछ सुझाव यहां दिए जा रहे हैं। आप अपने अनुभव व पास के वातावरण को देखते हुए खुद नए नए कार्यक्रम आयोजित कर सकते है।

आजकल शहरीकरण के साथ साथ बड़े बड़े मल्टीस्टोरी कॉम्प्लेक्स सभी तरफ नजर आते हैं। कई सोसाइटीज में तो हजार से भी ज्यादा छोटे बड़े रहते है। इन मिनी टाउनशिप्स में वरिष्ठ लोग अपना एशोसियेशन बना सकते हैं। इसी तरह आर. डब्लू. ए . (Residents Welfare Associations) भी सीनियर्स ग्रुप बना सकते है। सोशल व सामाजिक संस्थाओ में भी बुजुर्ग के लिए अलग कार्यक्रम के आयोजन हो सकते हैं।

कुछ एक्टिविटी के सुझाव यहां दिये जा रहे हैं

  1. सदस्यों द्वारा गाने बजाने का कार्यक्रम। बहुत से छुपे रुस्तम मिल जाएंगे जो पुराने गीत से सबका मन मोह लेंगे।
  2. पुराने समय के खेलो का आयोजन।
  3. बुजुर्ग जन की नृत्य प्रतियोगिता।
  4. बुजुर्ग जन की फैशन परेड।
  5. सुपर सीनियर्स, (पचहत्तर वर्ष से अधिक) को सम्मानित करना।
  6. विवाह की स्वर्ण जयन्ती मनाना।
  7. अगर कम्यूनिटी सेंटर हो तो इनडोर गेम्स की स्थाई व्यवस्था करना। वगैरह-वगैरह।

आप सभी के पास भी ढेर सारे आईडाज होंगे। दोस्तो व अन्य ग्रुप्स में साझा कीजिए। हमारे फेसबुक ग्रुप “नेवर से रिटायर्ड फोरम” पर भी आप अपने सुझाव पोस्ट कर सकते हैं। अपना उद्देश्य तो एक ही हैं कि बुजुर्ग व्यक्तियों का अकेलापन दूर करने का दायित्व हमारा, समाज का ही हैं।

बुजुर्ग ऑनलाइन धोखाधड़ी से बचें

 अखबारों में जब ऑनलाइन धोखाधड़ी का समाचार आता है तो ऐसा नहीं है कि किसी खास उम्र के लोग ही इससे प्रभावित होते हैं। युवा तो प्रभावित शायद कम होते हो लेकिन यह निश्चित है कि बुजुर्ग ज्यादा प्रभावित होते हैं। इसका कारण है कि बुजुर्ग इतनी टेक्निकल चीजों को समझने में बहुत सक्षम नहीं होते हैं।

आजकल हर किसी के हाथ में स्मार्टफोन जरूर रहता है और इस स्मार्टफोन से हम बहुत कुछ करते भी रहते हैं।

अगर मोबाइल फोन के इतिहास में जाएं तो यह जानना जरूरी है कि भारत में पहली मोबाइल फोन सर्विस लॉन्च हुई थी 23 अगस्त 1995 को मोदी टेलस्ट्रा कंपनी द्वारा। यह कम्पनी आज के दिन वोडाफोन है। कोलकाता में मोबाइल फोन से बात करने की शुरुआत 31 जुलाई 1995 को पश्चिम बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री ज्योति बसु जी द्वारा की गई थी, जिन्होंने पहला कॉल, नोकिया के हैंडसेट, से केन्द्रीय टेलीकॉम मिनिस्टर सुखराम जी को दिल्ली किया था। इसके पश्चात अगले 29 वर्षों में यह सेवा कहां से कहां पहुंच गई है और आगे क्या होगा इसकी तो किसी को कल्पना भी नहीं है।

आज हम अपने मोबाइल फोन से पैसे के लेनदेन, बैंक के ट्रांजैक्शंस, रेल और हवाई यात्रा की बुकिंग और न जाने क्या कुछ कर सकते हैं। सिक्योरिटी के लिए भी इसका खूब उपयोग हो रहा है। मैं कई ऐसे व्यक्तियो को जानता हूं जो अपने मोबाइल से ही अपने कारोबार के स्थान पर या अपने घर पर कैमरा लगा कर वहां की लाइव वीडियो तक देख लेते हैं और यह जान सकते हैं कि वहां कौन आ-जा रहा है। इसी तरह ईमेल, डिजाइनिंग करना, जूम मीटिंग करना, वगैरह आज के दिन हाथ में पकड़े इस छोटे से मोबाइल से संभव हो जाता है।

इन सब सुविधाओं के बावजूद इसमें बहुत से रिस्क फैक्टर्स भी है जिस पर ध्यान देना जरूरी है। हम लोग अखबारों में रोज ही कोई ना कोई समाचार पढ़ते हैं कि कैसे ऑनलाइन फ्रॉड किए जा रहे हैं और लोगों के लाखों रुपए इस नई तकनीक से उनके बैंक अकाउंट से उड़ जाते हैं। कई बार तो ऐसा भी सुनने में आया की आपको कोई मैसेज मिला और अगर आपने उस मैसेज को खोल लिया तो आपके फोन का जितना भी डाटा है वह उस धोखेबाज व्यक्ति को उपलब्ध हो जाता है। ऑनलाइन धोखाधड़ी के मामले इतने बढ़ गए हैं की सरकार भी सजग हो गई है और समय समय पर दिशानिर्देश देती है की ऐसे फ्रॉड से केसे बचा जाए। अब सिक्योरिटी प्रोफेशनल्स भी आ गए हैं जो इसका समाधान बताते हैं।

फ्रॉड के नए-नए हथकंडे रोज उपयोग होने लगे हैं। एक किस्सा सामने आया कि किसी व्यक्ति के फोन पर एक वीडियो कॉल आया किसी लड़की का और वह बात करके कुछ अश्लील कार्य करने को कहती है। जब तक आप लाइन काटे तब तक आपकी फोटो वह कैप्चर कर लेती है। उसके बाद आपके पास और किसी व्यक्ति का फोन आता है कि आप इस समय इस लड़की से अश्लील बातें कर रहे थे। इसको हम उजागर कर देंगे समाज के सामने अगर आप हमें इतना पैसा नहीं देंगे। यह सब ऐसी घटनाएं हैं जिसमे कि अनजाने में आम आदमी फंस जाता है।

देश में कुछ छोटे-छोटे शहर जैसे कि झारखंड का जामताड़ा, हरियाणा का नूह तो बहुत फेमस हो गए हैं ऑनलाइन ठगी के लिए। वैसे सभी राज्यो में ऐसे आपराधिक प्रवर्ति के लोग हर समय इसी फिराक में रहते है कि वो कैसे नए नए व्यक्तियों को अपने जाल में फंसाये। और शायद बुजुर्ग व्यक्ति इसके शिकार जल्द बन जाते हैं।

इसका सकारात्मक पहलू भी देखें। सही उपयोग से मोबाइल फोन से हम तमाम कार्य कर लेते हैं। पहले जहां हमको किसी जगह जाकर ही मीटिंग करनी होती थी, आज उसकी जगह हम जूम या और कई तरीको से घर बैठे ही यह कार्य सम्पन्न कर सकते हैं। बहुत से युवा साथी छोटी-छोटी वीडियो बनाकर यूट्यूब, इंस्टाग्राम वगैरह पर पोस्ट करके काफी पैसा कमा रहे हैं। इसी तरह लिंक्डइन पर पोस्ट करके युवा साथी आज के दिन अपनी नौकरी तलाश कर लेते हैं। बैंकिग के तो ज्यादातर काम अब ऑनलाइन हो रहे हैं।

अखबारों में जब ऑनलाइन धोखाधड़ी का समाचार आता है तो ऐसा नहीं है कि किसी खास उम्र के लोग ही इससे प्रभावित होते हैं। युवा तो प्रभावित शायद कम होते हो लेकिन यह निश्चित है कि बुजुर्ग ज्यादा प्रभावित होते हैं। इसका कारण है कि बुजुर्ग इतनी टेक्निकल चीजों को समझने में बहुत सक्षम नहीं होते हैं। इसी कारण बुजुर्ग लोगों को बहुत ही सावधानीपूर्वक रहना होगा। ऑनलाइन धोखाधड़ी से बचने के सभी संभव उपाय को ध्यान में रखकर ही अपने मोबाइल से कोई वित्तीय ट्रांजैक्शन या किसी अंजान व्यक्ति से बात करने में सावधानी बरतनी होगी।

सरकार भी इसके लिए बहुत सजग है और समय-समय पर काफी जानकारी आम लोगों को उपलब्ध कराती है। रिजर्व बैंक ऑफ़ इंडिया ने भी दो बुकलेट प्रकाशित की है जिसका शीर्षक है 1. राजू और चालीस चोर व 2. BE(A)WARE. ये बुकलेट आप ऑनलाइन आर बी आई की वेबसाइट पर देख सकते है।

फर्जी ईमेल और फर्जी नोटिस से संबंधित धोखाधड़ी के बढ़ते मामलों को देखते हुए गृह मंत्रालय ने कई बार लोगों को आगाह किया है कि वे इस तरह के नकली ईमेल व ईनोटिस से सावधान रहे। इनका जवाब देने के बजाय तुरंत इसकी शिकायत साइबर अपराध समन्वय केंद्र की वेबसाइट पर करें – http://i4c.mha.gov.in

अपने पासवर्ड को मजबूत बनाए और इसे कहीं लिख कर भी रखे। कई बार जब हमें इसकी आवश्यकता होती हैं हम अपने पासवर्ड को भूल जाते है। कुछ दिनो से एक बैंक द्वारा प्रसारित वीडियो में एक अच्छा सुझाव दिया गया है कि अपना पासवर्ड संस्कृत के शब्द से बनाए। अपने पासवर्ड को समय समय पर बदलते भी रहना चाहिए। एक ही पासवर्ड को हर जगह इस्तेमाल ना करें।

कई बार हम सार्वजनिक वाई-फाई का उपयोग करते हैं, जैसे कि एयरपोर्ट, रेलवे-स्टेशन, होटल वगैरह में। इससे बचना चाहिए। यह ज्यादा सुरक्षित नहीं होते हैं। अगर ज़रूरत पड़े तो ऐसे समय किसी वी पी एन सॉफ्टवेर का इस्तेमाल करें।

सबसे सही और आसानी से मिलने वाली जानकारी तो आपको अपने घर पर ही मिल जाएगी। आजकल छोटी उम्र में ही अपने बच्चे इतना कुछ हमे इस विषय पर सिखा सकते है। अगर कोई परिचित इस गोरखधंधे का शिकार हो चुका है तो उससे ज्यादा प्रेक्टिकल सुझाव, बचने के लिए, तो और कोई दे ही नहीं सकता।

अपने को अखबार और सोशल मीडिया पर ऐसे धोखाघड़ी के समाचारो को बारीकी से देखना चाहिए। आधुनिकता अपनाने के इस युग का यह अनचाहा नकारात्मक पहलू है। हमें सजग रहना है। शत प्रतिशत बचाव तो होना मुश्किल है लेकिन अगर हम थोड़ी बहुत भी सावधानी रख सके तो काफी हद तक बचे रहेंगे।

Friday, October 18, 2024

औसतन उम्र बढ़ रही है, इसे स्वस्थ भी रखे

एक तरफ तो हम खुशी मना रहै है कि हमारी औसतन उम्र बढ़ रही है, पर इसका दूसरा पहलू यह है कि बिरला ही कोई परिवार ऐसा मिलेगा जिसके घर में कोई अस्वस्थ न हो। परिवार के किसी न किसी सदस्य, खास कर बुजुर्ग, को अक्सर डॉक्टर या हॉस्पिटल का रूख करना ही पडता हैं। महंगी दवाइयां, डॉक्टर्स की फीस, अस्पताल का खर्च, मेडिकल इंश्योरेंस के होते हुए भी, इन सबका असर हमारे घर के बजट पर बहुत भारी पड़ता है।

1947, में जब भारत आजाद हुआ था, हम भारतियों की औसतन उम्र केवल 32 वर्ष थी। आज के नौजवान तो शायद इस तथ्य पर विश्वास ही न करे। हां, 2020 के उपलब्ध डाटा के अनुसार हमारी यह औसतन उम्र बढ़कर 67.2 वर्ष हो गई है। सवाल उठता है कि हमारी उम्र तो बढ़ रही है पर इस बढ़ती उम्र को स्वस्थ रखना, जिसे ‘हेल्थी एजींग’ भी कहते है, का हम कितना ध्यान रखते है।

भारत सरकार और भारत में डब्ल्यूएचओ कंट्री ऑफिस द्वारा संयुक्त रूप से 60 वर्ष और उससे अधिक आयु की बुजुर्ग आबादी के एक अध्ययन से पता चला है कि उच्च रक्तचाप, मधुमेह, हृदय रोग, एनीमिया, गठिया, गिरना/फ्रैक्चर, आंत संबंधी शिकायतें, अस्थमा, आदि जैसी बीमारियाँ आम हैं। बुजुर्गों के लिए विशेष सुलभ स्वास्थ्य देखभाल की आवश्यकता को पहचानते हुए, भारत सरकार ने विभिन्न कार्यक्रम शुरू किए हैं, जिनमें राष्ट्रीय बुजुर्ग स्वास्थ्य देखभाल कार्यक्रम (एनपीएचसीई) और वृद्ध व्यक्तियों के लिए एकीकृत कार्यक्रम जैसे आयुष्मान भारत शामिल हैं। इन कार्यक्रमों का उद्देश्य प्राथमिक, माध्यमिक और तृतीयक स्वास्थ्य देखभाल वितरण प्रणाली में वरिष्ठ नागरिकों (60 वर्ष और उससे अधिक आयु) को स्वास्थ्य देखभाल सुविधाएं प्रदान करना और लोगों की औसत जीवन प्रत्याशा को और बढ़ाना है।

कुछ ही दिनो पहले प्रधानमंत्री श्री नरेन्‍द्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने प्रमुख योजना आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (एबी पीएम-जेएवाई) के तहत आय की परवाह किए बिना 70 वर्ष और उससे अधिक आयु के सभी वरिष्ठ नागरिकों को स्वास्थ्य कवरेज को मंजूरी दे दी है। इसका लक्ष्य 6 करोड़ वरिष्ठ नागरिकों वाले लगभग 4.5 करोड़ परिवारों को पारिवारिक आधार पर 5 लाख रुपये के मुफ्त स्वास्थ्य बीमा कवर से लाभान्वित करना है। इस मंजूरी के साथ, 70 वर्ष और उससे अधिक उम्र के सभी वरिष्ठ नागरिक, चाहे उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति कुछ भी हो, एबी पीएम-जेएवाई का लाभ उठाने के पात्र होंगे। वरिष्ठ नागरिकों को एबी पीएम-जेएवाई के तहत नया विशिष्ट कार्ड जारी किया जाएगा। एबी पीएम-जेएवाई के तहत पहले से ही कवर किए गए परिवारों के 70 वर्ष और उससे अधिक उम्र के वरिष्ठ नागरिकों को अपने लिए प्रतिवर्ष ₹5 लाख तक का अतिरिक्त टॉपअप कवर मिलेगा। 70 वर्ष और उससे अधिक आयु के अन्य सभी वरिष्ठ नागरिकों को पारिवारिक आधार पर प्रति वर्ष ₹5 लाख तक का कवर मिलेगा।

वरिष्ठ नागरिको के लिए बनाई गई ये विषेश योजनाओ से लाभ तो बहुत मिलेगा, पर हमारा उद्देश्य तो यही होना चाहिए कि हम बीमार कम से कम हो। घर में इतनी बीमारी रहने के बहुत कारण है। पारिवारिक परिस्थिति को देखते हुए इनमे से कुछ पर हम अपना ध्यान आकर्षित करते है।

हमारी लाइफ स्टाइल में बहुत बदलाव आ गया है। इसके कारण, अलग अलग व्यक्तियों के लिए विभिन्न हो सकते हैं। किसी को दिन भर कुर्सी पर बैठ कर काम करना पड़ता है तो किसी को रात भर। किसी को ट्रेवलिंग बहुत करनी पड़ती हैं, तो किसी को घर से ऑफिस आने जाने में ही घंटो लग जाते है और रास्ते में जो पॉल्यूशन झेलना पड़ता है उससे भी स्वास्थ्य पर बहुत नकारात्मक प्रभाव होता है। ये आज काम में इतने व्यस्त रहने वालो की जब उम्र बढ़ेगी तो अस्वस्थ रहना स्वाभाविक होगा।

हमारे खान-पान पर तो जितनी भी बात की जाए कम होगी।पैदावर बढ़ाने के लिए केमिकल फर्टिलाइजर्स का अधिक उपयोग, हर सामग्री में मिलावट चाहे दूध, पनीर, घी, तेल, दाल आदि कुछ भी हो। नदियों मे शहरी गंदगी, कारखानो के केमिकल्स का निष्पादन से पानी जो हम उपयोग करते है वो पीने लायक नहीं होता है और अंततः फिर उस पानी में केमिकल्स का उपयोग कर पीने के लायक बनाते है। हमारे कई बुजुर्ग साथियो को याद होगा जब वो नदी किनारे बालू के बीच से ही पानी को हाथ में लेकर पी लेते थे। बीमारी का एक कारण तो यह भी है कि अपने को ईलाज के लिए जो दवाईयां दी जाती है, उसके ही साइड एफेक्ट्स बहुत होते है।

डब्ल्यूएचओ के डाटा के अनुसार भारत में सत्तर वर्ष से ज्यादा आयु की आबादी 2023 में 6 करोड़ थी, जो कि 2050 में बढ़कर 16.79 करोड़ हो जाएगी। इनमे अगर केवल अस्सी वर्ष से बड़ो की बात करे तो, इस डाटा के अनुसार जहां 2023 में इस उम्र के डेढ़ करोड़ व्यक्ति थे वो 2050 में कोई पांच करोड़ उनसठ लाख होंगे। (https://data.who.int/countries/356)। 

भारतियों की औसतन उम्र तो जरूर बढ़ रही है पर हम कैसे इस बढ़ती उम्र में स्वस्थ रहें, खुश रहें, बीमारियो से दूर रहे, यह निर्भर करेगा हमारे रहन-सहन पर, हमारे खान-पान पर। 

योग, व्यायाम, खुली हवा में पैदल भ्रमण सभी को नियमित करना चाहिए। बिना केमिकल के उपजाई गई खान-पान की वस्तुओ का ज्यादा उपयोग, ताजा फल व सब्जी का भरपूर उपयोग वगैरह से हम अपने शारीरिक स्वास्थ्य का थ्यान रख सकते है। और इसिके साथ हमे अपने मानसिक स्वास्थ्य का भी पूरा ध्यान रखना होगा। खुश रहे, बात बात पर गुस्सा न हो, सकारात्मक विचार रखे, सभी से अच्छे संबंध बना कर रखे, दोस्त मंडली के साथ खूब हंसी-मजाक करे, वगैरह। यह सब हेल्थी एजींग में सहायक होंगे। उम्र तो हर पल बढ़ रही हैं, हमे इसे स्वस्थ रखना है।

Monday, September 30, 2024

हम वरिष्ठ है, बूढ़े नहीं

 ज्यादातर लोग एक उम्र आने के पश्चात अपने आप को बुढ़ा समझने लगते है और यहीं से उनके स्वास्थ पर विपरीत असर दिखने लगता है। इस नकारात्मक सोच से हमे उभरना होगा। हम यह भी मानते है कि उम्र तो एक नम्बर है, असल जिन्दगी तो आपकी सोच, आपकी जीवनशैली पर निर्भर करती है। अगर हम सकारात्मक हो कर अपना जीवन निर्वाह करे तो बढ़ती उम्र में भी हम खुशी खुशी भगवान के द्वारा निर्धारित प्रत्येक क्षण का आनंद ले सकते है।

हमें बढ़ती उम्र में अपने आप को वरिष्ठ बनाना और महसूस करना है। बुढ़ापे और वरिष्ठता के अंतर को बारीकी से समझना होगा तभी हम इस उलझन से निकल पायेंगे और स्वस्थ व सुखी रह सकेंगे। हम अगर अपने को बुढऊ समझने लगे तो अन्य लोगों का आधार ढूंढते रहेंगे। इस मानसिकता से बाहर आकर हम अपने को वरिष्ठ समझे। दूसरो को आधार देने की हिम्मत रखे।

घर पर भी हमें अपने विचार बच्चों पर जबरदस्ती अपनाने की जिद्द नहीं करनी चाहिए। इस तरुणपीढ़ी की राय हमें भी समझनी चाहिए। और फिर आपसी सहमति से कोई निर्णय लेना चाहिए। सायद यहीं अंतर दर्शाता है बुढ़ापे और वरिष्ठता में।

अपने ही मध्य अनेकानेक व्यक्ति मिल जाएंगे जो 75 के पार है और अपने को कुछ न कुछ उपयोगी कार्य में लगा रखे हैं। अखबार में, टीवी पर व सोशल मीडिया पर हमें अक्सर ऐसे समाचार मिल जाते है जहां इस 75 के उम्र को पार कर सुपर सीनियर्स बहुत कुछ ऐसा कर रहे है जिससे समाज में उनको प्रतिष्ठा मिल रही है। ऐसे वरिष्ठ जन दूसरो के लिए भी आदर्श बनते है।

यहां मैं एक वरिष्ठ व्यक्ति का आपको उदाहरण देना चाहूंगा जिनका व्यक्तित्व हमारे लिए आदर्श बन सकता है। ये है 89 वर्ष के श्री अशोक पाल जी।

दिल्ली के पड़ोस गाजियाबाद में जन्मे अशोकजी की प्रारंभिक पढ़ाई स्थानीय सरकारी स्कूल में हुई। इसके पश्चात वे नजदीक ही स्थित रूरकी विश्वविद्यालय की इंजीनियरिंग कॉलेज, जिसे आजकल आई आई टी रूरकी कहां जाने लगा है, से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में स्नातक होकर अपना जीवन आगे बढ़ाने की ओर अग्रसर हुए।

अशोक जी की पहली नौकरी लगी मध्य प्रदेश के सरकारी विभाग में। साढ़े तीन वर्ष तक वहां अपनी सेवा देने के बाद वो अगले साढ़े तीन वर्ष डेसू (DESU) में कार्यरत रहे। इसके पश्चात 1966 में अशोकजी ने भारत सरकार की एक कन्सलटेन्सी कम्पनी, जिसका काम था जगह जगह औद्योगिक परियोजनाएं की स्थापना करना, में अपना योगदान दिया। यहां पर कोई 10 वर्ष तक अशोक जी ने सेवा दी और यहीं पर उनको बहुत एक्स्पोज़र मिला, कारण की इस सरकारी कंपनी की कंसलटेंसी बहुत से देश में दी जाती थी। इसी सरकारी ईकाई में रहते हुए ये डेढ़ वर्ष तक ईरान में कार्यरत रहे।

इतने वर्षों तक सार्वजनिक संस्थानों में अपनी सेवा देने के बाद इन्होंने निजी क्षेत्र की ओर अपना कदम आगे बढ़ाया। थर्मल पावर प्लांट्स की स्थापना में कार्यरत डेजीन डिजाइनिंग कम्पनी में डायरेक्टर बन कर आए। इस संस्था का पोलैंड की सरकारी कंपनी से संबंध था और इन्होंने बोकारो, दुर्गापुर व राउरकेला में कैप्टिव पावर प्लांट लगाने में सहयोग किया। 10 – 12 वर्ष इस कम्पनी में अपना योगदान देने के पश्चात इन्होंने पोलैंड सरकार के आग्रह पर एक जाॅयन्ट वेन्चर कंपनी बनाई जिसके वे मेनेजिंग डायरेक्टर बने। बाद में इस कम्पनी को इन्होंने खरीद लिया। 80 वर्ष की उम्र होने पर इन्होंने इस कंपनी का कामकाज समेट लिया।

अशोक जी शुरु से ही समाज सेवा से जुड़े थे। इसी भावना ने उन्हें विद्या भारती के नजदीक ला दिया जिससे वो कोई तीस वर्ष से जुड़े है। उनका विश्वास था कि शिक्षा के साथ संस्कार देना बहुत आवश्यक है जिसे विद्या भारती बखुबी बहुत अच्छी तरह कर रही हैं। पिछले 17 वर्षों से ये विद्या भारती के उत्तर क्षेत्र के अध्यक्ष हैं। अशोकजी आज भी खूब प्रवास करते हैं। देश के किसी भी स्थान पर कोई बैठक हो और जिसमे ये अपेक्षित हैं, वो वहां पहुंच जाते है। (आपको यहां यह बताना आवश्यक है कि विद्या भारती शिक्षा के गैरसरकारी क्षेत्र में विश्व की सबसे बड़ी संस्था है। भारत के 682 जिले में 12098 औपचारिक स्कूल कार्यरत है जिनमे इकत्तीस लाख से अधिक छात्र संस्कारित शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। इसके अतिरिक्त 54 काॅलेज व दो विश्वविद्यालय भी विद्या भारती के अंतर्गत संचालित हैं।)

1998 में गाजियाबाद में ए.के.जी. इंजीनियरिंग कॉलेज की स्थापना हुई जिसके ये फाउंडर चेयरमैन है। इनकी अपनी एक ट्रस्ट भी है जो की पूरी तरह विद्या भारती को समर्पित है। 1961 में इनका विवाह हुआ और इनके दो बच्चे हैं, एक बेटा व एक बेटी, दोनों विदेश में रहते है।

ऐसे वरिष्ठ व्यक्ति हमें अपने आसपास ही कई मिल जाएंगे। हम उनके जीवन से बहुत कुछ सीख सकते है। उनसे प्रोत्साहन ले सकते है। आप देखेंगे कि ऐसे व्यक्ति बढ़ती उम्र में भी स्वस्थ व खुश रहते है। आवश्यकता जब भी हो सही दिशानिर्देश आपको इनसे मिल जाएगा और दूसरो को अपना सहयोग देने में भी पीछे नहीं हटते है।

अंत मे एक व्हाट्सएप पर मिला यह पोस्ट आपसे यहां साझा करना चाहूंगा। इस पोस्ट में कहा गया है “बुढ़ापा जीवन की शाम में अपना अंत ढूँढता है, और वरिष्ठता जीवन की शाम में भी एक नए सवेरे का इंतजार करती है तथा युवाओं की स्फूर्ति से प्रेरित होती है।”

Saturday, September 21, 2024

अपस्किलिंग और रीस्किलिंग बुजुर्ग के लिए जरूरी

 हमें रिटायर हुए 5 वर्ष हो गए और पढ़ाई छोड़े तो 40 वर्ष हो गए। हम जब पढ़ते थे तब मैथमेटिक्स की पढ़ाई का तरीका आज के तरीके से बिल्कुल भिन्न था। आज कभी घर में छोटे बच्चे जब मैथमेटिक्स का कोई सवाल पूछने आ जाते हैं तो हम इधर-उधर झांकने लगते हैं। करण कि हम जिस तरीके से उस सवाल का सॉल्यूशन ढूंढते हैं उस तरीके से बच्चे अनभिज्ञ रहते हैं। भाषा ज्ञान को छोड़ दे तो यही दिक्कत और विषयों में भी आती है।

आगे कॉलेज की पढ़ाई जो हमने की उसी के संदर्भ में हमें नौकरी मिलने में सहायता मिली। लेकिन अब रिटायर होने के बाद ऐसा लगता है कि वह पढ़ाई अगर हम आज उपयोग करना चाहे तो उसमें अपस्किलिंग या रीस्किलिंग करना बहुत आवश्यक है। रिटायर्ड, अपने को रि-स्किल करके ही प्रासंगिक बना कर रख सकते है।

अपस्किलिंग और रीस्किलिंग दो ऐसे शब्द हैं जो एक साथ चलते हैं। जहाँ अपस्किलिंग में आपके मौजूदा कौशल को बढ़ाया जा सकता है, वहीं रीस्किलिंग में नए कौशल सीखने को कहा जा सकता है। अपनी वर्तमान भूमिका के दायरे को बढ़ाने में अपस्किलिंग व रीस्किलिंग आपको सक्षम बनाने में महत्वपूर्ण योगदान कर सकते हैं।

कोई जरूरी नहीं है कि हमें नौकरी करने के लिए ही अपने आप को अपडेटेड रखना होगा। बहुत से ऐसे पल भी आते हैं जब यह अपडेशन हमें बहुत काम आता है। सभी रिटायर्ड व्यक्ति दोबारा नौकरी नहीं करते हैं या चाह के भी उनको नौकरी नहीं मिलती है। और उसमें एक मुख्य कारण होता है कि हम आज की पद्धति से काम नहीं कर सकते। एक उदाहरण दें तो अकाउंट में हम आज से 40-50 वर्ष पहले जो सीखे थे वह बेसिक्स तो काम आते हैं लेकिन अगर कोई ‘टैली’ नहीं जाने तो वह आज के संदर्भ में किसी भी ऑफिस में काम सुचारू रूप से नहीं कर सकेगा। ऐसे में हम अपने आप को रीस्किलिंग करके ‘टैली’ सीख ले तो नौकरी मिलने में आसानी हो जाएगी। और यह बहुत मुश्किल भी नही हैं।

आज के दिन हमारे हाथों में यह जो स्मार्टफोन है यही कितना कुछ काम कर सकता है। हम तो क्या, बहुत से युवा भी इस मोबाइल को पूर्ण रूप से उपयोग करने में असमर्थ होते है। इसकी ट्रेनिंग बहुत उपयोगी साबित हो सकती है।

50 वर्ष पहले इंजीनियरिंग की पढ़ाई में सारे कैलकुलेशन करने के लिए स्लाइड रूल का उपयोग किया जाता था। आज के बच्चों को अगर पूछ ले तो उन्हें तो यह भी जानकारी नहीं होगी कि यह स्लाइड रूल होता क्या है। आज सारे कैलकुलेशन आप अपने मोबाइल फोन पर आसानी से कर सकते हैं।

एक और विषेश बात है कि आजकल स्पेशलाइजेशन का जमाना आ गया है। हर तरह की तकनीक के लिए अलग-अलग लोग होते हैं। वे उसी विषय की पढ़ाई कर के आए है। पहले जब पढ़ाई होती थी तो सभी विषय की जानकारी कुछ न कुछ बतायी जाती थी। आज आपको डिसाइड करना होगा कि आप किस चीज में स्पेशलाइजेशन करना चाहते हैं।

यह सब नई तकनीक सीखने में या अपने आप को अपडेट करना कोई इतना आसान काम नहीं है। एक तो बहुत कम ऐसी संस्थाएं हैं जो कुछ पैसे लेकर भी यह सब सिखाती हो व्यस्क व्यक्तियो को। दूसरा अगर आप कोशिश करें कि अपने घर में ही युवा वर्ग से यह सीखना चाहे, तो शायद यह नामुमकिन सा हो। हां एक उपाय मैं बता सकता हूं। आज के दिन हर विषय की जानकारी के लिए यूट्यूब पर वीडियो उपलब्ध है। अगर आप मन लगाकर और कुछ समय देकर कुछ भी सीखना चाहे तो शायद आज के दिन यह मुमकिन है।

रिटायर्ड व्यक्ति कई बार यह सोचता है कि मैं बच्चों के लिए कुछ कोचिंग क्लास ले लूं, चाहे वह फ्री ही क्यों ना हो। लेकिन इसके लिए भी अपने आप को आज के संदर्भ में रीस्किल तो करना ही होगा। अपने समय में जो पढ़ाई आप किए थे वह तो इन बच्चों को काम नहीं आनी है। हां, एक बात जरूर है कि आप जब अपने आप को रीस्किल करते हैं तो आपका पूर्व ज्ञान बहुत काम आता है और आप अभी की नई तकनीक को आराम से समझ सकते हैं।

इसी तरह अगर आप कंसल्टेंट्सी का काम करना चाहते है तब भी आपको अपस्किलिंग और रीस्किलिंग की बहुत आवश्यकता होगी। आप अगर किसी स्वयंसेवी संस्था में भी अपना योगदान देना चाहते है तो अपडेटेड होना बहुत लाभदायक होगा।

हम में से कई सॉफ्ट स्किल्स सीखाने में भी एक्सपर्ट होंगे। सॉफ्ट स्किल से मेरा मतलब है ऐसे कोर्स, जैसे टाइम मैनेजमेंट, लैंग्वेज क्लासेस, पब्लिक स्पीकिंग वगैरह। अपने को लगता होगा कि यह सब सिखाने में क्या फर्क आया होगा आज के दिन। लेकिन सोचिए अगर इसमें हम टेक्नोलॉजी का सहयोग ले तो घर बैठे भी यह सब कोर्स जरूरतमंद को करा सकते हैं। थोड़ा बहुत सीखना होगा की ऑनलाइन कोर्स कैसे करवाया जा सकता है। सामने वाले को तो यह भी पता नहीं चलेगा कि पढ़ाने वाले की उम्र क्या है। इससे आप व्यस्त रहेंगे और यह कमाई का भी एक साधन बन जाएगा।

हमारी वेबसाइट है - www.neversayretired.in
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