We have all been criticising about what is not being done by the government. However, we rarely give our own solutions to any problem that we see. May be the suggestion is ridiculous - but still if we look things in a positive way may be we can suggest solutions which some one can like and decide to implement. I know this is very wishful thinking but this is surely better than just criticising.

Saturday, November 23, 2024

छोटे बच्चो को बुजुर्ग लाइफ स्किल्स सिखाए

 हम विचार करे कि और कौन-कौन सी ऐसी जरूरी लाइफ स्किल है जिनके विषय मैं हमे जल्द से जल्द बच्चो को सिखाने की कोशिश करनी चाहिए। मन में यह विश्वास रखे की बच्चो को लाइफ स्किल्स सिखना बहुत आवश्यक है और इसे सिखाने में हम बुजुर्ग अपना योगदान जरूर देंगे।

आज मेरे से मिलने मेरे छोटे भाई की ग्यारह वर्षीय पोती और छ वर्षीय छोटा पोता आए। मैं उस समय बिजली का कुछ छुटपुट काम कर रहा था। मेरे हाथ में बिजली का टेस्टर था। अचानक पोती से मैने पुछा कि मेरे हाथ में क्या है। उसने तुरंत उत्तर दिया की यह स्क्रूड्राइवर है। पर टेस्टर के विषय में उसे कोई जानकारी नही थी। मैने विस्तृत रूप से टेस्टर का उपयोग उन्हें बताया।

यहां पर यह उदाहरण देने का मेरा मकसद केवल यही है कि आज के दिन घर-घर में बच्चों को लाइफ स्किल्स के विषय में बहुत जानकारी नहीं होती है। उनका स्कूल के एग्जाम में तो भले 90 पर्सेंट से ऊपर आ जाए लेकिन ये लाइफ स्किल ज्यादा जरूरी है जो जिंदगी भर काम आएंगे।

हम वरिष्ठ जन घर में अपना समय का सही उपयोग कर सकते हैं अगर हम यह छोटी-छोटी बातें अपने घर में बच्चों को बताएं। आप कहेंगे बच्चे तो हमारी सुनते ही नहीं है। हो सकता है आप सही बोल रहे हो, पर मैं निश्चित बोलता हूं कि आपके जो बच्चे के बच्चे हैं, यानी आपके पोते-पोती आपकी बात मन लगाकर सुनेंगे। आप भी तो उनसे एक अलग तरीके से बात करते है जो की उन मासूम बच्चों को पसंद आती है।

ऐसे कई उदाहरण हो सकते हैं जो कि घर में बच्चों को सिखाना बहुत ही आवश्यक है। उनकी पढ़ाई में तो उनके माता-पिता जी जान लगा ही देते हैं। चलिए हम कोशिश करें कि इनको कुछ लाइफ स्किल्स सिखाएं। मैंने एक उदाहरण बिजली के टेस्टर का दिया। हम विचार करे कि और कौन-कौन सी ऐसी जरूरी लाइफ स्किल है जिनके विषय मैं हमे जल्द से जल्द बच्चो को सिखाने की कोशिश करनी चाहिए।

एक और उदाहरण देता हूं। मान ले दो छोटे बच्चों को घर पर अकेले छोड़कर आपको कहीं जाना पड़ जाए। इस बीच किसी एक बच्चे को चोट लग जाती है। थोड़ा खून आ जाता है। क्या आपने बच्चों को फ़र्स्ट ऐड के विषय में बताया है? फ़र्स्ट ऐड का समान कहां रखा है यह बताया है? अगर नहीं तो इस कार्य को तुरंत करिये।

एक अहम विषय की चर्चा यहां करना चाहूंगा। वैसे तो यह संस्कार सिखाने की बात आप बोल सकते है पर मै इसे लाइफ स्कील की श्रेणी में रखना चाहूंगा। ज्यादातर देखा जाता है कि घर में जब कोई बुजुर्ग परिवार वाले या मित्र आते है तब बच्चे किनारे से, इन्हें अनदेखा कर निकल जाते हैं। हम बड़ो का यह दायित्व है कि बचपन से ही हम इन संस्कारी विषयो पर बच्चों से चर्चा करे और उन्हें सही ढंग से समझाएं।

घर में एक ऐसा वातावरण बनाना होगा की हम इन छोटे मासूम को यह सब लाइफ स्किल्स सहज तरीके से सिखा सके। आज के दिन कोई जोर जबरदस्ती नहीं कर सकते। छुट्टी के दिन को चुने। बच्चो से ही पूछे कि इस समय वह फ्री है क्या और क्या वो कुछ नया इंटरेस्टिंग सिखना चाहेंगे जिससे की उनके माता-पिता और खास कर उनके दोस्त उनसे इम्प्रेस हो जाएंगे। आपको जरूर सफलता मिलेगी अपने उद्देश्य को पूर्ण करने में।

मन में यह विचार कतई न लाए कि यह सब तो बच्चो को उनके माता-पिता को सिखाना चाहिए। हम दादा-दादी यह काम बहुत आराम से कर सकते है। हमारा अनुभव और हमारा पोते-पोती से मधुर संबंध इस कार्य को सुचारु रूप से संपन्न करने में बहुत उपयोगी सिद्ध होगा। बस मन में यह विश्वास रखे की बच्चो को लाइफ स्किल्स सिखना बहुत आवश्यक है और इसे सिखाने में हम बुजुर्ग अपना योगदान जरूर देंगे।

बढ़ती उम्र में वित्तीय प्लानिंग अति आवश्यक

 स्वास्थ्य सम्बन्धित जागरूकता व बेहतर मेडिकल सुविधाएं उपलब्ध होने से निश्चित हमारी उम्र लंबी हो रही हैं। हम जब छोटे थे, अगर परिवार या पड़ोस में किसी का साठ-पैंसठ की उम्र में देहांत हो जाता था, तब कहा जाता था कि वो व्यक्ति पकी हुई उम्र में भगवान को प्यारा हुआ है। आज औसतन पचहत्तर-अस्सी की उम्र तक जीवन आसानी से चलता नजर आता है। इस लंबी होती उम्र में उचित वित्तीय प्लानिंग ही हमारी गाड़ी को जीवन भर सुचारू रूप से चला सकती है।

इस उम्र में आकर यह आशा नहीं करनी चाहिए कि हम कुछ ऐसा काम कर सकेंगे जिससे की काफी धन अर्जित हो सके। बच्चों से सहयोग ज्यादातर लोगो को जरूर मिलता रहेगा। फिर भी हमारी अपनी वित्तीय प्लानिंग, जो काफी पहले से की गई हैं, उसी के सुपरिणाम हमको खुशी देती है।

आज की महंगाई की मार बुजुर्ग को भी झेलनी होती हैं। हर वस्तु की कीमत बढ़ रही है बराबर। इस उम्र में व्यक्ति की कोई ज्यादा आवश्यकता नहीं होती पर कुछ बुनियादी जरूरतें, जैसे खान-पान, रहन-सहन व सबसे महत्वपूर्ण स्वास्थ्य सम्बन्धित आवश्यकताएं तो होती ही हैं। और केवल इन बेसिक्स का खर्च ही हर माह बढ़ता जा रहा है।

हमारे पास जमा पूंजी क्या हैं उसका सही आकलन जरूर होना चाहिए। कोई गलतफहमी न पाल कर रखे। किसी विश्वासी वित्तीय सलाहकार से राय लेकर अपने बचत को सही जगह इन्वेस्टमेंट करे जिससे की उससे उच्चतम आय हो सके। एक बात का विशेष ध्यान रखे की अपने सभी एसेट्स, बैंक खाते, उधार दिए गए रुपये, इन्वेस्टमेंट, इन्स्योरेंस आदी की पूर्ण जानकारी अपने जीवन साथी या अन्य किसी विश्वासी से जरूर साझा करे। अपनी वसीयत बनाना भी बहुत आवश्यक है। यह सब सावधानियां रखनी ही है हमे।

जीवन के इस पड़ाव पर आकर हमें विशेष थ्यान देना चाहिए कि हम दिखावे से बच कर रहेंगे। देखा देखी में फिजूल खर्च न करे। अगर मन में केवल यह ठान ले कि हम इस पर विचार करेंगे ही नहीं कि ‘लोग क्या कहेंगे’, तो निश्चित हमारा बोझ काफी हल्का हो जाएगा।

एक कहावत सुनते थे कि ‘money saved is money earned, या यूं कहे कि आप जो पैसा बचा रहे है वो आपकी अपनी कमाई ही हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि किसी भी तरह के अनावश्यक खर्च करने से बचे। अगर आपको बाजार से कुछ भी लाने के लिए सप्ताह में दो-तीन चक्कर लगाने होते है तो प्लानिंग कुछ ऐसी किजिए की एक बार में ही सारा काम हो जाए। बस कागज पर लिस्ट बनाते चले। बाजार जाने के चक्कर अगर कम होंगे तो आने-जाने के खर्च में बचत होगी ही और यह आपकी कमाई ही हुई। कम चक्कर से सड़क के पॉल्यूशन से और ट्रेफिक के चिक-चिक से भी बचेंगे।

आवश्यकतानुसार अपने रहने के स्थान का भी सही आकलन करना चाहिए। जरूरत न होने पर छोटे आवास पर विचार करना गलत न होगा। और जरूरत न होने पर बड़े शहर में या पॉश एरिया से दूर जाकर रहने पर भी काफी खर्च बचाया जा सकता हैं। कुछ व्यक्ति अपने आवास पर पेईंग गेस्ट रख लेते है या अतिरिक्त स्थान को भाड़े पर लगा देते हैं। इससे कुछ आय हो जाती हैं। ऐसे में सुरक्षा की दृष्टी से पूरी सावधानी बरतनी बहुत आवश्यक हैं।

आज ज्यादातर घरो में पुरुष व महिला दोनो ही काम पर लगे होते है। पहले ऐसा कम ही देखने को मिलता था। इस कारण पुरुष को वित्तीय आवश्यकताएं की प्लानिंग अपने लिए व अपनी जीवन साथी के लिए भी करनी होती है। जो जोड़े अकेले रहते हैं उन्हें सबसे अधिक चिंता यही रहती है कि एक के जाने के बाद दूसरे का क्या होगा। संयुक्त परिवार में रहने के कितने लाभ है वो जीवन के इस कालखंड में पता चलता है। पर हम निजी स्वार्थ, धैर्य का न होना व ईगो के कारण इसे नजरअंदाज कर रहे हैं।

यह सब बातें आज के नौजवानों को समझने की बहुत आवश्यकता है। उन्हें अपने आने वाले वरिष्ठ जीवन की जरूरतों को आज जानना होगा। वो अपने घर में या अन्य परिवार वालो के यहां क्या हो रहा हैं, इस नजरिए से भी स्थिती का अवलोकन करे। अपने ईगो को दरकिनार रख कर बड़ो से सलाह लेने में हिचकिचाएं नहीं। प्रोफेशनल सहयोग अपने चार्टर्ड एकाउंटेंट या कम्पनी के एच आर से भी लिया जा सकता है। यह विचार मन में कभी न पनपे कि रिटायरमेंट के बाद यह सब देख लेंगे। आज नौजवानों को वित्तीय प्लानिंग की आवश्यकता ज्यादा है। वो जब बुजुर्ग होंगे उस समय की परिस्थितियां की भविष्यवाणी तो कोई नहीं कर सकता पर यह निश्चित हैं कि सभी कुछ बहुत महंगी होंगी और उन्हें बढ़ती उम्र की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए प्लानिंग आज ही शुरु करनी है।

शुभं करोति कल्याणं!

Thursday, November 14, 2024

बुजुर्ग सलाहकार बने, निर्णायक नहीं

 पिछले दिनो दिल्ली के सीरी फोर्ट सभागार में श्री विजय कौशल जी महाराज से श्री राम कथा सुनने का सौभाग्य मिला। एक शाम को अपने प्रवचन में उन्होंने, हर घर में चल रहे जेनरेशन गेप, बड़ो-छोटो के बीच समन्वय की कमी पर बोल रहे थे। उन्होंने बहुत ही महत्वपूर्ण बात कहीं कि घर के बड़े बुजुर्ग सलाहकार बने, निर्णायक नहीं।  मुझे उनकी यह बात मन को छू गई। मेरे आज के लेख का यही शीर्षक है।

इन दिनों बहुत से वाट्सएप ग्रुप पर ऐसे पोस्ट भी प्रचलित है जिनमे मैसेज यहीं होता है कि घर का वातावरण ठीक रखने के लिए बड़ो को बच्चों के निर्णय पर टीका-टिप्पणी नहीं करनी चाहिए। दुख तो उस समय होता है जब हम जानते हुए भी गलत निर्णय को सही दिशा नहीं दे पाते।

ऐसी कहानियां आज घर घर की है। कोई बिरले खुशकिस्मत परिवार होंगे जहां सब कुछ ठीक ठाक हो, पिता और बेटे बैठकर अपने निर्णय सकारात्मक वातावरण में लेते हो। अब तो काफी परिवार ऐसे मिल जाएंगे जहां पर दो जेनरेशन एक साथ रहती ही नहीं है।

हम यहां बात करेंगे उन परिवारों की जहां पर तीन जेनरेशन बेटा पिता और पोता साथ रहते है। आजकल के माता-पिता जिस तरीके से अपने बच्चों को पालते हैं और जिस तरीके से वह खुद पले थे, कोई 30 – 35 साल पहले, उसमें बहुत अंतर आ गया है। पहले के समय में ज्यादातर संयुक्त परिवार होता था और केवल एक भाई का परिवार ही नहीं पलता था। सभी भाइयों के अपने-अपने बच्चे भी होते थे और सब मिलजुल कर रहते थे। उन्हें घर का बड़ा बच्चों की किसी गलती पर डांट भी देता था तो कोई दूसरा टोकता नहीं था।

आज की स्थिति बिल्कुल ही बदल है। छोटे-छोटे परिवार होने लगे, चाचा-ताऊ तो ज्यादातर परिवार में मिलेंगे ही नहीं। कई बार यह भी देखा गया कि एक भाई के बच्चों को अगर दूसरे भाई की पत्नी ने कुछ बोल दिया तो इसी बात पर अनबन होने लगती है। पेसेन्स या धैर्य नाम कि चीज तो आज कल के नौजवानो में मिलनी मुश्किल है। ऐसे में दादा-दादी क्या बोल दे यह तो किसी को बर्दाश्त ही नहीं होता है। बड़ो के अनुभव और उसके आधार पर उनकी डिसिप्लिन भरी बात को मानने को कोई भी तैयार नहीं होता है, जबकि सभी को पता है घर में बुजुर्ग हर समय परिवार के सुख का ही ख्याल रखेंगे, कभी भी किसी को दुखी नहीं होने देंगे। मन मे यही विचार आता है कि शायद आजकल के नौजवानों को हम बुजुर्ग ही पेशेंस सीखाना भूल गए हैं। यह गलती भी तो हम बुजुर्गों की ही हैं। ऐसे वातावरण में सबसे सही निर्णय तो यही होगा कि हम ज्यादा रोक-टोक ना करें छोटों के काम पर। सही सही परिदृश्य प्यार से छोटो के सामने रख दे। और फिर निर्णय उन्हीं को लेने दे।

आजकल तो छोटी उम्र के बच्चों में भी यह भावना आ गयी है कि घर में बड़ो से ज्यादा अच्छी सलाह उनको मित्रों से मिलेगी। और इस टेक्नोलॉजी के युग में सब कुछ तो गूगल महाराज ही बता देते हैं। फिर बड़ों का दिया हुआ ज्ञान किस काम का। जब बड़े कोई बात बोलते हैं तो तुरंत गूगल में जाकर पहले उस बात की सत्यता को जानने की कोशिश करते हैं बच्चे। उस समय उनके मन में यह विचार नहीं आता है कि बड़ों की जो भावना है वह उनके केवल ज्ञान से ही अर्जित नहीं की गई है बल्कि उनके इतने वर्षो के अनुभवों से भी वह अपना विचार रख रहे हैं। बहुत बार तो यह भी देखने को मिलता है कि बड़ों ने कोई बात कहीं और उसके जवाब में उन्हें तुरंत मोबाइल पर गूगल का उस विषय पर कुछ और मत बता दिया जाता है और यह दर्शाया जाता है कि बड़ो ने जो बताया वह गलत है।

हम ऐसी स्थिति आने ही क्यों दें? क्यों हम अपने अंदर ऐसी भावना जागृत होने दें जिससे कि हमें कोई अपराध बोध हो? अच्छा तो हो कि हम जो भी सुझाव देना चाहते हैं वह इस तरीके से दें कि सामने वाले को भी खराब ना लगे और वह उस पर विचार करने पर विवश हो जाए। एक उदाहरण दें तो हम बोल सकते हैं कि “मेरे विचार में शायद इस प्रॉब्लम को इस तरह सॉल्व किया जा सकता है। वैसे यह तो केवल मेरा विचार है, तुम ही इस पर पूरी रिसर्च करके डिसीजन ले लो।” सारा खेल तो होता है कि हमारी बातें किस तरीके से आगे बढ़ती है, किस टोन में बात हम करते हैं। यही सब बहुत जिम्मेदारी के साथ हमें भी निभाना होगा।

हम बड़े जरूर हैं लेकिन यह मानकर चलें की जनरेशन गैप तो है और इस जेनरेशन गैप में जो दिक्कतें आ रही हैं उसके लिये बहुत हद तक हम स्वयं  जिम्मेदार हैं, शायद। पहले ऐसा नहीं होता था। उसका एक मूल कारण हमारा संयुक्त परिवार था। अब तो वह सब एक सपना ही प्रतीत होता है और आगे क्या होगा यह तो भगवान ही बता सकता है। अन्ततः मूल बात तो यहीं है कि हम बुजुर्ग सलाहकार की भूमिका में ही रहें। हम भी खुश रहें ओर परिवार भी खुश रहें।

Monday, November 04, 2024

एक वो भी दीपावली थी….

 दशहरा जाते ही दीपावली के त्यौहार की उमंग मन में किल्लोल लेने लगती थी। आज दिपावली के इस माहौल में हमें अपना बचपन अनायास ही याद आने लगता है। परिवार के छोटे बड़े सदस्य घर की सफाई मे लग जाते थे। उन दिनों कम ही घरो में काम करने वाले सहायक होते थे। किसी को भी अपने घर में सफाई, रंग-रोगन करने में कोई झिझक नहीं होती थी। कभी कभी तो पड़ोसी को भी अगर किसी प्रकार की सहायता की आवश्यकता होती थी तो हम तुरंत आगे बढ़कर उनका काम कर देते थे। गुलजार साहब की लिखी यह कविता याद आती है –

हफ्तों पहले से साफ़-सफाई में जुट जाते हैं
चूने के कनिस्तर में थोड़ी नील मिलाते हैं
अलमारी खिसका खोयी चीज़ वापस पाते हैं
दोछत्ती का कबाड़ बेच कुछ पैसे कमाते हैं
चलो इस दफ़े दिवाली घर पे मनाते हैं ....

परिवार की वरिष्ठ महिलाए दिनों पहले से मिठाई और सुस्वाद पकवान बनाने में व्यस्त हो जाती थी। घर पर बनी इन मिठाईयों का स्वाद ही कुछ अलग होता था। मन तो होता था कि ये मिठाई तुरंत खाने को मिल जाएं पर हमें भी पता था कि इसका स्वाद तो लक्ष्मी पूजा के बाद ही चखने को मिलेगा। दीपावली के समय घर पर मिलने-जुलने वालो का भी आवागमन बढ़ जाता था। आज हम गिफ्ट्स खूब वितरित करते हैं, उन दिनों भी ये घर की बनाई मिठाई बांटी जाती थी। आज के नौजवान को यह जान कर आश्चर्य होगा की कुछ ही किस्म कि मिठाई होती थी तब और वो दिनोंदिन हम सब मजे से खाते थे। आज तो हर मिठाई विक्रेता अपनी विशेष, तरह तरह की मिठाई का प्रचार हर मीडिया से करता नजर आता है। लोगो की इन दुकानो में भीड़ देख कर यह जानना कठीन नहीं है कि अब बहुत कम घरो में मिठाई बनती हैं।

नए कपड़े भी दीपावली के समय ही सब को मिलते थे। और यह भी एक महत्वपूर्ण कारण था इस त्यौहार के बेसब्री से इंतजार का, सभी के लिए। उन दिनो रेडीमेड का चलन नहीं था और न ही चलन था ऑनलाइन खरीददारी का। घर में सभी के लिए एक से डिजाइन के कपड़े के थान आ जाते थे और फिर इन्हें सिलवा लिए जाते थे। आज की तरह किस्म किस्म के, प्रत्येक अवसर के लिए विशेष कपड़े नहीं होते थे। उस समय तो केवल तीन ही तरह के कपड़े पर विचार होता था – घर के, स्कूल के व विशेष अवसर के लिए। संयुक्त परिवार होने के कारण एक दूसरे के कपड़े भी खूब पहने जाते थे।

सभी आवास व व्यवसायिक प्रतिष्ठान के बाहर केले के पेड़ व दीपक लगाये जाते थे। इन दियों में तेल डालने के लिए तो आपस में स्पर्धा होती थी। मुझे रांची की एक विशेष बात बहुत याद आती हैं। उन दिनों कोई आठ-दस ही बिजली के सामान बेचने वाली दुकाने थी। दीपावली पर वो सब अपनी दुकान के सामने की जगह को खूब सजाते थे और एक प्रतियोगितात्मक भाव के साथ अच्छे से अच्छा दिखाने का प्रयास करते थे। और फिर छोटी व बड़ी दीपावली की रात हजारो की संख्या में लोग यह नजारा देखने, अगल-बगल के गांव तक से, आते थे।

हमउम्र वालो को याद होगा कि उस समय हम दीपावली के अगले दो-तीन दिन सभी रिश्तेदार व मित्रगण के घरो पर जाते थे। बड़े-बुजूर्ग के पांव छू कर उनसे आशीर्वाद लेते थे और उन घरो के छोटे हमसे आशीर्वाद लेते थे। सभी के यहां खुद के घर में बनी मिठाई खिलाई जाती थी। कुछ घरो में सुखे मेवे भी मिलते थे। खास बात यह होती थी कि हमारे घर पर भी सभी आते थे चाहे हम उनके घर हो आए है। कितना अच्छी परंपरा थी जो अब देखने को नहीं मिल रही है। आजकल तो बच्चे जैसे अपनी मित्र मंडली को छोड़कर किसी से मिलना ही नहीं चाहते हैं।

इसी वातावरण में एक बहुत ही सकारात्मक पहल रांची के माहेश्वरी समाज ने चौपाल के तहत इसी वर्ष शुरू की है। वो इस परंपरा को पुनः जीवित करने की कोशिश कर रहे है और निश्चित सफल होंगे। इस समाज ने अपने सभी वरिष्ठ सदस्यों से आग्रह किया है कि वो दीपावली के अगले दिन दो-तीन घरो में परिवार से मिलने जरूर जाएंगे। खुशी की बात है कि लेख लिखने तक ज्यादातर सदस्य अपनी सहमती दे भी चुके है। हमारा प्रयास होना चाहिए की इस परंपरा को वापस प्रचलित करे। आपस के मेल जोल बढ़ाने में, मन मुटाव कम करने में ये बाते बहुत मददगार होती हे।

दीपावली के त्यौहार को मनाने का तरीका कुछ बदल जरूर गया हैं पर आने वाली पीढ़ी को हम अपने सही संस्कार दे, यह दायित्व समाज का ही हैं।

सीनियर सिटीजंस गर्मागर्म बहस से दूर रहे

 आज सुबह जब मैं पार्क में घूमने गया तो बहुत ही दिलचस्प बहस चल रही थी एक कोने में। पॉलिटिक्स की बात हो रही थी, इलेक्शन चल रहे हैं। हमारे यहां वोटिंग 25 तारीख को है। ध्यान उस ओर इस कारण गया की दो व्यस्क व्यक्ति कुछ ज्यादा ही जोर से गर्मा गर्मी में वार्तालाप कर रहे थे। दोनों अपनी-अपनी पार्टी के नजदीकी के अनुसार बात कर रहे थे। और भी लोग एकत्र हो गए। वो शायद केवल मजा ही ले रहे थे। इस उम्र में आते-आते कोई हमें विपरीत सोच से कन्विन्स तो नहीं कर सकता है। हां, यह ध्यान रखें कि जब अपनी बात दूसरों को बताना हो तो अच्छे तरीके से करें, जिससे सामने वाला व्यक्ति आहत न हो। कोई जोर-जबरदस्ती तो कर नहीं सकते। पोलिंग बूथ पर तो आप और हम स्वतंत्र सोच के अनुसार अपनी पसंद से वोट डालते है।

मेरा विचार कुछ और सोचने लगा। हम सुबह पार्क में, खुले वातावरण में जहां प्रदूषण नहीं रहता है, अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखने हेतु जाते हैं। वहां वॉकिंग करते हैं, योग व एक्सरसाइज करते हैं। इसी बीच अगर इस शुद्ध वातावरण में गर्मागर्म बहस छिड़ जाए तो फिर अपना स्वास्थ्य किस रूप में सही रह सकेगा। जब हम गुस्से में होते है तो हमारे शरीर के अंदर बहुत हलचल होने लगती है। डॉक्टर तो कहते है कि इसका सीधा असर हमारे हार्ट पर पड़ता है।

पार्क में रोज सुबह एक व्यक्ति को देखता हूं अपने साथ चार-पांच मोटी पॉलिथिन बेग में कुछ सामग्री लेकर आते है और कई पेड़ के जड़ो में अपने बेग से कुछ निकाल कर डाल रहे है। पास गया तो देखा उन बेग मे अनाज था। एक बेग में तो पानी था। फिर नजर आया कई पेड़ के पास पानी का पात्र भी रखा है जिसे ये सज्जन भर देते है। हमारे लिए तो सभी जीव-जंतु की सेवा करना ही परम धर्म है।

पार्क बड़ा है, हर तरफ अलग अलग जगह कोई योग कर रहा है तो कोई कसरत कर रहा है। पैदल वाॅक करने वालो की संख्या तो बहुत होती है। और हां, बहुत तो अपने पालतू कुत्तो को भी नित्यकर्म करवाने पार्क में लाते है।

सभी अपने अपने तरीके से स्वास्थ्य का ध्यान रखते है। और रखना भी चाहिए। स्वास्थ्य ही धन है।

एक बार पुनः मेरा सभी से निवेदन है कि जब सुबह घूमने जाएं तब पॉलिटिक्स की बात को दूर रखें। हां, इलेक्शन के समय इससे बचना मुश्किल है। पर माहौल तो उचित रख सकते है।

पार्क में जब अपने वॉकिंग, योग व एक्सरसाइज करने के पश्चात, रिलेक्स करने हेतु कुछ व्यक्ति एक स्थान पर बैठते है तो कुछ न कुछ चर्चा होती है। मेरा सुझाव है कि सुबह सुबह इस शुद्ध हवा में हम कुछ धार्मिक, आध्यात्मिक बात करें या देशभक्ति की बात करें। इन विषय पर किसी का मतभेद नहीं हो सकता है और माहौल भी बहुत सही रहेगा। सभी अपने इनपुट्स दे सकते हैं, जो कि मुझे पूरी आशा है केवल सकारात्मक ही होंगे।

अपने को अपने स्वास्थ्य का ख्याल पहले रखना है। वोटिंग और इलेक्शन अपनी जगह है। हमें जरूर वोटिंग करना चाहिए और जितने भी कैंडिडेट है, उनमें से जो सबसे सही हो, जिसने देश हित में काम करने का प्रॉमिस किया हो, उसी को वोट देना चाहिए।

मै विशेष कर सीनियर सिटीजंस से तो निश्चित आग्रह करूंगा कि आप ऐसी बहस में न पड़े जहां गर्मागर्मी हो, जहां गुस्सा होने के कारण ज्यादा हो। हमारे लिए हमारा स्वास्थ्य ही सर्वोपरि है।