We have all been criticising about what is not being done by the government. However, we rarely give our own solutions to any problem that we see. May be the suggestion is ridiculous - but still if we look things in a positive way may be we can suggest solutions which some one can like and decide to implement. I know this is very wishful thinking but this is surely better than just criticising.

Thursday, August 14, 2025

बढ़ती उम्र में कुछ भूलना स्वाभाविक है

“अरे भई, अब तो हम बूढ़े हो गए हैं, कुछ याद ही नहीं रहता।”

यह वाक्य हम सभी ने कभी न कभी किसी बुजुर्ग के मुंह से जरूर सुना होगा – या खुद कहा भी होगा। कभी किसी का नाम याद नहीं आता, तो कभी कोई जरूरी बात जो अभी-अभी सोच रखी थी, वह मस्तिष्क से निकल जाती है। कई बार हम चेहरा तो पहचान लेते हैं लेकिन नाम जबान पर नहीं आता।

यह सब कुछ बढ़ती उम्र के साथ सामान्य रूप से होता है। यह कोई बीमारी नहीं है, बल्कि उम्र बढ़ने की एक सहज प्रक्रिया है। चिंता करने की आवश्यकता नहीं है, बल्कि इसे स्वीकार करते हुए समझदारी से निपटना ज़रूरी है।

याददाश्त का कमजोर होना – शरीर की स्वाभाविक प्रक्रिया

भगवान ने हमारे शरीर और मस्तिष्क को एक सीमित जीवन-चक्र के साथ बनाया है। जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है, शरीर की कुछ ग्रंथियां और कोशिकाएं धीमी गति से काम करने लगती हैं। इनमें वे कोशिकाएं भी आती हैं जो याददाश्त से जुड़ी होती हैं।
लेकिन अच्छी बात यह है कि मस्तिष्क की क्षमताएं पूरी तरह खत्म नहीं होतीं। वे केवल थोड़ी मंद हो जाती हैं। अगर हम मस्तिष्क की सही “एक्सरसाइज” करते रहें, तो इस मंदता को काफी हद तक कम किया जा सकता है।

हमारी जीवनशैली भी जिम्मेदार है

पुराने ज़माने में हम बहुत कुछ याद रखते थे — जैसे रिश्तेदारों के पते, टेलीफोन नंबर, जन्मदिन, जरूरी कामों की तिथियां, आदि। लेकिन आज की तकनीक-प्रधान जीवनशैली ने हमारे मस्तिष्क को ‘आलसी’ बना दिया है। फोन की डायरैक्टरी, रिमाइंडर, वॉयस नोट्स और गूगल की आदत ने हमें स्मरणशक्ति के अभ्यास से दूर कर दिया है।

लिखने की आदत भी लगभग समाप्त ही हो गई है। पहले जब कुछ याद रखना होता था, तो उसे कई बार लिखना पड़ता था — स्कूल में कविता याद करने का सबसे आसान तरीका था: “10 बार लिखो, 10 बार पढ़ो”। इससे स्मृति गहरी होती थी। अब हम उसे मोबाइल में एक नोट के रूप में सहेज लेते हैं और कई बार तो दोबारा देखना भी भूल जाते हैं।

मस्तिष्क को भी चाहिए नियमित व्यायाम

जैसे शरीर को तंदुरुस्त रखने के लिए व्यायाम जरूरी है, वैसे ही मस्तिष्क को सक्रिय बनाए रखने के लिए भी नियमित अभ्यास जरूरी है। यह अभ्यास केवल पहेलियां हल करने या शतरंज खेलने तक सीमित नहीं है। कुछ आसान लेकिन नियमित आदतें आपकी याददाश्त को बेहतर बना सकती हैं:

  • हर दिन अखबार पढ़ना और मुख्य समाचारों को संक्षेप में मन में दोहराना।
  • जो बातें करनी हैं, उन्हें पहले मन ही मन क्रम से दोहराना।
  • महत्वपूर्ण कार्यों की सूची डायरी में स्वयं लिखना, न कि केवल मोबाइल पर टाइप करना।
  • किसी कहानी, फिल्म या यात्रा के बारे में याद कर दूसरों को सुनाना। यह स्मरण का अच्छा अभ्यास है।
  • नए शौक अपनाना — जैसे संगीत, वादन, पेंटिंग, भाषा सीखना — मस्तिष्क को नई चुनौतियां देता है।
  • तकनीक का उपयोग करें, लेकिन आत्मनिर्भरता भी बनाए रखें

आज कई लोग फोन या डायरी में जरूरी नोट्स रखने लगे हैं — यह कोई गलत आदत नहीं है। बल्कि यह एक समझदारी भरी आदत है। मेरे कुछ मित्र हर मीटिंग, हर फ़ोन कॉल के बाद तुरंत अपनी पॉकेट डायरी में संक्षेप में वह बात लिख लेते हैं, जिससे उन्हें दोबारा याद करने में परेशानी न हो। यह आदत उनके आत्मविश्वास को भी बनाए रखती है।

डॉक्टरी सलाह जरूरी, लेकिन ठगों से सावधान रहें

कुछ लोग याददाश्त की समस्या को लेकर डॉक्टर से परामर्श करते हैं, और यदि ज़रूरत हो तो हल्की दवाइयाँ लेते हैं। यह बिलकुल ठीक है। लेकिन कई लोग बिना सोच-विचार के सोशल मीडिया पर आए भ्रामक विज्ञापनों के चक्कर में आ जाते हैं। “स्मृति बढ़ाने की जड़ी-बूटी”, “5 दिन में तेज दिमाग”, जैसे दावे अक्सर छलावा होते हैं और कई बार स्वास्थ को नुकसान भी पहुँचा सकते हैं।

सबसे महत्वपूर्ण है — आत्मविश्वास बनाए रखना

भूलना कोई अपराध नहीं है। और न ही यह शर्म की बात है। यह एक सामान्य मानवीय अनुभव है। लेकिन यदि हम इसे बीमारी मानकर तनाव पाल लेंगे, तो समस्या और बढ़ सकती है।

हमें खुद पर भरोसा रखना होगा। जब भी कोई बात याद न आए, गहरी सांस लें, दो पल रुकें, और मन को शांति से टटोलें। अक्सर जवाब अंदर ही मिल जाता है।

समापन विचार

बुढ़ापा एक चुनौती नहीं, बल्कि एक अलग प्रकार की यात्रा है — जहां अनुभव की गहराई होती है, लेकिन स्मृति का प्रवाह थोड़ा मंद हो सकता है। यह स्वाभाविक है। सही आदतें, सक्रिय सोच और आत्म-स्वीकृति से हम इस यात्रा को और भी समृद्ध बना सकते हैं।

याद रखिए — जीवन की गति चाहे धीमी हो, स्मृति की चमक बनी रह सकती है, बस उसे थामे रहने की एक सधी हुई कोशिश चाहिए।

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