We have all been criticising about what is not being done by the government. However, we rarely give our own solutions to any problem that we see. May be the suggestion is ridiculous - but still if we look things in a positive way may be we can suggest solutions which some one can like and decide to implement. I know this is very wishful thinking but this is surely better than just criticising.

Thursday, July 10, 2025

बुजुर्ग पर्यावरण की रक्षा खूब करते हैं

अभी पिछले सप्ताह ही 5 जून को हमने पर्यावरण दिवस मनाया। मन में विचार आया कि हम बुजुर्ग जब छोटे थे तब इस विषय पर शायद ही कभी चर्चा होती थी। और आज तो किसी गोष्ठी में हो, परिवार के बीच हो या दोस्तों की महफिल ही क्यूं न हो, पर्यावरण – पोल्यूशन पर सब अपना ज्ञान बांटते रहते हैं।

समय बहुत बदल गया है। जनसंख्या तो बढ़ ही‌ गई है पर ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि बदल गई है हमारी जीवन शैली। आज आवश्यकताओं की कोई सीमा नहीं रही, देखा-देखी की होड़ में बहुत कुछ वो कर बैठते हैं जिससे हम पर्यावरण को हानि ही पहुंचाते हैं।

याद किजिए बचपन के वो दिन जब अपना शहर एक छोटा सा नगर होता था। आसपास जाने के लिए या तो हम पैदल ही निकल जाते थे या रिक्शा कर लेते थे। सड़क पर गाड़ियों की भीड़ नजर नहीं आती थी और आज तो किसी भी शहर में जाए, कोई जरूरी नहीं है कि वह मेट्रो शहर हो, ज्यादातर जाम ही लगा रहता है और गाड़ी के एग्जास्ट से पूरा वातावरण दूषित हो जाता है। सड़क पर चल रही गाड़ियों में एक या दो सवारी ही अक्सर नजर आती है, कारण घर पर सभी के पास तो अपनी अपनी गाड़ी हैं।

दूसरी ओर देखे तो, अपने इतनी बातें करते हैं प्लास्टिक के कम उपयोग करने की, पर नजर तो यह आता है कि इसमें दिनों दिन बढ़ोतरी हो रही है। एक उदाहरण लें तो हम देखते हैं शहरों में रोज सुबह हर घर से एक पोलिथिन का बैग पिछले दिन का कचरा भरा हुआ निकलता है। कोई डाटा तो नहीं है पर टनों में यह पॉलिथिन प्रतिदिन फैंका जाता है। इसमें से कुछ हिस्सा रिसाइक्लिंग के लिए एकत्रित हो जाता होगा, पर ज्यादा तो इधर-उधर सड़कों के किनारे या नालियों में हर नगर/शहर में नजर आएगा। रेलवे ट्रैक के दोनों तरफ इन पॉलिथिन थेलियों का अंबार सभी जगह देखने को मिलता हैं। शहरों में नालियों में जमा हुए इन थेलियों से पानी का निकास नहीं होता है और जल जमाव हर तरफ दिखने लगता है। वर्षो पहले कागज के ठोंगे का ही उपयोग होता था, और प्रायः घर से बाहर निकलते वक्त हम सभी कपड़ो के थैले साथ लेकर चलते थे।

आज जो सामग्री जोमेटो, स्वीगी, अमेजोन, ब्लिन्किट जैसे डिलिवरी करने वालों से हम मंगवाते हैं उनमें कितना प्लास्टिक या गत्ते का उपयोग पेकेजिंग में होता है उससे बेहिसाब पर्यावरण का नुक्सान हो रहा है। इनको पेकिंग करने में टनों टन केवल एधेसिव टेप लग जाते हैं। पहले के जैसे बांधने के लिए जूट से बनी सुतली तो नजर ही नहीं आती है। विचार किजिए की आपके यहां भी जब ऐसी कोई पेकिंग की हुई सामग्री आती है तो आप एधेसिव टेप, प्लास्टिक या गत्ते के कार्टून्स का क्या करते हैं।

इस वर्ष पर्यावरण दिवस पर विशेष अभियान चलाया गया था प्लास्टिक के उपयोग के विरुद्ध। पर जरा हम अपने चारों तरफ नजर दौड़ाएं तो देखेंगे केवल बोतल बंद पानी में, जो आज के दिन इतना प्रचलित है, उसमें कितनी प्लास्टिक को हम काम में लेते हैं। काफी इसमें रीसाइकल भी हो जाती होगी पर ज्यादातर तो हमारे कूड़े के ढेर में ही नजर आती है। पहाड़ों पर भी जाएं या सुदुर गांवो में भी देखें तो प्लास्टिक की बोतले चारों तरफ नजर आती है। शहरों में तो आजकल जिस हिसाब से छोटी-छोटी बोतले, डेढ़ सौ और 200 एम.ल. की हर फंक्शन में उपयोग की जा रही है, लगता है हम थोड़े दिन में भूल ही जाएंगे की गिलास में भी पानी दिया जाता था।

आईआईटी और अन्य तकनीकी संस्थानों में रिसर्च कर रहे छात्रो को नवाचार यह करना चाहिए कि हम इन प्लास्टिक की बोतलों को व पॉलिथिन थैलियों को रीसाइकलिंग कैसे पोर्टेबल छोटी-छोटी मशीनों से कर सकते हैं। विचार कीजिए क्या ऐसी छोटी मशीने हर पर्यटक स्थल पर लगा दी जाए या एक टेंपो पर ही लोड करके इसे पोर्टेबल यूनिट बना दी जाए। इसे जगह-जगह घूमाते रहे और वहीं पर उसे कचरे का निष्पादन कर दे। इसके जो ग्रेन्यूल्स बने वह आराम से पैकिंग करके बाजार में बेचे जा सकते हैं। सरकार को भी इस पर विशेष ध्यान देना होगा नहीं तो आने वाले समय में हमारी आनेवाली पीढ़ियां बहुत ही तकलीफ में आ जाएगी।

विकास और आधुनिकता के नाम पर हम यह सब सह तो रहें हैं पर हमारी सेहत पर जो बुरा असर हो रहा है वह हमें ही भुगतना होगा। हम बुजुर्ग व्यक्तियों से ज्यादा आज के युवाओ को इस पर गंभीरतापूर्वक विचार करना होगा।

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