We have all been criticising about what is not being done by the government. However, we rarely give our own solutions to any problem that we see. May be the suggestion is ridiculous - but still if we look things in a positive way may be we can suggest solutions which some one can like and decide to implement. I know this is very wishful thinking but this is surely better than just criticising.

Sunday, June 01, 2025

जीवन में आनंद हम वरिष्ठ ज्यादा लेते थे

हम बुजुर्ग अपनी जिंदगी में जितनी मस्ती करते हुए इस आयु पर आएं हैं और जब यह विचार करते हैं कि क्या हमारे बेटे-बेटियां, आज के युवा, भी उतना ही आनंद अपने जीवन का लें रहें हैं तो अक्सर ना ही इस प्रश्न का उत्तर मिलता है। आज सभी युवा वर्ग के चेहरे पर एक अजीब सा तनाव नजर आता है, चाहे उन्हें सड़कों पर गाड़ी में या टू-विलर चलाते हुए देख ले या उनको घरों और रेस्टोरेंट तक में देख ले।

अपने साथियों का दबाव, जिसे सहज से हम पियर प्रेशर कहते हैं, आज के युवा पर बहुत ज्यादा प्रभाव डाल रहा है। अगर उसने इतनी बड़ी गाड़ी खरीदी है या विदेश घूमने जा रहा है या ब्रांडेड कपड़े खरीद रहा है तो हमें भी वही सब करना या उससे भी उत्तम ही करना है, चाहे हम उसे आसानी से अफोर्ड कर सकते हैं या नहीं। इस तरह की मनोदशा में हम गलत डिसीजंस लेते हैं या अपने भविष्य की आर्थिक स्थिति को बिगड़ने में सहयोग करते हैं। यह केवल युवाओं में ही नहीं कुछ बड़ी उम्र के लोगों में भी काफी देखने को मिल जाती है। बुजुर्ग व्यक्तियों ने अपने जमाने में यह सब कम देखा और इस कारण घरों में बच्चों से मन मुटाव भी उत्पन्न हो जाता है।

अतीत में, वरिष्ठों का जीवन सरल रहता था, ज्यादातर। वे बुनियादी ज़रूरतों को पूरा करने पर ज़्यादा ध्यान देते थे, और छोटे-छोटे, रोज़मर्रा के पलों में आनंद लेते थे। आज का युवा EMI (समान मासिक किस्तें), चाहे वो होम लोन, कार लोन, मोबाईल फोन, अन्य विभिन्न गैजेट्स जैसे के लिए हो, चुकाने में ही लगा रहता हैं। इस ई.एम.आई. की किस्त भरने के लिए फिर नए लोन लेना आम बात हो गई हैं। सोशल मीडिया और धन दिखाने की इच्छा से प्रेरित दिखावे को बनाए रखने का सामाजिक दबाव हमारे मन और मस्तिष्क पर खराब प्रभाव डालता है और अक्सर स्वास्थ्य को भी इसी से हानी पहुंचती है और हमारी भावनात्मक सोच भी डगमगा जाती है।

वरिष्ठ जन के मध्य साथियों का दबाव ज़्यादातर सामाजिक मानदंडों और परंपराओं के अनुरूप रहता था, जो भौतिक सफलता के बारे में कम था। आज के युवा अक्सर दिखावे में फंस जाते हैं, जबकि वरिष्ठ अधिक प्रामाणिक रूप से और अपने स्वयं के मूल्यों के अनुरूप रहते हैं। वरिष्ठ लोगों के जीवन की गति थोड़ी धीमी चलती थी और धैर्य स्वाभाविक होता था। ये लोग कड़ी मेहनत करते थे। आज का युवा इसके विपरीत तत्काल संतुष्टि को ही अपना आदर्श बना रखा है – सब कुछ तेज़ गति से चल रहा है, फ़ास्ट फ़ूड से लेकर तेज़ जानकारी तक, सोशल मीडिया पर “लाइक” तक।अधीरता की ओर इस बदलाव ने युवा पीढ़ी के लिए संतुष्टि में देरी करना या कठिन समय में दृढ़ रहना कठिन बना दिया है।

एक और विषय पर अगर बात करे तो युवा पीढ़ी में तलाक की उच्च दर बताती है कि आज वैवाहिक जीवन की लंबी उम्र को बनाए रखना कठिन है। वरिष्ठजन पारंपरिक मूल्यों और कम विकर्षणों के कारण अक्सर मजबूत वैवाहिक बंधन में रहते हैं। हालांकि शादी में चुनौतियां रहती थीं, लेकिन जोड़े अक्सर जीवन भर साथ रहते थे। आज के युवाओं में अपने करियर की आकांक्षाओं, वित्तीय बोझ और सोशल मीडिया के आकर्षण को संतुलित करने के दबाव ने आधुनिक रिश्तों में दरार पैदा होती जा रही है। दोहरी आय वाले परिवारों, जहां पति-पत्नी दोनों अपने अपने काम में लगे रहते हैं, उनको अतिरिक्त तनाव का सामना करना पड़ता है।

काम का दबाव कभी न खत्म होने वाली परेशानी उत्पन्न कर देता है। वरिष्ठजन एक बार जब वे सेवानिवृत्त हो जाते हैं, तो काम अक्सर उनके पीछे छूट जाता है। अवकाश और सेवानिवृत्ति को आराम करने और जीवन का आनंद लेने के समय के रूप में देखा जाता था। आज के युवाओ की जिन्दगी में, खासकर कोविड के बाद घर से काम (WFH) के आगमन ने सीमाओं को धुंधला कर दिया है। काम 24/7 तक बढ़ सकता है, जिससे थकान और व्यक्तिगत समय की कमी हो जाती है। काम से लगातार जुड़े रहना – ईमेल, कॉल, मैसेज – इससे अलग होना और आराम करना मुश्किल हो जाता है। स्वाभाविक पारिवारिक जीवन पर इसका दुस्प्रभाव होता है। काम की प्रतिबद्धताओं के कारण परिवार के साथ गुणवत्तापूर्ण समय की कमी आ जाती है। यह अक्सर देखने को मिलता है कि परिवार के ज़्यादा सदस्य काम करते हैं लेकिन साथ में कम समय बिताते हैं। साथ रहकर भी अकेलापन महसूस करते हैं।

पहले ज्यादातर बड़े परिवार होते थे और भाई-बहनों और विस्तारित परिवार के साथ मज़बूत संबंध होते थे। मिलना-जुलना, और साझा पल बिताना आम बात थी। आज परिवार अक्सर बिखरे हुए होते हैं और रिश्ते ज़्यादा व्यक्तिगत होते हैं। पारिवारिक पुनर्मिलन बहुत कम हो गया है, ज़्यादा अलग-थलग अनुभव और व्यापक सहायता प्रणाली के साथ कम बातचीत होती हैं। बुजुर्ग व्यक्ति खुशकिस्मत हैं जिन्हे ऐसी जीवनशेली व तनाव भरी जिन्दगी को ज्यादा नहीं देखनी पड़ी। हम जिस तरह का आनंद जीवन में चाहते है उसकी कोई सीमा नहीं है। क्रियाशील और कार्यशील होने के साथ साथ युवाओं को चिन्तनशील भी होना होगा।

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