We have all been criticising about what is not being done by the government. However, we rarely give our own solutions to any problem that we see. May be the suggestion is ridiculous - but still if we look things in a positive way may be we can suggest solutions which some one can like and decide to implement. I know this is very wishful thinking but this is surely better than just criticising.

Monday, May 19, 2025

सुनहरे वर्षों में तनाव से बचे

हम जब डॉक्टर के पास जाते हैं अपना चेकअप करवाने तो बड़े उम्र के व्यक्तियों को आमतौर पर यही बताया जाता है कि आप स्ट्रेस बिल्कुल ना ले, और यह खासकर हार्ट की शिकायत वाले व्यक्तियों को तो बहुत जोर देकर बोला जाता है। यह भी कहा जाता है कि आप ज्यादा सोचे नहीं। कई वर्षों पहले मुझे भी जब कुछ ऐसी ही तकलीफ हुई थी दिल की, तो डॉक्टरों ने यही बात कही थी। मेरा उनसे एक ही सवाल था, आप जो बोल रहे हैं वह तो ठीक है पर क्या यह प्रैक्टिकल में इतना आसान काम है। क्या आपके पास ऐसी कोई विधा नहीं है जिससे कि आप सोचने वाली हमारी नस को ही निष्क्रिय कर दे। और कुछ नहीं तो, हम यहीं सोचते रहेंगे कि सोचना कैसे बंद करे।

इसमे कोई दो राय नहीं है कि जिनकी तनाव भरी जिन्दगी रहती हैं उनको अपने स्वास्थ पर विषेश ध्यान देने की आबश्यकता है। बहुत से परिचितों को हम जानते होंगे जो कि निंद की गोलियां या अन्य डि-स्ट्रेस करने की दवाईयां अक्सर लेते हैं। शरिर पर इन दवाईयां का दुष्प्रभाव भी पड़ता ही हैं। तनाव में रहने के बहुत कारण हो सकते हैं। किसी को वित्तीय परेशानी, किसी को पारिवारिक परेशानी, किसी को अपने स्वास्थ्य सम्बन्धित परेशानी हो सकती है। और यहीं सब कारण बन जाते है टेंशन में आने के जिसका स्वास्थ पर बहुत नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

कुछ ही दिनो पहले एक समाचार पढ़ने को मिला जिसमे बताया गया कि एक 115 वर्ष की महिला, जिनका नाम एथेल कैटरहम है, दुनिया की सबसे बुजुर्ग जीवित व्यक्ति है। गीनेस वर्ल्ड रेकॉर्ड्स में भी यह दर्ज है। उनका जन्म शिप्टन बेलिंजर, हैम्पशायर, इंग्लैंड में 21 अगस्त 1909 को हुआ था। इनसे जब इस लंबी उम्र का राज पूछा गया तो बोली कि मेरा खान-पान तो बहुत सादा ही होता है पर जो सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण बात है वो यह कि मै किसी से बहस नहीं करती हूं, किसी से बातों में उलझती नहीं हूं और अपना काम अपनी इच्छानुसार करती रहती हूं। ऐसी भी जानकारी मिली कि वो जब 18 वर्ष की थी तब उनको तीन वर्ष भारत में रहने का मौका मिला था।

उम्र बढ़ना एक ऐसा सफ़र है जो ज्ञान, अनुभव और सरल सुखों का आनंद लेकर आता है। लेकिन इसके साथ ही कई चुनौतियां भी आ सकती हैं – जिनमें से कुछ के बारे में बात करना हमेशा आसान नहीं होता। पारिवारिक गतिशीलता, वित्तीय दबाव और स्वास्थ्य संबंधी चिंताएं, जिनके विषय में पहले भी चर्चा की गई हैं, सभी बुज़ुर्गों के लिए तनाव के स्रोत बन सकते हैं। और जबकि यह जीवन का एक हिस्सा लग सकता है, आधुनिक शोध एक बात स्पष्ट करता है: पुराना तनाव सिर्फ़ असुविधाजनक नहीं है – इसका स्वास्थ पर बहुत नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। मनोवैज्ञानिक आज चेतावनी देते हैं कि लंबे समय तक तनाव, अनसुलझे गुस्से और भावनात्मक संघर्ष से हृदय रोग का खतरा बढ़ सकता है, प्रतिरक्षा प्रणाली कमज़ोर हो सकती है और यहाँ तक कि बुढ़ापे की प्रक्रिया भी तेज़ हो सकती है। शरीर और मन गहराई से जुड़े हुए हैं, और जब भावनात्मक उथल-पुथल लगातार साथी बन जाती है, तो शारीरिक स्वास्थ्य चुपचाप पीड़ित होने लगता है।

इसलिए अनावश्यक बहस से बचने और रोज़मर्रा के नाटक के आकर्षण का विरोध करने वाली मानसिकता को अपनाना सिर्फ़ मन की शांति के बारे में नहीं है – यह बेहतर स्वास्थ्य के लिए एक रणनीति है। भावनात्मक ऊर्जा को संरक्षित करना और संघर्ष के बजाय शांति को चुनना सेहत पर लंबे समय तक चलने वाला प्रभाव डाल सकता है। अध्ययनों से पता चलता है कि जो लोग भावनात्मक स्थिरता के साथ तनाव का जवाब देते हैं और बार-बार टकराव से बचते हैं, वे लंबे समय तक स्वस्थ जीवन जीते हैं। दूसरी ओर, लगातार भावनात्मक तनाव शरीर में सूजन को बढ़ाने से जुड़ा हुआ है, जो हृदय रोग से लेकर मधुमेह तक कई पुरानी बीमारियों में एक प्रमुख भूमिका निभाता है।

बेशक, तनाव कम करने के लिए कहना जितना आसान है, करना उतना आसान नहीं है। इसके लिए अभ्यास, समर्थन और कभी-कभी दृष्टिकोण में बदलाव की आवश्यकता होती है। चाहे वह ध्यान, हल्का व्यायाम, हंसी, सार्थक बातचीत के माध्यम से हो या बस जो नियंत्रित नहीं किया जा सकता है उसे छोड़ देना हो, बुजुर्ग लचीलापन विकसित कर सकते हैं और मन की अधिक शांतिपूर्ण स्थिति को बढ़ावा दे सकते हैं।

बुढ़ापे का मतलब तनाव के आगे समर्पण करना नहीं है। सोच-समझकर चुनाव करने और थोड़ी भावनात्मक गृह व्यवस्था के साथ, बुजुर्ग अनावश्यक चिंताओं का बोझ उठा सकते हैं – और अपने सुनहरे वर्षों में खुशी, जुड़ाव और जीवन शक्ति के लिए जगह बना सकते हैं।

व्यस्त बुजुर्ग जीवन के प्रति बेहतर दृष्टिकोण रखते हैं

मैंने अपने कई लेखों में इस ओर ध्यान आकृष्ट किया है कि वरिष्ठ व्यक्ति, किसी न किसी गतिविधि में अपने आप को व्यस्त रखेंगे तो निश्चित उनका स्वास्थ्य अच्छा रहेगा। और जो स्वस्थ रहेंगे वो निश्चित खुद भी खुश रहेंगे और दूसरों को भी खुश रखेंगे। ऐसे बुजुर्गों का जीवन के प्रति दृष्टिकोण बहुत सकारात्मक होता है। खुशकिस्मत होते हैं वो व्यक्ति जो किसी भी पार्टी में जान ला देते हैं। सभी उपस्थित जन ऐसे जिंदा दिल इन्सान के जल्द फेन हो जाते हैं।

आप व्यस्त किन गतिविधियों में हों यह अपने मतानुसार आपको ही निश्चित करना होगा। अक्सर देखा जाता है कि डॉक्टर, वकील, कन्सलटेंट्स, व्यवसायी या अन्य कुछ विधा में लगे लोग रिटायरमेंट उसी समय लेते हैं जब उनका स्वास्थ्य कुछ ज्यादा ही कमजोरी दर्शाने लगता है। तो फिर रिटाइरीज भी यह क्यूं नहीं ठान लें कि हम कुछ न कुछ काम करते रहेंगे और अपने आप को फीट और प्रसन्न रखेंगे।

सुखमय बुढ़ापा केवल सही खाने और समय पर दवाइयां लेने से नहीं आता। यह व्यस्त रहने, मानसिक रूप से सक्रिय रहने और भावनात्मक रूप से संतुष्ट रहने से भी आता है। बुजुर्गों के लिए अच्छी सेहत और जीवन के प्रति प्रसन्नचित्त दृष्टिकोण बनाए रखने का सबसे कारगर तरीका है अपने आप को सार्थक गतिविधियों में व्यस्त रखना।

सक्रिय रहना क्यों ज़रूरी है

जैसे-जैसे हमारी आयु बढ़ती है, शारीरिक शक्ति कम होती जाती है, लेकिन मन और आत्मा में बढ़ने की अनंत संभावनाएं होती हैं। व्यस्त रहने से यह तात्पर्य नहीं है कि हम अपने कामों में जल्दबाजी करे। यह जीवन में शामिल होने के बारे में है – चाहे वह कोई शौक हो, कोई सामाजिक समूह हो, स्वयंसेवा हो या फिर कोई अंशकालिक नौकरी हो। नियमित रूप से व्यस्त रहने से बुजुर्गों को शारीरिक रूप से फिट, मानसिक रूप से तेज और भावनात्मक रूप से संतुलित रहने में सहयोग करती है।

वरिष्ठ नागरिकों के लिए सक्रिय जीवनशैली के लाभ:

  1. बेहतर मानसिक स्वास्थ्य: नियमित गतिविधियां मस्तिष्क को उत्तेजित करती हैं, जिससे भूलने, अवसाद और चिंता जैसी स्थितियों का जोखिम कम होता है।
  2. शारीरिक स्वास्थ्य: बागवानी, पैदल चलना, ध्यान में बैठना, योगाभ्यास करना जैसी हल्की शारीरिक गतिविधियां भी गतिशीलता, संतुलन और हृदय स्वास्थ्य को अच्छा रखने में सहायता कर सकती हैं।
  3. भावनात्मक संतुष्टि: जिन चीजों का आप आनंद लेते हैं, उनमें शामिल होने से उद्देश्य, उपलब्धि और खुशी की भावना आती है। हो सकता है कि जब आप जीविकोपार्जन में व्यस्त रहें हों उन दिनों अपने कुछ शौक को मन में ही दबाकर रखना पड़ा हो, पर अब वो समय है जब आप अपने शौक पूरा करे‌ जिससे आपको संतुष्टी मिले।
  4. सामाजिक संबंध: क्लबों में शामिल होना या सामुदायिक कार्यक्रमों में भाग लेना अकेलेपन को रोकने में मदद करता है और सामाजिक बंधन को मजबूत करता है। अपने स्कूल व कॉलेज के मित्र या अपने कार्यक्षेत्र में लगे सहकर्मियों से भी संपर्क बराबर बना के रखना लाभदायक होता है।

व्यस्त रहने के कुछ सुझाव:

  1. शौक अपनाएं
  2. समूहों या कक्षाओं में शामिल हों
  3. स्वयंसेवक
  4. जुड़े रहें

शौक अपनाएं: पेंटिंग, म्यूजिक, नृत्य, बुनाई, खाना बनाना, या पहेलियां सुलझाना – कुछ भी कार्य जो आपको खुशी देता है।

समूहों या कक्षाओं में शामिल हों: वरिष्ठ नागरिकों के लिए आज हर कॉलोनी, हाउसिंग सोसायटी में ग्रुप्स बने होते हैं, जिनकी गतिविधियों में सक्रिय भूमिका निभाई जा सकती है। इसी तरह अगर कहीं किसी विधा के लिए क्लासेज लगती हो तो आगे बढ़कर सम्मिलित होना चाहिए। ज्ञान अर्जित करना किसी भी उम्र में लाभदायक ही होता हैं।

स्वयंसेवक: किसी उद्देश्य के लिए ज्ञान या समय साझा करना अविश्वसनीय रूप से फायदेमंद हो सकता है। बहुत सी संस्थाएं, जिन्हें हम आम भाषा में एनजीओ कहते हैं, समाज के लिए अच्छा काम कर रही हैं। उन्हें धन एकत्र करने से ज्यादा कठिनाई अच्छे व विश्वासी स्वयंसेवको की उपलब्धता की होती हैं। हो सकता है आपको कहीं मन लायक कार्य करने का अवसर मिल जाए।

जुड़े रहें: परिवार और दोस्तों के साथ नियमित कॉल या मिलना-जुलना बहुत सहायक होता है।

सेवानिवृत्ति या रिटायर का मतलब जीवन से पीछे हटना नहीं है। वास्तव में, यह नई रुचियों को तलाशने, जुनून के साथ फिर से जुड़ने और दुनिया से जुड़े रहने का एक सुनहरा अवसर है। जो वरिष्ठ नागरिक खुद को आनंददायक और उद्देश्यपूर्ण गतिविधियों में व्यस्त रखते हैं, वे अक्सर बेहतर स्वास्थ और जीवन के प्रति बेहतर दृष्टिकोण का अनुभव करते हैं।

हमें अपने बुजुर्गों को सक्रिय रहने, जिज्ञासु बने रहने और सबसे महत्वपूर्ण बात – खुश रहने के लिए हर पल प्रोत्साहित करने का प्रयास करना चाहिए।

बुढ़ापा अक्सर अकेलेपन की तस्वीर दर्शाता है

पहले बुढ़ापे का मतलब था प्यार से घिरे रहना – पोते-पोतियों की हंसी, जानी-पहचानी आवाज़ों का सुकून और यह विश्वास कि कोई हमेशा पास में है। पारंपरिक संयुक्त परिवारों में, बुज़ुर्गों की सिर्फ़ देखभाल ही नहीं की जाती थी, उनका सम्मान किया जाता था, उनसे सलाह ली जाती थी और उन्हें घर के सभी से बराबर प्यार मिलता था।

जैसे-जैसे समाज बड़े संयुक्त परिवारों से छोटे एकल परिवारों की ओर बढ़ रहा है और जैसे-जैसे आधुनिक जीवन की मांगों के कारण परिवार के सदस्य शहरों में और विदेशों में बिखर रहे हैं, बुज़ुर्ग अक्सर पीछे छूट रहे हैं। “छोटे परिवार” का विचार – जिसे कभी व्यावहारिक, प्रबंधनीय और आधुनिक के रूप में प्रचारित किया जाता था – अब मुश्किल सवाल खड़ा कर रहा है। उनमें से सबसे दर्दनाक सवाल: बुजुर्गों की देखभाल कौन करेगा?

जब परिवार दूर हो जाता है

अब माता-पिता के लिए सिर्फ एक या दो बच्चे होना कोई असामान्य बात नहीं है। करियर, जीवन-यापन की लागत और व्यक्तिगत आकांक्षाओं के दबाव से प्रभावित ये बच्चे अक्सर बेहतर अवसरों की तलाश में दूर चले जाते हैं। वे ऐसा उपेक्षा या प्यार की कमी के कारण नहीं करते हैं – यह बस आज की दुनिया का चलन है। लेकिन पीछे छूट गए माता-पिता के लिए, यह शारीरिक और भावनात्मक दोनों तरह की दूरी समय के साथ और भी भारी होती जाती है। एक समय था, जब बुढ़ापे में एक बच्चे को बाहर चले जाने से कोई ज्यादा फरक नहीं पड़ता था। अगर एक बच्चा भी दूर होता, तो उनके साथ रहने और देखभाल करने के लिए दूसरे लोग होते – भाई-बहन, पोते-पोती। आज, अगर वह एक बच्चा विदेश में रह रहा है, या ऐसी नौकरी कर रहा है जिससे उसे साल में एक बार ही मिलने का मौका मिलता है, तो सन्नाटा बहुत ही असहनीय हो सकता है।

रोजमर्रा के काम जो कभी आसान लगते थे – एक कप चाय बनाना, डॉक्टर के पास जाना, कागजी काम निपटाना – थका देने वाली चुनौतियां बन जाते हैं। लेकिन शारीरिक संघर्षों से परे कुछ और भी है: जुड़ाव, प्रासंगिकता और गर्मजोशी के लिए एक शांत पीड़ा।

वृद्धाश्रम: समाधान या समझौता?

आजकल परिवार की अनुपस्थिति में, बहुत से बुज़ुर्ग व्यक्ति वृद्धाश्रमों में जा रहे हैं। इनमें से कुछ सुविधाएं, सुरक्षा, दिनचर्या और जीवन के उसी चरण में दूसरों से जुड़ने का मौका देती हैं। ऐसी संस्कृतियों में पली-बढ़ी पीढ़ियों के लिए जहां परिवार के साथ रहना आम बात है, वृद्धाश्रम में जाना परित्याग जैसा महसूस हो सकता है – भले ही ऐसा न हो। यह ऐसा ही हो गया है जैसे किसी नाटक में उन्हें किनारे कर दिया गया हो जिसमें उन्होंने कभी अभिनय किया हो।

कुछ बुज़ुर्ग लोग खूबसूरती से समायोजित हो जाते हैं, नए दोस्त बनाते हैं, अपनी युवावस्था को फिर से खोजते हैं और सामुदायिक जीवन की संरचना में पनपते हैं। हालांकि, अन्य लोग अस्वीकृति, बेकारपन, या बस उस परिवार के लिए घर की याद की भावना से जूझते हैं जो अब उनके साथ नहीं रहता है।

और इन्हीं सब कारणों से आज हर शहर में वृद्धाश्रम नजर आने लगे हैं। पहले ये वृद्धाश्रम समाज द्वारा संचालित होते थे और ज्यादातर गरीब व्यक्ति ही यहां आते थे, पर आज तो आपको फाइव स्टार वृद्धाश्रम भी बहुत मिल जाएंगे। सारी सुविधाओं होती हैं इनमे, पर हां, खर्च भी बहुत आता है। जिनके बच्चे विदेश में अच्छा पैसा कमाते रहते हैं उनके बीच यह बहुत प्रचलित है। जानकारी के अनुसार अब तो इसे बिजनेस मॉड्यूल के रूप में भी देखा जा रहा है और बहुत लोग इस व्यवसाय में आकर इसके निर्माण में लग गए हैं।

हम बेहतर कर सकते हैं

तो, क्या बुढ़ापे में छोटा परिवार अभिशाप है? स्वाभाविक रूप से नहीं। समस्या परिवार के आकार की नहीं है – समस्या यह है कि हम एक समाज के रूप में अपने बुजुर्गों का समर्थन कैसे करते हैं। हमें रचनात्मक और दयालु होने की आवश्यकता है। समुदाय-आधारित बुजुर्ग देखभाल, सहायता समूह, स्वयंसेवी आगंतुक कार्यक्रम, अंतर-पीढ़ी आवास और यहां तक कि आभासी परिवार चेक-इन (वर्चुअल फैमिली चेक-इन) भी अंतर को भरने में मदद कर सकते हैं। सरकारों और समाज सेवी संस्थाओं को ऐसी प्रणालियों में निवेश करना चाहिए जो वृद्ध आबादी की रक्षा और पोषण करें। व्यक्तिगत रूप से, हम नियमित कॉल, नियोजित मुलाकातें, अपने बुजुर्गों को निर्णयों में शामिल करना, और बस सुनने के लिए समय निकालना – ये छोटे-छोटे कार्य बहुत सार्थक सिद्ध हो सकते हैं।

याद रखने के लिए एक कॉल

बूढ़े होने का मतलब अदृश्य हो जाना नहीं होना चाहिए। हम उन लोगों के ऋणी हैं जिन्होंने हमें पाला, हमारे लिए कितने ही त्याग किये और हमारे जीवन की नींव रखी जिसका हम अब आनंद ले रहे हैं। अगर हम हमेशा शारीरिक रूप से घर में बड़ो के साथ नहीं रह सकते हैं, तो हमें कम से कम भावनात्मक रूप से उनके पास रहना चाहिए।

छोटे परिवार हमारे समय की वास्तविकता हो सकते हैं। लेकिन अकेलापन ऐसा नहीं होना चाहिए।

Thursday, May 01, 2025

बढ़ती उम्र का असली खजाना: गतिशीलता

बुढ़ापा आना अपरिहार्य है, लेकिन हम इस बढ़ती उम्र का सामना केसे करते हैं, इससे हमारी खुशहाली पर बहुत फर्क पड़ता है। हमारे बुढ़ापे में सबसे कम आंकी जाने वाली खुशियों में से एक है गतिशीलता, जिसे हम मोबिलिटि कह सकते हैं – बिना किसी सहारे के, अपने आप चलने-फिरने की सरल लेकिन गहन क्षमता।

जब हम सत्तर या अस्सी के दशक में पहुंचते हैं, तो जीवन नाटकीय रूप से बदलने लगता है। यह अब सिर्फ इस बात पर निर्भर नहीं करता कि हमारे पास बैंक में कितना पैसा है या हमने जीवन भर में कितनी संपत्ती जमा की हैं। असली विलासिता तो यह है कि हम हर सुबह बिस्तर से उठ पाते है आराम से, बिना किसी के सहारा के बाथरूम ज सकते है, कुछ सीढ़ियां चढ़ सकते है या मित्रो के साथ पार्क में टहल सकते है। ये रोज़मर्रा की गतिविधियां, जिन्हें कभी हल्के में लिया जाता था, हमारी स्वतंत्रता की निशानी बन जाती हैं – और कई लोगों के लिए बुढ़ापे में खुशी की कुंजी।

ऐसे अनगिनत बुजुर्ग हैं जो बिस्तर तक ही सीमित हैं या बुनियादी ज़रूरतों के लिए दूसरों पर निर्भर हैं। उनके लिए, सबसे सरल कामों के लिए भी सहायता की ज़रूरत होती है, और यह निर्भरता भावनात्मक और मानसिक रूप से थका देने वाली हो सकती है। कितनी भी धन-संपत्ति हो, आत्मनिर्भर होने की खुशी की जगह नहीं ले सकती।

द लॉन्गविटी प्रोजेक्ट के सह-लेखक डॉ. हॉवर्ड फ्राइडमैन कहते हैं:

गतिशीलता सिर्फ़ चलने-फिरने से कहीं ज़्यादा है। यह आज़ादी, गरिमा और कई मायनों में जीवन है।

कुछ चौंकाने वाले आंकड़े

  • विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, 65 वर्ष और उससे अधिक उम्र के 28-35% से ज्यादा लोग हर साल गिरते रहते हैं और उम्र बढ़ने के साथ यह जोखिम और भी बढ़ता जाता है।
  • अध्ययनों से पता चलता है कि 75 वर्ष की आयु के बाद, 40% से ज़्यादा लोगों की गतिशीलता (मूवमेंट) सीमित हो जाती है।
  • नेशनल इंस्टीट्यूट ऑन एजिंग द्वारा 2022 में किए गए सर्वेक्षण में, लगभग 3 में से 1 वरिष्ठ नागरिक ने बताया कि वे बिना सहायता के एक चौथाई मील भी नहीं चल पाते।

ये सिर्फ़ संख्याएं नहीं हैं – ये हर दिन की परेशानियों का सामना करने वाले वास्तविक लोगों का प्रतिनिधित्व करते हैं। और ये गतिशीलता के लिए योजना बनाने के महत्व को उजागर करते हैं, ठीक वैसे ही जैसे हम रिटायरमेंट बचत के लिए योजना बनाते हैं।

आजीवन गतिशीलता के लिए चिकित्सा सलाह

गतिशीलता बनाए रखने का मतलब 70 के दशक में जोरदार कसरत करना नहीं है। यह निरंतरता, प्रारंभिक तैयारी और अपने शरीर की बात सुनने के विषय में है। यहां कुछ विज्ञान-समर्थित सुझाव दिए जा रहे हैं:

  1. शक्ति प्रशिक्षण: सप्ताह में 2-3 बार हल्के प्रतिरोध व्यायाम मांसपेशियों के द्रव्यमान, संतुलन और हड्डियों के घनत्व में काफी सुधार कर सकते हैं।
  2. दैनिक पैदल चलना: 30 मिनट की पैदल यात्रा हृदय स्वास्थ्य और जोड़ों के लचीलेपन को बेहतर बनाने में सहयोग कर सकती है।
  3. स्ट्रेचिंग और संतुलन व्यायाम: योग, व्यायाम जैसे अभ्यास लचीलेपन में सुधार करते हैं, गिरने के जोखिम को कम करते हैं और बेलेंस बनाये रखने में मदद करते हैं।
  4. पोषण भी मायने रखता है: मांसपेशियों और हड्डियों की ताकत बनाए रखने के लिए प्रोटीन, कैल्शियम और विटामिन डी का पर्याप्त सेवन आवश्यक है।
  5. नियमित जांच: गठिया, ऑस्टियोपोरोसिस और दृष्टि के लिए नियमित जांच से गतिशीलता को प्रभावित करने वाली समस्याओं का जल्दी पता लगाया जा सकता है।

बेहतर कल के लिए आज से शुरुआत करें

गतिशीलता अपने आप नहीं होती – यह पेंशन की तरह ही अर्जित की जाती है। आपके 40, 50 और 60 के दशक में आपके दैनिक प्रयास, इस बात की नींव रखते हैं कि आप अपने 70 के दशक और उसके बाद कितनी खूबसूरती और स्वतंत्रता से चल-फिर सकते हैं। अगर आप 80 साल की उम्र में स्वतंत्र रूप से चलने में सक्षम हैं, तो एक तरह से आपने जीवन में एक बड़ी लॉटरी जीत ली है। आइए सफलता को फिर से परिभाषित करना शुरू करें। आइए आज न केवल आजीविका कमाने के लिए बल्कि एक ऐसा भविष्य बनाने के लिए काम करें जहां हम सम्मान और स्वतंत्रता के साथ रह सकें। गतिशीलता केवल गति नहीं है – यह स्वतंत्रता, खुशी और अंततः जीवन की गुणवत्ता है।

वरिष्ठ जन वंचित बच्चों को शिक्षित करना अपना जीवन मिशन बनाए

जैसे-जैसे हम जीवन में आगे बढ़ते हैं, प्रत्येक चरण हमें अपने आस-पास की दुनिया में योगदान करने का एक नया अवसर प्रदान करता है। सेवानिवृत्ति को अक्सर आराम करने कराने के रूप में ही देखा जाता है, लेकिन कई बुजुर्गों के लिए, यह सबसे सार्थक चरण हो सकता है – एक ऐसा समय जब वे गहन और स्थायी तरीके से अपने ज्ञान एवं अनुभव के आधार पर बहुत कुछ देश-समाज को दे सकते हैं। हमारे बुजुर्गों द्वारा किया जाने वाला सबसे बड़ा योगदान वंचित बच्चों को शिक्षित करना हो सकता है।

अनुभव की उपयोगिता

सेवानिवृत्त लोगों और वरिष्ठ नागरिकों के पास जीवन के अनुभव, ज्ञान और भावनात्मक बुद्धिमत्ता का खजाना होता है जो किसी भी पाठ्यपुस्तक से हमें प्राप्त नहीं हो सकता है। अपने जीवन के उतार-चढ़ाव को देखने के बाद, ये बुजुर्ग समाज के बच्चों को न केवल नियमित औपचारिक शिक्षा के विषय बल्कि मूल्य आधारित शिक्षा व संस्कार सिखाने के लिए अद्वितीय स्थिति में हैं – ऐसी कुछ बातें जिसकी आज हमारे समाज को सख्त जरूरत है।

हम ऐसे समय में जी रहे हैं, जहाँ यातायात उल्लंघन बहुत आम बात है, इन्सान को गुस्सा जल्दी आ जाता है, हिंसा बहुत बढ़ गई है और समाज में तलाक के किस्से काफी दिखने लग गये हैं। ये सिर्फ़ सामाजिक पतन के संकेत नहीं हैं; ये धैर्य, सहानुभूति, जिम्मेदारी और दूसरों के प्रति सम्मान जैसे मूलभूत मूल्यों की कमी के लक्षण हैं। जीवन के इन सबक को अनुभवी और सेवानिवृत बुजुर्गो से बेहतर कौन दे सकता है, जो पीढ़ियों से बदलाव के दौर से गुजरे हैं और इन मूल्यों के महत्व को समझते हैं?

राष्ट्र निर्माण में बुजुर्गों की भूमिका

बुजुर्ग, बच्चों में राष्ट्रवाद और देश सेवा की भावना भी पैदा कर सकते हैं, क्योंकि उन्होंने हमारे राष्ट्र के निर्माण के लिए किए गए बलिदानों को देखा है और वो जानते हैं कि इन अमूल्य आदर्शों को बनाए रखना कितना आवश्यक है। बच्चों को कड़ी मेहनत, ईमानदारी और नागरिक ज़िम्मेदारी के मूल्य के विषय में सिखाकर, वे भविष्य के नागरिकों को आकार दे सकते हैं। अपने अनुभवों को साझा करके वरिष्ठ जन समाज में सकारात्मक योगदान देंगे।

एक ऐसा मिशन जो देने वाले और पाने वाले दोनों को संतुष्ट करता है

वंचित बच्चों को शिक्षित करना और जीवन के उचित मूल्यो को ध्यान कराना सिर्फ छात्रों के लिए ही फायदेमंद नहीं है; यह बुजुर्गों के लिए भी बहुत संतुष्टिदायक है। इससे उनके जीवन को नया उद्देश्य मिलता है, अकेलेपन से निकलने में मदद मिलती है और उनके दिमाग सक्रिय और व्यस्त रहते हैं। इस तरह की मेंटरशिप से ऐसे बंधन बनते हैं जो पीढ़ियों और सामाजिक विभाजनों को पार करते हैं।

कैसे शुरू करें

बुजुर्ग विभिन्न तरीकों से इस अभियान में जुड़ सकते हैं – स्थानीय स्कूलों या गैर सरकारी संगठनों में स्वयंसेवा करके, छोटे सामुदायिक शिक्षण केंद्र स्थापित करके, या यहां तक कि घर पर मुफ़्त ट्यूशन देकर। इस कार्य के लिए किसी औपचारिक शिक्षण डिग्री, जैसे कि बी.एड. की आवश्यकता नहीं है; बस सेवा करने के लिए अपने आप को तैयार करना है। ऐसे बहुत से उद्हारण आपको समाज में मिल जाएंगे। कई शहरो में झुग्गी-झोपड़ी में जाकर युवाओं को भी देखा गया हैं जो कि पढ़ाई के अलावा कोशल विकास कराने में वंचितो की सहायता करते है। इससे उनका जिविकापार्जन के लिए नए नए अवसर मिल जाते हैं। इसी तरह वरिष्ठजन भी यह काम बखूबी कर सकते है।

निष्कर्ष

हमारे बुजुर्ग ज्ञान, करुणा और अंतर्दृष्टि का एक अप्रतिम खजाना हैं। यदि उनमें से एक अंश भी वंचित बच्चों को शिक्षित करने के लिए अपना समय समर्पित करने का फैसला करते है, तो यह एक शांत क्रांति को जन्म दे सकता है – एक ऐसा समाज जो एक दयालु, अधिक अनुशासित और मूल्य-संचालित समाज का निर्माण करता है।

आइए हम इस महान मिशन के लिए प्रेरित हों, समाज व परिवार को प्रोत्साहित करें और उसका समर्थन करें। आखिरकार, बेहतर कल का निर्माण करने का सबसे अच्छा तरीका आज के बच्चों में अपने अनुभवो का निवेश करना है – और इस प्रयास का नेतृत्व करने के लिए उनसे बेहतर कौन हो सकता है जो पहले से ही जीवन की राह पर चल कर इस मंजील तक पहूंचे हैं।