We have all been criticising about what is not being done by the government. However, we rarely give our own solutions to any problem that we see. May be the suggestion is ridiculous - but still if we look things in a positive way may be we can suggest solutions which some one can like and decide to implement. I know this is very wishful thinking but this is surely better than just criticising.

Thursday, December 19, 2024

बुजुर्ग बचपन की यादें भुला नहीं पाते

आकाशवाणी का एक चैनल है विविध भारती। यह चैनल रेडियो सुनने वाले बुजुर्गो के बीच बहुत प्रचलित है। इस पर ज्यादातर पुराने गाने आते है, जिन्हें सुनने पर उन दिनो की यादें ताजा हो जाती है। अगर वो फिल्म देखी हुई होती हैं, तो मन मे वो दृश्य सामने आ जाते है। कई बार तो अगर बच्चें भी साथ सुन रहे होते हैं तो वो बहुत ही आश्चर्यचकित हो जाते हैं कि ऐसे भी गाने फिल्माएं जाते थे – शब्दों में इतनी भावुकता और संगीत इतना मीठा। वैसे, अगर आज भी युवा अंताक्षरी खेल रहे हो तो बहुत से पुराने गानों को ही शामिल किया जाता हैं।

बचपन की सुनहरी बातों की याद दिलाने के लिए वाट्सएप पर अनेकानेक मैसेज आते है। एक मैसेज आया जिसमे दिखलाया गया कि बुजुर्गो के एक कार्यक्रम में सभी से ऐसे खेल खिलाये गए जो उनके बचपन में प्रचलित थे। गुल्ली-डंडा, कंचे या अंटा, पिट्ठू, जमीन पर चॉक से कुछ बॉक्स बनाकर देखे बिना पीछे से छोटा पत्थर फैकना और फिर कूदना वगैरह जैसे खेलो में सभी ने भाग लिया। सबसे मजेदार दृश्य तो वह लगा जिसमें बुजुर्ग लोग साइकिल चक्के के रीम को एक डंडे से दौड़ा रहे थे। याद आने लगा की हम भी ये सब कितने चाव से खेलते थे। न धुल मिट्टी की परवाह न भूख का एहसास। इन सारे खेलों में एक खास बात ध्यान देने योग्य हैं कि ये सब बगैर किसी खर्च के ही हमें अनुपम आनंदित कर देते थे। समय परिवर्तनशील है, बहुत से नए नए खेल आ गए हैं और अब तो समय इतनी तेजी से बदल गया है कि नए जमाने के खेल भी गायब हो गए। इन सबकी जगह ले ली है मोबाइल फोन ने। सोते-जागते, उठते-बैठते, भोजन के वक्त भी इसे कोई अपने हाथों से अलग नहीं होने देता। कल क्या होगा भगवान ही जाने।

याद तो स्कूल के दिनों की भी बहुत आती हैं। हमारे वो दोस्त, हमारे वो शिक्षक, हमारी बदमाशियां और फिर हमारी सजा (पनिशमेंट)। बैंच पर खड़ा होना, हाथ ऊपर कर के खड़ा होना, दीवार की तरफ देखकर या क्लास के बाहर खड़ा होना, मुर्गा बनना या निल डाउन होना, कान पकड़ना, ब्लेक बोर्ड साफ करना, होटो पर अंगुली रखकर खड़ा होना, क्लास समाप्त होने के बाद भी रुकना, एक लाइन या एक शब्द को दस बार लिखना तो सामान्य सी बात थी। गाल पर चांटा या हथेली पर स्केल से पिटना भी काफी होता था। बड़ी शैतानीयों पर तो केनींग, झुक कर पिछवाड़े पर बेंत से पिटाई भी हो जाती थी। स्कूल की सजा हम स्कूल में ही भूल कर हंसते हंसते घर आ जाते थे परन्तु आज के दिन तो अगर किसी बच्चे को एक थप्पड़ भी लगा दिया तो बवाल हो जाता है। शिक्षक व स्कूल पर पुलिस केस तक होने के समाचार अखबार में पढ़ने को मिल जाते है।

आजकल स्कूल की छुट्टियों पर किसी पर्यटक स्थल पर जाने का रिवाज आम हो गया है। हमारे बचपन के दिनों में तो हम सबका ननिहाल या भुआ के यहां ही जाना होता था। कभी कभी अपने पैतृक गांव या तीर्थ करने भी चले जाते थे। हमारा सफर ट्रेन से होता था और उसका आनंद ही अलौकिक था। खाने पीने का सारा प्रबंध घर से कर के निकलते। गर्मी के दिनों में तो कईयों के पास सुराही तक ट्रेन में दिखाई दे जाती थी। आज भी सुराही के उस मीठे ठंडे पानी का अनुभव याद आता है। ट्रेन में एक साथ मिलकर खाना खाने का मजा ही ओर था। आज तो बिरले ही घर के भोजन का आनंद यात्रा में लेते हैं।

बचपन की यादें हमारे जीवन का अहम हिस्सा होती हैं जो हमें हमारे बालपन के जीवन के अच्छे पलों की याद दिलाती हैं। ये वो यादें है जो हमारे भीतर के बच्चे को जीवित रखती हैं और ये ही वो यादें है जो हमारी सोच और भविष्य को आकार देती है। बचपन में हमारी इच्छा होती थी कि हम जल्द बड़े हो जाएं और वह सब कर सके जिसकी उस आयु में हमें मनाई थी, पर बड़े करते थे। आज इतनी परेशानियों के बीच तो यहीं मन में आता है कि काश वो बचपन के दिन वापस आ जाएं। कभी घर पर जब परिवार के साथ गोष्ठी होती हैं तो हमें अपने बच्चो के अपने छोटेपन की बांतो को बताने में बहुत आनंद आता है। मजे की बात तो यह होती हैं की उन बातो को बच्चें भी चाव से सुनते हैं। हम कितने ही व्यस्त हो जाए बचपन की यादें भूल नहीं पाते। कई बार तो उन यादों को याद करके अपने अकेलेपन में भी हम हंसते मुस्कराते है। 

इस लेख को व पूर्व प्रकाशित लेख वेबसाइट www.neversayretired.in पर भी पढ़े जा सकते है।

My articles can also be read on the Never Say Retired website www.neversayretired.in

वरिष्ठ ट्रंप की जीत – युवाओं को सीख

20 नवंबर को दुनिया के सबसे ताकतवर व अमीर देश अमेरिका में सम्पन्न हुए राष्ट्रपति के चुनाव में 78 वर्षीय डॉनल्ड ट्रंप की विजय हम सब के लिए, खास कर युवाओं के लिए बहुत बड़ी सीख है।

हम भारतीय ज्यादातर इस आयु में किसी तीर्थस्थल में दर्शन के लिए जाने में भी संकोच करते हैं। बिरले ही इसके अपवाद होते है। पिछले सप्ताह ही मेरे एक 77 वर्षीय मित्र को मुंबई से गोवा, क्रूज में जाने का प्रस्ताव मिला। उनकी प्रबल इच्छाशक्ति के कारण वो कुछ अस्वस्थ होते हुए भी तीन दिन के प्रवास के बाद एक बहुत ही यादगार छुट्टी बिताकर वापस आए। उनकी बेटी ने तो उन्हें इस ट्रिप पर न जाने का आग्रहपूर्ण सुझाव दिया और इसी बात को लेकर कुछ आपस में मन-मुटाव भी हुआ। उनके आनंदित होकर लौटने पर परिवार में सभी प्रसन्न हैं।

ट्रंप ने 70 वर्ष की आयु में पहली बार अमेरिका के राष्ट्रपति का चुनाव 2016 में जीता। 2020 के चुनाव में रिपब्लिकन पार्टी ने उन्हें पुनः उम्मीदवार बनाया पर वो सफल न हो पाए और डैमोक्रेटिक पार्टी के जो बिडन से हार गए। इस पराजय के पश्चात 74 वर्षीय ट्रंप उसी समय से कार्य करने लगे 2024 के इलेक्शन के लिए। और अथक प्रयास से 78 वर्ष की आयु में पुनः जीत कर वो सबको आश्चर्यचकित कर दिये।

इस आयु में इतने महत्वपूर्ण पद पर अपने को स्थापित करना बहुत बड़ी बात है। इसके लिए श्रेय जाएगा इनकी प्रबल इच्छाशक्ति को, इनके स्वस्थ शरीर की और इनकी आर्थिक सम्पन्नता की। यह सीख हमारे युवाओं के जीवन के लिए बहुत महत्वपूर्ण सबक और प्रेरणादायक है।

हमे छोटी आयु से ही अपने शरीर को स्वस्थ रखने के लिए उचित कदम आगे बढ़ाने होंगे। नियमित व्यायाम, योग व खान-पान पर ध्यान देना होगा। आज स्वास्थ्य के प्रति, सभी आयु वर्ग के व्यक्तियो के मध्य, जागरूकता बहुत आ गयी है। शहर में फिटनेस सेन्टर, जिम, की इकाईयां जिस अनुपात में बढ़ रहे है उससे भी इस कथन को बल मिलता है। नियमित होने की डिसिप्लिन जरूर रखनी होगी। अक्सर देखा गया है कि बहुत से युवा जिम जॉयन तो कर लेते है पर नियमित नहीं होते। इससे उनकी सेहद पर उल्टा ही असर होने लगता है। आजकल पार्को में भी बहुत युवा नजर आएंगे व्यायाम करते हुए, योग करते हुए। उधर खेलों में भी युवा शक्ति पहले की तुलना में बहुत ज्यादा की संख्या में उतर आये है।

स्वास्थ्य के प्रति जागरूक होने के साथ युवा शक्ति को अपने खानपान पर विशेष थ्यान देना होगा। होटलो में खाना, ऑनलाइन सुविधा से बाहर का भोजन घर पर ही मंगाना आम हो गया है। परिवार से दूर पढ़ाई या जीविकोपार्जन कर रहे युवको को तो, आवश्यकतानुसार यह सब करना ही पड़ता है। फिर भी अपने विवेक से सावधान रहना महत्वपूर्ण है। अच्छा खान-पान केवल शरीर के स्वास्थ्य पर ही असर नहीं करता, अपितु मनोवृति पर भी प्रभाव डालता है। कुछ दिनों पहले ही दिल्ली में एक छ दिवसीय स्वास्थ्य संबंधी कैंप ‘सन टू ह्युमन फाउन्डेशन’ द्वारा लगाया गया। इनके द्वारा विभिन्न तकनिक द्वारा स्वास्थ्य सुधारने के बहुत लाभकारी उपाय सिखाए गएं। बहुत से ऐसे व्यक्ति भी मिले जिनको इनकी सिखाई हुई पद्धती से काफी लाभ हुआ। इनकी प्राथमिकता थी कि सही समय पर सही खान-पान होना चाहिए। इस पद्धति का मानसिक स्वास्थ्य पर भी प्रबल असर होता है, ऐसा इनका मानना है।

78 वर्षिय ट्रंप अपने चुनावी केम्पेन में खूब प्रवास कर रहे थे, आज यहां तो कल वहां। इतना ट्रेवल करना और सभी जगह भाषण करना कोई आसान काम नहीं था। य़ह तभी संभव हो सका क्यूंकि इनके स्वास्थ ने इनका साथ दिया। आज के युवाओं को यह समझना होगा कि युवावस्था में अपने स्वास्थ का उस हिसाब से ध्यान रखे कि जब वो 70 वर्ष के पार जाने लगेंगे तब उनकी सेहद अच्छी रहे।

इसी तरह युवको को अपनी आर्थिक प्लॉनिंग भी युवावस्था से करनी होगी। जब वो बड़े होंगे उनके पास पर्याप्त धन होगा तभी उनका जीवन सुचारू रूप से चल सकेगा। आज से बचत की और सही जगह इन्वेस्टमेंट करने की सही सलाह लेकर क्रियान्वन करना आवश्यक है। जीवन यापन की लागत हर वर्ष बढ़ती जा रही है। स्वास्थ्य संबंधी खर्च बहुत बढ़ता जा रहा है। यहां तक की मेडी इन्स्योरेंस का प्रिमियम तब बहुत बढ़ गया होगा।

आयु बढ़ने के साथ शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए इन बातों का ध्यान रखना आवश्यक हैं:

  • व्यायाम करें और शारीरिक रूप से सक्रिय रहें
  • स्वस्थ भोजन करें
  • वित्तीय नियोजन आज ही शुरु करे।

केवल ट्रंप ही नहीं, हमारे भारत में भी बहुत विभूतियां है जो सत्तर-अस्सी की आयु में सफलतापूर्वक समाज सेवा, देश सेवा आदि अनेक प्रभाव पूर्ण कार्य कर रहे हैं। हमारी युवा पीढ़ी को चिन्तन और मनन की आवश्यकता है।
इस लेख को व पूर्व प्रकाशित लेख वेबसाइट www.neversayretired.in पर भी पढ़े जा सकते है।

My articles can also be read on the Never Say Retired website www.neversayretired.in

समाज सेवा में अग्रणी भूमिका निभाए वरिष्ठ जन

एक उम्र आने के पश्चात बहुत से लोगो में यह विचार पल्लवित होते रहते है कि वो अब क्या करे, अपना समय कैसे व्यतीत करे? सबके पास वो सुख भी नहीं होता कि वो एक बड़े परिवार का हिस्सा हैं जहां बेटे, बहू, और उनके बच्चे साथ रहते हो। ज्यादातर वरिष्ठ जन अपने बच्चों को पढ़ा-लिखा दिये और ये बच्चे अपनी जीविकोपार्जन करने में व्यस्त हो गए। कई तो माता-पिता से अलग शहर में भी रहने लगे। ऐसे में वरिष्ठ जन अपने ज्ञान व अनुभव का भरपूर उपयोग कर सकते हैं समाज के लिए काम करके।

भारतीय परंपरा रही है कि हम केवल अपना नहीं सोचते हैं। हम अगर सक्षम हैं तो जरूरतमंद की सेवा करने में कभी पीछे नहीं रहते हैं। यहीं संस्कार हमें मिले हैं। हमारे तो लाखो लाख मंदिरों में भी प्रत्येक दिन आरती के बाद जो जय घोष होता हैं उसमे एक स्वर में सब बोलते हैं ‘विश्व का कल्याण हो’। वसुधैव कुटुम्बकम की नीति पर हम विश्वास करते है। यह एक संस्कृत वाक्यांश है और सनातन धर्म का मूल संस्कार और विचारधारा है, जिसका अर्थ है ‘विश्व एक परिवार है’।

बचपन से हमने यही पाया है कि स्कूल, अस्पताल, रहने के लिए धर्मशाला, गौ पालन, प्याऊ लगवाना, वगैरह समाज की तरफ से उपलब्ध करवाये जाते थे। सौभाग्यवश परोपकारी व्यक्तियों की भी कमी नहीं है समाज में। अनेकानेक स्वयंसेवी संस्थाएं कार्यरत हैं जो जरूरतमंद लोगों के लिए बहुत अच्छा कार्य कर रही है। बहुत सी ऐसी संस्थाओ में यह देखा गया है कि धन तो पर्याप्त उपलब्ध हो जाता हैं पर निर्धारित कार्य को सुचारु रूप से क्रियान्वित करने के लिए योग्य व्यक्ति मिलने में कठिनाई आती है। इस मैनपावर की कमी को पढ़े-लिखे, अनुभवी लोग बखुबी पुरा कर सकते है।

मेरा परिचय एक अस्सी वर्ष के व्यक्ति से है, जिन्हे रिटायर हुए कोई बाइस वर्ष हो गए। वो अपने-आपको एक शिक्षा संबंधित संस्थान से जुड़कर बहुत गौरवान्वित महसूस करते है। उनके अंदर दूसरो की सेवा कर के एक ऐसी ऊर्जा उत्पन्न होती है जो उनके अच्छे स्वास्थ्य का राज है। उनके परिवार वाले व मित्रगण भी इस बात को स्वीकारते है कि इनके स्वस्थ रहने में सबसे बड़ा योगदान इनका इस संस्था में सेवा देना है।

एक और परिचित वरिष्ठ व्यक्ति अपना काफी समय एक बड़े मंदिर के संचालन में लगाते है। इनके वहां जुड़ने से मंदिर के सभी कार्य सुचारू रूप से चलने लगे और भक्तो का आना भी बढ़ गया। इसी तरह बहुत से लोग गुरूद्वारो में भी किसी न किसी कार्य में अपना योगदान देते है।

किसी संस्था से जुड़ना इतना आसान भी नहीं है। जो लोग पहले से ही मेनेजमेंट मे लगे हैं वो जल्दी किसी नए व्यक्ति को प्रवेश नहीं करने देते। उनमे अहम की भावना जागृत हो जाती है और कहीं कहीं तो वित्तीय अनियमितता भी नजर आती हैं। ऐसा नहीं है कि अच्छे संस्थानों की कमी है। अपने विवेक से सही संस्थान को हमे स्वयं को ढूंढना होगा।

अगर आपको अकेले काम करने में ज्यादा अच्छा लगता है तो समाज सेवा करने के और भी ऑप्शन्स है। कुछ दिन पहले ही एक मैसेज वाट्सएप पर पढ़ा कि एक व्यक्ति ने वर्षो की मेहनत कर के पूरा का पूरा एक जंगल ही लगा दिया।

एक बहुत ही सरल सा काम कोई भी कर सकते है – वो है गरीब जरूरतमंद बच्चो को पढ़ाने का। इसके लिए कोई ज्यादा दूर जाने की भी आवश्यकता नहीं। अपने पास ही कई ऐसे गरीब परिवार मिल जाएंगे जो आर्थिक आभाव के कारण अपने बच्चे को स्कूल नहीं भेज सक रहे है। ऐसे बच्चो को पढ़ाने में अपना योगदान दिया जा सकता है। अखबार में छपा एक समाचार याद आ रहा हैं जिसमे बताया गया कि एक व्यक्ति ने अपने पास ही के एक कन्सट्रकशन साइट पर काम कर रहे मजदूरो के बच्चों को पढ़ाना शुरु कर दिया।

बाराबंकी के पास एक आश्रम में हर वर्ष एक महिने का स्वास्थ्य कैंप लगता है। इस कैंप में विभिन्न बीमारी से ग्रसित हजारों गरीब गांववासी का इलाज निशुल्क किया जाता है। एक तरफ तो डॉक्टरो एवं उनके सहायक की पूरी टीम अपना योगदान बगैर कोई फीस के देते है, तो दूसरी ओर अनेकानेक महिलाए व पुरुष स्वयंसेवक दूर-दूर से अपने खर्च पर आते है मरीज की देखभाल करने के लिए।

एक बार सेवा करने की भावना मन में आ जाए तो आगे का रास्ता स्वयं मिल ही जाएगा। यह तो निश्चित ही है कि समाज सेवा से आप अपनी भी सेवा कर रहे हैं। आप हमेशा प्रसन्न व स्वस्थ रहेंगे।

डिजिटल एरेस्ट का वरिष्ठजन पर मंडराता खतरा

ऑनलाइन फ्रॉड की चर्चा बहुत दिनो से सुनते आ रहे हैं। बहुत से लोगो से करोड़ो रुपये ये फ्रॉड करने वाले जालसाज बैंक एकाउंट से उड़ा ले गए। झारखंड का जामताड़ा और हरियाना का नूह इस ऑनलाइन फ्रॉड करने के केंद्र के रूप में बहुचर्चित हो गया। यह सिलसिला रूकने का नाम भी नहीं ले रहा था कि अब एक नये रूप में आपके मोबाइल पर ऐसी धोखाधड़ी सामने आ गई है जिसे “डिजिटल एरेस्ट” का नाम दिया गया है।

डिजिटल एरेस्ट करने वाले धोखेबाज अपने-आप को सी. बी. आई., आर. बी. आई., पुलिस, इन्कम टैक्स या नशीले पदार्थ की रोकथाम में लगे अधिकारी, जैसे विभाग, की ओर से बात करते है। वो पहले से आपके विषय में बहुत जानकारी एकत्र कर लेते है – आपके परिवार, मित्रगण, व्यवसाय, आदि से सम्बन्धित। ये जालसाज अपनी बात बहुत विश्वास और धमकाने वाले अंदाज से करते है।

वीडियो कॉल पर तो ये जालसाज पुलिस या अन्य सरकारी युनिफॉर्म में नजर आएंगे और बैकग्राउंड में सरकारी दफ्तर दिखाई देगा। बिल्कुल ऐसा लगेगा कि वो सही सही उसी विभाग से बोल रहे हैं।  आपको धमकाया जाएगा की आपने यह गलत काम किया है जिसके लिए आपको जेल हो सकती है और आपका समाज में बहुत नाम खराब हो जाएगा। इससे बचने के लिए वो आपसे रुपये की मांग करेंगे।

ऐसी धोखाधड़ी में बुजुर्ग व्यक्ति ज्यादा शिकार हो रहे है। टेक्नोलॉजी की समझ कम होना, जल्द किसी की बातो में आ जाना और उम्र के इस पड़ाव में ऐसी धमकी भरी बातो से घबरा जाना आम बात है। कुछ ही सप्ताह पहले एक बहुत ही प्रतिष्ठित बिजनेस ग्रुप के 82 वर्षीय सीईओ से ऐसे साइबर जालसाज ने सात करोड़ रुपये ठग लिए थे।

डिजिटल एरेस्ट धोखाधड़ी का एक उदाहरण यहां देना चाहूंगा। एक लड़की का वीडियो कॉल आता है, आप रिस्पॉन्स देते है, कुछ अनाप-शनाप बाते होती है जिसे उस लड़की ने रिकॉर्ड कर लिया है। लाइन काट दी जाती है। आप निश्चिंत हो जाते है। पर अगले दिन सुबह एक पुरुष का फोन आता है और वह अपने को पुलिस का उच्च अधिकारी बताता है। वह कहता है कि कल आप एक लड़की से अश्लील बात कर रहे थे, सारी रिकॉर्डिंग हमे मिली है। आपको इस अपराध के लिए गिरफ्तार किया जा सकता है। इसे हम यूट्यूब पर पोस्ट भी कर देंगे। आपकी समाज में बहुत बदनामी होगी। इससे बचना है तो इतने रूपये तुरंत भेजे। ऐसे अनेक केस सामने आए है।

एक और उदहारण – आपको फोन आएगा कि आपके नाम विदेश से एक पैकेट आया हैं और उसमे जांच के दौरान ड्रग्स पाया गया है। फोन करने वाला व्यक्ति अपने को नारकोटिक्स विभाग का सीनियर इन्सपेक्टर बता कर रुपये देकर मामले को सुलझाने की बात करेगा। इसी तरह अनेकानेक तरिके से फंसाने का प्रयास जालसाज कर रहे हैं।

स्थिति इतनी खराब हो गई है कि प्रधान मंत्री तक को हस्तक्षेप करना पड़ रहा है। उन्होंन अपनी “मन की बात” के 115वीं कड़ी, जो कि 27 अक्टूबर को प्रसारित हुई थी, में इसकी चर्चा विस्तार से की। उन्होंन कहां कि ऐसे कॉल से किसी को डरने की आवश्यकता नहीं है, कारण कोई भी जांच एजेन्सी फोन या वीडियो कॉल पर इस तरह पूछताछ कभी नहीं करती है।

प्रधान मंत्री ने डिजिटल सुरक्षा के तीन चरण की बात की। इसे समझाते हुए उन्होंन कहा कि ये तीन चरण हैं – ‘रुको-सोचो-एक्शन लो’ । कॉल आते ही, ‘रुको’ – घबराएं नहीं, शांत रहें, जल्दबाजी में कोई कदम न उठाएं, किसी को अपनी व्यक्तिगत जानकारी न दें, संभव हो तो स्क्रीनशॉट लें और रिकॉर्डिंग जरूर करें । इसके बाद आता है, दूसरा चरण, ‘सोचो’ । कोई भी सरकारी विभाग फोन पर ऐसे धमकी नहीं देती, न ही वीडियो कॉल पर पूछताछ करती है, न ही ऐसे पैसे की मांग करती है। और तीसरा चरण है – ‘एक्शन लो’ । राष्ट्रीय साइबर हेल्पलाइन 1930 पर डायल करें, cybercrime.gov.in पर रिपोर्ट करें, परिवार और पुलिस को सूचित करें, सबूत सुरक्षित रखें । ये तीन चरण आपकी डिजिटल सुरक्षा का रक्षक बनेंगे।

प्रधान मंत्री ने दोहराया कि डिजिटल एरेस्ट जैसी कोई व्यवस्था कानून में नहीं है। ये सिर्फ फ्रॉड है, फरेब है, झूठ है, बदमाशों का गिरोह है और जो लोग ऐसा कर रहे हैं, वो समाज के दुश्मन हैं । उन्होंन आश्वासन दिया कि डिजिटल एरेस्ट के नाम पर जो फरेब चल रहा है, उससे निपटने के लिए तमाम जांच एजेंसियाँ, राज्य सरकारों के साथ मिलकर काम कर रही हैं । इन एजेंसियों में तालमेल बनाने के लिए नेशनल साइबर कोऑर्डिनेशन सेन्टर की स्थापना की गई है। नागरिकों से सहयोग का आग्रह करते हुए उन्होंन कहां कि इस धोखाधड़ी से बचने के लिए बहुत जरूरी है हर नागरिक की जागरूक होना। जो लोग भी इस तरह के फ्रॉड का शिकार होते हैं, उन्हें ज्यादा-से-ज्यादा लोगों को इसके बारे में बताना चाहिए। मुहिम में छात्रों को भी जोड़ने का आग्रह किया। समाज में सबके प्रयासों से ही इस चुनौती का मुकाबला किया जा सकता हैं।

वरिष्ठजन घर पर छोटो से अपने स्मार्टफोन के विषय में ज्यादा से ज्यादा जानकारी लेने का प्रयास करे। उन्हें किसी भी अनजान नंबर से फोन आने पर रिस्पॉन्स नहीं करना चाहिए। जरूरत लगे तो आप उस नंबर पर मैसेज दे कि आप अभी व्यस्त है और वो कॉल करने वाला आपको मैसेज द्वारा अपना काम बताए। मोबाइल पर अंजान नंबर से अगर कोई लिंक आता है तो उसे क्लिक न करे। व्यक्तिगत जानकारी या बैंक के डिटेल्स किसी से भी साझा न करे। ये छोटी छोटी सावधानियां आपको इस तरह के स्केम से बचाने में सहयोग करेगी। 

हम वरिष्ठ लोग बहुत सौभाग्यशाली हैं

अगर आप 65 वर्ष के हो गए है और इस लेख को पढ़ रहे हैं तो आप उन सात प्रतिशत सौभाग्यशाली लोगो में है जो इस उम्र तक स्वस्थ जीवन जी रहे हैं। जी हां। वर्ल्ड बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार 2023 में भारत में पैंसठ वर्ष से ज्यादा आयु के 7.1 प्रतिशत व्यक्ति हैं और 2030 तक यह जनसंख्या दस प्रतिशत हो जाएगी, ऐसा अनुमान हैं।

भारत, जो आज अपने आप को एक नौजवान देश की श्रेणी में पाता है वो अब धीरे धीरे वरिष्ठ जन की श्रेणी की ओर अग्रसर हो रहा हैं। आंकड़ो पर नजर दौड़ाई जाए तो यह देखने को मिलता है कि सन 2050 तक भारत में कोई 35 करोड़ व्यक्ति 60 वर्ष से ज्यादा के हो जायेंगे।

हमें थोड़ी-बहुत भी तकलीफ जब होती है, चाहे वो स्वास्थ्य सम्बन्धित हो, आर्थिक हो, पारिवारिक हो या अन्य कोई कारण से, तो हम तुरंत परेशान हो जाते है। जरा यह विचार करे कि हम तो उन सौ में से सात सौभाग्यशाली लोग है जो कि जीवित हैं। व्हाट्सएप पर एक बहुत ही अच्छी वीडियो मैंने कुछ दिनों पहले देखा। इसमें बताया गया कि अगर हमारे पास भोजन करने के लिए खाना है, पहनने को कपड़े हैं और रहने के लिए घर है तो हम दुनिया के उन 75% लोगों से ज्यादा खुशकिस्मत है जिनके पास यह सब नहीं है।

हम जिन्दगी से शिकायत करना छोड़ दे। हमारे पास जो है उससे संतुष्ट होना सिखे। हमारे ऊपर तो ईश्वर की कृपा रही है कि हमें इतना कुछ मिला हैं। यह जिन्दगी दौबारा हमें नहीं मिलने वाली हैं, इसलिए इसे दुख में, गुस्से में, किसी से नाराजगी या नफरत में या किसी से झगड़ा करने में व्यर्थ न गवांये। कुछ सकारात्मक काम में हम लगे रहे, सभी से अच्छा व्यवहार करे और अपनी जिन्दगी को खुशी खुशी जिएं। हां, कुछ अड़चने आती रहती हैं। हमें भगवत कृपा से इन तकलीफों को पार करने की हिम्मत जुटाकर सब कुछ सामान्य करना होगा।

सर्वप्रथम हमें अपने स्वास्थ्य पर ध्यान केन्द्रित करना होगा। जीवन के इस पड़ाव पर आकर हमें अपनी शारीरिक व मानसिक स्वास्थ संबधित दोनो विषयों पर ही ध्यान देना होगा। शरीर और मन अलग नहीं है और ये एक दूसरे को प्रभावित करते हैं। केवल लंबी उम्र पाना हमारा लक्ष्य नहीं, स्वस्थ व उपयोगी जीवन ही हमारा उद्देश्य होना चाहिए। हम अपने बुढ़ापे में किसी पर बोझ न बने यहीं भगवान से प्रार्थना हो।

आजकल वाट्सएप पर अनेकानेक मैसेज आते है जिनमें विभिन्न व्यायाम के तरीके बताए जाते हैं। सुबह सुबह पार्क में लोग मिल जाते है जो व्यायाम करवा रहे होते हैं। टेलीविजन के अनेक चैनल्स पर भी बहुत कुछ सीखने को मिल जाता है।

हमारा संक्लप व हमारी इच्छाशक्ति दृढ़ होनी जरूरी हैं। ज्यादातर यह देखा गया है कि एक बार हमारे अंदर जोश आता हैं, हम लग जाते है अपने स्वास्थ्य की देखभाल के लिए विभिन्न कार्यक्रम करने में। थोड़े अंतराल के पश्चात अक्सर हमें आलस्य आने लगता हैं। वरिष्ठजन को यह ध्यान रखना होगा की हम आलस्य को पास में भटकने न दे। हमें अगर दो घंटे प्रतिदिन अपने स्वास्थ्य के लिए योग व व्यायाम करना है तो इसमें कोई समझौता नहीं करना हैं।

विशेषज्ञों का यह कहना है कि बढ़ती उम्र में स्वास्थ्य सम्बन्धित सबसे ज्यादा ध्यान दो बातो पर देनी हैं। पहला तो यह कि आप अपने को गिरने से बचाएं। इस उम्र में गिरने से बहुत कॉम्पलिकेशन हो सकता है। इस कारण बहुत संभल कर रहना हैं। दूसरी बात है कि अपने को कुछ भी खाते हुए या पीते हुए चोकिंग से बचाव करना हैं। बुजुर्ग व्यक्तियों में चोकिंग की संभावना ज्यादा होती है क्योंकि गले और निगलने की मांसपेशियां कमजोर हो जाती है। फेसबुक पर एक ग्रुप हैं – “नेवर से रिटायर्ड फोरम”, जिस पर केवल वरिष्ठ जन के लिए स्वास्थय संबधी बातें व अन्य जानकारी प्रतिदिन पोस्ट होती है। अगर आप फेसबुक पर हैं तो इससे जुड़ सकते हैं।

अच्छा व स्वस्थ खान-पान भी बहुत महत्वपूर्ण हैं। इस उम्र में इसका ज्ञान हम सबके पास पर्याप्त हैं। ध्यान इतना रखना हैं कि मन फिसल न जाए और हम अस्वास्थ्यकर खान-पान की तरफ न बढ़े। भूख कम हो जाती है और खाने का मन कम होने लगता है, इस कारण पौष्टिक भोजन पर ही ध्यान रखना होगा।

जीवन को खुशहाल रखने के लिए अच्छे दोस्तो की बहुत आवश्यकता होती हैं। इस उम्र में आकर हमें नए दोस्त नहीं बनाने हैं। हमारे जो पुराने दोस्त हैं उनसे ज्यादा संपर्क में रहे। अगर वो नजदीक रहते है तो उनसे बराबर मिलते रहे। अगर दूर रहते हैं तो उनसे मोबाइल पर वार्तालाप और मैसेज का आदान-प्रदान बराबर करते रहे।

हम सौभाग्यशाली हैं और आगे भी रहें इसके लिए भगवान को धन्यवाद जरूर दे।

वरिष्ठजन सकारात्मक दृष्टिकोण रखें

लंबे और खुशहाल जीवन का राज है आपका सकारात्मक होना। हर परिस्थिति में हम अपने विचारों को ऐसी दिशा देने कि कोशिश करे कि सब अच्छा ही होगा। भगवान पर भरोसा करे कि उन्होंने हमारे लिए यही रास्ता निश्चित किया है। एक महान संत के प्रवचन की यह बात मेरे दिल में बैठ गई – उन्होंने कहां कि किसी भी घटना के दो ही कारण हो सकते हैं, ‘प्रभु कृपा’ या ‘प्रभु इच्छा’। अगर वो कार्य आपकी सोच के अनुसार हुआ हो तो ‘हरी कृपा’ अन्यथा ‘हरी इच्छा’। इस दृष्टिकोण से आप अपनी किसी भी परिस्थिति को देखें तो आपका जीवन बहुत ही सुखमय रहेगा।

अनेक शोधकर्ताओं ने यह पाया है कि सकारात्मक विचार रखने वाले व्यक्ति अच्छा स्वास्थ व लंबा जीवन पाते हैं। हमारे बीच भी कई ऐसे व्यक्ति मिल जाएंगे, वो खुद भी खुश रहते हैं और दूसरो को भी खुश रखते हैं। ऐसे व्यक्ति दूसरो की गलतियों को नजरअंदाज करेंगे और उनकी हर अच्छाई की तारीफ व उन्हें प्रोत्साहित करेंगे।

सकारात्मक दृष्टिकोण कैसे किसी के जीवन में परिवर्तन ला देता हैं इसकी एक कहानी कुछ दिनों पहले ही वाट्सएप पर मिली। 

कहानी यूं है कि एक लेखक अपनी बैठक में कुछ लिखने लगे। वह लिखते हैं कि पिछले वर्ष उनकी सर्जरी हुई और डाक्टर को उनका गॉलब्लैडर निकालना पड़ा जिसके कारण वह काफी दिनों तक बिस्तर पर रहे। इसी वर्ष वह 60 वर्ष के हुए और उन्हें रिटायर होना पड़ा, उस कंपनी से जिसे वह बहुत प्यार करते थे और जहां वह 35 वर्ष तक उन्होंने सेवाएं दी थी। आगे वह लिखते है कि इसी वर्ष उनकी वृद्ध माताजी का स्वर्गवास हुआ। उनका बेटा एक कार एक्सीडेंट में जख्मी हुआ और वह अपनी मेडिकल की फाइनल परीक्षा में उत्तीर्ण न हो सका। एक्सीडेंट हुई गाड़ी को बनवाने में भी बहुत पैसे खर्च हो गए और अंत में वह लिखते हैं कि मेरा पिछला वर्ष बहुत ही बुरा गया। 

यह सब विचार जब मन में आए तो वो स्वाभाविक ही बहुत दुखी और डिप्रेस्ड सा नजर आ रहे थे। लेखक की पत्नी ने जब उनकी यह हालत देखी और उसकी नजर जब उस पत्रक पर गई जिस पर यह सब लिखा हुआ था तो उसने चुपके से उनकी पूरी लेखनी को पढ़ीं। 

बात उसे समझ आ गई। वो बाहर गई और एक अलग पत्रक लिखकर लाई। सारी स्थिति को वह बिल्कुल सकारात्मक रूप से लिखी। 

लेखक की पत्नी ने लिखा कि पिछले वर्ष मेरे पति ने अपनी गॉलब्लैडर की बीमारी से छुटकारा पाया जिससे कि वर्षों से वह पेट की पीड़ा से दुखी थे। इसी वर्ष मेरे पति ने रिटायरमेंट लिया अच्छी सेहत के साथ। मै ईश्वर को धन्यवाद देना चाहती हूं कि मेरे पति को 35 वर्षों तक उस कंपनी में काम करने का मौका मिला। अब मेरे पति को लिखने के लिए ज्यादा समय मिल रहा है, जो की उनकी हॉबी थी। इसी वर्ष मेरी 95 वर्ष की सास भगवान को प्यारी हुई, बगैर किसी तकलीफ के। इसी वर्ष एक सड़क दुर्घटना में मेरे बेटे की जान बची, हालांकि गाड़ी को काफी नुकसान हुआ। अंतिम वाक्य में उसने लिखा कि पिछले वर्ष हमें भगवान की असीम कृपा मिली जिसके लिए हम उनको धन्यवाद देते हैं। 

इसको पढ़ कर लेखक की आंखों में आंसू आ गए और वह खुद सोचने लगे की केवल सकारात्मक दृष्टिकोण से ही जीवन कितना बदला जा सकता है। 

यह बोलना तो बहुत आसान है कि आप हमेशा अपने मन में केवल सकारात्मक विचार लाए, पर हम इसकी कोशिश करते रहें तो काफी हद तक सफल भी होंगे। एक बात का विशेष ध्यान रखे की हमें ऐसे ही लोगो से ज्यादा बातचीत करनी है जो खुद भी सकारात्मक हो। अगर निराशावादी लोग ज्यादा आसपास रहेंगे तो हमारे में सकारात्मक भाव रहना कठिन हो जाएगा। कुछ महापुरुषों का यह भी मानना है कि योग एवं ध्यान लगाने से भी हमारे मन में सकारात्मक भाव उत्पन्न होते हैं। समाज सेवा में भी अपना समय लगाना चाहिए। दूसरो की सेवा करने से आप खूद अपनी ही सेवा कर रहे हैं। आप को अंदर से जो खुशी मिलती है सेवा करने से वो आपके अंदर सकारात्मक भाव लाती है और आपके स्वास्थ्य को ठीक रखती है।

यह भी कहा जाता हैं कि सकारात्मक सोच से व्यक्ति किसी विपरीत स्थिति से भी जल्द निकल आता है और तनाव में भी कम रहता है।

हम अपने आसपास परिवार में या परिचित के बीच नजर दौड़ाएं तो यहीं पाएंगे कि वो व्यक्ति जो हर समय खुश रहते हैं, आपस में मेलजोल ज्यादा रखते हैं और सकारात्मक रहते है, वो निश्चित सेहतमंद रहते हैं। हमें दूसरो के विषय में नहीं सोचना हैं, हमें अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखना है और उसके लिए सकारात्मक होना अतिआवश्यक हैं।

एक गुलाब की डाली को भी दो नजरियों से देखा जा सकता है – एक तो यह कि इसमें कितने कांटे हैं और दूसरे इसमें कितने सुंदर और खुशबूदार फूल है।