We have all been criticising about what is not being done by the government. However, we rarely give our own solutions to any problem that we see. May be the suggestion is ridiculous - but still if we look things in a positive way may be we can suggest solutions which some one can like and decide to implement. I know this is very wishful thinking but this is surely better than just criticising.

Tuesday, September 17, 2024

वरिष्ठ जन को ज्यादा बात करने दें

आजकल तो प्रोफसनल्स भी मिलने लगे हैं जो कि प्रति घंटा कुछ राशि लेकर व्यक्ति से बात करते रहते है। यह सर्विस फोन पर या व्यक्तिगत घर पर भी उपलब्ध करायी जाती है। सुना है कुछ स्वयंसेवी संस्था ऐसी सेवा मुफ्त में उपलब्ध कराने पर विचार कर रही है।

घर पर जब कोई मेहमान आते है तो ज्यादातर देखा जाता है कि उन्हें बहुत देर तक दादा-दादी के पास नहीं बैठने दिया जाता। कोई न कोई बहाना बना कर मेहमान को उनसे दूर ले जाकर अलग से बैठाया जाता है।

इसके कारण बहुत कुछ हो सकते है। कई बार लगता है कि ये बुजुर्ग फिजूल की बात करेंगे जिससे मेहमान बोर हो जाएंगे। कभी तो यह भी डर लगता है कि वो परिवार के विषय में कुछ ऐसी बाते का जिक्र न छेड़ दे जिससे सभी शर्मिंदा हो जाए।

बुजुर्ग की दृष्टि से विचार करे तो वो भी तो अपनी बात बोलने का अवसर खोना नहीं चाहते। इस कारण जब मौका मिले किसी से बात करना उनको बहुत अच्छा लगता है।

एक सर्वेक्षण के अनुसार बुजुर्ग लोग को, एक उम्र आने के बाद अगर सबसे ज्यादा कुछ आवश्यकता होती है तो वो है कोई उनसे बात करने वाला मिल जाए। किसी भी ओल्ड एज होम पर एक बार जाए। वहां रह रहे पुरुष या महिला से थोड़ी देर बात किजिए और उस समय उनके चेहरे पर आप जो भाव देखेंगे उससे आप भी भावुक हो जाएंगे। वो आपको जाने नही देंगे और चाहेंगे की आप उनसे बात करते ही रहे।

आजकल तो प्रोफसनल्स भी मिलने लगे हैं जो कि प्रति घंटा कुछ राशि लेकर व्यक्ति से बात करते रहते है। यह सर्विस फोन पर या व्यक्तिगत घर पर भी उपलब्ध करायी जाती है। सुना है कुछ स्वयंसेवी संस्था ऐसी सेवा मुफ्त में उपलब्ध कराने पर विचार कर रही है।

आजकल वाट्सएप पर यह मैसेज वायरल हो रहा है कि डाक्टर भी यही सलाह दे रहे है कि बुजुर्ग व्यक्तियों को ज्यादा बात करनी चाहिए। यह सोच इसके बिलकुल विपरीत है जब घर पर बड़ो को ज्यादा बोलने पर टोका जाता था।

डाक्टरो का ऐसा मानना है कि जब व्यक्ति बोलता है तो ब्रेन की एक्टिविटि बढ़ जाती हैं। इसका कारण विचार और भाषा का आपस में सामन्जस्य हो कर व्यक्त करना है। मानना है कि बात करने से याददाश्त बढ़ती है, और जो बात कम करते है उनकी याददाश्त कम होती हैं। ऐसा भी कहा जाता है कि ज्यादा बात करके एलजाइमर्स को भी दूर रख सकते है। यह भी तथ्य है कि जब हम बात करते है तो चेहरे के मसल्स की, थ्रोट की, फेफड़ों की अच्छी एक्सरसाइज होती है।

सभी मानते है कि बात करने से स्ट्रेस कम होता है। बहुत बार सुना है कि ‘बोल कर अपनी भड़ास निकाल दो’, या ‘पेट में बात मत रखो’, वगैरह. सबका तात्पर्य तो यही है कि बात करते रहे।

सभी से, खासकर कम उम्र के पाठक, आज ही ठान ले कि वो अपने पुराने मित्र से बराबर संपर्क रखेंगे। आपके पास तो अब वाट्सएप भी है। ग्रुप बनाए, पुरानी फोटोज का आदान-प्रदान किजीए, मैसेज भेजे और जब भी मौका मिले, मिलते रहे। अगर स्वास्थ्य साथ दे तो कुछ दिनो की आउटिंग करे। वहां खूब बात करने का अवसर मिलेगा। यह निश्चित है कि हमउम्र के पुराने दोस्तो के पास ही समय होगा और सब मन से एक-दूसरे का सुख-दुख बखूबी बांटेंगे। पुरानी बात जब करते है उस समय उक्त घटना का दृष्य आंखों के सामने आ जाता है।

एक बात का विशेष ध्यान रखना है कि हम ज्यादा बोले जरूर पर वो ज्ञानवर्धक हो। ऐसी बात हो कि सुनने वाले को लगे हम कोरी बकवास नहीं कर रहे है। उन्हें लगना चाहिए कि हमको विषय की काफी जानकारी है। एक बहुत अच्छा कोटेशन पढ़ा था जिसमे कहा गया कि ऐसा बोले कि सुनने वाला उत्सुक रहे आपको सुनने में। और अंत में, आप एक अच्छे श्रोता भी बने। औरो को भी बोलने का अवसर दे।

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