We have all been criticising about what is not being done by the government. However, we rarely give our own solutions to any problem that we see. May be the suggestion is ridiculous - but still if we look things in a positive way may be we can suggest solutions which some one can like and decide to implement. I know this is very wishful thinking but this is surely better than just criticising.

Monday, September 30, 2024

हम वरिष्ठ है, बूढ़े नहीं

 ज्यादातर लोग एक उम्र आने के पश्चात अपने आप को बुढ़ा समझने लगते है और यहीं से उनके स्वास्थ पर विपरीत असर दिखने लगता है। इस नकारात्मक सोच से हमे उभरना होगा। हम यह भी मानते है कि उम्र तो एक नम्बर है, असल जिन्दगी तो आपकी सोच, आपकी जीवनशैली पर निर्भर करती है। अगर हम सकारात्मक हो कर अपना जीवन निर्वाह करे तो बढ़ती उम्र में भी हम खुशी खुशी भगवान के द्वारा निर्धारित प्रत्येक क्षण का आनंद ले सकते है।

हमें बढ़ती उम्र में अपने आप को वरिष्ठ बनाना और महसूस करना है। बुढ़ापे और वरिष्ठता के अंतर को बारीकी से समझना होगा तभी हम इस उलझन से निकल पायेंगे और स्वस्थ व सुखी रह सकेंगे। हम अगर अपने को बुढऊ समझने लगे तो अन्य लोगों का आधार ढूंढते रहेंगे। इस मानसिकता से बाहर आकर हम अपने को वरिष्ठ समझे। दूसरो को आधार देने की हिम्मत रखे।

घर पर भी हमें अपने विचार बच्चों पर जबरदस्ती अपनाने की जिद्द नहीं करनी चाहिए। इस तरुणपीढ़ी की राय हमें भी समझनी चाहिए। और फिर आपसी सहमति से कोई निर्णय लेना चाहिए। सायद यहीं अंतर दर्शाता है बुढ़ापे और वरिष्ठता में।

अपने ही मध्य अनेकानेक व्यक्ति मिल जाएंगे जो 75 के पार है और अपने को कुछ न कुछ उपयोगी कार्य में लगा रखे हैं। अखबार में, टीवी पर व सोशल मीडिया पर हमें अक्सर ऐसे समाचार मिल जाते है जहां इस 75 के उम्र को पार कर सुपर सीनियर्स बहुत कुछ ऐसा कर रहे है जिससे समाज में उनको प्रतिष्ठा मिल रही है। ऐसे वरिष्ठ जन दूसरो के लिए भी आदर्श बनते है।

यहां मैं एक वरिष्ठ व्यक्ति का आपको उदाहरण देना चाहूंगा जिनका व्यक्तित्व हमारे लिए आदर्श बन सकता है। ये है 89 वर्ष के श्री अशोक पाल जी।

दिल्ली के पड़ोस गाजियाबाद में जन्मे अशोकजी की प्रारंभिक पढ़ाई स्थानीय सरकारी स्कूल में हुई। इसके पश्चात वे नजदीक ही स्थित रूरकी विश्वविद्यालय की इंजीनियरिंग कॉलेज, जिसे आजकल आई आई टी रूरकी कहां जाने लगा है, से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में स्नातक होकर अपना जीवन आगे बढ़ाने की ओर अग्रसर हुए।

अशोक जी की पहली नौकरी लगी मध्य प्रदेश के सरकारी विभाग में। साढ़े तीन वर्ष तक वहां अपनी सेवा देने के बाद वो अगले साढ़े तीन वर्ष डेसू (DESU) में कार्यरत रहे। इसके पश्चात 1966 में अशोकजी ने भारत सरकार की एक कन्सलटेन्सी कम्पनी, जिसका काम था जगह जगह औद्योगिक परियोजनाएं की स्थापना करना, में अपना योगदान दिया। यहां पर कोई 10 वर्ष तक अशोक जी ने सेवा दी और यहीं पर उनको बहुत एक्स्पोज़र मिला, कारण की इस सरकारी कंपनी की कंसलटेंसी बहुत से देश में दी जाती थी। इसी सरकारी ईकाई में रहते हुए ये डेढ़ वर्ष तक ईरान में कार्यरत रहे।

इतने वर्षों तक सार्वजनिक संस्थानों में अपनी सेवा देने के बाद इन्होंने निजी क्षेत्र की ओर अपना कदम आगे बढ़ाया। थर्मल पावर प्लांट्स की स्थापना में कार्यरत डेजीन डिजाइनिंग कम्पनी में डायरेक्टर बन कर आए। इस संस्था का पोलैंड की सरकारी कंपनी से संबंध था और इन्होंने बोकारो, दुर्गापुर व राउरकेला में कैप्टिव पावर प्लांट लगाने में सहयोग किया। 10 – 12 वर्ष इस कम्पनी में अपना योगदान देने के पश्चात इन्होंने पोलैंड सरकार के आग्रह पर एक जाॅयन्ट वेन्चर कंपनी बनाई जिसके वे मेनेजिंग डायरेक्टर बने। बाद में इस कम्पनी को इन्होंने खरीद लिया। 80 वर्ष की उम्र होने पर इन्होंने इस कंपनी का कामकाज समेट लिया।

अशोक जी शुरु से ही समाज सेवा से जुड़े थे। इसी भावना ने उन्हें विद्या भारती के नजदीक ला दिया जिससे वो कोई तीस वर्ष से जुड़े है। उनका विश्वास था कि शिक्षा के साथ संस्कार देना बहुत आवश्यक है जिसे विद्या भारती बखुबी बहुत अच्छी तरह कर रही हैं। पिछले 17 वर्षों से ये विद्या भारती के उत्तर क्षेत्र के अध्यक्ष हैं। अशोकजी आज भी खूब प्रवास करते हैं। देश के किसी भी स्थान पर कोई बैठक हो और जिसमे ये अपेक्षित हैं, वो वहां पहुंच जाते है। (आपको यहां यह बताना आवश्यक है कि विद्या भारती शिक्षा के गैरसरकारी क्षेत्र में विश्व की सबसे बड़ी संस्था है। भारत के 682 जिले में 12098 औपचारिक स्कूल कार्यरत है जिनमे इकत्तीस लाख से अधिक छात्र संस्कारित शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। इसके अतिरिक्त 54 काॅलेज व दो विश्वविद्यालय भी विद्या भारती के अंतर्गत संचालित हैं।)

1998 में गाजियाबाद में ए.के.जी. इंजीनियरिंग कॉलेज की स्थापना हुई जिसके ये फाउंडर चेयरमैन है। इनकी अपनी एक ट्रस्ट भी है जो की पूरी तरह विद्या भारती को समर्पित है। 1961 में इनका विवाह हुआ और इनके दो बच्चे हैं, एक बेटा व एक बेटी, दोनों विदेश में रहते है।

ऐसे वरिष्ठ व्यक्ति हमें अपने आसपास ही कई मिल जाएंगे। हम उनके जीवन से बहुत कुछ सीख सकते है। उनसे प्रोत्साहन ले सकते है। आप देखेंगे कि ऐसे व्यक्ति बढ़ती उम्र में भी स्वस्थ व खुश रहते है। आवश्यकता जब भी हो सही दिशानिर्देश आपको इनसे मिल जाएगा और दूसरो को अपना सहयोग देने में भी पीछे नहीं हटते है।

अंत मे एक व्हाट्सएप पर मिला यह पोस्ट आपसे यहां साझा करना चाहूंगा। इस पोस्ट में कहा गया है “बुढ़ापा जीवन की शाम में अपना अंत ढूँढता है, और वरिष्ठता जीवन की शाम में भी एक नए सवेरे का इंतजार करती है तथा युवाओं की स्फूर्ति से प्रेरित होती है।”

Saturday, September 21, 2024

अपस्किलिंग और रीस्किलिंग बुजुर्ग के लिए जरूरी

 हमें रिटायर हुए 5 वर्ष हो गए और पढ़ाई छोड़े तो 40 वर्ष हो गए। हम जब पढ़ते थे तब मैथमेटिक्स की पढ़ाई का तरीका आज के तरीके से बिल्कुल भिन्न था। आज कभी घर में छोटे बच्चे जब मैथमेटिक्स का कोई सवाल पूछने आ जाते हैं तो हम इधर-उधर झांकने लगते हैं। करण कि हम जिस तरीके से उस सवाल का सॉल्यूशन ढूंढते हैं उस तरीके से बच्चे अनभिज्ञ रहते हैं। भाषा ज्ञान को छोड़ दे तो यही दिक्कत और विषयों में भी आती है।

आगे कॉलेज की पढ़ाई जो हमने की उसी के संदर्भ में हमें नौकरी मिलने में सहायता मिली। लेकिन अब रिटायर होने के बाद ऐसा लगता है कि वह पढ़ाई अगर हम आज उपयोग करना चाहे तो उसमें अपस्किलिंग या रीस्किलिंग करना बहुत आवश्यक है। रिटायर्ड, अपने को रि-स्किल करके ही प्रासंगिक बना कर रख सकते है।

अपस्किलिंग और रीस्किलिंग दो ऐसे शब्द हैं जो एक साथ चलते हैं। जहाँ अपस्किलिंग में आपके मौजूदा कौशल को बढ़ाया जा सकता है, वहीं रीस्किलिंग में नए कौशल सीखने को कहा जा सकता है। अपनी वर्तमान भूमिका के दायरे को बढ़ाने में अपस्किलिंग व रीस्किलिंग आपको सक्षम बनाने में महत्वपूर्ण योगदान कर सकते हैं।

कोई जरूरी नहीं है कि हमें नौकरी करने के लिए ही अपने आप को अपडेटेड रखना होगा। बहुत से ऐसे पल भी आते हैं जब यह अपडेशन हमें बहुत काम आता है। सभी रिटायर्ड व्यक्ति दोबारा नौकरी नहीं करते हैं या चाह के भी उनको नौकरी नहीं मिलती है। और उसमें एक मुख्य कारण होता है कि हम आज की पद्धति से काम नहीं कर सकते। एक उदाहरण दें तो अकाउंट में हम आज से 40-50 वर्ष पहले जो सीखे थे वह बेसिक्स तो काम आते हैं लेकिन अगर कोई ‘टैली’ नहीं जाने तो वह आज के संदर्भ में किसी भी ऑफिस में काम सुचारू रूप से नहीं कर सकेगा। ऐसे में हम अपने आप को रीस्किलिंग करके ‘टैली’ सीख ले तो नौकरी मिलने में आसानी हो जाएगी। और यह बहुत मुश्किल भी नही हैं।

आज के दिन हमारे हाथों में यह जो स्मार्टफोन है यही कितना कुछ काम कर सकता है। हम तो क्या, बहुत से युवा भी इस मोबाइल को पूर्ण रूप से उपयोग करने में असमर्थ होते है। इसकी ट्रेनिंग बहुत उपयोगी साबित हो सकती है।

50 वर्ष पहले इंजीनियरिंग की पढ़ाई में सारे कैलकुलेशन करने के लिए स्लाइड रूल का उपयोग किया जाता था। आज के बच्चों को अगर पूछ ले तो उन्हें तो यह भी जानकारी नहीं होगी कि यह स्लाइड रूल होता क्या है। आज सारे कैलकुलेशन आप अपने मोबाइल फोन पर आसानी से कर सकते हैं।

एक और विषेश बात है कि आजकल स्पेशलाइजेशन का जमाना आ गया है। हर तरह की तकनीक के लिए अलग-अलग लोग होते हैं। वे उसी विषय की पढ़ाई कर के आए है। पहले जब पढ़ाई होती थी तो सभी विषय की जानकारी कुछ न कुछ बतायी जाती थी। आज आपको डिसाइड करना होगा कि आप किस चीज में स्पेशलाइजेशन करना चाहते हैं।

यह सब नई तकनीक सीखने में या अपने आप को अपडेट करना कोई इतना आसान काम नहीं है। एक तो बहुत कम ऐसी संस्थाएं हैं जो कुछ पैसे लेकर भी यह सब सिखाती हो व्यस्क व्यक्तियो को। दूसरा अगर आप कोशिश करें कि अपने घर में ही युवा वर्ग से यह सीखना चाहे, तो शायद यह नामुमकिन सा हो। हां एक उपाय मैं बता सकता हूं। आज के दिन हर विषय की जानकारी के लिए यूट्यूब पर वीडियो उपलब्ध है। अगर आप मन लगाकर और कुछ समय देकर कुछ भी सीखना चाहे तो शायद आज के दिन यह मुमकिन है।

रिटायर्ड व्यक्ति कई बार यह सोचता है कि मैं बच्चों के लिए कुछ कोचिंग क्लास ले लूं, चाहे वह फ्री ही क्यों ना हो। लेकिन इसके लिए भी अपने आप को आज के संदर्भ में रीस्किल तो करना ही होगा। अपने समय में जो पढ़ाई आप किए थे वह तो इन बच्चों को काम नहीं आनी है। हां, एक बात जरूर है कि आप जब अपने आप को रीस्किल करते हैं तो आपका पूर्व ज्ञान बहुत काम आता है और आप अभी की नई तकनीक को आराम से समझ सकते हैं।

इसी तरह अगर आप कंसल्टेंट्सी का काम करना चाहते है तब भी आपको अपस्किलिंग और रीस्किलिंग की बहुत आवश्यकता होगी। आप अगर किसी स्वयंसेवी संस्था में भी अपना योगदान देना चाहते है तो अपडेटेड होना बहुत लाभदायक होगा।

हम में से कई सॉफ्ट स्किल्स सीखाने में भी एक्सपर्ट होंगे। सॉफ्ट स्किल से मेरा मतलब है ऐसे कोर्स, जैसे टाइम मैनेजमेंट, लैंग्वेज क्लासेस, पब्लिक स्पीकिंग वगैरह। अपने को लगता होगा कि यह सब सिखाने में क्या फर्क आया होगा आज के दिन। लेकिन सोचिए अगर इसमें हम टेक्नोलॉजी का सहयोग ले तो घर बैठे भी यह सब कोर्स जरूरतमंद को करा सकते हैं। थोड़ा बहुत सीखना होगा की ऑनलाइन कोर्स कैसे करवाया जा सकता है। सामने वाले को तो यह भी पता नहीं चलेगा कि पढ़ाने वाले की उम्र क्या है। इससे आप व्यस्त रहेंगे और यह कमाई का भी एक साधन बन जाएगा।

हमारी वेबसाइट है - www.neversayretired.in
फेसबूक ग्रुप - Never Say Retired Forum

Tuesday, September 17, 2024

वरिष्ठ जन को ज्यादा बात करने दें

आजकल तो प्रोफसनल्स भी मिलने लगे हैं जो कि प्रति घंटा कुछ राशि लेकर व्यक्ति से बात करते रहते है। यह सर्विस फोन पर या व्यक्तिगत घर पर भी उपलब्ध करायी जाती है। सुना है कुछ स्वयंसेवी संस्था ऐसी सेवा मुफ्त में उपलब्ध कराने पर विचार कर रही है।

घर पर जब कोई मेहमान आते है तो ज्यादातर देखा जाता है कि उन्हें बहुत देर तक दादा-दादी के पास नहीं बैठने दिया जाता। कोई न कोई बहाना बना कर मेहमान को उनसे दूर ले जाकर अलग से बैठाया जाता है।

इसके कारण बहुत कुछ हो सकते है। कई बार लगता है कि ये बुजुर्ग फिजूल की बात करेंगे जिससे मेहमान बोर हो जाएंगे। कभी तो यह भी डर लगता है कि वो परिवार के विषय में कुछ ऐसी बाते का जिक्र न छेड़ दे जिससे सभी शर्मिंदा हो जाए।

बुजुर्ग की दृष्टि से विचार करे तो वो भी तो अपनी बात बोलने का अवसर खोना नहीं चाहते। इस कारण जब मौका मिले किसी से बात करना उनको बहुत अच्छा लगता है।

एक सर्वेक्षण के अनुसार बुजुर्ग लोग को, एक उम्र आने के बाद अगर सबसे ज्यादा कुछ आवश्यकता होती है तो वो है कोई उनसे बात करने वाला मिल जाए। किसी भी ओल्ड एज होम पर एक बार जाए। वहां रह रहे पुरुष या महिला से थोड़ी देर बात किजिए और उस समय उनके चेहरे पर आप जो भाव देखेंगे उससे आप भी भावुक हो जाएंगे। वो आपको जाने नही देंगे और चाहेंगे की आप उनसे बात करते ही रहे।

आजकल तो प्रोफसनल्स भी मिलने लगे हैं जो कि प्रति घंटा कुछ राशि लेकर व्यक्ति से बात करते रहते है। यह सर्विस फोन पर या व्यक्तिगत घर पर भी उपलब्ध करायी जाती है। सुना है कुछ स्वयंसेवी संस्था ऐसी सेवा मुफ्त में उपलब्ध कराने पर विचार कर रही है।

आजकल वाट्सएप पर यह मैसेज वायरल हो रहा है कि डाक्टर भी यही सलाह दे रहे है कि बुजुर्ग व्यक्तियों को ज्यादा बात करनी चाहिए। यह सोच इसके बिलकुल विपरीत है जब घर पर बड़ो को ज्यादा बोलने पर टोका जाता था।

डाक्टरो का ऐसा मानना है कि जब व्यक्ति बोलता है तो ब्रेन की एक्टिविटि बढ़ जाती हैं। इसका कारण विचार और भाषा का आपस में सामन्जस्य हो कर व्यक्त करना है। मानना है कि बात करने से याददाश्त बढ़ती है, और जो बात कम करते है उनकी याददाश्त कम होती हैं। ऐसा भी कहा जाता है कि ज्यादा बात करके एलजाइमर्स को भी दूर रख सकते है। यह भी तथ्य है कि जब हम बात करते है तो चेहरे के मसल्स की, थ्रोट की, फेफड़ों की अच्छी एक्सरसाइज होती है।

सभी मानते है कि बात करने से स्ट्रेस कम होता है। बहुत बार सुना है कि ‘बोल कर अपनी भड़ास निकाल दो’, या ‘पेट में बात मत रखो’, वगैरह. सबका तात्पर्य तो यही है कि बात करते रहे।

सभी से, खासकर कम उम्र के पाठक, आज ही ठान ले कि वो अपने पुराने मित्र से बराबर संपर्क रखेंगे। आपके पास तो अब वाट्सएप भी है। ग्रुप बनाए, पुरानी फोटोज का आदान-प्रदान किजीए, मैसेज भेजे और जब भी मौका मिले, मिलते रहे। अगर स्वास्थ्य साथ दे तो कुछ दिनो की आउटिंग करे। वहां खूब बात करने का अवसर मिलेगा। यह निश्चित है कि हमउम्र के पुराने दोस्तो के पास ही समय होगा और सब मन से एक-दूसरे का सुख-दुख बखूबी बांटेंगे। पुरानी बात जब करते है उस समय उक्त घटना का दृष्य आंखों के सामने आ जाता है।

एक बात का विशेष ध्यान रखना है कि हम ज्यादा बोले जरूर पर वो ज्ञानवर्धक हो। ऐसी बात हो कि सुनने वाले को लगे हम कोरी बकवास नहीं कर रहे है। उन्हें लगना चाहिए कि हमको विषय की काफी जानकारी है। एक बहुत अच्छा कोटेशन पढ़ा था जिसमे कहा गया कि ऐसा बोले कि सुनने वाला उत्सुक रहे आपको सुनने में। और अंत में, आप एक अच्छे श्रोता भी बने। औरो को भी बोलने का अवसर दे।

Friday, September 13, 2024

बुजुर्ग के लिए मित्र-मंडली बहुत आवश्यक

किसी को यह नहीं पता कि उनका अंत कब होने वाला है पर यह निश्चित है कि इस घड़ी को दूर ले जाने में हमारे दोस्त बहुत सहयोग करते है।

एक बहुत ही चर्चित पुस्तक है, द टाॅप फाइव रिग्रेट्स ऑफ़ द डाईंग। इसे सरल हिन्दी में कहे तो – मौत के समय लोगो को किन पांच बातों का अधिकतम अफसोस होता है।

ऑस्ट्रेलिया की ब्रॉनी वेयर द्वारा लिखित इस बेस्ट सेलर को प्रकाशन के पहले ही वर्ष में दुनिया भर के करीब 30 लाख लोगों ने पढ़ा। ब्राॅनी ने कुछ बुजुर्गों से जो अपने अंतिम वर्षों में अस्पताल के एक विभाग, पैलियाटिव केयर, जहां कैंसर जैसी लाइलाज बीमारियों से ग्रस्त मरीजों की पीड़ा को कम कर उन्हें राहत पहुंचाने पर ध्यान दिया जाता है, में भर्ती थे, उनसे बातचीत के आधार पर लिखी। कई वर्ष तक लेखिका ने इस अस्पताल में काम किया। ये पांच रिग्रेट्स लेखिका के अनुसार है….

काश, मैंने अपनी जिंदगी को अपनी तरह से जिया होता, न कि उस तरह जैसा दूसरों ने मुझसे उम्मीद की!

काश, मैंने इतनी ज्यादा मेहनत नहीं की होती!

काश, मैंने अपनी भावनाएं जताने की हिम्मत की होती!

काश, मैंने अपने दोस्तों से संपर्क नहीं खत्म किया होता!

काश, मैंने अपने को खुश रखा होता!

इस लेख में हम केवल चार नम्बर पर अपना ध्यान केंद्रित करते है – काश, मैने अपने दोस्तों से संपर्क नहीं खत्म किया होता।

हमे यह सीख लेनी है कि हम अपने अंतिम वर्षो में इस मित्र-मंडली का न होने का अफसोस नहीं करेंगे। हालांकि किसी को यह नहीं पता कि उनका अंत कब होने वाला है पर यह निश्चित है कि इस घड़ी को दूर ले जाने में हमारे दोस्त बहुत सहयोग करते है। पांच मे से उस चौथे अफसोस की लाइन से हमें पहला शब्द ‘काश’ को डिलिट कर देना है। और आज, अभी से अपने दोस्तो से संपर्क बढ़ाना है।

हमारी भी एक मित्र-मंडली है। प्रत्येक शनिवार शाम को एक होटल में बैठकर गपियाते है। कोई जरूरी नहीं होता कि सभी प्रत्येक शनिवार को सम्मिलित हो, पर एक नियम बना रखा है कि आधे सदस्य जरूर उपस्थित हो वर्ना मिलने का कार्यक्रम कौन्सिल। वर्षो से हम मिल रहे है। अब तो कब शनिवार आये इसका बेसब्री से इंतजार रहता है।

एक वाक्या बताता हूं। हम परिवार के साथ दोपहर का भोजन लेने रेस्टोरेंट गए। बैठे थे तो देखा कोने में एक बड़ी टेबल पर दो बुजुर्ग महिला बैठी थी। जल्द ही उनकी टेबल पर और साथी जुड़ते गए और कूल नो महिलाएं हो गई। गपशप होती रही, खूब हंसी-मजाक चल रहा था। उनकी खुशी देखकर हम भी आनंदित हो रहे थे। वेटर से बुलाकर जिज्ञासावश पूछा की क्या उनमे से किसी बुजुर्ग का जन्मदिवस है। वेटर ने बहुत दिलचस्प बात बताई कि ये सब रिटायर्ड टीचर्स है और प्रत्येक सप्ताह लंच पर आकर कोई दो-तीन घंटे यहां बिताती है।


इसी तरह बहुत एल्यूमनाई ग्रुप्स, स्कूल व कॉलेज के बेचमेट्स के, अलग अलग शहरो में बने हुए है। वाट्सएप पर तो है ही ज्यादातर, कुछ फिजीकली भी प्रत्येक माह मिलते है। जब पुराने दोस्त मिलते है तो साथ बिताये दिनों की बात का आनंद कुछ और ही होता है।