We have all been criticising about what is not being done by the government. However, we rarely give our own solutions to any problem that we see. May be the suggestion is ridiculous - but still if we look things in a positive way may be we can suggest solutions which some one can like and decide to implement. I know this is very wishful thinking but this is surely better than just criticising.

Monday, June 09, 2025

तब हम दोस्तों को आवाज देकर बुलाते थे

मैंने कोई एक वर्ष पहले इसी विषय पर एक लेख लिखा था, जिसका शीर्षक था बुजुर्ग के लिए मित्र मंडली बहुत आवश्यक। आज पुनः, जब व्हाट्सएप पर एक मैसेज आया तो मन हुआ कि इस विषय पर तो और भी बहुत कुछ लिखा जा सकता है। यह मैसेज तो दिल को ही छू गया। मैसेज में लिखा था “फिर से लौटना चाहता हूं उसे दौर में, जहां दोस्त फोन से नहीं आवाज देकर बुलाते थे।”

इस मैसेज को बनाने वाले ने कितना सही लिखा है। याद कीजिए वों दिन जब हम छोटे थे, मोबाइल फोन नहीं था और लैंडलाइन फोन की भी बहुत कमी ही थी। सबके घरों में नहीं होता था और जिनके घरो में होता भी था तो एक ही फोन होता था। उस समय भी हम जब रोज सुबह घूमने जाते थे तो अपने घर से निकले, पास में ही दोस्त के घर गए और बाहर से ही पुकारते थे की आओ समय हो गया है चलने का। फिर अगले दोस्त के पास और फिर अगले दोस्त के पास यही क्रम होता था। सबको पुकार कर साथ लेकर अपने निश्चित स्थान की ओर प्रस्थान कर देते थे।

उन दिनों, दोपहर की धूप में भी दोस्त की पुकार दिल को ठंडी छांव सी लगती थी। जब गली में “अरे ओ… ” की आवाज़ सुनकर हम दौड़कर बाहर आ जाया करते थे — बिना ये सोचे कि क्या पहना है, बाल ठीक हैं या नहीं। क्योंकि तब मिलने की खुशी होती थी तो उसमें दिखावा कहीं नहीं होता था। झगड़े भी होते और आपसी बातचीत में हल्की फुल्की बहस भी होती थी, पर अगले ही पल सुलह हो जाती थी। ‘लेट्स प्ले’ का कोई नोटिफिकेशन नहीं आता था, बस दोस्त की हंसी और गली में गूंजती पुकार ही सब कुछ थी। खेलने के लिए तय समय नहीं होता था, बस मां की एक डांट बताती थी कि बहुत हो गया, अब घर आ जाओ।

इसके विपरीत आज समय कितना परिवर्तित हो रहा है। ज्यादातर लोग मोबाइल पर ही यह काम निपटा लेते हैं। अब रिश्ते ऑनलाइन हैं, चैट्स पर टाइप हो रहे हैं, पर आंखों में वो चमक, वो अपनापन कहीं खो गया है। अब पहले कॉल आता है, फिर मिलने का वादा। अगर अच्छी मित्रता है तो सप्ताह में दो-चार दिन फोन कर लिए तो सोचते हैं बहुत बड़ी उपलब्धि है हमारी। कुछ ग्रुप ऐसे जरूर हैं जो की सप्ताह में या रोज सुबह भी मिलते हैं। लेकिन ऐसा अनुपात में अगर देखें तो बहुत कम है। वो बरसात में भीगते हुए खेलने का मज़ा, वो बिना कारण छत पर देर तक बातें करना, अब सब कुछ फोटोज़ और वीडियोज तक सिमट गया है। अब जो पास हैं, वो दूर लगते हैं। और जो दूर हैं, बस स्क्रीन पर दिखते हैं। दिलों की नजदीकियाँ, टेक्स्ट मैसेज की लाइनों में कहीं खो सी गई हैं।

आज हमारी जीवन शैली इतनी बदल गई है की पुरानी बातें याद करके दिल भर जाता है। विकास, शहरीकरण और दिखावा, यह सब इतना बढ़ गया है कि वह सपना फिर से जीवित होने के कोई आसार हो ही नहीं सकते। वैसे, कुछ भी बदलाव आ गया हो लेकिन यह निश्चित है कि हमारे दोस्तों से संपर्क बनाए रखने का महत्व कभी काम नहीं होगा। कई बार तो ऐसा लगता है कि शायद परिवार से भी ज्यादा एक उम्र आने के बाद हमें दोस्तों से ही ज्यादा बात करने की इच्छा रहती है।

इसके बहुत से कारण भी हो सकते हैं। परिवार के साथ क्योंकि हम हर पल बिताते हैं तो बहुत सी बातें व्यक्तिगत रूप में अलग हो जाती है। दोस्त क्योंकि हमसे अलग रहते हैं तो उनसे मिलकर पुरानी यादों की बातें करना बहुत अच्छा लगता है। एक विशेष बात यह भी रहती है कि इस उम्र में आकर हमारे बहुत से मित्र तो अब हमारे बीच है ही नहीं। तो फिर जो बचे हुए हैं उन्हीं से तो हम पुरानी यादें ताजा कर सकते हैं। हालांकि बढ़ती उम्र में याददाश्त भी कुछ कम हो जाती है, डिमेंशिया का असर हो जाता है, फिर भी जितनी भी बातें याद हैं उसी में बहुत आनंद आता है।

उस दौर में हम कभी लौट नहीं सकते जहां दोस्ती में ना टाइम टेबल था, ना प्लानिंग। हां. हर मुलाकात में अपनापन था, हर हंसी में सच्चाई थी। वो दौर सिर्फ बीता हुआ कल नहीं था, बल्कि एक जादू था, जो दिलों को जोड़ता था — बिना नेटवर्क, बिना तकनीक के।

Sunday, June 01, 2025

जिंदगी जो शेष है उसे विशेष बनाए

हमपर भगवान की बहुत कृपा रही हैं कि हम इस उम्र तक पहुंच पाये हैं। अड़चने भी आई होगी इस सफर को यहां तक पार करने में। पर चारो तरफ नजर दौड़ाये तो देखेंगे कि हमारे साथ कितने ही लोग थे जिनके साथ हमने कभी खुशी कभी गम के पलों को बहुत ही आनन्द से व्यतीत किया था, वो अब साथ नहीं हैं। हमें तो अब भगवान से यही प्रार्थना करनी हैं कि जिंदगी जो शेष बची है, उसे विशेष बनाने में हमारे ऊपर अपनी कृपा बनाये रखें। कहने का तात्पर्य यह हैं कि हम अपने जीवन को सार्थक बनाये, खुशियों को बढ़ाये और अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के बारे में विचार करें। इसे विशेष बनाने के लिए हमको अपनी जीवनशैली को संतुलित करना होगा, लक्ष्य निर्धारित करना होगा, नए आयाम सीखना और विकसित करना होगा, समाज सेवा में अपने आप को समर्पित करना होगा, प्रकृति के साथ जुड़ना होगा और अपने रिश्तों की गहराई को समझते हुयें इसको महत्व देना होगा। खुश, स्वस्थ और संतुष्ट रहने के लिए हमें सचेत प्रयास करना ही हैं।

रिटायरमेंट जीवन का अंत नहीं है – यह एक सुंदर, खुला राजमार्ग है जिसमें कम ट्रैफ़िक लाइटें और अधिक सुंदर दृश्य हैं। यह हमारे लिए पूरी तरह से जीने, लंबे समय से रखे गए सपनों का पीछा करने और अपने जीवन की यात्रा के पुरस्कारों का आनंद लेने का समय है। विश्वास करे की ईश्वर की दी हुई धरोहर जीवन एक उपहार है, इसका मूल्यांकन करें और इसका अधिकतम लाभ उठाएं। अपना समय जो बचा हुआ है वह बहुत कीमती है, इसका सदुपयोग करें।
कुछ बिन्दुओं पर विषेश ध्यान देना आवश्यक है –

  1. अपने स्वास्थ्य और कल्याण को प्राथमिकता दें
  2. नए लक्ष्य निर्धारित करें और आजीवन सीखने को अपनाएं
  3. अपनी जीवनशैली को संतुलित करें
  4. सेवा के ज़रिए वापस दें
  5. प्रकृति से फिर से जुड़ें
  6. अपने रिश्तों को संजोएं

अपने स्वास्थ्य और कल्याण को प्राथमिकता दें

अच्छा स्वास्थ्य एक पूर्ण जीवन की नींव है। नियमित रूप से चलना, अच्छा खाना, हाइड्रेटेड रहना और अच्छी नींद लेना जैसी सरल आदतें कल्याणकारी जीवन जीने में बहुत सहायक होती हैं। नियमित जांच करे कि आपके आस-पास जो वातावरण बना हुआ है उसमें कहां कुछ ठीक नहीं हैं और उसे सुधारने का भरसक प्रयास करे। डायरी लिखने का भी अभ्यास करना चाहिए, जिसमें आप अपने विचारों, भावनाओं, अनुभवों और प्रतिबिंबो को भावजनित रूप से लिखते है। ऐसा मानना है कि डायरी लिखने से तनाव, चिंता और अवसाद को कम करने में, अपने आप को अधिक जानने में और अपनी प्राथमिकता को समझने में सहायक होती है। इन प्रयासो से मानसिक स्वास्थ्य संबंधी प्रथाएं हमको अधिक ऊर्जावान और भावनात्मक रूप से स्थिर महसूस करने में मदद कर सकती हैं।

नए लक्ष्य निर्धारित करें और आजीवन सीखने को अपनाएं

कौन कहता है कि लक्ष्य-निर्धारण केवल युवाओं के लिए है? चाहे वह संगीत वाद्ययंत्र बजाना सीखना हो, संस्मरण लिखना हो, बगीचा लगाना हो या फिर नई जगहों की यात्रा करना हो – आपके लक्ष्य बड़े या छोटे हो सकते हैं। कुछ नया सीखने से आपका दिमाग तेज रहता है और आपकी आत्मा युवा रहती है।

अपनी जीवनशैली को संतुलित करें

सेवानिवृत्ति आपको अपनी पसंद की जीवनशैली बनाने की आज़ादी देती है। आराम को गतिविधि के साथ मिलाएं। ऐसी दिनचर्या बनाएं जो आराम दे, लेकिन सहजता के लिए जगह छोड़ें। अकेले समय को सामाजिक पलों के साथ संतुलित करें। अपने शरीर और दिल की सुनें – वे आपको बताएंगे कि आपको क्या चाहिए।

सेवा के ज़रिए वापस दें

उद्देश्य खोजने के सबसे संतोषजनक तरीकों में से एक दूसरों की मदद करना है। चाहे वह स्थानीय आश्रय में स्वयंसेवा करना हो, युवाओं को सलाह देना हो, या बस ज़रूरतमंद पड़ोसी की मदद करना हो, आपकी बुद्धि और समय मूल्यवान उपहार हैं। दूसरों की मदद करना आपके उद्देश्य और अपनेपन की भावना को बढ़ाता है।

प्रकृति से फिर से जुड़ें

प्रकृति में शांत करने वाला, उपचारात्मक प्रभाव होता है। बाहर समय बिताएं—पार्क में टहलने जाएं, अपने बगीचे की देखभाल करें, या अपने बरामदे पर एक कप चाय के साथ बैठें। प्रकृति से जुड़ने से आपकी ऊर्जा का नवीनीकरण होता है और आपको अपने आस-पास की सुंदरता की याद आती है।

अपने रिश्तों को संजोएं

रिश्ते सार्थक जीवन की धड़कन होते हैं। पुराने दोस्तों से फिर से जुड़ें, नए दोस्त बनाएं और परिवार के साथ बंधन को मज़बूत करें, और उन्हें सम्मान दें। हंसी, यादें और सरल पल साझा करने से अपार खुशी और सुकून मिलता है। ध्यान रहे इस उम्र में आकर बहुत से बचपन के दोस्तों व परिवार वालों को जिन्हें आप खो चुके हैं, उनके परिवार वालों से भी प्यार भरा सम्पर्क बनाये रखना हैं।

सारभूत विचार

जीवन के ये सुनहरे वर्ष सबसे समृद्ध और सबसे सार्थक हो सकते हैं। आनंद चुनें, अपने जुनून का पीछा करें और ऐसा जीवन बनाएं जो दर्शाता हो कि आप वास्तव में कौन हैं। आपका बाकी जीवन केवल लंबे समय तक जीने के विषय में नहीं है – यह बेहतर और स्वास्थ्यवर्धक जीवन जीने के विषय में है।

जीवन में आनंद हम वरिष्ठ ज्यादा लेते थे

हम बुजुर्ग अपनी जिंदगी में जितनी मस्ती करते हुए इस आयु पर आएं हैं और जब यह विचार करते हैं कि क्या हमारे बेटे-बेटियां, आज के युवा, भी उतना ही आनंद अपने जीवन का लें रहें हैं तो अक्सर ना ही इस प्रश्न का उत्तर मिलता है। आज सभी युवा वर्ग के चेहरे पर एक अजीब सा तनाव नजर आता है, चाहे उन्हें सड़कों पर गाड़ी में या टू-विलर चलाते हुए देख ले या उनको घरों और रेस्टोरेंट तक में देख ले।

अपने साथियों का दबाव, जिसे सहज से हम पियर प्रेशर कहते हैं, आज के युवा पर बहुत ज्यादा प्रभाव डाल रहा है। अगर उसने इतनी बड़ी गाड़ी खरीदी है या विदेश घूमने जा रहा है या ब्रांडेड कपड़े खरीद रहा है तो हमें भी वही सब करना या उससे भी उत्तम ही करना है, चाहे हम उसे आसानी से अफोर्ड कर सकते हैं या नहीं। इस तरह की मनोदशा में हम गलत डिसीजंस लेते हैं या अपने भविष्य की आर्थिक स्थिति को बिगड़ने में सहयोग करते हैं। यह केवल युवाओं में ही नहीं कुछ बड़ी उम्र के लोगों में भी काफी देखने को मिल जाती है। बुजुर्ग व्यक्तियों ने अपने जमाने में यह सब कम देखा और इस कारण घरों में बच्चों से मन मुटाव भी उत्पन्न हो जाता है।

अतीत में, वरिष्ठों का जीवन सरल रहता था, ज्यादातर। वे बुनियादी ज़रूरतों को पूरा करने पर ज़्यादा ध्यान देते थे, और छोटे-छोटे, रोज़मर्रा के पलों में आनंद लेते थे। आज का युवा EMI (समान मासिक किस्तें), चाहे वो होम लोन, कार लोन, मोबाईल फोन, अन्य विभिन्न गैजेट्स जैसे के लिए हो, चुकाने में ही लगा रहता हैं। इस ई.एम.आई. की किस्त भरने के लिए फिर नए लोन लेना आम बात हो गई हैं। सोशल मीडिया और धन दिखाने की इच्छा से प्रेरित दिखावे को बनाए रखने का सामाजिक दबाव हमारे मन और मस्तिष्क पर खराब प्रभाव डालता है और अक्सर स्वास्थ्य को भी इसी से हानी पहुंचती है और हमारी भावनात्मक सोच भी डगमगा जाती है।

वरिष्ठ जन के मध्य साथियों का दबाव ज़्यादातर सामाजिक मानदंडों और परंपराओं के अनुरूप रहता था, जो भौतिक सफलता के बारे में कम था। आज के युवा अक्सर दिखावे में फंस जाते हैं, जबकि वरिष्ठ अधिक प्रामाणिक रूप से और अपने स्वयं के मूल्यों के अनुरूप रहते हैं। वरिष्ठ लोगों के जीवन की गति थोड़ी धीमी चलती थी और धैर्य स्वाभाविक होता था। ये लोग कड़ी मेहनत करते थे। आज का युवा इसके विपरीत तत्काल संतुष्टि को ही अपना आदर्श बना रखा है – सब कुछ तेज़ गति से चल रहा है, फ़ास्ट फ़ूड से लेकर तेज़ जानकारी तक, सोशल मीडिया पर “लाइक” तक।अधीरता की ओर इस बदलाव ने युवा पीढ़ी के लिए संतुष्टि में देरी करना या कठिन समय में दृढ़ रहना कठिन बना दिया है।

एक और विषय पर अगर बात करे तो युवा पीढ़ी में तलाक की उच्च दर बताती है कि आज वैवाहिक जीवन की लंबी उम्र को बनाए रखना कठिन है। वरिष्ठजन पारंपरिक मूल्यों और कम विकर्षणों के कारण अक्सर मजबूत वैवाहिक बंधन में रहते हैं। हालांकि शादी में चुनौतियां रहती थीं, लेकिन जोड़े अक्सर जीवन भर साथ रहते थे। आज के युवाओं में अपने करियर की आकांक्षाओं, वित्तीय बोझ और सोशल मीडिया के आकर्षण को संतुलित करने के दबाव ने आधुनिक रिश्तों में दरार पैदा होती जा रही है। दोहरी आय वाले परिवारों, जहां पति-पत्नी दोनों अपने अपने काम में लगे रहते हैं, उनको अतिरिक्त तनाव का सामना करना पड़ता है।

काम का दबाव कभी न खत्म होने वाली परेशानी उत्पन्न कर देता है। वरिष्ठजन एक बार जब वे सेवानिवृत्त हो जाते हैं, तो काम अक्सर उनके पीछे छूट जाता है। अवकाश और सेवानिवृत्ति को आराम करने और जीवन का आनंद लेने के समय के रूप में देखा जाता था। आज के युवाओ की जिन्दगी में, खासकर कोविड के बाद घर से काम (WFH) के आगमन ने सीमाओं को धुंधला कर दिया है। काम 24/7 तक बढ़ सकता है, जिससे थकान और व्यक्तिगत समय की कमी हो जाती है। काम से लगातार जुड़े रहना – ईमेल, कॉल, मैसेज – इससे अलग होना और आराम करना मुश्किल हो जाता है। स्वाभाविक पारिवारिक जीवन पर इसका दुस्प्रभाव होता है। काम की प्रतिबद्धताओं के कारण परिवार के साथ गुणवत्तापूर्ण समय की कमी आ जाती है। यह अक्सर देखने को मिलता है कि परिवार के ज़्यादा सदस्य काम करते हैं लेकिन साथ में कम समय बिताते हैं। साथ रहकर भी अकेलापन महसूस करते हैं।

पहले ज्यादातर बड़े परिवार होते थे और भाई-बहनों और विस्तारित परिवार के साथ मज़बूत संबंध होते थे। मिलना-जुलना, और साझा पल बिताना आम बात थी। आज परिवार अक्सर बिखरे हुए होते हैं और रिश्ते ज़्यादा व्यक्तिगत होते हैं। पारिवारिक पुनर्मिलन बहुत कम हो गया है, ज़्यादा अलग-थलग अनुभव और व्यापक सहायता प्रणाली के साथ कम बातचीत होती हैं। बुजुर्ग व्यक्ति खुशकिस्मत हैं जिन्हे ऐसी जीवनशेली व तनाव भरी जिन्दगी को ज्यादा नहीं देखनी पड़ी। हम जिस तरह का आनंद जीवन में चाहते है उसकी कोई सीमा नहीं है। क्रियाशील और कार्यशील होने के साथ साथ युवाओं को चिन्तनशील भी होना होगा।