We have all been criticising about what is not being done by the government. However, we rarely give our own solutions to any problem that we see. May be the suggestion is ridiculous - but still if we look things in a positive way may be we can suggest solutions which some one can like and decide to implement. I know this is very wishful thinking but this is surely better than just criticising.

Wednesday, February 12, 2025

हम बुजुर्गो के देखते देखते जीवनशैली बहुत बदल गई

थोड़े दिनो पहले एक छोटी सी वीडियो क्लिप मिली जिसमें दर्शाया गया कि हम सब जो अपनी जिंदगी का समय व्यतीत करते है, वो कैसे करते है और उसमें 1930 से लेकर 2024 तक में क्या बदलाव आया है। 1930 में जन्मे तो बिरले ही होंगे जो इस लेख को पढ़ रहे होंगे। बाते तो बहुत करते है कि हमारे जमाने में ऐसा होता था पर आज कुछ ओर ही होता है।

इस एक मिनट की वीडियो को किसने बनाया, इसकी तो जानकारी नहीं पर बनाने वाले को बहुत बहुत साधुवाद। इसके लिए डाटा का संकलन करना कोई आसान नहीं रहा होगा। इसमे दर्शाया गया डाटा सभी समाजिक श्रेणी या सभी देश के वासियो के लिए समान रुप से लागू न हो, पर औसतन यह डाटा सही लगता है। यह वीडियो इतना रुचिकर व ज्ञानवर्धक लगा कि मैने इसे अपने फेसबुक ग्रुप ‘नेवर से रिटायर्ड फोरम’ पर भी पोस्ट किया।

संकलनकर्ता ने जीवनशैली के 9 पैरामिटर्स का डाटा दर्शाया है। ये हैं….

  1. परिवार
  2. स्कूल
  3. दोस्त
  4. पड़ोसी
  5. चर्च
  6. बार/रेस्टोरेंट
  7. कॉलेज
  8. सहकर्मी
  9. अन्य

इस लेख में सभी पेरामिटर्स या यू कहें मापदंड पर हम चर्चा नहीं करेंगे। जिन तीन को चिन्हित किया गया है, वो है – परिवार, पड़ोसी व दोस्त। इस लेख में इन तीन पेरामिटर्स पर विशेष बात करेंगे।

सर्वप्रथम बात करते है परिवार के विषय में। वीडियो में दिखाया गया है कि 1930 में लोग अपने समय का 22.7 प्रतिशत समय परिवार के साथ व्यतीत करते थे। धीरे धीरे परिवार के साथ हम समय कम लगाने लगे। डाटा के अनुसार 1960 में यह समय घटकर करीब 19 प्रतिशत रह गया। सन 2000 में यह और घटकर 11.5 प्रतिशत रह गया और सन 2024 में तो इस सर्वे के अनुसार, हम केवल 4.5 प्रतिशत समय परिवार के साथ बिताते हैं। हम अपने ही घर में या अन्य नजदीकी परिवार या मित्रो के घर की ओर देखे तो शायद कुछ ऐसी ही स्थिती देखने को मिलेगी।

अब चले दूसरे पेरामिटर की तरफ – पड़ोसी। जी हां, हम अपने पड़ोसी से कितना संवाद करते है या उनके साथ कितना समय व्यतीत करते है। दर्शाए गए डाटा पर नजर डालने के पहले आज की जमीनी परिस्थितियों की ओर देखे। हम जब युवा थे तो शायद मोहल्ले के हर व्यक्ति को, उसके परिवार से, उसके व्यवसाय से परिचित रहते थे। सुख-दुःख में बराबर हम एक दूसरे के काम आते थे। पर आज तो सच्चाई यह है कि मल्टी-स्टोरी एपार्टमेंट में सामने वाले फ्लैट में कोन रहता है उसकी जानकारी लेने में भी झिझकते है। जहां पड़ोसी के साथ पहले हम काफी समय व्यतीत करथे थे, आज नहीं के बराबर करते है। सभी ऐसा ही व्यवहार करते होंगे यह कहना सही नहीं होगा, पर ज्यादातर ऐसा होता है, इसे भी हमें मानना होगा।

इस एकत्रित डाटा में क्या दर्शाया गया है उस पर ध्यान देते है। 1930 में 11.5 प्रतिशत हम अपना समय पड़ोसी के साथ बिताते थे, जो 1960 में घटकर 7.7 प्रतिशत हो गया। सन 2000 में यह और नीचे आकर 6.6 प्रतिशत हो गया और अगले चौबीस वर्ष में, यानि 2024 में तो इस डाटा के अनुसार, जबरदस्त गिरावट आई और इस वर्ष केवल 1.24 प्रतिशत पड़ोसियों के साथ हमारा समय बीतने लगा। यह बहुत हद तक आज की सही स्थिती हमारे सामने रख रहा है।

अब निश्चित की हुई अंतिम पेरामिटर, दोस्तो के साथ कितना समय व्यतीत करते है, के विषय में चर्चा करते है। यहां भी वही ट्रेंड है। 1930 में औसतन 18.6 समय दोस्त मंडली के लिये था और यह आने वाले वर्षो में बढ़ते गया। 1960 में 24 प्रतिशत समय और सन् 2000 में यह बढ़कर 27 प्रतिशत हो गया। सन् 2015 में इसने पलटी खायी और सन् 2024 तक आते आते केवल 14 प्रतिशत समय आमजन अपने दोस्तो को दे रहा है। हो सकता है इसमें और गिरावट आगे आए।

सभी पेरामिटर्स पर अगर पहले के एवज में हम कम समय लगा रहे है तो यह बचा हुआ समय कहां लग रहा हैं? और किसी को इसपर आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि आज आमजन औसतन ऑनलाइन पर साठ प्रतिशत से ज्यादा समय लगा रहा है। खास बात यह है कि इस विधि पर समय लगना 1982 में शुरु हुआ। शुरुआती वर्षो में इस पर लोग ज्यादा समय नहीं लगा रहे थे। इस डाटा के अनुसार सन् 2000 तक 4.2 प्रतिशत समय ही इस पर लगाया जा रहा था। इसके बाद इसने स्पीड पकड़ी और 2010 में 19.8 प्रतिशत समय लोग ऑनलाइन पर लगाने लगे। सन् 2015 में 33.7 प्रतिशत समय और सन् 2020 में 56 प्रतिशत समय इस पर लगने लगा। इसके बाद सन् 2024 में 60.7 प्रतिशत समय आमजन ऑनलाइन एक्टिविटी पर लगाने लगा। यह चारो तरफ अब दिखाई भी दे रहा है।

हम वरिष्ठ जन इतना परिवर्तन अपने जीवनकाल में देख रहे हैं। आने वाली पीढ़ी में क्या बदलाव आयेंगे यह तो कहना मुश्किल है पर यह निश्चित है कि बदलाव बहुत जल्द जल्द होंगे। यह एक विचारणीय और चिन्तनीय विषय है।

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