We have all been criticising about what is not being done by the government. However, we rarely give our own solutions to any problem that we see. May be the suggestion is ridiculous - but still if we look things in a positive way may be we can suggest solutions which some one can like and decide to implement. I know this is very wishful thinking but this is surely better than just criticising.

Friday, February 28, 2025

वरिष्ठजन: सेन्चुरी मारने के लिए डिसिप्लिन में रहे

सभी की प्रबल इच्छा रहती है कि वो शतकवीर बने, सौ वर्ष जिवित रहें। बढ़ी उम्र में भी भगवान को प्यारा कोई नहीं होना चाहता, भले ही उनकी लाइफ स्टाइल कुछ भी रही हो। सेंचुरी के पास बहुत से बैट्समैन पहुंचते हैं लेकिन कई बार देखा गया है की कुछ ही रन से वह वहां पहुंच नहीं पाते है।इसी तरह 90 के ऊपर उम्र वाले काफी लोग आपको मिल ही जाएंगे।

यह निश्चित है कि अगर आपकी लाइफस्टाइल, आपने अपनी जवानी में अपने खान-पान पर ध्यान दिया है, नियमित व्यायाम करते रहे हो तो सेन्चुरी के नजदीक पहुंचना कठीन नहीं होगा। मैं तो यह कहूंगा कि रिटायरमेंट के बाद भी सही रहे तो आप भी इस मुकाम तक पहुंच सकेंगे, इसमें कोई सन्देह नहीं है। अपनी अगर उम्र काफी हो चुकी है तब तो बहुत कुछ वापस नहीं लौटा सकते लेकिन अगर रिटायर होते ही आप अपनी लाइफ स्टाइल को सुधारने में लगा दे, तो अंतिम क्षण तक आप स्वस्थ और खुश रहेंगे।

जब काम करने का समय था आपने खूब काम किया और उस समय शायद आप अपने स्वास्थ्य के प्रति उतना ध्यान नहीं दे सके थे, लेकिन अब, जब आप रिटायर हो गए हैं तो इस और आपको पूरा ध्यान केन्द्रित करना ही है। आपके आसपास जो बड़े उम्र के बुजुर्ग हैं, उनके संपर्क में रहे और उनसे उनकी इस उम्र तक पहुंचने का राज पूछे।यह भी देखने में आया है कि पहाड़ो में रहने वाले व्यक्ति ज्यादातर अच्छी उम्र पाते हैं। उनका रहन-सहन, तनाव या स्ट्रेस से अपनेआप को दूर रखना व प्रदूषण मुक्त हवा ही मुख्य कारण हो सकता है। इसमे आजकल की मेडिकल सुविधाए भी काम आती है पर है काफी खर्चीली।

कोई करेंट डाटा तो उपलब्ध नहीं हैं, पर भारत में पिछली जो जनगणना 2011 में हुई थी उसके अनुसार 6,05,778 व्यक्ति सौ वर्ष से अधिक के है हमारे यहां। इस डाटा के अनुसार इनमें से 75 प्रतिशत से ज्यादा शतकवीर गांवो से है। एक बात का विषेश ध्यान रखना होगा कि इनमें से बहुतो को तो अपने जन्म वर्ष की जानकारी भी नहीं होगी। उधर जापान के बुजुर्ग लोगो की बहुत सी वीडियो आजकल वाट्सएप पर मिल जाती है, जिसमें दिखलाया गया है कि इस बढ़ी आयु में भी वे कितनी एक्टिविटि करते है, कितने सजग और फुर्तीले रहते है।एक जानकारी के अनुसार, लंबी आयु के लिए कुछ सुझाव इस प्रकार है:

  1. कम वसा वाले प्रोटिन के पदार्थ का सेवन करे।
  2. फल और सब्जी खूब ले।
  3. निंद्रा अच्छी ले।
  4. प्रदुषण मुक्त वातावरण में रहें।
  5. दोस्तों के साथ समय व्यतित करे।
  6. पैदल खूब चले।
  7. अपने आप को एक्टिव रखे।

मुझे पिछले सप्ताह ही एक 96 वर्ष की आयु वाले वरिष्ठ व्यक्तित्व से मिलने का सौभाग्य मिला। मैंने इतनी उम्र वाले किसी भी व्यक्ति से पहले कभी बात ही नहीं की है। मैं बात कर रहा हूं भिलवाडा ग्रुप के प्रणेता श्री लक्ष्मी नारायण जी झुनझुनवाला की। भगवान की कृपा, इनकी प्रबल इच्छाशक्ति, डिसिप्लिन्ड लाइफ स्टाइल ही रही है की ये आज भी मानसिक और फिजिकली स्वस्थ है।

आज भी वह बात करते हैं स्पेस टेक्नोलॉजी और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की। वह किताबें पढ़ते हैं और लिखते हैं। हालांकि व्हीलचेयर पर रहते हैं लेकिन सुबह 3:30 बजे उठने के बाद 3 घंटा मेडिटेशन और भगवान की आराधना करते हैं। उसके बाद पूरे दिन वह कुछ न कुछ पढ़ते और लिखते रहते हैं। इन दिनों भगवद् गीता जी पर सबसे ज्यादा समय व्यतीत करते हैं। साइंस और टेक्नोलॉजी की किताबें भी पढ़ते हैं और उसमें उनको सबसे ज्यादा रुचि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर है

उनका मानना है की अगर विश्व युद्ध होता है तोआर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के उपयोग से यह प्रलय ला सकता है लेकिन सकारात्मक पहलू यह है कि इससे हमारी नॉलेज बहुत बढ़ेगी, हमे आनंद आयेगा। इनसे मेरी मुलाकात जून 2022 में भी हुई थी। उस समय उन्होंने कहां था कि उनका लक्ष्य 116 वर्ष तक स्वस्थ जिन्दगी बिताने का हैं और वो इसका कारण भी बताये थे। उनका मानना है कि भारतीय चिंतन में जीवेत शरद: शतम् की अवधारणा है। छान्दोग्योपनिषद् के द्वारा 116 वर्ष की आयु का विधान है। और यहीं उनका लक्ष्य है। उस समय के मेरे लेख को आप https://neversayretired.in/at-94-l-n-jhunjhunwala-confident-of-attaining-the-age-of-116/ पर पढ़ सकते है।

नौजवानों के लिए श्री झुनझुनवाला जी का संदेश है कि वो अपने स्वास्थ पर पूरा ध्यान दें। वो ज्ञान अर्जित करने के लिए केवल स्कूल-क़ॉलेज की पढाई पर ही अपने को केन्द्रित न करे, वो अध्ययन जरूर करे। और जब इन नौजवानों को अध्ययन में आनंद आने लगेगा तो देश के तो उत्थान में उनका योगदान होगा ही, उनकी आयु भी बढ़ेगी।

इसी मंत्र के साथ हम अपनी लाईफस्टाइल को सही दिशा दे तो हम सब शतकवीर बनने की ओर एक कदम आगे बढ़ा पायेंगे।

चिट्ठी लिखना बहुत याद आता है

हम बुजुर्गो को याद होगा कि कैसे हम पत्र, खत या कहें तो चिट्ठी लिखते थे। कैसे पोस्टमैन की राह देखते थे कि अपने नाम कोई पत्र आया है क्या। फोन की सुविधा अधिक न होने के कारण पत्रो का आदान-प्रदान ही संदेश भेजने का साधन होता था। फिर चाहे वह परिवार की खुशहाली का हो या कोई दुःखद समाचार देना हो, कोई प्रेम पत्र हो या व्यापारिक कारोबारी संबधित – सभी के लिए पत्र ही लिखा जाता था।

पहले कि फिल्मों में अक्सर ऐसे दृश्य होते थे जहां चिट्ठी लिखते हुये या पोस्टमैन को इन्हें बांटते हुए दिखाया जाता था। फिल्मी गाने तो अनेक है चिट्ठीयों पर। याद करे तो कितने ही गाने हर जबान पर रहते थे और आज भी अंताछरी के खेल में गाये जाते है।

ये कुछ गाने बहुत प्रचलित हुए थे – कन्यादान फिल्म का एक बहुत ही मशहूर गीत था “लिखे जो खत तुझे जो तेरी याद में …”, फिल्म शक्ति का “हमने सनम को खत लिखा, खत में लिखा…”, सरस्वतीचंद्र फिल्म का एक गीत “फूल तुम्हें भेजा है खत में…” तो बहुत ही प्रचलित हुआ और आज भी यह सुनने को मिल जाता है। एक फ़िल्म थी जीना तेरे गली में, उसका गीत “जाते हो परदेस पिया, जाते ही खत लिखना…”। आज तो हर पल की खबर मोबाइल पर दी जाती है। एक अन्य बहुत ही प्रचलित गीत था फिल्म आए दिन बहार के में। इसके शब्द थे “खत लिख दे सांवरिया के नाम बाबू…।” याद करे तो कितने ही गीत ध्यान आ जायेंगे और वो दृश्य भी आंखो के सामने आ जायेंगे।

चिट्ठी लिखना एक कला है। शब्दों का चयन और फिर उन्हें सुंदर अक्षरो में सजा कर लिखना आसान नही होता है। इन पत्रो को लिखने के लिए तो स्पेशल पेन और स्पेशल लेटरपेड तक मिलते थे और आज भी जरूर मिलते होंगे। जिनकी हेंडराइटिंग अच्छी होती थी उनका खूब मान-सम्मान होता था। यह प्रथा आज भी कई स्कूलों में है।

आज के बच्चों को शायद हाथ से लिखी हुई चिट्ठी भेजना एक अजीब सी बात लगेगी। ईमेल या वाट्सएप के युग में चिट्ठी कौन लिखे। हां, कुछ परिवारो में किसी महापुरुष के द्वारा लिखा पत्र हो तो वो सहेज कर रखते है और कई तो इन्हें फ्रेम कर रखते महै। वर्षो बाद तो आज के बच्चो को हस्तलिखित चिट्ठीयां पेन्टिगं आर्ट ही लगेगी।

याद आते है वो दिन, जब देखते थे कि कोई व्यक्ति तो किसी की चिट्ठी पढ़कर इतने भावुक हो जाते थे कि पत्र पढ़ते पढ़ते उनकी आखों से आंसु बहना रुकता ही नहीं था। प्रेम पत्रो की अलग ही कहानी होती थी। उन्हे छिपा कर भेजना, भगवान से प्रार्थना करना की गलत व्यक्ति के हाथ न लग जाए और फिर उन्हे छिपा कर रखना। ऐसे प्रेम पत्र, बाजार में मिल रहे अच्छे लेटरपेड पर सुन्दर लिखावट से लिखे जाते थे या लिखवाये जाते थे। 1964 में आई फिल्म संगम में प्रेम पत्र पर एक गीत सुपरहिट हुआ था, जिसके बोल थे “यह मेरा प्रेम पत्र पढ़कर तुम नाराज ना होना, मेहरबान लिखूं, हसीना लिखूं या दिलरुबा लिखूं…।”

आज भले हम पोस्टमैन या पोस्ट ऑफिस को ज्यादा महत्व न देते हो पर वर्षो पहले तो इनकी अहमियत को हर कोई जानता था। आज हमारे आसपास बहुत से युवा मिल जायेंगे जो कभी पोस्ट ऑफिस गए ही न हो। बहुत कम युवा को पता होगा कि संदेश भेजने के लिए पोस्ट कार्ड, अंतर्देशीय पत्र या फिर लिफाफे के अंदर कागज पर लिख कर भेज सकते है। हां, कूरियर सेवा शुरू होने से इनका प्रचलन कम हो गया हैं, पर बंद नही हुआ है।

पत्र लिखने की कला आज के युवा को भी सिखाई जानी चाहिए। कोई जरूरी नहीं की कागज में लिखकर पोस्ट ही करना हो। ईमेल से भी संदेश भेजना हो तो सही शब्दो के चयन और उन्हें सही वाक्यो में पिरो के भेजने का लाभ बहुत है। हम बुजुर्ग व्यक्तियों को तो पोस्टमैन को देखते ही या किसी पोस्ट ऑफिस के सामने से निकलते ही वो पुरानी यादे सामने आ जाती है।

Wednesday, February 12, 2025

आत्मनिर्भरता ही वृद्धावस्था की खुशहाली है

एक निश्चित उम्र आते ही हमारे शरीर में सिथिलता और असमर्थता आ जाती है और हम स्वयं खुद के रोजमर्रा के कार्यो को करने में भी अपने आप को असहज पाते है। हम आश्रित हो जाते है एक सपोर्ट सिस्टम पर जिसे हम परिवार या समाज कहते हैं। आज के परिदृष्य में इस तरह का परिवार या सामाजिक वातावरण जो हमें सहयोग दे सके, यह सभी को नसीब नहीं होता हैं।

परिवार की बात करे तो आज यह भी विचारणीय विषय हो गया है कि एक या दो बच्चों के बीच हमारा परिवार कितना सीमित और सिकुड़ गया है। और फिर आवश्यकता जब हमें होगी उस समय उनसे कितना सहयोग मिलेगा यह कोई नहीं जानता। परिस्थितियों को देखते हुए समाज से सहयोग की आशा करना अपने आप में एक चुनौती ही है।

निश्चित ही हर पल हमारी आयु बढ़ती जा रही है। इसे कोई रोक भी नही सकता। हां, अगर हम कुछ कर सकते हैं तो वह यह है कि हम समय पर अपने सरीर के प्रति सचेत रहें। बुढ़ापा आने पर यह विचार करना कि हमें जवानी में यह करना या वह करना चाहिए था कोई मायने नहीं रखता। जो बीत गई वो बात गई।

हम वृद्धावस्था में किसी पर बोझ न बने इसके लिए हमें शारिरीक व मानसिक रूप से अपने आप को स्वस्थ रखना होगा और आर्थिक रूप से स्वतंत्र होना होगा। एक बार पुनः वहीं बात आती है कि हम बुजुर्गो को इस आयु में क्या करने की आवश्यकता है और समय रहते आज के युवा क्या करे अपने वृद्धावस्था को सही रखने के लिए। इस कारण दोनों परिस्थिति पर विचार करे तो सही रहेगा।

बुजुर्गो को अपने शारिरीक स्वास्थ्य की देखभाल करने हेतु नियमित व्यायाम, पैदल चलना, खुले साफ वातावरण में रहना, सकारात्मक विचार रखना, बेकार की बहस में न पड़ना आदि कई साधन है जिनमे वो अपने आप को ब्यस्त रख सकते है। आजकल तो हर किसी पार्क में छोटे छोटे ग्रुप्स दिखाई पड़ जाते है जहां केवल बुजुर्ग व्यक्ति कुछ एक्टिविटी कर रहे होते हैं। प्रोफेसनल्स या ग्रुप में से ही कोई लीड ले कर बहुत सुचारु रूप से व्यायाम, डांस व अन्य कई तरह की गतिविधियां कराते दिखते हैं। हम में से कई यह सब देख कर भी इन एक्टिविटीज में जुड़ने से झिझकते है। अपने को स्वस्थ रखने के लिए हमें इस झिझक से बाहर निकलना होगा।

मानसिक स्वास्थ्य ठीक रहे इसके लिए बहुत से खेल उपलब्ध है। अखबारो में सुडूकू, वर्ड पावर जैसे अनेक टाईम पास सामग्री रोज मिल जाती हैं। हम एक रुटीन बना ले कि एक-आध घंटे इन गतिविधियों में प्रतिदिन व्यतित करेंगे। चेस खेलना या ताश खेलना, बैडमिंटन या टेबल टेनिस खेलना, वगैरह सभी में मानसिक व्यायाम होता है और सोचने समझने की शक्ति बढ़ती है। जो व्यक्ति ड्राइविंग करते हैं वो जब तक हो सके इस गतिविधि को बंद न करे। हमारी सड़को पर ड्राइविंग करना कोई आसान नहीं है और इससे अच्छा मानसिक व्यायाम भी हो जाता है।

अब थोड़ी बात करे आर्थिक स्वतंत्रता की। यह बहुत आवश्यक है, पर आसान भी नहीं। ज्यादातर लोग इस उम्र में पैसो के अभाव में ही रहते है। फिजूलखर्ची तो बुजुर्ग कम ही करते होंगे पर आय का स्त्रोत न होने के कारण अपनी रोज की जरूरी आवश्यकताओं तक को पूरी करने में कठिनाई होती है। इस परेशानी से वही गिने चुने लोग बचते हैं जिन्होंने अपनी जवानी में खर्च सोच समझकर किए हो, सही इन्वेस्टमेंट और बचत की हो या किस्मत से ऐसे परिवार में हैं जहां पर बच्चे उनका पूरा सहयोग देते हैं और वो बच्चे खुद अच्छी कमाई कर रहे हों। आज की परिस्थिति में तो यही विचार करना होगा कि जो हमारे पास है उससे सुचारु रूप से हम अपना जीवन कैसे चला सकते है। इस विषय पर हम किसी विश्वासी वित्तीय सलाहकार से सहयोग ले सकते है। दो वर्ष पहले हमने ‘नेवर से रिटायर्ड’ के बैनर तले एक बहुत ही सफल वित्तीय साक्षरता या कहें फाइनैंसियल लिटरेसी पर ऑनलाइन कोर्स किया था, विशेष रूप से वरिष्ठ जन को ध्यान में रखकर। यह यूट्यूब पर भी उपलब्ध है। समय निकाल कर इसे जरूर देखें।

आज के युवा को यह समझना जरूरी हैं कि वो भी कभी रिटायर होंगे, वो भी बूढापे की ओर बढ़ेंगे, और फिर उन्हें भी इन्ही सब परिस्थितियों का सामना करना होगा। इस कारण युवा वर्ग को सही समय पर सही इन्वेस्टमेंट, समुचित बचत और मन लगाकर खूब काम करने की आदत बनानी चाहिए। इन सब बातों से ज्यादा जरूरी है कि आज युवा को अपनी सेहत का भी विशेष ध्यान रखना होगा। जैसे जैसे उम्र बढ़ती जाएगी शारीरिक क्षमता कम होती चली जाती है। बिमारी अंदर अंदर अपनी नीव बनाने लगती है। जरा सोचे, आज अगर हमें कोई बिमारी होती है तो उसका बीजारोपण तो काफी पहले ही हुआ होगा। हम युवावस्था में ही अपने स्वास्थ के प्रति सचेत हो जाए, खानपान पर विशेष ध्यान रखें और व्यायाम आदि नियमित करते रहें तब निश्चित तौर पर हमारी वृद्थावस्था खुशहाल रहेगी।

सभी को आत्मनिर्भर बनने की कोशिश करनी है जिससे कि हम बुढ़ापे में भी किसी पर बोझ नहीं बने।

हम बुजुर्गो के देखते देखते जीवनशैली बहुत बदल गई

थोड़े दिनो पहले एक छोटी सी वीडियो क्लिप मिली जिसमें दर्शाया गया कि हम सब जो अपनी जिंदगी का समय व्यतीत करते है, वो कैसे करते है और उसमें 1930 से लेकर 2024 तक में क्या बदलाव आया है। 1930 में जन्मे तो बिरले ही होंगे जो इस लेख को पढ़ रहे होंगे। बाते तो बहुत करते है कि हमारे जमाने में ऐसा होता था पर आज कुछ ओर ही होता है।

इस एक मिनट की वीडियो को किसने बनाया, इसकी तो जानकारी नहीं पर बनाने वाले को बहुत बहुत साधुवाद। इसके लिए डाटा का संकलन करना कोई आसान नहीं रहा होगा। इसमे दर्शाया गया डाटा सभी समाजिक श्रेणी या सभी देश के वासियो के लिए समान रुप से लागू न हो, पर औसतन यह डाटा सही लगता है। यह वीडियो इतना रुचिकर व ज्ञानवर्धक लगा कि मैने इसे अपने फेसबुक ग्रुप ‘नेवर से रिटायर्ड फोरम’ पर भी पोस्ट किया।

संकलनकर्ता ने जीवनशैली के 9 पैरामिटर्स का डाटा दर्शाया है। ये हैं….

  1. परिवार
  2. स्कूल
  3. दोस्त
  4. पड़ोसी
  5. चर्च
  6. बार/रेस्टोरेंट
  7. कॉलेज
  8. सहकर्मी
  9. अन्य

इस लेख में सभी पेरामिटर्स या यू कहें मापदंड पर हम चर्चा नहीं करेंगे। जिन तीन को चिन्हित किया गया है, वो है – परिवार, पड़ोसी व दोस्त। इस लेख में इन तीन पेरामिटर्स पर विशेष बात करेंगे।

सर्वप्रथम बात करते है परिवार के विषय में। वीडियो में दिखाया गया है कि 1930 में लोग अपने समय का 22.7 प्रतिशत समय परिवार के साथ व्यतीत करते थे। धीरे धीरे परिवार के साथ हम समय कम लगाने लगे। डाटा के अनुसार 1960 में यह समय घटकर करीब 19 प्रतिशत रह गया। सन 2000 में यह और घटकर 11.5 प्रतिशत रह गया और सन 2024 में तो इस सर्वे के अनुसार, हम केवल 4.5 प्रतिशत समय परिवार के साथ बिताते हैं। हम अपने ही घर में या अन्य नजदीकी परिवार या मित्रो के घर की ओर देखे तो शायद कुछ ऐसी ही स्थिती देखने को मिलेगी।

अब चले दूसरे पेरामिटर की तरफ – पड़ोसी। जी हां, हम अपने पड़ोसी से कितना संवाद करते है या उनके साथ कितना समय व्यतीत करते है। दर्शाए गए डाटा पर नजर डालने के पहले आज की जमीनी परिस्थितियों की ओर देखे। हम जब युवा थे तो शायद मोहल्ले के हर व्यक्ति को, उसके परिवार से, उसके व्यवसाय से परिचित रहते थे। सुख-दुःख में बराबर हम एक दूसरे के काम आते थे। पर आज तो सच्चाई यह है कि मल्टी-स्टोरी एपार्टमेंट में सामने वाले फ्लैट में कोन रहता है उसकी जानकारी लेने में भी झिझकते है। जहां पड़ोसी के साथ पहले हम काफी समय व्यतीत करथे थे, आज नहीं के बराबर करते है। सभी ऐसा ही व्यवहार करते होंगे यह कहना सही नहीं होगा, पर ज्यादातर ऐसा होता है, इसे भी हमें मानना होगा।

इस एकत्रित डाटा में क्या दर्शाया गया है उस पर ध्यान देते है। 1930 में 11.5 प्रतिशत हम अपना समय पड़ोसी के साथ बिताते थे, जो 1960 में घटकर 7.7 प्रतिशत हो गया। सन 2000 में यह और नीचे आकर 6.6 प्रतिशत हो गया और अगले चौबीस वर्ष में, यानि 2024 में तो इस डाटा के अनुसार, जबरदस्त गिरावट आई और इस वर्ष केवल 1.24 प्रतिशत पड़ोसियों के साथ हमारा समय बीतने लगा। यह बहुत हद तक आज की सही स्थिती हमारे सामने रख रहा है।

अब निश्चित की हुई अंतिम पेरामिटर, दोस्तो के साथ कितना समय व्यतीत करते है, के विषय में चर्चा करते है। यहां भी वही ट्रेंड है। 1930 में औसतन 18.6 समय दोस्त मंडली के लिये था और यह आने वाले वर्षो में बढ़ते गया। 1960 में 24 प्रतिशत समय और सन् 2000 में यह बढ़कर 27 प्रतिशत हो गया। सन् 2015 में इसने पलटी खायी और सन् 2024 तक आते आते केवल 14 प्रतिशत समय आमजन अपने दोस्तो को दे रहा है। हो सकता है इसमें और गिरावट आगे आए।

सभी पेरामिटर्स पर अगर पहले के एवज में हम कम समय लगा रहे है तो यह बचा हुआ समय कहां लग रहा हैं? और किसी को इसपर आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि आज आमजन औसतन ऑनलाइन पर साठ प्रतिशत से ज्यादा समय लगा रहा है। खास बात यह है कि इस विधि पर समय लगना 1982 में शुरु हुआ। शुरुआती वर्षो में इस पर लोग ज्यादा समय नहीं लगा रहे थे। इस डाटा के अनुसार सन् 2000 तक 4.2 प्रतिशत समय ही इस पर लगाया जा रहा था। इसके बाद इसने स्पीड पकड़ी और 2010 में 19.8 प्रतिशत समय लोग ऑनलाइन पर लगाने लगे। सन् 2015 में 33.7 प्रतिशत समय और सन् 2020 में 56 प्रतिशत समय इस पर लगने लगा। इसके बाद सन् 2024 में 60.7 प्रतिशत समय आमजन ऑनलाइन एक्टिविटी पर लगाने लगा। यह चारो तरफ अब दिखाई भी दे रहा है।

हम वरिष्ठ जन इतना परिवर्तन अपने जीवनकाल में देख रहे हैं। आने वाली पीढ़ी में क्या बदलाव आयेंगे यह तो कहना मुश्किल है पर यह निश्चित है कि बदलाव बहुत जल्द जल्द होंगे। यह एक विचारणीय और चिन्तनीय विषय है।