We have all been criticising about what is not being done by the government. However, we rarely give our own solutions to any problem that we see. May be the suggestion is ridiculous - but still if we look things in a positive way may be we can suggest solutions which some one can like and decide to implement. I know this is very wishful thinking but this is surely better than just criticising.

Wednesday, January 29, 2025

बुजुर्ग संभलकर रहें, गिरना तो बिल्कुल नहीं है

मैं कोई डॉक्टर नहीं हूं पर आज चर्चा करेंगे एक बहुत ही महत्वपूर्ण स्वास्थ्य सम्बन्धित विषय पर। शरीर में अपने पांव पर भी उतना ही थ्यान रखने की आवश्यकता है जितना की हम अक्सर अपने दिल को या हार्ट को देते है। पांव लड़खड़ाएं, हम गिरे और हमारी हड्डी में फ्रेक्चर आने में देर नहीं लगती। और उसके बाद क्या क्या हो सकता है इससे आप सभी परिचित होंगे ही। आज हम बात करते है कि ऐसी स्थिती को आने ही न दे।

पैरो के लिए विशेष एक्सरसाइज पर ध्यान देना होगा। उन्हें जितना मजबूत हम रख सके उसी में हमारी भलाई है। बहुत कुछ नई हिदायतों को यहां नहीं बताया जा रहा हैं, हां एक बार पुनः सभी के समक्ष रख कर आशा करते है कि आप थोड़ी-बहुत ज्यादा सावधानियां रखेंगे।

सर्वप्रथम बात करते है अपने बाथरुम की। हमने कई लोगो के विषय में सुना होगा या परिवार में ही देखा होगा कि कैसे कोई बुजुर्ग व्यक्ति बाथरुम में स्लिप कर गए और उनका हिपजॉइंट फ्रेक्चर हो गया। बहुत दुख दाई स्थिति हो जाती हैं। दर्द तो बहुत होता ही है, साथ में लंबा सा प्लास्टर और फिर चार से छ सप्ताह बिस्तर पर पड़ा रहना। बड़ी आयु में हड्डियां कमजोर हो जाती है, इस कारण फ्रेक्चर को ठीक होने में समय ज्यादा लगता है। कई बुजुर्ग तो ऐसे बाथरुम में एक्सिडेंट के बाद वापस सही सही उठ ही नही सकते हैं।

बाथरुम के उपयोग के समय हमें बहुत संभाल कर अपनेआप को रखना है। पोटी के बगल में और नहाने के स्थान के बगल में सपोर्ट पाइप लगवाए। नहाते समय और उठते समय ये सपोर्ट पाइप बहुत उपयोगी होते है। नहाने के स्थान में एंटी-स्किड मेट लगाये जिससे गीली जमीन पर फिसलने का डर कम हो। अपनेआप को तौलिए से सुखा कर बाहर निकल कर कमरे में आराम से कुर्सी पर या बिस्तर पर बैठ कर ही कपड़े पहने। बाथरुम को जितना हो सके सुखा रखे और रौशनी भी पर्याप्त हो। दरवाजा अंदर से लॉक न करे और अगर हो सके तो एक कॉल बेल का भी इंतजाम करे।

बुजुर्ग जन को पैदल खूब चलना है। पैरो के लिए, और वैसे पूरे शरीर के अच्छे स्वास्थ्य के लिए, पैदल चलना सबसे उत्तम एक्सरसाइज है। ध्यान यह रखना है कि हम जिस जगह चल रहे हैं, सड़क हो, पार्क हो या और कहीं, वह ऊबड़ खाबड़ न हो, कोई गड्ढ़ा हो तो बचे। जरूरत हो तो एक वॉकिंग स्टीक साथ रखे। यह न विचार मन में लाए कि हमे चलते समय हाथ में स्टीक देख कर लोग क्या कहेंगे। आवश्यकता पड़ने पर एक सहायक रख ले, पकड़ कर साथ चलने के लिए। पर चलना तो जरूर है। मेरी एक नब्बे वर्ष से ज्यादा आयु की पडोसी है, जिनसे मैं बहुत प्रभावित हूं। मौसम अनुकूल होने पर, वो प्रतिदिन एक सहयोगी के साथ वॉक पर जाती हैं। प्रथम तल पर रहती है। सीढ़ियां उतर कर जाना और वॉक से लौटकर वापस अपने आवास मैं एक तल चढ़कर आना बहुत सराहनीय है। एक और महत्वपूर्ण बात, मोबाइल पर बात करते हुए कभी न चले। इससे ध्यान भटक जाता है और चलते चलते गिरने के चांस बढ़ जाते है। इनडोर्स जब हो, चाहे घर पर या अन्य जगह तो प्रयास यह रहना चाहिए कि आप दिवाल के नजदीक हो, या अन्य लोगो के बीच हो जिससे कि आवश्यकता पड़ने पर आप इनका सहारा लेकर अपने को गिरने से बचा सके।

सीढ़ियों का जब उपयोग करे तो ध्यान रखे की साइड रेलिंग का उपयोग निश्चित करना है। ऐसी लापरवाही कतई न करे की बात करते करते सीढ़ियो के बीचोंबीच चल रहे हैं। ये छोटी छोटी भूल भी बहुत नुकसान दे सकती है।

कई ऐसे मौके आ जाते है जब हम किसी काम के लिए स्टूल या कुर्सी या छोटी सीढ़ी के उपयोग में पूरी सावधानी नहीं रखते। हो सके तो ऐसे काम में लगे ही नहीं, और आवश्यक होने पर वह काम करना भी पड़े तो पूरी सावधानी रखे। कोई एक व्यक्ति साथ रख ले। बड़ी उम्र में नॉर्मल गिरना ही ठीक नहीं हैं और अगर हम स्टूल, कुर्सी वगैरह से गिरते है तो जमीन से ऊंचाई और बढ़ जाती है।

इस उम्र में पहुंच कर आप खूद इतने परिपक्व हो गए है कि कुछ ज्यादा सलाह देना उचित नहीं है। फिर भी एक बार पुनः आप सबके समक्ष इन सब बातों को रखने का एकमात्र उद्देश्य यहीं है कि हम ज्यादा से ज्यादा सावधानी रख सके। अपने पैरों पर विशेष ध्यान दे। पैदल खूब चले। एक्सरसाइज बराबर करते रहे। गिरना तो हमें बिल्कुल भी नहीं हैं।

All my articles are exclusively related to Senior Citizens. I had started a mission NEVER SAY RETIRED four years back, having presence on web www.neversayretired.in, on FaceBook group Never Say Retired Forum, on YouTube with Never Say Retired channel. Also on Linkedin and Instagram. Enjoy of exclusive posts. You can contribute too with your thoughts.

बढती उम्र में हमारी भगवान से मांग भी बदल जाती है

याद आते है वो बचपन के दिन जब हम स्कूल में पढ़ते थे और एग्जाम के समय रोज पेपर देने के पहले घर पर बने पूजा स्थल पर जाकर भगवान से आशीर्वाद लेते थे और उनसे निवेदन करते थे कि हमें अच्छे नम्बर से उत्तीर्ण कर दे। रोजदिन तो भगवान के सामने माथा टेकने किसी त्योहार पर ही जाते थे, वो भी बड़े-बुजुर्ग की आज्ञानुसार। पर एग्जाम के समय कोई कहे या न कहे हम अपने आप भगवान के समक्ष चले जाते थे।

थोड़े बड़े हुए तो हम एग्जाम में सफलता के साथ साथ अपनी और इच्छाओं के लिए भी भगवान से प्रार्थना करने लगे। उन दिनो आवश्यकताएं बहुत सीमित होती थी जैसे नया स्कूल बैग, एक नए पेन, एक नई ड्रेस आदि। अगर ज्यादा ही विचार करने लगे तो बहुत हिम्मत कर साइकिल की मांग कर देते थे। पिताजी से मांगने के पहले भगवान से प्रार्थना करते थे कि वो पिताजी से हां बुलवा दे। जब इनमे से कुछ भी मिल जाता तो स्कूल में मित्रगण को बताते बताते थकते नहीं थे।

उम्र बढ़ती गई। हम नौजवान हो गए। कॉलेज में दाखिले के लिए और फिर अच्छी नौकरी के लिए मंदिर में भगवान से आशीर्वाद लेने पहुंचने लगे। एक बार थोड़ा-बहुत सेटल हो गए तो माता-पिता विवाह के लिए उचित जीवन साथी को ढूंढने में लग गए। उन दिनो ज्यादातर विवाह ऐरेन्ज्ड ही होते थे। लव मैरिज तो बहुत कम होते थे और जिनकी होती थी उनकी चर्चा बहुत होती थी। यथायोग्य जीवनसाथी के चयन करने में परिवार का योगदान ज्यादा रहता था। दूर रह रहे रिश्तेदार से भी संपर्क कर सुझाव आमंत्रित किए जाते थे। इन सब कोशिशो के साथ घर के बड़े-बुजूर्ग भगवान के द्वार जरूर खटखटाते थे।

विवाह के बाद खुद की जिन्दगी बढ़ने लगी। बच्चे हुए, उन्हें बड़ा करने में और जीविकोपार्जन करने में लग गए। साथ-साथ भगवान की प्रतिदिन पूजा करने में कोई कमी नहीं किए। इसका एक मुख्य कारण यह भी था कि हमारे आचरण को बच्चे जैसा देखेंगे वैसे ही वह ग्रहण करेंगे। यहीं तो संस्कार देने के तरीके हैं। सभी त्यौहार पर बच्चो के साथ घर पर और मंदिर जाकर भगवान के समक्ष आरती करना बहुत आनंददायक होता था। परिवार के साथ तीर्थस्थलों पर जाना भी खूब होता था। उन दिनो आज जैसी सुविधाएं न होते हुए भी हम किसी प्रकार की तकलीफ महसूस नहीं करते थे।

आज वृंदावन या अन्य किसी तीर्थस्थल पर इतनी भीड़ होने लगी है कि बराबर यह डर लगा रहता है कि कोई अनहोनी न हो जाए। ऐसे समाचार भी मिल जाते हैं कि कुछ व्यक्ति भगवान के दर्शन करने गए थे पर दुर्भाग्यवश, अधिक भीड़ के कारण, भगवान को प्यारे हो गए। इस भीड़ में बुजुर्ग व्यक्तियों को बहुत सावधानीपूर्वक मंदिरों में दर्शन करने जाना चाहिए।

बुजुर्ग होने पर हम शायद ज्यादा धन अर्जित करने की मांग तो ऊपर वाले से नहीं करते होंगे। हां, हमारे बच्चे खुश रहे, उनकी दिनोंदिन तरक्की हो, परिवार में सभी का स्वास्थ्य ठीक रहे, इसकी कामना जरूर करते होंगे। अपने लिए तो यहीं चाहेंगे कि हम स्वस्थ रहें और जीवन के अन्तिम दिनो में ज्यादा तकलीफ न खुद पाए और न ही परिवार वाले हमारे बिगड़े स्वास्थ्य के कारण तकलीफ पाए।

मन में कभी कभी यह विचार आ जाता है कि हम कितने स्वार्थी है। हर आयु में भगवान से कुछ मांगने के लिए ही उनके दर्शन को जाते है। बचपन में, जवानी में कुछ और मांग रहती थी हमारी और आज कुछ और। हमारा भगवान पर विश्वास और श्रद्धा ही हमें अपनी मांग रखने की हिम्मत देता है।

अभी सुबह रेडियो पर विविध भारती के प्रसारण सुन रहा था। इस चैनल पर पुराने गाने के साथ बहुत ज्ञानवर्धक बाते भी बताई जाती है। एक कहानी बताई गई कि भगवान से हम क्या मांगते है। एक शिष्य और एक गुरु भगवान के समक्ष प्रार्थना कर रहे होते है। शिष्य गुरु से पूछता है कि हम तो जब भी भगवान के सामने होते है कुछ न कुछ मांगते है, आपने क्या मांगा। गुरु का जवाब था कि भगवान से क्या मांगना। वो तो अंतर्यामी हैं, उन्हें पता होता है कि हमारी क्या आवश्यकता हैं और वो यह जानते है कि उसकी पूर्ति कब और कैसे करनी है। बस हमें हमारे भगवान पर अटूट विश्वास और श्रद्धा रखनी है।

नववर्ष में बुजुर्ग जन का एकमात्र संकल्प हो, स्वस्थ रहना

2025 के आगमन पर सभी का हार्दिक अभिनंदन।

आमजन नववर्ष पर बहुत संकल्प लेते हैं और प्रयास करते हैं कि उन्हें आने वाले वर्ष में क्रियान्वित भी करे। यह बात अलग है कि किये गए संकल्प में से कम ही पूरे होते है, कारण समय-समय पर हम काॅम्प्रोमाइज करते रहते है। ऐसे में वरिष्ठ जन भी कुछ संकल्प ले और यह निश्चित करे की वो लिए गए अपने इन रिजोल्यूशन को पूर्ण जरूर करेंगे।

हम बुजुर्गो का तो, आज भी और कल भी, एक ही संकल्प होना चाहिए, वो है अपने आप को शारीरिक और मानसिक रुप से स्वस्थ रखना। यह हम अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति से पूर्ण कर सकते है। हमें आने वाले कई नववर्ष पर सभी प्रियजन के संग मौज-मस्ती करनी है। इस एक संकल्प को पूरा करने के लिए हमें अपने जीवन में बहुत कुछ करना होगा। आइए कुछ करणीय बिन्दूओं पर ध्यान दे।

अपनी दिनचर्या को हम कुछ ऐसी बनाए कि वो प्रेक्टिकल भी हो और हमारे मन के अनुसार भी हो। कई बार ऐसा अनुभव होता है कि दिन बिताना भी मुश्किल हो जाता है, खासकर उन वरिष्ठ जन के साथ जिन्हें अकेला रहना पड़ता है। बच्चे विदेश में या अन्य किसी शहर में जीविकोपार्जन के लिए चले जाते है और इधर माता-पिता अकेले रहते है। स्थिति तब और भी विचारणीय हो जाती है जब एक जीवनसाथी भी छोड़कर चला जाता है।

हम बात कर रहे थे उस एक संकल्प की जो हमारे स्वास्थ्य से संबंधित है। प्रत्येक दिन अपने दिनचर्या में कसरत व योग को मुख्य स्थान दे। गर्मी हो, सर्दी हो या बरसात ही क्यू न हो, हमें अपनी एक्सरसाइज नियमित करनी ही है। इसके लिए समय निकालना ही है और एक निश्चित समय हो तो डिसिप्लिन बनी रहेगी। इस आयु में कोई बहुत थकाने वाली या पसीना निकालने वाली एक्सरसाइजेज से दूर रहे।

इसी तरह पैदल जितना ज्यादा चल सके उतना अच्छा है। इस वर्ष के लिए अपने संकल्प में जोड़े कि हम छोटी दूरी के लिए गाड़ी या टू-विलर का उपयोग नहीं करेंगे। जहां तक हो सकेगा हम पैदल ही जाएंगे। मंदिर या मार्केट जब जाएंगे तो गाड़ी थोड़ी दूर पार्क कर कुछ कदम चलने का प्रयास करेंगे। इसी तरह सुबह के नास्ते के बाद, दोपहर व रात्री भोजन के बाद कम से कम एक हजार कदम चलने का नियमित नियम बनाए। यहां आपको कोई बाहर का व्यक्ति देख नहीं रहा है। विचार तो आपको करना है अपने स्वास्थ्य को ठीक रखने के लिए।

खान-पान में भी सादगी का संकल्प ले। यह भी स्वास्थ्य से जुड़ी बात है। पूरी उम्र हमने चाट-पकोड़ी खूब खाई है, और भी तले हुए स्वादिष्ट व्यंजनो का आनंद उठाया है पर अब उन पर विराम दे। पेट जरा भी गड़गड़ाहट किया और आपका पूरा ध्यान उधर ही चला जाता है। ऐसा नहीं कि यह सब खान-पान आप बिल्कुल बंद कर दे पर आप स्वयं अपना डॉक्टर बने, और निश्चित करे कि हमे कितनी मात्रा में क्या भोजन खाना है। अपने शरीर के लिए हम से बड़ा कोई डॉक्टर नहीं है।

इसी स्वास्थ्य सम्बन्धित संकल्प के साथ एक और बहुत महत्वपूर्ण बात जुड़ी हैं। स्वस्थ और खुश रहने के लिए अपने दोस्तो से बराबर संपर्क में रहे। पुराने मित्र आपकी बात और आप उनकी बात को बहुत अच्छी तरह समझेंगे। उन मित्रों को आज ही फोन कर बात करे जिनसे आप बहुत दिनों से बात नहीं किए है। आपको बहुत अच्छा लगेगा, इसका पूर्ण विश्वास है। एक ही शहर में कुछ दोस्त हों तो वो सप्ताहिक या मासिक मेलजोल के लिए एकत्र हो और भरपूर मनोरंजन करे। अन्य शहर में हो तो ये मिटिंग वार्षिक हो सकती है। वाट्सएप ग्रुप बनाए व अपने विचारो का आदान प्रदान करे। हम खुद आगे बढ़कर अपने हाउसिंग सोसाइटी या मुहल्ले में हमउम्र के व्यक्तियों के बीच एक ग्रुप बनायें व नियमित कुछ मनोरंजक कार्यक्रम रखकर अपने को बिजि रख सकते है। इसका सुखद परिणाम यह होगा कि हमारा स्वास्थ्य बेहतर रहेगा और हम प्रतिदिन ताजगी महसूस करेंगे।

संकल्प आप बहुत ले सकते है, पर उनके क्रियान्वयन में आपका स्वास्थ्य आड़े न आए इस कारण यह संकल्प इस नववर्ष जरूर ले कि हमें अपने को स्वस्थ रखना है।

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Friday, January 17, 2025

जितनी चाबी भरी राम ने उतना चले हम

अंधा कानून फिल्म में एक गीत था,
रोते रोते हंसना सीखो,
हंसते हंसते रोना,
जितनी चाबी भरी राम ने
उतना चले खिलौना।

कवि ने कितनी गंभीर बात को इतनी सहजता से लिख दिया। हम नहीं जानते हैं कि हमें कब यमराज लेने आ जाएंगे। भगवान ने कितनी चाबी हम में भरी उसका सीक्रेट तो वो ही जानते हैं।

हम सब इस सच्चाई को जानते हुए भी आपस का द्वेष, भाई भाई का झगड़ा, पैसा कमाने की होड़ में एक-दूसरे से झूठ बोलने या गलत व्यवहार करने से भी परहेज नहीं करते। अहम इतना ज्यादा हो जाता है कि सामने वाले को नीचा दिखाना ही हमारा एकमात्र उद्देश्य हो जाता है। हमें अपनी गलती का एहसास तब होता है जब हम मृत्यु शय्या के नजदीक होते हैं।

अंतिम संस्कार के लिए जब लोग श्मशान पर एकत्र होते है तब बहुत अच्छी अच्छी बाते करते हैं। एक-दूसरे को खूब ज्ञान देते है, गलत काम न करने के लिए, आपस में सौहार्द बना कर रखने के लिए, आदि- आदि। इस वातावरण में ऐसी सकारात्मक बांते करने का कारण यह होता हैं कि सामने दिखती व्यक्ति की अंतिम विदाई हमें झकझोर देती है। हम भी जीवन की इस सच्चाई से मुंह नहीं मोड़ सकते कि अंत समय में हमे चार लोगो के कंधो पर तो यहीं आना हैं। इन सब चर्चा में बुजुर्ग व्यक्ति बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं। और क्यू नहीं। बुजुर्गो ने अपने जीवन में बहुत कुछ देखा, सुना और समझा है। लेकिन अंतिम संस्कार हो जाने पर श्मशान से निकलने के बाद जल्द ही वापस उसी आपाधापी में सब लग जाते हैं।

अपने को बहुत ऐसे किस्से सुनने को मिल जाएंगे कि कैसे जवानी में किसी व्यक्ति ने दम तोड़ दिया, जब कि वो स्वस्थ था, कोई बुरी आदत नहीं थी, योग व व्यायाम नियमित करता था। और दूसरी ओर अनेकानेक ऐसे भी व्यक्ति हैं जिनकी आयु काफी हो गई हैं और वो अपना स्वस्थ जीवन जी रहे हैं। बात वहीं आकर ठहर जाती है कि भगवान राम ने जितनी चाबी भरी थी उतनी जिन्दगी रही।

भगवान को हम अपने मन में बैठा ले, सभी से अपना व्यवहार अच्छा रखे, जरूरतमंद की सेवा करने में कभी पीछे न हटे, तो निश्चित हम खुशी खुशी अपना जीवन निर्वाह करेंगे। एक प्रवचन में वक्ता की यह बात बहुत अच्छी लगी – वो बोलते हैं “प्रभु भक्ति दो, शक्ति दो, चलते चलते मुक्ति दो।” वैसे देखे तो मृत्यु कोई नहीं चाहता है, पर अगर अंतिम दिनो में हम स्वस्थ रहे, अपनी नित्य क्रिया खुद कर सके तो इससे सुखमय जीवन और क्या हो सकता है।

यह सब देखते हुए अपने शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य पर पूर्ण रूप से ध्यान देना बहुत आवश्यक है। यह समझ कर निश्चिंत न हो जाएं कि जब जिंदगी की चाबी श्रीराम के पास है तो हमें क्या करना है। हमारा ध्येय यह होना चाहिए कि हम जीवन की दौड़ में अंतिम पड़ाव पर पहुंचने तक अपने आप को प्रसन्न व स्वस्थ रख सके।

जीवन के इस पड़ाव पर हमें क्या फर्क पड़ता है कि हमारा घर बड़ा है या छोटा, न हमे इससे फर्क पड़ता है कि हमारे पास कितनी पूंजी है इस आयु में। अब किसी तरह की कोई अभिलाशा भी नहीं रहती है मन में, कि कोई नये कपड़े खरीदने हैं या बड़े रेस्टोरेंट में जाना हैं। उद्देशय तो केवल इतना होना चाहिए कि हम प्रसन्न रहे, स्वस्थ रहे, किसी के उपर बोझ नहीं बने। हमउम्र के लोगो के साथ दोस्ती करे, वाट्सएप ग्रुप बनाए व खूब बांते करे। आपस में पार्टियां करे, नांचे-गाएं, वगैरह। यह न सोचे कि लोग क्या कहेंगे। जिदंगी आपकी है और इस पर केवल आपका अधिकार है। बाकी सब तो भगवत कृपा ही है।

अच्छे कर्म करे और हम भगवान से यहीं प्रार्थना जरूर करे कि हमारे जैसे खिलौनो में चाबी यथायोग्य भरे।

वरिष्ठ लोगो के करने के लिए 4+ कार्य

मेरे पिछले लेख, जिसका शीर्षक था हम रिटायर नहीं होंगे, पब्लिश होने के बाद काफी लोगों की प्रतिक्रिया आई और मैं खुद भी लिखा था कि अगले लेख में इसकी चर्चा जरूर करेंगे कि हम वरिष्ठ लोग भी क्या-क्या कार्य कर सकते हैं। और कार्य ऐसा हो जिससे कि हमारा स्वास्थ्य सही रहे, हमारे समय का सदुपयोग हो सके और हम देश सेवा में भी कुछ अपना योगदान दे सकें।

आज के लेख में यही चर्चा करेंगे कि हम रिटायर तो हो गए हैं पर क्या-क्या रास्ते खुले हैं हमारे लिए। हो सकता है सारे कार्य करने के जो सुझाव आए उसे कुछ आर्थिक लाभ तो ना हो लेकिन जरा विचार कीजिए अगर हमारा समय सही निकल जाए या स्वास्थ्य ठीक रहे तो यह क्या आर्थिक लाभ से कम है। हां काम रुचि का जरूर होना चाहिए तभी हम उस कार्य को मन लगाकर कर सकेंगे। कोई जोर जबरदस्ती नहीं होनी चाहिए।

कुछ कार्यों के विषय में यहां चर्चा करते है। ये काल्पनिक नहीं है।

जब हम नेवर से रिटायर्ड मिशन की शुरुआत कर रहे थे, तब एक मित्र ने बहुत ही दिलचस्प किस्सा बताया।

बंगलौर के एक पीएसयू (PSU) से एक उच्च पद पर स्थापित ऑफिसर रिटायर हुए। कुछ दिन तो अपनी नयी परिस्थिति से सामना करने में लगाये। तुरंत बाद में वो ठान लिए कि उन्हें तो सकारात्मक काम में पूरी लगन से लग जाना है।

उन्होंने अपनी सोसाइटी में ही अपने लिए काम ढूंढ लिया। सोसाइटी में काफी फ्लैट थे और हर किसी को बिजली विभाग या जल विभाग या म्यूनिसिपल ऑफिस में कुछ न कुछ काम रहता था। उस समय ऑनलाइन का चलन था नहीं। मासिक बिल के भुगतान के लिए भी व्यक्तिगत जाना पड़ता था। कई के पास तो और कोई साधन न होने के कारण खुद को समय निकालना पड़ता था। ऐसे में खास करके वरिष्ठ लोगों को काफी परेशानी होती थी।

इन महोदय ने तय कर लिया की मैं अपनी सोसाइटी के फ्लैट्स वालों की मदद करूंगा। उन्होंने सभी से बात करके कहा कि अगर आपको कोई भी कार्य बिजली विभाग से है या जल विभाग से है या और कहीं है तो उन्हे बताएं। अगर हो सकेगा तो वो खुद वहां जाकर इसका समाधान करवाएंगे। उनकी व्यस्तता बढती गई और बाद में तो एक समय ऐसा आ गया जब वह अपना एक रूटीन बना लिए। जल विभाग का कोई काम होगा तो वह सोमवार को जाएंगे, बिजली विभाग का होगा तो मंगलवार को जाएंगे, वगैरह। ऐसे ही वह अपना काम बढ़ाते रहे और समिति के लोगों को भरपूर सहयोग होने लगा। वह जिस भी ऑफिस में जाते वहां भी उनकी बहुत इज्जत होती क्योंकि सभी को पता चल गया कि ये सज्जन तो निस्वार्थ भाव से दूसरों की सेवा में लगे हैं।

एक समाचार रांची स्थित कोल इंडिया की एक ईकाई के रिटायर्ड इंजीनियर्स का अखबार में पढ़ा।

सात रिटायर्ड इंजीनियर्स ने निश्चित किया कि वो समाज के गरीब नौजवान, जिनका मन आगे चल कर इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने का हैं, उन्हे वो बिना कोई शुल्क लिए पढ़ाएंगे। और यह टीम पूरे मन से अपने काम में लग गई। बच्चे आने लगे, कोचिंग चलने लगी और इनमे से ज्यादातर ऐंट्रेन्स एक्जाम में सफल भी होने लगे। इससे बड़ी संतुष्टी उन रिटायर्ड इंजीनियर्स को क्या मिल सकती थी।

बहुत से अवकाश प्राप्त प्रोफेशनल्स मेंटरिंग का काम भी करते हैं, खास करके उन संस्थाओं के बच्चों के लिए जहां वह खुद पढ़े थे कभी।

भारत में बहुत सी स्वयं-सेवी संस्थाएं हैं जिसे हम आम भाषा में NGO बोलते हैं। एक दृष्टिकोण यह भी होता है कि ज्यादा कर NGO चलाने वाले अपने स्वार्थ के लिए ही काम करते हैं। पर हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए की बहुत सी अच्छी NGO भी है जो समाज के लिए बहुत ही अच्छा कार्य करती हैं, चाहे वह किसी भी क्षेत्र में हो। अवकाश प्राप्त व्यक्तियों के लिए इन अच्छी संस्थानों में काम करने का अगर मौका मिले तो वह समाज की भरपूर सेवा कर सकते हैं।

आप में से भी कई, किसी ऐसे काम में लगे होंगे जिसकी जानकारी हम साझा कर सकते है। लेख में दर्शाये गए उदाहरण इसीलिए दिए गए है कि शायद कोई इसका उपयोग अपने लिए कर सके। आप अपने सुझाव हमें ईमेल पर भेज सकते है। हमारा ईमेल है neversayretired2021@gmail.com

हमारे फेसबुक ग्रुप “नेवर से रिटायर्ड फोरम” पर भी आप अपने सुझाव दे सकते है। हमे रिटायर नहीं होना है। जब तक भगवत कृपा रहे अपने आप को व्यस्त रखना है और देश हित में अपना योगदान देते रहना है।

In Pursuit of a Better Life of Your Better-half in Twilight Zone of Life

Its always an incredible journey from the wee hour of marriage to twilight zone of old age. While it is true that we cannot take anything with us when we depart for the heavenly abode, proper planning can undoubtedly make life easier during our sunset years.

Its always an incredible journey from the wee hour of marriage to twilight zone of old age. As the nature rules over life, one has to stay back in world by giving a bid adieu to the other leaving behind the memory of love, compassion and support of an entire life. Indeed, those last years of singlehood needs special care, be it financially or emotionally.

Remembering those days when marriages were mostly arranged and the groom was older not less than five years or more than the bride. Todays’ elderly citizens fall in this category. One can come across many acquaintances whose parents are in seventies or older and the age difference between the spouses is quite high. As in most of the cases, women live longer than men and a situation emerge where the husband dies and the wife has to take care of herself for another 10 to 15 years, without her husband, mostly alone and sometime with a financial hardship.

Decades ago, taking care of elderly parents was not a major issue as families stayed together. However, in today’s circumstances, things have changed. Many children have been sent abroad to study and work, and they have settled there while their parents remain in Bharat. Although some children invite their parents to stay with them abroad, many parents decline as they cannot adjust to the lifestyle. Moreover, most children do not want to come back to Bharat due to various reasons. There are also instances where young couples do not wish to stay with their parents, especially after marriage.

Have we prepared ourselves for this eventuality? Consider a scenario where a person dies at the age of 75, leaving behind a 70-year-old spouse. The spouse will have to take care of herself for another ten years or so, and although she may have her children to look after her, this may not always be the case.

For single elderly women, health and finances will be major concerns, and safety will be another issue that needs to be taken care of. An attendant or two will always be required, and all of these will cost money.

It is worth mentioning that, after the death of the husband, the outlook of children towards their mother can often change. Newspapers frequently carry stories of such cases, and Bollywood has even made films about this social problem.

Planning for such a scenario needs to start when a person is at the peak of their career. A place to live and sufficient funds are the basic necessities. While it is true that we cannot take anything with us when we depart for the heavenly abode, proper planning can undoubtedly make life easier during our sunset years.

This planning should include deciding where to save money, who operates the accounts, etc. It is essential to share details of all assets, bank accounts, and a list of creditors and debtors with one’s spouse. In the case of sudden death, it is also important to have information about life insurance and health insurance policies. It is wise to name a nominee or have joint accounts in banks to ensure that withdrawing money is not difficult for one’s spouse after one’s departure.

Many social media posts discuss such situations and suggest dos and don’ts. For example, they advise against giving away all of one’s possessions to one’s children until the end. It is also advisable to make a will outlining how funds and assets should be distributed after one’s death and the death of one’s spouse. However, while one is alive or one’s spouse is alive, it must be ensured that enough funds are set aside for one’s needs over which one has full control.

We must all pray for a peaceful end, good health, and a sudden shift to the heavenly abode. However, not all wishes are fulfilled, and we must prepare ourselves for the unforeseen.

Sunday, January 12, 2025

5 Ideas to Remain Productive after Retirement

Many are often confused as to what they will do post-retirement. Few get some assignments, but most have to settle with the new environment. They have to get accustomed and set their new routine. However, it is a must for them to remain productive after retirement to feel useful and get a sense of accomplishment.

One big problem that arises is within the home itself. For years the routine was to leave for the office in the morning and return in the evening. One used to look forward to the weekend when they would enjoy staying at home. However, now that they have all the time, day after day, to stay at home, they find it so difficult.

Finances are one issue, but the bigger issue is to find people with whom one can talk, to find people who can give them some recognition.

Let’s talk about five ideas that retired people can easily do to keep themself busy, happy, and satisfied.

  1. Job hunting
  2. Consultancy
  3. Self Employment
  4. Serving the Community
  5. Serving the Community, individually

Job Hunting

This is the most common idea one can suggest. It’s not easy. Still do try. Maybe a little re-learning, updating with the latest tech, can help.

Consultancy

Another option, for which there is a requirement. This will depend on your expertise and reaching the right organisation.

Self Employment

One can start some business on which you have experience from your earlier job, on which you have confidence. However, you must be aware of the risks too.

Serving the Community

You can opt to join some Voluntary Organisation, or NGO as they are commonly called. The work of the organisation must be of interest to you. However, before joining one must find out about the organisation in detail, who is in the management, their financial status, etc. Most have their websites, which can give a lot of information. Talking to a few beneficiaries can give a true picture too.

Serving the Community, individually

Even if one does not want to join a social organisation, there are a number of opportunities to work on your own.

Let’s talk of a few examples.

  1. A retired person, living in a housing society, decides to help neighbours with their day-to-day issues with the municipal office or power company, or water board office. Payment of regular bills or communicating with departments is not easy for many. This retiree helps others in these chores. His services become very useful, specially for those who stay alone and are not very tech-savvy.
  2. A retiree decides to spend time with very elderly people in the neighborhood. Four hours are allotted daily for this work, in which this retiree attends to three to four persons.
  3. A retiree decides to educate the house helps, the house maids who come for their part-time work in homes. Even poor children are given this free education. A daily routine is made to spend four hours for these classes.
  4. A retiree comes up with the idea of forming a 60 Plus Club for seniors in the neighborhood. A WhatsApp group of all is made. Every morning, all are asked to give a greeting message, like Good Morning or Jai Sri Ram or whatever. If on any day someone misses on giving the morning message, a few of the other group members try to contact this person or in rare cases even make a visit. This exercise is done to keep track of the health of all. This retiree even spends a couple of hours talking on a mobile with elderly group members, who just need to talk.

There can be many such examples. Even you can contribute by giving such ideas.

The whole idea is to keep oneself busy with some work that is of interest, which creates happiness within, and at the same time, this work helps the immediate neighborhood where one is staying.

There are cases where retired persons have faced domestic issues, once they started spending their full time at home. In the office, there were helps available who would bring tea, several times, on just a call. In the office, one gave directions to subordinates all the time. After retirement, if the retiree does not change self, problems would certainly arise, as the expectations and their delivery are very different at the office and at home. 

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दादा-दादी की पाती, पोते-पोती के नाम

मेरे प्यारे बच्चों,

बहुत दिनों से तुम सबको एक पत्र लिखने कि सोच रहा था। और कार्यो में व्यस्त होने के कारण कुछ देर हो गई। तुम सोच रहे होंगे कि दादाजी को इतनी व्यस्तता क्या आ पड़ी कि एक पत्र लिखने में इतना समय लगा दिए। तुम्हें जानकर खुशी होगी कि मैं इस आयु में भी अपने आप को खूब बिजी रखता हूं। मैने तो एक अभियान आरंभ किया है – नेवर से रिटायर्ड। हम बुजुर्गो को भी कभी रिटायर होना ही नहीं चाहिए, कुछ न कुछ कार्य में लगे रहना चाहिए तभी हम शारिरिक और मानसिक रुप से स्वस्थ रहेंगे। अच्छा स्वास्थय ही सफलता की सही कुंजी है।

अच्छा चलो, तुम लोगो का सब कुछ कैसा चल रहा है। मम्मी तो तुम्हारी पढ़ाई के पीछे ही पड़ी होगी कि कैसे तुम अपनी क्लास में टॉप थ्री में आओ। और मैं भी यही चाहता हूं कि तुम्हारा अच्छा परफॉर्मेंस होना चाहिए। हां, पढ़ाई के साथ-साथ लाइफ स्किल्स भी जरूर सीखते रहो, आगे बहुत काम आएंगे। एक बात और, अच्छी कम्यूनिकेशन की कला सीखने पर भी विशेष ध्यान देना। जब हम बड़े हो गए और काम करने लगे तब हमें कोई यह नहीं पुछता था कि हम कितने नंबर स्कूल फाईनल में लाये थे – सामने वाला व्यक्ति तो हमारे ज्ञान की परख लेता है और साथ में अगर हमें अपनी बात को प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करना आ गया तो जीवन में सफलता जरूर मिलेगी।

आज तुम्हें तो घर पर तुम्हारी मम्मी पढ़ाई करवा देती है। हमारे समय में तो हमारे पेरेंट्स कम ही पढ़े-लिखे होते थे। स्कूल की पढ़ाई के अतिरिक्त कुछ पढ़ाई करने के लिए हमें स्कूल के या पड़ोस में रह रहे मास्टरजी के पास ट्यूशन के लिए भेज दिया जाता था। उनसे हमें घरेलू काम और अच्छे संस्कारो की भी शिक्षा मिलती थी। कॉलेज में एडमिशन लेने के लिए भी बड़े भाई या पड़ोस के परिवार के भैय्या लोगों से सहयोग लेते थे। हममे से कम ही लोग होते थे जो ग्रेजुएशन करने के बाद बहुत ज्यादा पढ़ पाते थे, कारण जीविकोपार्जन करने मे लग जाना जरूरी हो जाता था। इस कारण छोटी आयु में ही पिता जी के साथ दुकान जाना या ऑफिस की शिक्षा दी जाती थी। लेकिन आज, बच्चों तुम्हारे पास बहुत ऑप्शन्स हैं। बहुत सोच समझकर अपने केरियर के विषय में आज से ही विचार करना आरंभ कर देना।

हमलोगों के पास आज जैसी सहुलियत उपलब्ध नहीं होती थी। गाड़ियां भी बहुत कम परिवार में होती थी। स्कूल हमलोग पैदल जाते थे या साइकिल पर बड़े छोड़ आते थे। ट्रेफिक न के बराबर होने के कारण पैदल जाना भी काफी सुरछित होता था और पॉल्यूशन भी परेशान नहीं करता था। तुम सब के लिए तो स्कूल बस आ जाती हैं और कुछ बच्चों को तो उनकी गाड़ी छोड़ने आती है।

आज तुम सबको पॉल्यूशन जो इतना परेशान कर रहा है उसकी थोड़ी-बहुत जिम्मेदारी हम पर जरूर आती है। फिर भी आज की लाइफ स्टाइल ज्यादा जिम्मेदार है। ये जो हम यूज एंड थ्रो का कल्चर अपनाने लगे है, इससे भी एनवायरमेंट बहुत खराब हो रहा है। हमारे समय मैं हम रीयूज पर, रिपेयरिंग कर काम चलाने पर ज्यादा जोर देते थे। आज कोई भी वस्तु की आवश्यकता होती है, ऑनलाइन मंगवा लिया जाता है। इनकी पैकेजिंग में ही कितने डब्बे, थर्मोकोल, प्लास्टिक का उपयोग हो जाता है और इन सबका असर पॉल्यूशन पर निश्चित होता है। तुमने देखा होगा सम्पन्न परिवार में हर सदस्य के लिए अलग गाड़ी होती है। इससे पॉल्यूशन तो बढ़ता ही है, सड़को पर ट्रेफिक का भी बुरा हाल होता है।

तुम सब इतने समझदार हो कि इस पॉल्यूशन से छुटकारा पाने का हल तुम्हें स्वयं ही ढूंढना होगा। इसका दुष्प्रभाव जो सेहत पर पड़ रहा हैं उससे तुम भली-भांति परिचित हो। पिछले सप्ताह ही मैं भारत की राजधानी दिल्ली के विषय में एक समाचार पढ़ रहा था कि वहां की हवा इतनी प्रदुषित हैं जैसे कि एक व्यक्ति कोई चालीस सिगरेट रोज पी रहा हो। स्कूल तक तो बंद करने पड़ गए है। तुम सब को बहुत गहराई से इस समस्या का समाथान ढुंढना होगा। सेहत ठीक रहेगी तभी तो काम कर सकोगे, मस्ती कर सकोगे।

अंत में हमारी ओर से यह सलाह तुम सबको जरूर रहेगी कि अपने से बड़ो का आदर करना बहुत आवश्यक है, फिर वो चाहे स्कूल में तुम्हारे अध्यापक हो या घर पर बड़े बुजुर्ग हो। अपने दोस्तों का चयन भी तुम्हें बहुत सोंच विचार कर करना होगा। अपनो से छोटों का भी पूरा ख्याल रखना और प्यार देना बहुत जरूरी है। अपने रिति रिवाज और संस्कारो को कभी भूलना नहीं चाहिये। सुख और दुख हर परिस्थिति में भगवान का स्मरन बराबर रखना चाहिए।

हम यहीं भगवान से प्रार्थना करते हैं कि उनकी कृपा तुम सब पर सदैव बनी रहें। हमारी ओर से ढेर सारा प्यार व आशीर्वाद।

तुम्हारे दादा-दादी

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बुढ़ापे में बच्चों का साथ कितना जरूरी

 आज एक पत्रकार के ट्विटर पोस्ट पर नजर गई और पढ़कर मन बहुत विचलित हो गया। पत्रकार ने लिखा कि उसे एक अस्सी वर्षीय व्यक्ति मिले जिनकी पत्नी का स्वर्गवास दस वर्ष पूर्व हो चुका था। उस बुजुर्ग के दोनो बच्चे अमेरिका में रहते है। पुत्र से तो वो चार वर्ष से मिले ही नहीं हैं। पत्रकार ने सही टिप्पणी की कि ऐसे मे तो यही लगता है कि बच्चे को जन्म ही क्यो दे अगर इतना दूर ही रहना है।

जिन्दगी के अंतिम वर्षो में हर किसी की यही आशा रहती है कि उनके आस-पास उनके बेटा-बेटी रहे। किस समय क्या आवश्यकता आ जाए क्या पता। डॉक्टर और हॉस्पिटल तक जाने के लिए भी तो कोई साथ चाहिए। केवल बहुत पैसे होने से सब कुछ आसान नहीं हो जाता।

एक और अजीबोगरीब किस्सा आपसे साझा कर रहा हूं। दक्षिण दिल्ली के एक पॉश कॉलोनी में बड़ी सी एक कोठी में एक बुजुर्ग व्यक्ति अकेले रहते थे। उनकी पत्नी का कुछ वर्ष पहले स्वर्गवास हो गया था। बेटा पढ़ाई के बाद जीविकोपार्जन के लिए अमेरिका चला गया। विवाह कर वहीं रहने लगा।

शुरुआती दिनो में तो माता-पिता से मिलने बेटा परिवार के साथ आ जाया करता था, पर धीरे धीरे यह आना-जाना बहुत कम हो गया। माताजी के स्वर्गवास के पश्चात तो बेटे का आना बंद ही हो गया। हां, रहन-सहन के लिए पर्याप्त धन राशि अमेरिका से बेटा नियमित भेज देता था। आयु तो बढ़ती रहती है, बिमारी के दिनो में भी बुजुर्ग को खुद ही अपने आप को संभालना पड़ता था। हद तो तब हो गई जब उनका देहांत हो गया। पड़ोसी ने उनके बेटे को अमेरिका फोन कर के दुखद समाचार दिया और आशा कर रहे थे कि बेटा बोलेगा कि मैं अगली फ्लाइट से आ रहा हूं, तब अंतिम संस्कार कर दिया जाएगा। पर पड़ोसी के तो पैरो के तले से जमीन ही घिसक गई, जब अमेरिकन हो गए बेटे से जवाब मिला कि अंतिम संस्कार आप कर दीजिए और जितना भी खर्च आए बता दीजिएगा, आपको तुरंत भुगतान कर दिया जाएगा।

ऐसे कई किस्से मिल जाएंगे बड़े शहरो में। पहले तो होड़ हो जाती है कि अच्छे से अच्छे स्कूल में बच्चो को पढ़ाये, फिर उनको उच्च शिक्षा मिले और उसके बाद विदेश में नौकरी। लाखों रुपए (डॉलर कन्वर्ट कर) की माहवारी सैलरी। माता-पिता थकते नहीं थे अपने बच्चें की उपलब्धी की बड़ाई करने में। अपने आप में गर्व महसुस करते थे। हर वर्ष उनके यहां महिनो रहने भी चले जाते थे। या फिर जब पोता-पोती होने का समय होता तो मिडवाइफरी करने चले गए। समय बीतता गया, उम्र बढ़ती गई और तब जमीनी हकीकत से सामना होने लगा। बच्चों का परिवार यहां माता-पिता के पास भारत आना नहीं चाहता और आप इस बढ़ती आयु में वहां जाना नहीं चाहते।

यह सब बांते अब बहुत आम हो गई है। अपने अगल-बगल बुजुर्ग व्यक्तियों के जीवन को खगोलेंगे तो कई ऐसे बुजुर्ग लोग मिल जाएंगे। बहुत तो ओल्ड एज होम में अपने अंतिम जीवन बिताने में भी झिझकते नहीं। पैसो की कमी न हो तो एक से एक बेहतरीन सुख-सुविधा वाले ऐसे वृद्ध आश्रम उपलब्ध है, जहां हम उम्र के साथी, मनोरंजन के साधन व स्वास्थ्य सम्बन्धित देखभाल की पूर्ण व्यवस्था होती है। अब तो हमने अपनेआप को इतना बदल लिया है कि इन सब बातो को बुरा भी नहीं मानते हैं।

उपरोक्त ट्वीट पर एक सज्जन ने बहुत सटीक टिपण्णी की है कि आज की जेनरेशन के लोग इस स्थिती को स्वीकार कर ले। चालीस-पचास वर्ष की आयु के व्यक्ति आज से ही यह प्लानिंग कर ले कि उन्हें बुढ़ापे में अकेले ही रहना है। ऑल्ड ऐज होम में रहने का ऑप्शन पर भी विचार करना सही होगा।

इन परिस्थतियों को देख कर लगता है कि आने वाले वर्षों में ऑल्ड ऐज होम कि आवश्यकता बहुत बढ़ जाएगी। रियल एस्टेट में लगे व्यक्तियों के लिए यह एक सुनहरा अवसर प्रतीत होता है।

एक और दृष्टिकोण पर गंभीरतापूर्वक विचार करने की आवश्यकता है। सम्मिलित परिवार में रहने से ऐसी परेशानियों से आराम से बचा जा सकता हैं। पर अब तो यह भी सोचना होगा कि सम्मिलित परिवार आप किसे कहेंगे जब परिवार में बच्चे ही एक या दो होंगे।

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Friday, January 03, 2025

हम रिटायर नही होंगे

आम तौर पर अवकाश प्राप्त, या कहे तो रिटायरमेंट, की उम्र साठ वर्ष तय की गई है। पहले यह 58 वर्ष थी। ऐसी भी खबर आ रही है कि रिटायरमेंट की उम्र 60 से बढ़ाकर 62 वर्ष करने पर सरकार विचार कर रही है।

रिटायर होने की सरकारी उम्र सीमा

अगर हम विश्व के और देशो से तुलना करे तो भारत में रिटायरमेंट उम्र कम है। युनाइटेड किंगडम में यह 66 वर्ष है, जिसे 2026 में 67 वर्ष किया जायेगा। इसी तरह अमेरिका, ग्रीस, डेनमार्क, आइसलैंड, इजराइल, इटली में रिटायरमेंट उम्र 67 वर्ष निश्चित की गई है।

फ्रांस में रिटायरमेंट उम्र को 2023 में 62 वर्ष से बढ़ाकर 64 वर्ष किया गया है। जब वहां की सरकार ने रिटायरमेंट उम्र बढ़ाने का यह निर्णय लिया तब वहां काफी प्रोटेस्ट हुआ था। फ़्रांस के इस नए रिटायरमेंट कानून में एक और प्रावधान हैं कि रिटायरमेंट बेनिफिट लेने के लिए उस व्यक्ति ने कम से कम 43 वर्ष अपना योगदान दिया हो।

रिटायरमेंट उम्र बढ़ाने का एक कारण यह भी है कि अब हमारी लाइफ एक्सपेकटेंसी या आयु संभाविता, जो कि सन 2000 में 62.27 वर्ष थी वो सन 2021 में बढकर 67.24 वर्ष हो गई है। हम जब काम कर सकते है तो रिटायरमेंट क्यों?

यह तो हुई तकनीकी दृष्टिकोण और उन पर लागू होती है जो कि नौकरी पेशा में है। दूसरी तरफ बहुत से ऐसे लोग भी है जो नौकरी नहीं करते है, पर उनकी भी उम्र तो बढ़ती जा रही है। ऐसे व्यक्ति को कब रिटायरमेंट लेना चाहिए। और फिर रिटायरमेंट का हमारे स्वास्थ्य से क्या सम्बन्ध है इस पर भी विचार करने की आवश्यकता है।

रिटायर होने की सामाजिक उम्र सीमा

हमारे यहां तो एक उम्र आने के बाद वानप्रस्थी होने का सभी पालन करते थे, पर शायद यह उस समय की बात है जब हम संयुक्त परिवार में रहते थे। आज के दिन जब अकेले-अकेले रहते हैं तो शायद यह कई बार संभव नहीं हो पाता है। फिर भी अपने स्वास्थ्य को ध्यान में रखकर अपने लिए रिटायरमेंट की एक उम्र की सीमा तो बनानी ही चाहिए। अगर ऐसा नहीं करेंगे तो जीवन के अंतिम पड़ाव में साथ कौन देगा।

एक बार मैंने यह वाक्या पढ़ा था। जब किसी से पूछा गया कि आप जिंदगी में क्या-क्या उपलब्ध किये तो उनका कहना था कि वो इतनी जमीन जायदाद एकत्र कर लिए जिससे की बच्चों को कोई तकलीफ न हो, उनकी शादी कर दी, वगैरह-वगैरह, सभी कर लिए। पर जब उनसे पूछा गया कि इस उम्र में आकर क्या आपके पास चार साथी हैं जो कि आपके साथ समय बिता सके इस घड़ी में, तब उनका जवाब ना ही था।

हमारे “नेवर से रिटायर्ड” ग्रुप में जब कई लोगों से चर्चा होती है या उनके विचार पोस्ट में आते हैं तो सबसे ज्यादा लोगों की जो आवश्यकता नजर आती है वह है कि ढलती उम्र में उनको कोई साथी चाहिए जो उनसे बात कर सके। कई बार तो इस उम्र में आकर जीवन साथी भी साथ छोड़ देता है। ऐसे समय तो दोस्तो की आवश्यकता अधिक पड़ती है। वैसे एक जानकारी यहां साझा करना चाहूंगा कि अब इस कमी को दूर करने के लिए भी प्रोफेशनल सर्विसेज शुरु हो गई है।

कब रिटायर हों?

मै रिटायरमेंट और स्वास्थ्य के सम्बन्ध के विषय में बात कर रहा था। इस पर कुछ और चर्चा करते है।

हमारा स्वास्थ्य जब तक ठीक रहे, जब तक कुछ भी कार्य करने लायक हो तब तक हमे पूर्ण रुप से रिटायरमेंट के विषय में सोचना भी नहीं चाहिए। अगर हम कुछ काम नहीं करेंगे तो घर वालो की नजर में भी हम सम्मान नहीं पायेंगे। अगर हम कुछ भी कार्य करते रहेंगे तो हमारा दिन भर का समय बहुत अच्छी तरह बीत जाएगा और मन में संतुष्टि भी होगी कि आज मैने यह किया। घर वाले भी खुश होंगे। और यहीं संतुष्टि आपके स्वास्थ्य को सही रखने में सबसे बड़ा सहायक होता है।

इस उम्र में हम क्या कर सकते है उस पर फिर कभी बात करेंगे।

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वरिष्ठ जन के लिए मंदिर में दर्शन सुगम कैसे बनाएँ

मैं वृंदावन आया हुआ हूं और यहां प्रचंड गर्मी होते हुए भी अच्छी खासी भीड़ है। एक जगह बैठा हुआ था कुछ जानकार बंधु जन के साथ। बातचीत चलने लगी कि हमारे तीर्थ स्थलों पर वरिष्ठ जनों का क्या हाल होता है। क्या वे आराम से भगवान के दर्शन भी कर सकते हैं।

इसी क्रम में बहुत बात चलती रही और जगह-जगह पर अलग-अलग मंदिरो की चर्चाएं होती रही। एक बात समझ में आई कि हम भारतीय या यूं कहें हम सनातनी लोग इस और ज्यादा ध्यान नहीं दिए हैं।

किसी भी मंदिर में चले जाएं और वहां पर इस दृष्टि से अगर चारों तरफ नजर दौड़ाएं तो पाएंगे कि वरिष्ठ जन बहुत मुश्किल से भगवान के दर्शन करने में सफल होते है। किसी कोने में देखेंगे किसी वरिष्ठ व्यक्ति को दो-दो लोग पकड़ के, अच्छी खासी भीड़ में भी, भगवान के सामने किसी तरह लाते हैं जिससे कि वो कुछ क्षणों के लिए भगवान का दर्शन कर सके। मंदिर के अंदर पहुंचने में भी बहुत कठिनाई होती है। वैसे भी हमारे मंदिरों में इतने ज्यादा श्रद्धालु आते हैं की जवान तक को दर्शन करने में मुश्किलें आती है, तो फिर व्यस्क व्यक्तियों का तो क्या हाल होता होगा सोचिए जरा।

आज का ही एक वाक्या सुनाता हूं। एक मंदिर में एक वरिष्ठ पति पत्नी को देखा भगवान के सामने नतमस्तक करते हुए। कोई सत्तर वर्ष से ज्यादा के लग रहे थे। दर्शन कर जब लौट रहे थे तब नजर गई और देखा कि उस अधेड़ उम्र की माताजी के एक पांव में तकलीफ है और वो बिगर सहारा के चल नही सकती। उनको मंदिर में दर्शन कराने के लिए उनके पति, जो खुद काफी उम्र के लग रहे थे, उनका सहारा बने। इस मंदिर में तो केवल दो ही सीढी चढनी थी, इस कारण परेशानी नहीं हुई पर ज्यादातर जगह तो काफी सीढी होती है।

इसे एक और दृष्टिकोण से भी देखना चाहिए। हमारे यहां जब ज्यादातर लोग एक उम्र के बाद तीर्थ स्थान पर जाना अपना कर्तव्य और शायद समय के अनुसार ज्यादा जाना चाहते हैं। और यही वह समय है जब वह उतने स्वस्थ नहीं रहते हैं। ऐसे में अगर हम सही सुविधा उन्हें दें तो शायद इससे बड़ा हम उपकार उन पर नहीं कर सकते हैं। और साथ-साथ हम उनकी धार्मिक भावनाओं को भी (उजागर) कर सकेंगे।

ध्यान आ रहा है कि तिरूपति मंदिर में वरिष्ठ व्यक्तियों के लिए कुछ विशेष प्रबंध किए गए हैं। एक निश्चित स्थान तक आप वरिष्ठ जन को ले जाए और फिर मंदिर के स्वयंसेवक उनको दर्शन करवा देते है। हो सकता है कुछ और मंदिर में भी व्यस्क व्यक्तियो के लिए विशेष प्रबंध किए गए हो।

चलिए जरा विचार करें की इस समस्या का समाधान तो हमें ही ढूंढना होगा ना। इन बिंदुओं पर नजर करें

  1. श्रद्धालुओं की इतनी भीड़ को देखते हुए क्या हम एक निश्चित समय केवल वरिष्ठ जनों के लिए उपलब्ध करा सकते है क्या? हो सकता है दिन के 18 घंटे में कोई दो घंटा का समय केवल वरिष्ठ जन के लिए ही हो। इसमें एक दिक्कत आएगी कि ज्यादातर वरिष्ठ जन किसी छोटे उम्र के व्यक्ति के साथ ही आते हैं, क्योंकि वह अकेले चल फिर नहीं सकते। लेकिन यह तो मामूली बात है और इसका समाधान भी निकल ही आएगा।
  2. अपने को मंदिर में भगवान के दर्शन जहां से करते हैं, वहां तक वरिष्ठ जन को पहुंचने के लिए सुगम मार्ग बनाना होगा। ऐसा मार्ग बनाना होगा कि व्हीलचेयर वाले भी मंदिर में भगवान के सामने पहुंच सके।सीढ़ीओ के बगल में एक स्लोप भी बनाना चाहिए जिससे कि व्हीलचेयर आराम से ऊपर जा सके।

एक और पहलू पर भी यहां ध्यान देना आवश्यक है। हमारे संस्कार हमें सिखाते है कि बड़ो को सम्मान देना हमारा दायित्व है। उन्हें हर प्रकार से सहयोग देना हमारा कर्तव्य है। इसी क्रम में कभी किसी भी मंदिर में हम अगर कोई वरिष्ठ नागरिक को देखे तो आगे बढ़कर उनका सहयोग करना चाहिए। और तो और केवल उनसे अगर कुछ पल बात ही करले तो वो बहुत प्रसन्न हो जाएंगे। मंदिर में भगवान तो आपके इस सेवा कार्य को देख ही रहे हैं, ये वरिष्ठ व्यक्ति भी आपको जी भर आशीर्वाद देंगे।

आपके भी सुझाव साझा करे।

वरिष्ठ प्रवासी भारतीय वापस आने को उत्सुक

हमारे बहुत से भारतीय जो अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया या अन्य देश में बस गए हैं वह वापस आना चाहते हैं, खास करके वरिष्ठ नागरिक। उनको अभी भी अपनी मिट्टी से बहुत प्यार है और वह यहां का वातावरण भूल नहीं पा रहे हैं। वहां जाकर करोड़ों रुपया जरूर कमाए हैं, फिर भी इस माटी की खुशबू उन्हें वापस आने को मजबूर कर रही है।

अभी-अभी इलेक्शन समाप्त हुए हैं और नई सरकार भी आ गई है। मोदी जी पुनः तीसरी बार प्रधानमंत्री का पद भार संभाला हैं।

इलेक्शन के प्रचार के समय एक सवाल बार-बार पूछा जाता था कि पिछले 10 वर्ष में मोदी जी ने किया क्या है। बहुत सी उपलब्धियां बताई जाती थी जिसमें ज्यादातर इंफ्रास्ट्रक्चर के विषय में होती थी। और भी बातें बताई जाती थी पर एक बात जो सामने डायरेक्टली नहीं आती थी वह है कि इन सब का हमारे एनआरआई, हमारे खुद के लोग जो विदेश में जाकर बस गए थे, उन पर क्या असर कर रही है।

एक रिपोर्ट के अनुसार हमारे बहुत से भारतीय जो अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया या अन्य देश में बस गए हैं वह वापस आना चाहते हैं, खास करके वरिष्ठ नागरिक। उनको अभी भी अपनी मिट्टी से बहुत प्यार है और वह यहां का वातावरण भूल नहीं पा रहे हैं। वहां जाकर करोड़ों रुपया जरूर कमाए हैं, फिर भी इस माटी की खुशबू उन्हें वापस आने को मजबूर कर रही है।

भारत में जो पारिवारिक वातावरण उनको मिलता था वह दुनिया में कहीं नहीं मिलता। यह पारिवारिक वातावरण केवल परिवार से नहीं बल्कि इष्ट मित्रों से भी मिलता था। यहां पर परिवार तो छोड़िए, जो मित्र एक बार आपका अपना बन जाता है वह कोई परिवार के सदस्य से कम नहीं होता है। आपके सुख-दुख में उसका उतना ही योगदान होता है जितना कि खुद के सगे भाई बहन से होता हो।

एक और दृष्टिकोण, जिस पर विशेष ध्यान देना पड़ता है, वह है आर्थिक पक्ष। हमने कितना ही धन अर्जित किया हो और कितनी ही सम्पत्ति जमा कर ली हो पर बुढ़ापे में भय लगा रहता है कि बीमारी में क्या पता कितना खर्च आ जाए। इस कारण थोड़ी बचत ही ठीक है। मरना कोई चाहता नहीं और साथ कुछ ले नहीं जा सकते, पर जीवन की यही सच्चाई है।

इस लिए, चाहे वह सामाजिक कारण हो या आर्थिक कारण हो या दोनो का मिला-जुला असर हो, कौन यहां वापस नहीं आना चाहेगा। हां, कुछ बुनियादी सहुलियतो पर हमें ध्यान जरूर देना होगा।

  1. विदेश का वातावरण साफ-सफाई की दृष्टि से, या हवा में पॉल्यूशन या पानी की क्वॉलिटी की दृष्टि से, भारत से उत्तम है। हमारे यहां कोई विदेश से मेहमान आता है तो इन सब विषय पर जरूर अपनी नाराजगी दिखते है। और यह सही भी है, क्योंकि इसका डायरेक्ट असर हमारी पर्सनल हेल्थ पर पड़ता है। रिटायरमेंट के बाद तो इस पर ध्यान देना और भी जरूरी है।
  2. छोटी-छोटी दैनिक जरूरते होती है जिसका कि डायरेक्ट रिलेशन एडमिनिस्ट्रेटिव लोगों के साथ है। बिजली विभाग, म्यूनिसिपल विभाग, वगैरह। अपने यहां जो सिस्टम हैं उससे वो लोग कम्फर्टेबल नहीं होते है।
  3. कुछ लोग यहां के ओल्ड ऐज होम में भी रहना पसंद करते है। आजकल अच्छी सुविधाजनक, ऐसे रहने के स्थान उपलब्घ है।
  4. सबसे जरूरी आवश्यकता होती है डॉक्टर व हॉस्पिटल की। सभी व्यस्क व्यक्ति के लिए तो इसके बगैर काम ही नहीं चल सकता। इसकी यहां सहुलियत अच्छी है। विदेश में न केवल ईलाज बहुत खर्चीला हैं, डाक्टर से एपाॅन्टमैन्ट तक लेने में बहुत समय लग जाता है।
  5. एक और चीज की जो आवश्यकता होती है वह है वरिष्ठ जनों को एक उम्र के बाद साथी की, जो उनको समय देकर उनसे बात कर सके। यह साथी यहां कुछ आसानी से मिल जाते है।

विदेश जाने का ट्रेंड सत्तर-अस्सी के दशक में जोरो पर था। कोई पच्चीस-तीस वर्ष के वो भारतीय आज बुजुर्ग की श्रेणी में आ चुके है। घर की याद, जहां उन्होने अपना बचपन बिताया, पढ़ाई की, यह सब कैसे भूल सकते है। उनका भारत की इस पावन भूमि में स्वागत है।

रिटायरमेंट की 3 चुनौतीयां

आप अपने जॉब से तो रिटायरमेंट ले लेते है एक निश्चित उम्र में, पर जीवन से रिटायरमेंट कब होगा यह तो आप तय नहीं कर सकते। रिटायरमेंट के बाद का जीवन अच्छी तरह निकले यही सही में लक्ष्य होना चाहिए। इस कालखंड में चुनौतियां भी बहुत आती है जिससे सही प्लानिंग और भगवत कृपा से हम सफलतापूर्वक पार पा सकते है।

रिटायरमेंट के पहले वर्ष में तो बहुत सी फॉर्मलिटी पूरी करते करते ही समय निकल जाता है। फिर शुरू होता है इस रिटायरमेंट के जीवन की असली शुरुआत। मन मे अनेक विचार आते रहते है। परिवार और मित्रो से अनगिनत ज्ञान मिलता रहता है। रात सोने समय नींद नहीं आती है।

शुरूआती दिनो में तो बहुत अच्छा लगता है कि अब ऑफिस नहीं जाना होगा, सुबह-सुबह जल्द उठकर तैयार होने का टेंशन नहीं होगा, देर तक बिस्तर पर पड़े रहने का मजा ले सकेंगे। पर यह सब सपना ही रह जाता है।

ऑफिस से तो छुटकारा मिल गया पर अब दिनभर क्या करेंगे और आर्थिक जरूरते क्या पूरी हो सकेगी, हम इसी का चिन्तन करते रहते है। यह स्वाभाविक भी है। कुछ दिनो पहले तक तो एक रूटीन बनी हुई थी दिन भर की और अब जैसे लाइफ में कोई डिसिप्लीन ही नहीं।

इस नई जिन्दगी का एक निश्चित उद्देश्य अगर हम ढूंढ ले तो यह हमारी सबसे बड़ी जीत होगी। चुनौतियां हैं पर समाधान तो हमे ही निकालना होगा। चुनौतियां पारिवारिक हो सकती हैं, सेहत सम्बन्धित हो सकती है, आर्थिक या कोई अन्य भी हो सकती हैं।

पारिवारिक चुनौतियां

पारिवारिक चुनौतियों की बात करे तो सर्वप्रथम तो यहीं देखना होगा कि हमारे साथ इस समय है कौन-कौन। कितने ही रिटायर्ड व्यक्तियों को हम जानते होंगे जिनके बच्चे उनके साथ नहीं रहते। हां, ज्यादातर के बच्चों से उनके रिश्ते अच्छे है, समय-समय पर मिलना भी होता है और आर्थिक सहयोग भी करते है। पर समाज में ऐसे भी कई हैं जिनको यह सौभाग्य नहीं मिला है। ऐसे में चुनौतियां बहुत बढ़ जाती है। सबसे कठिन समय तो तब आता है जब आपका जीवन साथी भी छोड़कर चला जाता है और आपकी उम्र भी अंतिम पड़ाव की ओर अग्रसर रहती है। सीनियर्स को तो यही ख्याल रखना होगा कि उनका सम्बन्ध सभी से मधुर हो।

सेहत सम्बन्धित चुनौतियां

रिटायरमेंट के बाद अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखना बहुत ही आवश्यक है। काम करते समय तो बिजी लाइफ रहती थी, छुटपुट तकलीफ भी होती थी तो उस और ध्यान नहीं जाता था। पर अब समय कुछ और है। छोटा मोटा दर्द भी होने लगता है तो उस और ध्यान खिंचा जाता है। डॉक्टर के पास जाना भी एक बहुत बड़ा पहाड़ सा काम लगता है। इसलिए ऐसे में हमें अपने स्वास्थ्य का पूरा ख्याल रखना है, नियमित योग एवं सुबह की सैर करनी है और दवाईयां समय पर लेनी है। साथ साथ अपने जीवन साथी का भी पूरा ख्याल रखना है।

अच्छा स्वास्थ्य केवल शारीरिक ही नही होता। वो तो भगवन ने एक ढांचा बना रखा है। आप अपनी जवानी में शरीर की कितनी देखभाल करते थे, खान-पान में कितने डिसिप्लीन्ड रहते थे वगैरह आज के शारीरिक स्वास्थ्य का कारण हो सकता है, पर इससे ज्यादा जरूरी है मानसिक स्वास्थ्य। इसे स्वस्थ रखना निरंतर आवश्यक है। भूलना, खासकर व्यक्ति के नाम, तो बहुत आम बात है। फिर भी छोटा-मोटा हिसाब करना, दवाई समय पर लेना यह सब तो रोज की जरूरत है। वैसे आजकल आपका स्मार्ट फोन भी इनमे से कई काम कर सकता है। स्मार्ट फोन का भरपूर उपयोग करनेे के लिए आपके बच्चो के बच्चे आप को सही तरीके से सिखा सकते है।

कुछ वरिष्ठ जन आज भी अपनी गाड़ी चलाते है। उनसे मै यही कहूंगा की वो यह कार्य करते रहे। मेरा मानना है कि यह एक बहुत ही बेहतर मानसिक एक्सरसाइज है। हमारी सड़को पर जिस तरह की अनियंत्रित ट्रेफिक रहती है, उन मार्गो पर गाड़ी चलाना कोई खेल नही है, और मानसिक एक्सरसाइज तो अपने आप हो जाती है।

आर्थिक चुनौतियां

आर्थिक चुनौतियों का तो शायद रिटायरमेंट के बाद सभी को सामना करना पड़ता है। बिर्ले ही होंगे जिनको भगवान ने इतना कुछ दिया होगा कि इस काल में उनकी सभी आवश्यकताएं आराम से पूर्ण हो जाए। हमने पूर्व में बचत की जो आदत डाली थी, सही जगह जो इन्वेस्टमेंट किया था, वही सब आज काम आने वाली है। हम अपने उस पूर्व के जीवन में तो नहीं लौट सकते पर आज के युवा को यह जरूर सलाह देना चाहेंगे कि आने वाले जीवन की कल्पना कर बचत, सही इन्वेस्टमेंट, स्वास्थ्य, निजी सम्बन्ध पर अभी से ध्यान दे। समय कितनी जल्द निकला जा रहा है यह पता ही नहीं चलेगा कि आज का युवा कब वरिष्ठ जन की श्रेणी में पहुंच गया।

एक विशेष आग्रह सभी पाठको से

आपमे से कई लेखक होंगे और न भी हो तो बन जाइये। अपने विचार कलमबद्ध किजिए और साझा किजिए अपनी मित्र मंडली में, सोशल मिडिया पर, हमारे फेसबुक ग्रुप “नेवर से रिटायर्ड फोरम” पर या हमारी वेबसाइट www.neversayretired.in पर। आपने इस उम्र तक पहुंचने पर बहुत दुनिया देखी है। आपका ज्ञान व आपका अनुभव सबसे बड़ी पूंजी है। इसे दिल खोलकर बांटिए।

वरिष्ठ व्यक्ति का साथी व्हाट्सएप

व्हाट्सएप पर ही एक कहानी पढ़ी थी की एक दादी मां अकेली गांव में रहती थी। बहुत दिन हो गए थे परिवार से मिले जो की अलग अलग शहर में रहते थे। वह अपने सभी परिवार वालों को अपने पास एक रात बिताने के लिए बुलाती है। विचार आया कि बहुत दिन हो गए, सभी से खूब बातें करेंगे और पुरानी यादें ताजा हो जाएगी। निर्धारित दिन सभी परिवारजन एक के बाद एक आते गए। एक कारण तो यह था कि वह लोग भी दादी से मिले नहीं थे बहुत दिनों से और दूसरा रिस्पेक्ट भी देना था। आगे की कहानी दिलचस्प हो जाती है।

ज्यादातर परिवार के बुलाए हुए छोटे बड़े आ गये। आते ही दादी मां को आदरपुर्वक प्रणाम कर उनके कुशलक्षेम की जानकारी लेने लगे। इधर उधर की कुछ बाते करने के पश्चात अपने अपने मोबाइल फोन पर लग गए। सभी के पास स्मार्ट फोन थे। पहले तो अपने फोन के फिचर्स ही एक दूसरे से साझा करते रहे और उसके बाद कोई फेसबुक पर अपने स्टेटस देख रहे थे तो कोई इंस्टाग्राम पर तो कोई व्हाट्सएप पर। जिस उद्देश्य से दादी ने सबको बुलाया था वह तो धरा का धरा रह गया।

सच में देखे तो यही कहानी आज घर-घर में देखने को मिलती है। इस अकेलेपन को दूर करने के लिए वरिष्ठ जन भी इसी मोबाइल का अब सहारा लेने लगे हैं। इसमें सबसे सहज, इस टेक्नोलॉजी के युग को देखें तो, व्हाट्सएप नंबर वन पर है। और भी सोशल मीडिया के प्लेटफार्म है, जैसे की फेसबुक, यूट्यूब, टेलीग्राम, इंस्टाग्राम, वगैरह लेकिन सबसे ज्यादा प्रचलित बड़ों के लिए व्हाट्सएप ही है। कारण इसका उपयोग करना बहुत आसान है। इससे बात भी कर सकते और वो भी एक दूसरे को देखते हुए, वीडियो काॅल के द्वारा। ग्रुप काॅल की भी सुविधा है।

एक उम्र आने पर सबसे ज्यादा किसी को कोई आवश्यकता पड़ती है तो वह है उनसे कोई बात करने वाला उनके पास हो। सभी के पास परिवार साथ हो यह सौभाग्य नहीं मिलता। किसी के बच्चे अपनी जीविकोपार्जन के कारण, तो कुछ के रिश्ते में कड़वाहट आने के कारण और कुछ के तो दुर्भाग्यवश कोई होता ही नहीं – ऐसे मे अकेले अपना जीवन चलाना ही पड़ता है। वरिष्ठ व्यक्ति, खास कर वो जो अकेले रहते है, उनका सबसे प्रिय मित्र आज कोई है तो वो निश्चित उनका मोबाइल और उसमे व्हाट्सएप है।

हां, बड़े-बुजूर्ग को मोबाइल पर ऑनलाइन हो रहे फ्राॅड से बच के रहना चाहिए। जहां बहुत से युवा भी इस तरह के फ्राॅड के शिकार हो रहें है, वहां वरिष्ठ जन को तो विषेश सावधानी रखनी ही होगी।

नेवर से रिटायर्ड द्वारा किए एक सर्वे से पता चला कि व्हाट्सएप के बाद अगर सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर किसी का नंबर आता है तो वह है फेसबुक।

इस उम्र में हमारा मोबाइल फोन तो बहुत कुछ कर सकता है। बहुत से ऐसे फीचर्स भी है इसमें, जो कि आज के युवा भी शायद पूरी तरह नहीं समझ सकते हैं या उपयोग नहीं करते हैं। इस परिस्थिति में अगर वरिष्ठ जन केवल व्हाट्सएप उपयोग करें तो कोई ताज्जुब नहीं है। व्हाट्सएप पर इतनी सामग्री आने लगी है कि कई बार तो लगता है की इतना देखने का समय भी कैसे किसी को मिल सकता है। ग्रुप भी बहुत बन जाते हैं – पारिवारिक ग्रुप, दोस्तों का ग्रुप, कुछ विशेष धार्मिक या एंटरटेनमेंट या राजनीतिक ग्रुप, और सभी ग्रुप में अलग-अलग तरह के मैसेज आते हैं। हालांकि, बहुत ग्रुप में केवल ग्रीटिंग के ही मैसेज जब आने लगते हैं तो काफी झुंझलाहट ही होती है।

आजकल बहुत सी वीडियो ऐसी बनने लगे है जो कि वरिष्ठ व्यक्तियो को ध्यान में रखकर ही बनाई गई है। बड़े उम्र के लोग को नृत्य करते हुए या गाना गाते हुए दिखाना, या वृद्ध जन के लिए विशेष योग व एक्सरसाइज वाली वीडियोज बहुत प्रचलन मे है। और यह सब हम देखते व्हाट्सएप पर है।

मै जिस सर्वे कि बात कर रहा था, उसमे कुछ दिलचस्प तथ्य सामने आए। व्हाट्सएप पर तो सभी थे ही और वो आधे घंटे से चार घंटे तक इसका उपयोग करते है। वो मैसेज पढ़ते है और अपने इच्छानुसार आगे भी पोस्ट करते है। सर्वे किए गए व्यक्तियो में काफी कम ऐसे थे जो अपना कुछ नया लिखते है। ऐसे मे मन मे एक बात आती है कि हम अपनी क्रिएटिविटी को तो खत्म ही कर दिए है। दूसरो का बनाया मैसेज हम पढ़ते है और जो पसंद आया उसे आगे फॉरवर्ड कर दिया। क्या हम इस ट्रेंड को बदल सकेंगे?

सर्वे में एक सवाल पूछा गया था कि व्हाट्सएप पर किस तरह के मैसेज पसंद किए जाते है। तीन ऑप्शन दिए गए थे – मनोरंजक, धार्मिक या राजनीतिक मैसेज। ज्यादातर लोग तो सभी तरह के मैसेज पसंद करते है पर मनोरंजक मैसेज इनमे से सबसे ज्यादा पसंद किए जाते है।

बहुत से ऐसे ग्रुप भी हैं जो बहुत सकारात्मक जानकारी देते है। एक सुझाव मेरी ओर से।

  • मित्रों/रिश्तेदारों का एक समूह बनाएं, जो सभी वरिष्ठ नागरिक हों। हालांकि, उन सभी को अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए आस-पास रहना चाहिए।
  • हर सुबह ग्रुप का प्रत्येक सदस्य अनिवार्य रूप से एक स्वागत संदेश पोस्ट करेगा – गुड मॉर्निंग या राम राम या जो भी हो। यह अभ्यास ग्रुप सदस्य की उपस्थित को चिह्नित करने के लिए है, या यूं कहें एटेन्डेंस लगाना।
  • मान लीजिए, एक सुबह किसी व्यक्ति ने कोई संदेश पोस्ट नहीं किया है, तो उस व्यक्ति की कुशलक्षेम के बारे में जानने के लिए फोन या उनके घर जाकर तत्काल संपर्क स्थापित किया जाना चाहिए। हो सकता है वो किसी मुसीबत मे हो। आजकल बहुत से लोग अकेले रह रहे हैं, उनमे यह प्रयास बहुत उपयोगी होगा।

इस आइडिया को नेवर से रिटायर्ड की वेबसाइट पर कोई दो वर्ष पहले पोस्ट किया गया था। उस समय बहुत से पाठक ऐसा ग्रुप बनाए थे। वेबसाइट पर इसे और इसी तरह के अन्य आइडिया पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करे
https://neversayretired.in/let-us-do-it/

स्वस्थ और प्रसन्न रहने के लिए वरिष्ठ व्यस्त रहें

स्वस्थ रहने के लिए अपने आप को इतना व्यस्त रखने की कोशिश करे कि ‘कुछ न करने’ का समय ही न मिले।

सुबह सुबह एक परिचित ने फोन किया। रिटायर्ड व्यक्तियो पर केंद्रित मेरे लेखो पर चर्चा करने लगे। वो अभी पचास वर्ष से कुछ ज्यादा के ही होंगे, पर मूल रूप से वरिष्ठ जन पर आधारित मेरे लेख अवश्य पढ़ते है। बोलते है कि कुछ ही वर्षो में वो भी वरिष्ठ व्यक्तियों की श्रेणी में आ ही जायेंगे।

फोन करने का कारण पूछा तो बोले कि उनके माता-पिता, जो कि पचहत्तर से ज्यादा उम्र के है, अपनी जिंदगी को सकारात्मक एजिंग की ओर न ले जाकर ज्यादातर समय व्यर्थ ही गंवाते है। और जब कुछ ठोस कार्य नहीं होता है तो नकारात्मक विचार आते है, जिसका स्वास्थ्य पर भी असर होता है।

स्वस्थ रहने के लिए अपने आप को इतना व्यस्त रखने की कोशिश करे कि ‘कुछ न करने’ का समय ही न मिले। आप कहेंगे यह सब ज्ञान देना बहुत आसान है, प्रेक्टिकल में यह इतना सरल नहीं है। यह तो एक मनोवृति बन जाती है जिससे दूर जाना मुश्किल है।

आपको अपनी रुचि के अनुसार अपना कार्य ढूंढ कर इस पर अपना पूरा ध्यान केंद्रित करना होगा।

एक दिन एक सत्तर वर्ष के व्यक्ति के मन में आया कि वो हारमोनियम सीखेंगे और साथ में अपने जमाने के गाने गाना सीखेंगे। उन्होंने अपने जीवनसाथी से इस विषय पर चर्चा की। पहले तो उन्होंने उसे मजाक समझ कर टाल दिया, पर जब उन्होंने अपने पति की दृढ़ता देखी तो उन्होंने भी भरपूर सहयोग देने का आश्वासन दिया। इस उम्र में आकर उन्होंने एक टीचर रखा और रियाज करने में समय लगाने लगे। वक्त निकलता गया और करीब दो वर्ष में इतने निपुण हो गए कि उनको साथियो व परिवार के बीच में अपनी कला दिखाने का मौका मिलने लगा। उनको अंदर ही अंदर संतुष्टी मिलने लगी, स्वस्थ और प्रसन्न रहने लगे। वो भी खुश और परिवार वाले भी खुश।

आपके घर में अगर छोटा-मोटा बागीचा हो या कुछ गमले ही हो तो लग जाइये बागवानी करने को। और ऐसी बागवानी किजिए की सभी आपकी तारीफ करने लगे। अपने मोबाइल पर गुगल महाराज के पास जाकर पौधों की इतनी जानकारी लिजिए कि आपके आसपास जो भी रहते है, उन्हें आप अपने ज्ञान से मंत्रमुग्ध कर दे। आपको बहुत संतुष्टी मिलेगी, यह निश्चित है।

एक और उदाहरण के विषय में बात करते है। एक व्यक्ति इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर करीब 35 वर्ष तक कार्य करने के बाद रिटायर हुए। रिटायरमेंट के कुछ वर्ष बाद ही उनके मन में आया कि वे अपने ज्ञान व अनुभव को व्यर्थ नहीं जाने देंगे। उन्होंन ठान लिया कि वो समाज के गरीब युवा वर्ग को स्किल सिखाने में अपना समय लगायेंगे। उन युवाओं को इस लायक बनाना कि वो अपने परिवार का पालन-पोषण करने लगे, यहीं उन्होंने अपना ध्येय बनाया।

कुछ समय पहले मैने ऐसा ही एक समाचार रांची के किसी अखबार में पढ़ा था। कोल इंडिया से रिटायरमेंट के बाद पांच-छह इंजीनियर्स ने गरीब बच्चो के लिए, जो कि आई आई टी में दाखिला लेने के इच्छुक थे, कोचिंग क्लास शुरु कर दी।

मैने तो कुछ ही उदाहरण दिए हैं। आप सभी इतने अनुभवी है, कि आप खुद ही कुछ न कुछ कार्य अपने लिए ढूंढ लेंगे। बस मन मे ठान लिजिए कि हमें स्वस्थ्य रहना है, किसी पर बोझ नहीं बनना है, और जरूरतमंद की सहायता करनी है।

जरा सोचिए कि आप अगर अपने आप को व्यस्त रखेंगे तो आपके स्वास्थ्य पर इसका कितना सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। परिवार के अन्य लोग को भी यह बहुत अच्छा लगेगा। समाज आपको आदरपूर्वक नजरो से देखेगा। अन्य रिटायर्ड व्यक्ति आपके कार्य से प्रभावित होकर कुछ अपना शुरु करने के लिए प्रोत्साहित हो सकते है।

इस उम्र में आकर हमें यही ध्यान रखना है कि हम खो जाए अपनी जिन्दगी में। हम मौत का इन्तजार न करे। व्यर्थ में यह नहीं विचार करे कि कौन-कौन हमसे मिलने आते है। हम तो यह निश्चय करे कि हमे जिनसे प्यार मिलता है उनसे हम बार-बार मिले।

अभी तो हमे वर्षो अपने अनुभव को साझा करना है, खुद स्वस्थ रहना है, और उसको दूसरो के लिए उपयोगी बनाना है।