We have all been criticising about what is not being done by the government. However, we rarely give our own solutions to any problem that we see. May be the suggestion is ridiculous - but still if we look things in a positive way may be we can suggest solutions which some one can like and decide to implement. I know this is very wishful thinking but this is surely better than just criticising.

Monday, September 19, 2022

हम रिटायर हो हीं क्यूँ जबकि Age is Just a Number

क्या आप जानते हैं कि मानव की सबसे गुणवत्तापूर्ण परिणाम देने वाली आयु कौन सी होती है? किस आयुवर्ग में मनुष्य सर्वाधिक उपयुक्त हो सकता है?

  • बीस से तीस?
  • पच्चीस से पैंतीस?
  • जी नहीं, साठ से सत्तर

जी, सही पढ़ा आपने। 60 से 70 आयुवर्ग के युवा सबसे बेहतर गुणवत्तापूर्ण परिणाम दे सकते हैं। ये जानकारी कोई और नहीं, न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन की रिपोर्ट है जो 2018 में प्रकाशित हुई। एक और ध्यातव्य तथ्य है कि नोबल पुरस्कार पाने वालों की औसत आयु 62 वर्ष है। दुनिया की सर्वाधिक ख्यातिलब्ध फार्च्यून – 500 कंपनियों के मुख्य कार्यकारी अधिकारियों की औसत आयु भी 63 वर्ष है।

मानव को संसाधन यूँ ही नहीं कहा जाता, अंग्रेजी में कहें तो हम सब रिसोर्सेस हैं जिनकी कुछ न कुछ प्रासंगिकता अवश्य है। जिस आयुवय में मानव अपने सर्वोत्तम परिणाम देने की स्थिति में आता है, दुर्भाग्य से सेवाओं से निवृत्त कर दिया जाता है।

सोचिये, जिस व्यक्ति ने अनुभव और ज्ञान अर्जित किया हो, उसकी प्रतिभा रिटायर होकर यूँ ही व्यर्थ हो जाए तो देश और समाज का कितना नुकसान हो? ऐसे मानव संसाधनों के अनुभवी ज्ञान का उपयोग राष्ट्र निर्माण एवं समाज कल्याण में लगे तो भारत देश प्रगति के नित नव सोपान गढ़े।

ये प्रतिभा संपन्न मानवीय संसाधन यदि किसी संस्था के माध्यम से अपने अनुभव एवं ज्ञान का प्रयोग किसी विशेष परियोजना अथवा कार्य में लगाएँ तो विकास की गति को तीव्र करने में क्या ही समय लगे?

एक विश्वसनीय रिपोर्ट के अनुसार, प्रतिदिन 15000 लोग, केवल भारत में, सेवानिवृत्त होते हैं। मान लीजिये कि एक व्यक्ति औसतन 25 वर्ष की आयु में नौकरी/स्व-रोजगार पर नियुक्त होता है और 60 वर्ष तक कार्यरत रहता है तो औसतन प्रतिव्यक्ति 35 वर्षों का अनुभव, ज्ञान, स्किल हम विगत अनेकों वर्षों से खोते चले आ रहे हैं। यदि इस अनुभव का उपयोग किया जाए तो अरबों-खरबों रुपये का लाभ सरकार को हो तथा सेवानिवृत्ति पश्चात् भी लोग अपने अर्थ को सुदृढ़ करते रहें। और देश को भी पेंशनर्स की जगह सेल्फ-एम्प्लॉयड/स्किल्ड वर्कफोर्स मिले जो अर्थव्यवस्था को मजबूत करे, और पारिवारिक एवं सामाजिक रूप से भी सर्वस्वीकार्य एवं सम्मानित हों।

रिटायर होने के बाद घर बैठने वाले बुजुर्ग समाज एवं परिवार में वही सम्मान एवं स्वीकार्यता नहीं पाते जो उनके पहले सहज ही प्राप्य थी। ऐसे में मानसिक तनाव एवं उससे उपजी बीमारियों के इलाज में होने वाले खर्च का बोझ परिवार पर भी पड़ता है, समाज पर भी एवं राष्ट्र पर भी। देश जिस अनुभव से आगे बढ़ सकता है उससे भी वंचित रह जाता है।

इसीलिए, सिर्फ शरीर और मन को ही चलायमान मत रखिये, अपने कौशल एवं अनुभव का उपयोग कीजिये, खुद को किसी संस्था के साथ, सामाजिक संगठनों के साथ अथवा सरकारी/व्यक्तिगत/स्वरोजगार के कार्यों में लगा कर तनाव से भी मुक्त रहा जा सकता है, देश की जीडीपी में भी योगदान दिया जा सकता है एवं समाज में प्रतिष्ठा बनाये रखी जा सकती है।

यदि आप किसी भी प्रकार के रुग्ण(बीमारी) से पीड़ित न हों तो बहुत संभव है कि 75 वर्ष की तरुण आयुवय में भी सहज रूपेण कार्यरत रहा जा सकता है। माननीय उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश, न्यायमूर्ति एन वी रमन्ना ने भी कहा कि उच्चतम न्यायालयों के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयु 65 वर्ष करने पर विमर्श किया जाना चाहिए, उनके पास अभी भी सामाजिक जीवन में कार्यरत रहने योग्य ऊर्जा है।

व्यक्तिगत अनुभवों से एक प्रसंग साझा करना चाहूंगा, कुछ दिन पूर्व ही मुझे एक 94 वर्षीय महानुभाव से मिलने का अनुभव मिला। उनकी ऊर्जा अचंभित कर गई। उनके जीवन दर्शन ने मुझे प्रेरित किया, युवासदृश ऊर्जा का अनुभव हुआ। उनके साथ हुए वार्तालाप के प्रमुख विषय थे – मॉडर्न टेक्नोलॉजी, एस्ट्रोनॉमी, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस। इस भेंटवार्ता को लेखक ने At 94, L N Jhunjhunwala confident of attaining the age of 116 शीर्षक से कलमबद्ध भी किया है।

इसी तरह एक 52 वर्षीय महिला से भेंटवार्ता हुई। आश्चर्य जनक तथ्य यह है कि उन्होंने 48 वर्ष की आयु में पर्वतारोहण के विषय में सीखना आरंभ किया और विश्व की प्रमुख ऊँची चोटियों पर अपने साहस एवं परिश्रम का ध्वज सफलतापूर्वक गाढ़ भी दिया। अभिप्राय यह है कि यदि मानव तय कर ले तो आयु एक अंक ही है, ये मानक स्थापित हो जाता है – “ऐज इज जस्ट अ नंबर।

जब तक आप स्वस्थ हैं, कार्यरत रहिये। इस पंक्ति का एक दूसरा पहलू ये भी है कि जब तक आप कार्यरत हैं, आप स्वस्थ हैं। गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने भी कर्म को ही प्रमुख कहा है। ये विश्व कर्मप्रधान है। हम कर्म करते रहते हैं, स्वस्थ रहते हैं किन्तु जैसे ही रिटायर होकर कर्म त्याग देते हैं, तनाव से दोस्ती हो जाती है, बीमारियाँ बेरोकटोक आती जाती हैं, इसीलिए मानव को कर्म करते रहना चाहिए, रिटायर होने का भाव त्याग कर। वैसे भी योगिराज प्रभु श्री कृष्ण ने कहा है: –

“कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥”

कर्म के इसी सिद्धांत को दृष्टिगोचर करते हुए, लेखक ने एक सामाजिक प्रयास आरंभ किया है जिसे “नेवर से रिटायर्ड” (website www.neversayretired.in) कहा जाता है। आज देश के प्रबुद्ध जनों में अपने लेखों एवं अभियानों के माध्यम से अपना स्थान बना रही है ये वेबसाइट। देशहित, समाजकल्याण एवं स्वयं की उपस्थिति के लिए आज ही रजिस्टर करें और अपने एक नेरेटिव स्थापित करें कि देश की सबसे कीमती बुजुर्ग हैं। आइये देश निर्माण में एक कदम उठाएँ – संकल्पों का, परिश्रम का, अपने अनुभव और ज्ञान का।

चूँकि साठ के हैं आप इसलिए विशिष्ट हैं आप। 

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