We have all been criticising about what is not being done by the government. However, we rarely give our own solutions to any problem that we see. May be the suggestion is ridiculous - but still if we look things in a positive way may be we can suggest solutions which some one can like and decide to implement. I know this is very wishful thinking but this is surely better than just criticising.

Saturday, April 19, 2025

बुजुर्गो का आन्तरिक सखा, मोबाइल फोन

 जब युवा अपने बुज़ुर्ग माता-पिता या प्रियजनों को मोबाइल फोन पर घंटों अपना समय बिताते देखते हैं तब उनके मन में थोड़ी थोड़ी निराशा होने लगती है। हाल ही में मेरी एक ऐसे व्यक्ति से बातचीत हुई जो अपने पिता के मोबाइल डिवाइस के लगातार उपयोग से चिंतित थे। “बस वो केवल अपना समय बर्बाद कर रहे है,” उन्होंने कहां। “अगर ध्यान दे तो वो कुछ अधिक उत्पादक काम कर सकते थे।”

लेकिन केवल फोन पर व्यस्त रहने की उनकी आदत के लिए उनसे नाराज होने के बजाय, मैंने अपना दूसरा दृश्टिकोण पेश किया। क्या हमने कभी यह विचार किया कि उनसे बात करने वाले भी तो कोई नहीं है, इसी कारण वह अपना ज्यादा समय इस फोन के माध्यम से बिताते हैं। तकलीफ तो हमें तब होनी चाहिए जब हम उनके पास बैठते है, उनसे बात करने कि कोशिश करते है पर वो अपने मोबाइल को छोड़ ही नहीं रहे हैं और हमारी बातों को अनसुनी कर रहे हैं।

जुड़ना भी एक कला है

जैसे-जैसे लोगों की उम्र बढ़ती है, अकेलापन एक मूक साथी बन जाता है। कई वरिष्ठ नागरिकों के लिए, खास तौर पर जो अकेले रहते हैं, उनके फोन दुनिया की एक खिड़की के समान हो सकते हैं, जहां एक छोटी सी स्क्रीन पर बहुत कुछ दिखने को मिल जाता है। ठीक उसी प्रकार जब हम अपने कमरे की खिड़की खोलते हैं, बाहर के दृश्य को देख कर मन को बहुत शकून मिलता है। ऐसे समय में जब आपसी संपर्क कम हो जाता है, डिजिटल रूप से दूसरों से जुड़ने की क्षमता एक जीवन रेखा हो सकती है। वाट्सएप, फेसबुक और यहाँ तक कि यूट्यूब जैसे सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म सिर्फ मनोरंजन ही नहीं, उससे कहीं ज़्यादा देते हैं – वे वरिष्ठ नागरिकों को सामाजिक रूप से जुड़े रहने, देश-दुनिया में क्या हो रहा हैं उसकी जानकारी और व्यस्त रहने का एक साधन देते हैं।

डिजिटल इंटरेक्शन का आशीर्वाद

कुछ लोग फेसबुक पर अंतहीन स्क्रॉलिंग या यूट्यूब पर वीडियो देखना समय की बर्बादी मानते हैं, पर इसके आगे भी विचार करना महत्वपूर्ण है। कई वृद्ध वयस्कों के लिए यह अक्सर उनका एकमात्र इंटरेक्शन होता है। चाहे वह पुराने दोस्तों के साथ संदेशों का आदान-प्रदान हो या परिवार के सदस्यों के साथ रहना हो, ये छोटी-छोटी बातचीत अपनेपन की भावनाओं से जुड़ जाती हैं।

इसके अलावा, ऑनलाइन उपलब्ध सामग्री की प्रचुरता के साथ, वरिष्ठ नागरिक ऐसे वीडियो तक पहुंच सकते हैं जो उन्हें आन्तरिक सुकून देते हैं। उनमें से कई आध्यात्मिक और धार्मिक प्रवचनों की तलाश करते हैं – ये नासमझी को विचलित करने वाले नहीं हैं, बल्कि सांत्वना के स्रोत हैं जो उन्हें अपने विश्वास और दुनिया से अधिक जुड़ाव महसूस करने में सहयोग करते हैं। ये डिजिटल संसाधन उन्हें शांति और समझ की भावना प्रदान करते हैं और गहराई से देखे तो सुकून प्राप्त कराते हैं, खासकर जब वे अपने जीवन के अंतिम वर्षों पर विचार करते हैं।

डिजिटल युग में आध्यात्मिक और शैक्षिक मूल्य

आधुनिक तकनीक की खूबसूरती यह है कि यह हमें सीखने और विकास के लिए अंतहीन अवसर प्रदान करती है। वरिष्ठ नागरिकों के लिए, यूट्यूब और अन्य प्लेटफ़ॉर्म मनोरंजन से कहीं बढ़कर बन गए हैं – वे आध्यात्मिक पोषण के साधन हैं। चाहे भरपूर धर्मोपदेश सुनना हो, निर्देशित ध्यान देखना हो, या धार्मिक शिक्षाओं की खोज करना हो। ये डिजिटल स्थान अक्सर स्वर्णिम वर्षों में उद्देश्य और अर्थ की अत्यंत आवश्यक भावना प्रदान करते हैं।

स्क्रीन टाइम पर एक अलग नजरिया

अपने प्रियजनों की फोन की आदतों को आंकने या उनकी इस आदत से नाराज होने से पहले, यह विचार करना जरूरी है कि स्क्रीन के दूसरी तरफ़ क्या हो रहा है। कई वरिष्ठ नागरिकों के लिए, उनके फोन दुनिया से जुड़ने का एक तरीका हैं, भले ही वे कितना ही अकेला जीवन यापन कर रहे हैं। शायद उनके मोबाइल फोन के उपयोग को निराश करने वाली चीज के रूप में देखने के बजाय, हम इसे एक ऐसे उपकरण के रूप में देख सकते हैं जो उन्हें जुड़ने, सीखने और एक समृद्ध, अधिक संतुष्टिदायक जीवन जीने में सहायता करता है। कभी कभी मोबाइल को वो अपना अन्तरंग सखा भी मान लेते है।

युवा जन यह समझे कि जब आप अपने बुज़ुर्ग माता-पिता या रिश्तेदार को अपने फ़ोन पर स्क्रॉल करते हुए देखें, तो याद रखें कि वो केवल अपना समय बर्बाद नहीं कर रहे हैं। हो सकता है कि वे किसी दोस्त से बात कर रहे हों, कोई सार्थक वीडियो देख रहे हों या आध्यात्मिक बातचीत में सांत्वना पा रहे हों। इस डिजिटल युग में, स्मार्टफ़ोन सिर्फ युवा पीढ़ी के लिए नहीं हैं – वे वरिष्ठ नागरिकों को जुड़ने, सीखने और बुढ़ापे की चुनौतियों का थोड़ा और शांति से जीवन का सामना करने में सहयोग कर रहे हैं। यह भी विचार करना चाहिए कि अगर उनके पास मोबाइल न होगा तब उनके व्यवहार में शायद काफी चिड़चिड़ापन और उदासी नजर आएगी।

असली सवाल यह नहीं है कि बुजुर्ग अपने फोन पर बहुत ज़्यादा समय बिताते हैं या नहीं, बल्कि यह है कि क्या घर में अन्य उनसे आमने-सामने बात करने के लिए पर्याप्त समय देते हैं। घर वालो की पर्याप्तता ही बुजुर्गो की सम्पूर्णता है।

वरिष्ठ जन परेशानियों से चिंतित कम रहे

पिछले दिनों वृंदावन में मुझे स्वामी गिरिशानंद जी महाराज द्वारा भागवत कथा को श्रवण करने का सैभाग्य मिला। एक सुबह वह कह रहे थे कि हर किसी की जिंदगी में परेशानियां आती ही है। यहां तक की भगवान श्री कृष्ण के जीवन में भी बहुत परेशानियां रही है और वह अपने कार्यों से उन परेशानियों से बाहर आने के लिए समाधान खोज ही लेते थे।

यही हाल बुजुर्गों का भी है, जब कुछ न कुछ परेशानियां लगी ही रहेगी। एक उम्र आने के बाद ब्लड प्रेशर होना, हार्ट की बीमारी, अर्थराइटिस, डायबिटीज यह सब तो बहुत आम बात हो गई है। बिरले ही ऐसे लोग होंगे जो इन सभी से बचे हो। हां कुछ को एक बीमारी लगती है या कुछ को ज्यादा हो सकती है। वित्तीय आवश्यकताएं पूरी न होने से भी परेशानियां होती ही हैं। हम इनका समाधान कैसे कर सकते है इस पर ध्यान देना होगा। इन परिस्थितियों के रहते हुए हम अपनी जिंदगी कैसे अच्छी रख सकते हैं यह विचारणीय विषय है।

हम अगर अपने स्वास्थ्य की बात करें तो इस उम्र में आकर यह तो विचार न करें कि जवानी के समय जिस तरह से दौड़ लगा सकते थे, सीढ़ियां चढ़ सकते थे या किसी भी तरह का भोजन कर सकते थे, वह आज भी कर सके। अगर भगवान ने हमें एक निश्चित जिंदगी दी है तो उम्र के अनुसार ही हमें अपनी गतिविधियां भी रखनी होगी।

अक्सर देखा गया है कि हमें थोड़ी सी भी परेशानी हुई और हम इतने ज्यादा चिंतित हो जाते हैं कि उससे और परेशानियां बढ़ जाती है। कितनी ही बार हमारे सामने कोई परिचित आ जाते हैं और हम उनके नाम को भूल जाते हैं और हम विचार करने लगते हैं कि हमें तो अब किसी का नाम ही याद नहीं रहता। हमारी याददाश्त कितनी खराब हो गई है। लेकिन कभी आपने यह सोचा है कि भगवान ने हमें बनाया ही ऐसा है कि एक उम्र के बाद हमारी इंद्रियों में सक्रियता कम हो जाती हैं। अपने आप को तो हम किस्मत वाले समझे कि हमें डिमेंशिया या ऐसी कोई विशेष बिमारी नहीं हुइ है। हम नाम भूल जाते हैं लेकिन चेहरा देखकर वह व्यक्ति याद आ जाता है। क्या यह कोई बड़ी बात नहीं है।

इसी तरह जब हमें दांतों की बीमारी होती है तो हम बहुत परेशान हो जाते हैं। माना कि दांतों का इलाज खर्चीला भी है और समय भी बहुत लगता है, पर जीवन के इस मोड़ पर इनका खराब होना तो स्वाभाविक ही है। आप अपने मित्रों में ही अगर देखेंगे तो कई को तो डेंन्चर लग चुके हैं और सभी के दांतों में कुछ ना कुछ परेशानी रहती है। अगर हमने अपने खान-पान में और बताए हुए नियमों का पालन कम उम्र में किया होते तो शायद यह दांतों की बीमारी कम होती। बहुत से ऐसे लोग भी मिल जाएंगे जो हाथ से मंजन भी करते हैं, दत्तून का प्रयोग भी करते हैं और आज अपने दांतों से गन्ना छीलकर खा सकते हैं। दांतों की तकलीफ बहुत आम हैं, चिंतित कम हो, अच्छे डेन्टिस्ट से सही इलाज करवायें।

बहुत से बुजुर्ग अपने झड़ते हुये बालों पर बहुत चिंतित होते हैं। खासकर के पुरुष वर्ग को लगता है कि उनका गंजापन होना शायद सबको नजर आने लगता है कि अब तो वह बूढ़े हो चुके हैं। हम अपने आसपास देखेंगे तो आजकल युवा भी बहुत से ऐसे नजर आ जाएंगे जो की गंजेपन का शिकार हो चुके हैं। महिलाएं अक्सर चर्चा करती है कि उनके बाल बहुत झड़ने लगे हैं। हम यह मानकर चलें कि यह नार्मल है। जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है बालों का झड़ना तो होता ही है। बहुत सी औषधियां बाजार में बिक रही है, इस समस्या के निवारण के लिए, लेकिन अक्सर तो यही देखा गया है कि उनकी मार्केटिंग पर जोर ज्यादा रहता है और असर कुछ कम ही करता है।

कुछ बिमारियां हैं जो माता-पिता से बच्चों में उनकी आनुवंशिक सामग्री (DNA) के माध्यम से विरासत में मिलती हैं। कुछ है जो हमारे गलत खान-पान से हमें हो जाती है। बढ़ती उम्र में इन सब समस्याओं पर माथा खपाने से कोई लाभ नहीं होगा।

हम बिल्कुल चिंता मुक्त हो जाए यह तो संभव ही नहीं है। लेकिन हां, हमारी परेशानियों को अगर हम किसी ऐसे व्यक्ति से साझा करें जो हमारे दुख दर्द को समझता हो तो हमें कुछ राहत जरूर मिलेगी। दिन भर अपने को किसी न किसी काम में व्यस्त रखना, पैदल घूमना, व्यायाम करना, गपशप करना चाहिए। इससे रात में जब बिस्तर पर सोने जाएंगे तो नींद जल्दी और अच्छी आएगी। यहीं वह समय है जब हम अपनी परेशानियों पर सबसे ज्यादा चिंता करते हैं और नीद नहीं आती हैं। भगवत ध्यान करने से भी अपनी चिंताओ को दूर करने में बहुत सहयोग मिलता हैं।

बुजुर्गों में सामाजिक अलगाव से जन्म लेती समस्याएं

आज हमारे समाज में एक गहन चिंता का विषय बन गया है बुजुर्गों में सामाजिक अलगाव। इसका नुकसान भावनात्मक और शारीरिक, दोनों तरह के सम्बन्धों से होता है। जब वरिष्ठ नागरिक अपने परिवार, समुदाय और यहां तक कि साथियों से भी अलग-थलग हो जाते हैं, तो इसके परिणाम अकेलेपन से कहीं ज़्यादा हो सकते हैं। इस स्थिति में मानसिक स्वास्थ समस्या, पुरानी बीमारी और जीवन की गुणवत्ता में कमी, उभर कर सामने आने लगती हैं। हम-उम्र के साथियों से मिलना भी दूभर हो जाता है। उनमें से कुछ तो भगवान को प्यारे हो गये होते है। स्थिति विशेष रूप से तब अधिक विकट हो जाती है जब बुजुर्ग व्यक्ति अपने जीवनसाथी को खो देते हैं या जब बच्चे दूर रहने लग जाते हैं।

मानसिक स्वास्थ पर सामाजिक अलगाव का प्रभाव

अवसाद, चिंता और संज्ञानात्मक गिरावट, जैसे कि याददास्त पर असर, तर्क करने की क्षमता या कल्पना करना जैसी मानसिक स्वास्थ समस्याएं अक्सर सामाजिक अलगाव से बढ़ जाती हैं। दोस्तों या परिवार के साथ नियमित बातचीत के बिना, बुजुर्गों में उदासी, चिंता या निराशा की भावनाएँ विकसित हो सकती हैं। उनका सामाजिक नेटवर्क समय बीतने के साथ सिकुड़ सकता है, जिससे उन्हें अनुभव साझा करने या भावनात्मक समर्थन प्राप्त करने के कम अवसर मिलते हैं। अकेलापन अक्सर डिमेंशिया और अल्जाइमर रोग जैसी स्थितियों की शुरुआत से जुड़ा होता है।

सामाजिक अलगाव का शारीरिक स्वास्थ पर प्रभाव

अलगाव के जोखिम सिर्फ़ मानसिक स्वास्थ्य तक ही सीमित नहीं हैं। जब वरिष्ठ नागरिक सामाजिक रूप से अलग-थलग हो जाते हैं, तो उनका शारीरिक स्वास्थ भी बिगड़ सकता है। शोध से पता चलता है कि सामाजिक अलगाव किसी व्यक्ति के स्वास्थ के लिए धूम्रपान या मोटापे जितना ही हानिकारक है।

परिवार की भूमिका: जब बच्चे दूर हों

बुढ़ापे के सबसे दर्दनाक पहलुओं में से एक यह एहसास है कि बच्चे अब शारीरिक रूप से सहायता प्रदान करने के लिए मौजूद नहीं हो सकते हैं। कई बुज़ुर्ग व्यक्तियों के लिए, भौगोलिक दूरी या व्यस्त जीवन के कारण बच्चों की अनुपस्थिति अकेलेपन की गहरी भावना पैदा कर सकती है। हालांकि आज टेक्नोलॉजी परिवारों को जुड़े रहने की अनुमति देती है, लेकिन बुजुर्ग व्यक्तियों और उनके बच्चों के बीच भावनात्मक और शारीरिक दूरी ऐसी स्थिति में भी भारी पड़ सकती है, वो गर्मजोशी नहीं हो सकती जो आमने-सामने बातचीत से मिलती है।

जीवनसाथी को खोने का दुख

जीवनसाथी की मृत्यु एक बुजुर्ग व्यक्ति के लिए सबसे बड़ी दुखदायी स्थिति होती है। जीवनसाथी सिर्फ़ साथी ही नहीं होते, बल्कि अक्सर भावनात्मक समर्थन, रोजाना साथ और देखभाल का प्राथमिक स्रोत होते हैं। जब वे गुजर जाते हैं, तो जीवित बचे जीवनसाथी को पूरी तरह से अलग-थलग महसूस होने लगता है, भले ही उनके आस-पास बच्चे या दोस्त हों। जीवनसाथी की निरंतर मौजूदगी के बिना, दैनिक दिनचर्या खाली लगने लगती है और भावनात्मक शून्यता अवसाद का कारण बन सकती है।

चक्र को तोड़ना: क्या किया जा सकता है?

सामाजिक अलगाव एक बढ़ती हुई चिंता है, पर इससे निपटने के तरीके हैं और हमारे बुजुर्ग प्रियजनों को अधिक जुड़ाव महसूस कराने में सहयोग कर सकते हैं। समाधान हमें ही ढूंढना हैं।

ग्रुप्स बना कर गतिविधियां करना बहुत आवश्यक हैं। दूसरी और प्रौद्योगिकी ने दूर रह रहे व्यक्तियों के साथ भी जुड़ना आसान बना दिया है। अब दूरी कोई बाधा नहीं हैं। वीडियो कॉल, सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म और ऑनलाइन समुदाय इस अंतर को पाट सकते हैं, बुजुर्ग व्यक्तियों को परिवार और दोस्तों के साथ जुड़े रहने का एक तरीका प्रदान करते हैं। हालाँकि, यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि वयस्कों के पास इन तकनीकों का उपयोग करने के लिए कौशल और सहायता हो। परिवार के सदस्य, यहाँ तक कि दूर रहने वाले संबधी भी, यह सुनिश्चित करने के लिए कदम उठा सकते हैं कि उनके बुजुर्ग रिश्तेदार अलग-थलग न रहें। नियमित फोन कॉल, पत्र या देखभाल पैकेज भेजना और मुलाकातों की योजना बनाना महत्वपूर्ण है। यदि मिलना संभव नहीं है, तो वर्चुअल मीटिंग के लिए शेड्यूल बनाना भावनात्मक संबंधों को बढ़ावा देने में मदद कर सकता है।

बुजुर्गों का सामाजिक अलगाव एक ऐसा विषय है जिस पर हमें ध्यान देने और सहानुभूति दिखाने की आवश्यकता है। यह जरूरी है कि हम ऐसे सहायता तंत्र बनाएं जो हमारे बुज़ुर्गों के मानसिक, भावनात्मक और शारीरिक स्वास्थ की रक्षा करें। इस प्रक्रियां में सरकारी तंत्र को भी आगे आना होगा। स्वयंसेवी संस्थाएं बहुत हैं जो स्कूलों, अस्पतालो, मंदिरो वगैरह चलाने में लगे हैं। आज की आवश्यकताओं को देखते हुए यह भी सुनिश्चित करना होगा की हम ऐसी स्वयंसेवी सस्थाएं का भी अधिकाधिक निर्माण करे जो कि बुजुर्गो की सामुदायिक जुड़ाव के लिए ज़्यादा संसाधन उपलब्ध कराने के लिए काम करे।

हमें ही देखना हैं कि हमारे बुजुर्ग प्रियजन न सिर्फ लंबे समय तक जीवित रहे, बल्कि स्वस्थ और खुशहाल जीवन जीएं।

वरिष्ठ जनों के बीच डिजिटल डिवाइड को पाटना जरूरी

 आवश्यकता अनुसार आज हम बुजुर्ग भी अपनी जिंदगी के हर दिन टेकनोलोजी का उपयोग अवश्य करते हैं। इसकी आवश्यकता भी जरूरी हो गई है। अपना बिजली का बिल पेमेंट, इंश्योरेंस का प्रीमियम, बैंक का कोई ट्रांजैक्शन करना हो या किसी से कुछ पैसा मंगाना – भेजना हो, आज सब कुछ अपने फोन पर एक क्लिक से किया जा सकता हैं। अपने घर के लिये रोज का राशन और फल सब्जी भी आप अपने फोन से आर्डर कर मंगवा सकते हैं और पेमेंट भी घर पर जब सामान आ जाए उसी फोन से कर सकते हैं। परेशानी उस समय आती है जब हमारे पास साधन होते हुए भी हम उसका उपयोग सही ढंग से नहीं कर सकते हैं अपने अज्ञानता के कारण।

अपने चारों तरफ जब हम नजर घुमाते हैं तो पाते हैं कि हर व्यक्ति के पास स्मार्टफोन तो है और वह उसका उपयोग बहुत हद तक अपने प्रिय जनों से संपर्क करने में लगाता भी है, फिर वह चाहे उनसे बात करने में या व्हाट्सएप द्वारा मैसेज के आदान प्रदान करने में लगाये। स्मार्टफोन पर और वाट्सएप पर इतनी सुविधाएं हैं, पर हम इनका उपयोग तो अपनी समझ के अनुसार काफी कम ही करते हैं। बहुत बुजुर्गो को वीडियो कॉल करने में असहजता महसूस होती हैं जबकि यह एक ऐसा साधन है कि बुजुर्ग जब दूर भी हो अपने परिवार जनो से एक दूसरे को देखकर बातें कर सकते हैं। और भी कई साधन है एक दूसरे से ग्रुप में बात करने के जैसे कि गूगल मीट या जूम, पर सबसे प्रचलित तो व्हाट्सएप ही है।

हममें से कितनो को जानकारी हैं कि हम अपने वाट्सएप मैसेज को, जो कि हम स्मार्टफोन पर देखते हैं, इसे अपने लेफट़ॉप पर भी देख सकते है। आप जब किसी से बात कर रहे होते है वाट्सएप पर तो इस बात को रिकॉर्ड भी कर सकते हैं। यह भी देख सकते हैं कि आप जिससे संपर्क में है वो ऐप पर कब सक्रिय हैं और क्या वो संदेश टाइप कर रहे हैं या वे आखिरी बार बाट्सएप पर कब सक्रिय थे। व्हाट्सएप उपयोगकर्ता यह देख सकते है कि उनका संदेश कब भेजा गया, वितरित किया गया और प्राप्तकर्ता द्वारा कब पढ़ा गया। स्क्रीन शेयरिंग की सुविधा भी उपलब्ध है जिससे आप अपनी स्क्रीन पर मौजूद सामग्री को वास्तविक समय पर साझा कर सकते है। अपनी स्क्रीन शेयर करने के लिए आपको वीडियो कॉल में होना होगा। व्हाट्सएप कुछ समय पहले इन-चैट भुगतान की सुविधा उपलब्ध करायी है। खास बात इस एप की यह हैं कि व्हाट्सएप एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन का उपयोग करता है, जो एक सुरक्षित संचार प्रोटोकॉल है। इससे केवल बातचीत में शामिल पक्षों को एक-दूसरे के संदेशों को देखने की अनुमति वाट्सएप देता है।

इसी तरह गूगल से कोई जानकारी प्राप्त करने में सभी वरिष्ठ जन बहुत सक्षम नहीं होते हैं या गूगल मैप्स का उपयोग कर कहीं पहूंचना कठिन हो जाता है, उनके लिए। अपने स्मार्टफोन पर किसी की बात रिकॉर्डिंग करना, वीडियो बनाना, जोड़-घटाव वगैरह करना नौजवानो को तो बहुत आसान लगेगा पर बुजुर्ग व्यक्तियों को तो इसके लिए प्रशिक्षित होना होगा।

इसी डिजिटल डिवाइड को पाटना एक मुख्य चैलेंज है। इस कार्य को करने में सबसे ज्यादा सहयोग तो घर में नौजवान और छोटे बच्चे, जो कि आजकल इसमें बहुत निपुण है, कर सकते हैं। यह जिम्मेदारी घर में इन्हीं छोटे उम्र के लोगों की है कि वह बुजुर्गो को ज्यादा से ज्यादा जानकारी दे सकें।

आजकल ऑनलाइन क्लासेज भी ये प्रशिक्षण देने के लिए शुरू हुई है। इसका भी उपयोग करना चाहिए। यूट्यूब पर भी खूब जानकारी बहुत अच्छे तरीके से वीडियो के द्वारा बताई गई है, लेकिन सबसे पहले बुजुर्गो को यह तो बताना ही होगा कि ऑनलाइन इसका उपयोग कैसे करें या यूट्यूब से सीखने के लिए अपने स्मार्टफोन का उपयोग कैसे करें। अपने सवाल का गूगल, चेट-जीपीटी या अन्य प्लेटफार्म से पूछ कर बहुत उपयोगी उत्तर पाया जा सकता हैं। माइक्रोसॉफ्ट द्वारा भी फ्री डिजिटल साक्षरता पाठ्यक्रम चलाया जाता है, इसके विषय में भी जानकारी ली जा सकती है।

ट्रेनिंग इसकी भी होनी चाहिए की मजबूत पासवर्ड कैसे बनाया जाए और इसकी आवश्यकता क्यों है वरिष्ठ जन के लिए। कुछ विशेष एप्स भी उपलब्ध है वरिष्टजन के लिए, जो बहुत अच्छे हैं। इसके विषय में भी जानकारी प्राप्त करनी चाहिए।

इन सब जानकारियों के साथ बुजुर्गो को यह भी सीखना बहुत आवश्यक है की ऑनलाइन फ्रॉड से कैसे अपने आप को बचाएं। आजकल ऑनलाइन धोखाधड़ी के केस बहुत ज्यादा हो रहे हैं। इसी तरह आजकल एक नया फ्रॉड चला है डिजिटल अरेस्ट का। (इस विषय पर मेरा लेख, जिसका शिर्षक था, डिजिटल एरेस्ट का वरिष्टजन पर मंडराता खतरा, इस लिंक पर पढे़) रोज अपने दैनिक अखबार में इसके समाचार पढ़ने को मिल जाएंगे। सरकार भी बहुत सचेत हुई है और जागरुकता संदेश प्रचारित करती रहती हैं। पर ऐसी धोखाधड़ी से बचने के लिए हमें पूरा प्रयास करना होगा।

सबको मिलकर वरिष्ट जन के बीच डिजिटल साक्षरता का बढ़ाने का कार्य प्राथमिकता पर करना चाहिए।